बिरसा मुंडा के बचपन का नाम क्या है? - birasa munda ke bachapan ka naam kya hai?

भगवान् बिरसा मुंडा का जीवन परिचय (Bhagwan Birsa Munda , Age, Caste, Kahani, Kavita, Andolan, Airport,Park Biography in Hindi)

भगवान् बिरसा मुंडा एक क्रांतिकारी थे , जिन्होंने ब्रिटिश सरकार का जम कर विरोध किया . वे आदिवासी समुदाय से थे . इन्होने अपने समुदाय का दल बनाया और लोगों को अपने हक़ के लिए लड़ना सिखाया . केवल 25 साल की उम्र में ये देश के लिए कुर्बान हो गए , लेकिन अपने आप को अमर कर दिया , इन्हें इनके समुदाय के लोगों ने भगवान का दर्जा दिया है और इन्हें गर्व के साथ आज भी याद किया जाता है.

 बिरसा मुंडा के बारे मे कुछ जानकारी

नाम (Name) बिरसा मुंडा
निक नाम (Nick Name) बिरसा भगवान्
कार्य (Profession) स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
जन्म तारीख (DOB) 15 नवम्बर 1875
मृत्यु (Died) 9 जून 1900
जन्म स्थान (Birth Place) उलिहतु  , झारखण्ड
राशी (Zodiac Sign) वृश्चिक
होमटाउन (Home Town) कुंती
धर्म (Religion) हिन्दू

शिक्षा , जन्म स्थान एवं पारिवारिक जानकारी ( Education , Early Life , Birth and Family):

बिरसा मुंडा का जन्म रांची के उलिहतु गाँव में हुआ . इनके पिता का नाम सुगना मुंडा और इनकी माँ का नाम करमी हटू था . इनके जन्म के बाद इनका परिवार कुरुब्दा आकर रहने लगा . काम की तलाश में इनका परिवार जगह जगह भटकता रहता था . इनका अधिकाश बचपन चल्कड़ में गुजरा . बचपन में ये भेडो को चराने जंगल जाया करते थे , और वहां बांसुरी बजाते थे. इन्हें बांसुरी बजाना बहुत अच्छे से आता था . इनकी शिक्षा इनके मामा के गाँव अयुभत्तु में हुई . 

कैसे बने ईसाई :

बिरसा मुंडा एक बेहद गरीब परिवार से थे. इनके इनके माता पिता के पास पैसे की कमी के कारण बिरसा को अपने मामा के यहाँ अयुभत्तु गाँव में रहने के लिए भेजा गया . बिरसा बहुत ही होनहार थे , इसलिए उन्हें स्कूल पढने के लिए भेजा गया . बिरसा के शिक्षक ने उनकी पढाई में रूचि देख कर उन्हें क्रिश्चयन स्कूल में जाने जा सुझाव दिया . पहले क्रिश्चियन स्कूल में केवल ईसाई धर्म के बच्चे ही पढ़ सकते थे , और कोई अगर इस स्कूल में पढना चाहे तो उसे ईसाई धर्म में परिवर्तित होना पढता था , यही कारण था कि बिरसा मुंडा ने अपना धर्म बदल कर ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया . धर्म परिवर्तन के बाद इनका नाम बिरसा डेविड रखा गया . बेग़म हज़रत महल के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े 

अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन  :

