चौपाई बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥ वह (ब्रह्म) बिना ही पैर के चलता है, बिना ही कान के सुनता है, बिना ही हाथ के नाना प्रकार के काम करता है, बिना मुँह (जिह्वा) के ही सारे (छहों) रसों का आनंद लेता है और बिना वाणी के बहुत योग्य वक्ता है।
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है। पन्ने की प्रगति अवस्था
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख
बिनु पग चलै सुनै बिनु काना में कौन सा अलंकार है?बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
बिनु पग चले सुने बिनु काना कर बिनु कर्म करें विधि नाना के प्रत्येक चरण में कितनी मात्राएं हैं?चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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