 स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए कई जगह अलग अलग आंदोलन चल रहे थे . एक आंदोलन  चला था सरदार आंदोलन, जिसमे ब्रिटिश सरकार का विरोध किया जा रहा था और ईसाई स्कूलो का बहिष्कार किया जा रहा था . बिरसा के पिता ने , उनका नाम क्रिश्चियन स्कूल से  कटवा दिया . इसके बाद बिरसा, आनंद पांडे से जुड़े. आनंद पांडे ने उन्हें हिन्दुओ के धर्म के बारे में बताया . उन्होंने महाभारत , रामायण का अध्यन किया . बिरसा को हिन्दू और क्रिश्चियन धर्म दोनों का ज्ञान प्राप्त हुआ . बिरसा में हिन्दूत्व की भावना जाग्रत हुई और वे भी सरदार आंदोलन  का हिस्सा बने . इन्होने धर्म परिवर्तन का जम कर विरोध किया और अपने धर्म के प्रति जागरूकता फैलाई . बिरसा ने देखा कि अंग्रेज हमारी जमीन पर कब्जा  कर रहे है , लड़कियों की दलाली की जा रही है , लोगो को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जा रहा है , तो वे बेहद क्रोधित हुए और उन्होंने अंग्रेजो की इस निति का जम कर विरोध किया . लोगो को अपने धर्म का ज्ञान दिया, गौ हत्या का विरोध किया . इन्होने आदिवासियों के कृषि के तरीको में भी बदलाव किया ताकि वे ज्यादा मुनाफा कमा सके और नुकसान से भी बच जाए . कर से मुक्ति के लिए अंग्रेजो के खिलाफ मुहीम चलाई.   रानी लक्ष्मी बाई के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े

कैसे बने बिरसा मुंडा से भगवान् बिरसा मुंडा :

अंग्रेजो के बड़ते अत्याचार देखकर इन्होंने  अपने समुदाय के लोगो की रक्षा के लिए आगे आए और उन्हे अपने अधिकारों के प्रति सजग किया . हिन्दू धर्म के प्रति लोगों को जागरूक किया और अपने धर्म का अर्थ समझाया . इन्होंने गौ माता के पूजन का अर्थ समझाया और  कई आंदोलन  चलाए . अपने समुदाय के लिए अच्छे कार्य करने के लिए आदिवासी समुदाय के लोगो ने इन्हें भगवान का दर्जा दिया और इन्हें भगवान बिरसा मुंडा कहा जाने लगा .

रहस्यमय मौत (Bhagwan Birsa Munda Death)

बिरसा ने अंग्रेजो के खिलाफ अपनी एक सेना तैयार की जिसका नाम था गोरिल्ला सेना . जब बिरसा अपनी सेना के साथ चक्रपुर जम्कोपाई जंगल में आराम कर रहे थे , तब 3 फरवरी 1900 को अंग्रेजी सरकार ने बिरसा और उनके साथ 460 कार्यकर्त्ता को हिरासत में ले लिया इन्हें रांची की जेल में कैद करके रखा . बिरसा और सभी कार्यकर्ताओं पर बहुत ज्यादा अत्याचार किए गए बहुत से कार्यकर्त्ता जेल में ही मारे गए और 9 जून 1900 को बिरसा की मौत हो गई . इनकी मौत का कारण पूछा गया तो ब्रिटिश सरकार ने इन्हें हैजा नामक बीमारी से ग्रसित बताया जबकि उन्हें हैजा होने का कोई लक्षण नही दिख रहा था . इस प्रकार जेल में ही इनकी मौत हो गई, लेकिन उनके अच्छे कर्मो के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है .  बहादुर शाह ज़फर के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े 

बिरसा मुंडा के बारे में कुछ बातें ( Some other information about Birsa Munda ) :

  • बिरसा एक मात्र ऐसे आदिवासी नेता है जिनकी तस्वीर संसद भवन में लगी हुई है . बिरसा सात्विक जीवन , परस्पर सहयोग और बंधुत्व को ही अपना धर्म मानते थे .
  • इन्हें बचपन से बांसुरी बजाने का शौक था जब ये बचपन में जंगल में भेड़ चलाने जाते थे तब इन्होने खुद अपने हाथो से एक वाद्ययंत्र का निर्माण भी किया था .
  • बचपन से ही बिरसा की बातों में क्रांतिकारी विचार और अपने लोगो के प्रति प्रेम और देश भक्ति झलकती थी , जिसे सुनकर उनके माता पिता चिंतित हो जाते थे .
  • आज भी इन्हें इनकी प्रतिमा पर हार चड़ा कर श्रद्धांजली अर्पित की जाती है पर वास्तव में इन्हें श्रद्धांजली देने के लिए इनके बनाए गए सामाजिक , धार्मिक और संस्कृतिक जागरूकता अभियान को परिणाम तक पहुचांया जा सके यही असली श्रद्धांजली होगी .
  • बिरसा के आंदोलन को देख कर ब्रिटिश सरकार खतरे में ना आ जाए इसलिए बिरसा को पकड़ने के लिए उन पर ब्रिटिश सरकार द्वारा 500 रूपये की इनाम राशी घोषित की गई .

बिरसा मुंडा के नाम पर कॉलेज यूनिवर्सिटी और हॉस्पिटल निर्माण :

आदिवासी समुदाय के लोग मुख्य रूप से झारखण्ड , बिहार , उड़ीसा के लोग इनकी बहादुरी के लिए इन्हें याद करते है . इन्हें अपनी श्रधांजलि देने के लिए सरकार ने इनके नाम पर कई निर्माण करवाएं. इनके नाम पर कई स्कूल , कॉलेज , यूनिवर्सिटी , हॉस्पिटल और पार्क का निर्माण किया गया है जैसे बिरसा इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी , बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी , बिरसा मुंडा एथेलिटीक्स स्टेडियम , बिरसा मुंडा एअरपोर्ट , बिरसा मुंडा पार्क आदि . लार्ड कैनिंग के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े

बिरसा मुंडा के लिए कई कविताएँ लिखी गई है , उन्हें हम इस कविता से याद कर के श्रद्धांजली अर्पित करते है .

 भुजंग मेश्राम द्वारालिखित कविता  :-

बिरसा तम्हे कही से भी आना होगा

घास काटती दराती हो या लकड़ी काटती कुल्हाड़ी

यहाँ वहा से , पूरब – पश्चिम , उत्तर दक्षिण से

कही से भी आओ मेरे बिरसा

खेतो की बयार बन कर

लोग तेरी बाट जोटते”

 देश को आजाद कराने की इस लड़ाई में क्रन्तिकारी बिरसा मुंडा ने अपने प्राणों की आहुति दे दी , पर इनका नाम इतिहास के पन्नो में अमर हो गया . इन्हें आज भी इनकी बहादुरी के लिए याद किया जाता है . केवल 25 साल की उम्र में इतनी ख्याति प्राप्त कर इन्होने अपना जीवन मातृभूमि को कुर्बान कर दिया , इनका ये बलिदान व्यर्थ नही गया इनकी लगाई गई चिंगारी से देश में आजादी प्राप्ति की आग भड़क गई . ऐसे कई क्रांतिकारियों के बलिदानों के बाद ही हम आज एक स्वतंत्र भारत में सास ले पा रहे है . हमे गर्व है की हमारे देश में ऐसे साहसी क्रांतिकारी का जन्म हुआ .

Other links: 

  1. मंगल पांडे का जीवन परिचय 
  2. नाना साहिब का जीवन परिचय
  3. 1857 की क्रान्ति

बिरसा मुंडा का बचपन का नाम क्या था?

Notes: बिरसा मुंडा के बचपन का नाम दाऊद मुंडा था

बिरसा मुंडा का उपनाम क्या था?

मुंडा विद्रोह का नेतृत्‍व लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और जिससे उन्होंने अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके के लोग "धरती आबा"के नाम से पुकारा और पूजा करते थे।

बिरसा मुंडा के बड़े भाई का नाम क्या था?

बिरसा के बड़े भाई कोंता मुंडा 10 वर्ष के उम्र में कूंदी चला गया। वहां एक मुंडा के यहाँ नौकरी करने लगा और काफी अर्से तक वहीँ रह गया था

बिरसा मुंडा के माता का नाम क्या है?

Karmi Hatuबिरसा मुंडा / मांnull

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