Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 3 आँखों देखा गदर (विष्णुभट्ट गोडसे वरसईकर)आँखों देखा गदर पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर Aankhon Dekha Gadar Bihar Board Class 11th प्रश्न 1. Class
11 Hindi Book Bihar Board प्रश्न 2. Digant Hindi Book Class 11 Pdf Download Bihar Board प्रश्न 3. Digant
Hindi Book Class 11 Bihar Board प्रश्न 4. Bihar Board Class 11th Hindi Book प्रश्न 5. Bihar Board Hindi Book Class 11 Pdf Download प्रश्न
6. Class 11th
Hindi Book Bihar Board प्रश्न 7. उस दिन बड़ा भीषण युद्ध हुआ। दोनों ओर के सिपाही जी-जान लगाकर लड़ रहे थे। . आमने-सामने की लड़ाई हो रही थी। बिगुल, नरसिंघों, तोपों इत्यादि से सारा वातावरण थर्रा रहा था। चारों तरफ मार-काट और चीख-पुकार मची थी। किन्तु इस लड़ाई में धीरे-धीरे तात्यां-टोपे एवं एवं झाँसी की रानी पिछड़ने लगी और अंग्रेज फौज भारी पड़ी। Bihar Board 11th Hindi Book Pdf प्रश्न 8. भेदिए की उक्त खबर सुनकर बाई साहब को बहुत राहत मिली और असीम आनंद मिला। उनका चेहरा खुशी से खिल उठा तथा उनमें नई शक्ति और साहस का संचार हुआ। Bihar Board Class 11 Hindi Book Solution प्रश्न 9. Bihar Board Hindi Book Class 11 Pdf प्रश्न 10. इसलिए इस समय मुफ्त में जान गँवाने से अच्छा है कि आप किले में जाकर दरवाजा बंद करके पहले सुरक्षित हो जाएँ और फिर कोई उपाय सोचे। बाई साहब उसकी बात मानकर वापस आ गई। दूसरी बार जब बाई साहब अंग्रेजी फौजों के वार से झाँसी की बर्बादी और लोगों की त्रासदी को देखते हुए जब अत्यंत खिन्न एवं उदास मन से लोगों की महल के बाहर चले जाने और स्वयं को महल में गोला-बारूद भरकर आग लगा कर जल-मरने की बात कहती हैं तो वही अनुभवी वृद्ध सरदार बड़ी समयोचित सलाह सुझाता है। वह स्पष्ट समझाता है कि महारानी आपको इस तरह निराश नहीं होना चाहिए। आत्महत्या करना बड़ा पाप है। इससे तो बहुत अच्छा है कि आदमी युद्ध करता हुआ स्वर्ग जीतने का उद्यम करे। इसलिए आपको इस समय धैर्य एवं गंभीरतापूर्वक इस कठिन स्थिति से उबरने का रास्ता निकालना चाहिए। उस वृद्ध सरदार के प्रबोधन क बाद रानी लक्ष्मीबाई को बहुत कुछ धीरज बँधा और वे स्वस्थ हुई। उनकी निराशा दूर हुई तथा उनमें तथा उनमें आशा एवं ओज का संचार हुआ। Bihar Board Class 11 Hindi Book प्रश्न 11. Class 11 Bihar Board Hindi Book प्रश्न 12. गोरे सिपाहियों के इस आतंक से सबके प्राण काँपने लगे। अतः जान बचाने के लिए जिसे जो उपाय सूझता, वही करता। सभी लोग इधर-उधर भागने लगे। कोई इधर गली में भागा तो कोई घर के तहखाने में दुबका तो कोई खेतो में जा छिपा। 11th Hindi Book Bihar Board प्रश्न 13. उपर्युक्त कथन से रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र की स्त्री सुलभ कोमलता, परदुःखकातरता और करुणार्द्रता आदि विशेषताएँ प्रकट होती हैं। साथ ही साथ इससे उनके व्यक्तित्व का यह वीरता से भरा महत्त्वपूर्ण पक्ष भी ध्वनित होता है कि वे शत्रुओं के हाथ पड़ने की अपेक्षा स्वयं मरण को वरण करना अच्छा समझती थी। Bihar Board 11th Hindi Book Pdf Download प्रश्न 14. Bihar
Board Class 11 Hindi Book Name प्रश्न 15. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बड़ी वीरतापूर्वक कई दिनों से अंग्रेजों के साथ लड़ाई करती चली आ रही थीं। पर, दुर्भाग्वया दिन पर दिन विजयश्री उनसे दूर ही होती जा रही थी, अत: उनके अंदर निराशा और अवसाद घर कर चुके थे। उसी मनःस्थिति में वे यह हृदयोद्गार व्यक्त करती है कि मुझे किसी भोग-विलास की कोई इच्छा नहीं। मै तो सिर्फ आध सेर चावल की हकदार थी और वह मुझे आसानी से मिल जाता, इसलिए मुझे अपने विधवा-धर्म को परित्याग कर युद्ध-कर्म में प्रवृत्त होने की कोई जरूरत न थी। किन्तु मै निश्चिंतता का जीवन छोड़ प्रजा एवं धर्म की रक्षा के विचार से युद्ध में कूद पड़ी हूँ और अब, जबकि मैं युद्ध छेड़ चुकी हूँ तो मुझे अपने लिए, सुख ऐश्वर्य मान या प्राण का कोई महत्त्व नहीं। मुझे इनमें से किसी की परवाह नहीं, मैं सबकी आशा छोड़ चुकी हूँ। रानी लक्ष्मीबाई के उपर्युक्त कथन में उनके हृदय की निराशा, प्रजावत्सलता एवं धर्म परायणता का भाव सहज रूप तें अभिव्यक्त है। किन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं कि उन्हें अपने किये पर कुछ अफसोस था, बल्कि यह तो युद्ध के दौरान विपक्षी की बढ़ती शक्ति और अपनी पराजय स्थिति से उत्पन्न वीरांगना की सहज, अकृत्रिम प्रतिक्रिया है। Bihar Board Class 11 Hindi Book Pdf प्रश्न 16. प्रश्न 17. कालपी में युद्ध के तीसरे दिन जब सिपाहियों को लगा कि अंग्रेजी फौजों से पार पाना मुश्किल है और जीत उन्हीं की होगी, तो उनमें से सैकड़ों लोग युद्ध का मैदान छोड़ शहर में घुसकर दंगा, लूट और स्त्रियों की दुर्दशा करने लगे। इतने में जब अंग्रेजों फौज भी आ गई तो वे सिपाही वहा से भाग चले। प्रश्न 18. फिर जब मुरार पर अंग्रेजों का हमला हुआ तो तात्या टोपे और राव साहब कि साथ लक्ष्मीबाई ने भी वहाँ भीषण युद्ध किया। मुरार के भीषण संग्राम में ही उन्हें गोली लगी। फिर भी वीरता की प्रतिमूर्ति लक्ष्मीबाई आगे बढ़-बढ़ कर दुश्मनों का सफाया करती रहीं। इसी बीच उनकी जाँघ पर तलवार का करारा प्रहार हुआ और वे घोड़े से गिरने लगीं। यह देख तात्या टोपे ने उन्हें संभाला और घोड़े को आगे बढ़ा दिया। इस प्रकार झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने लड़ाई में कभी भी शत्रुओं को पीठ नहीं दिखाई और युद्ध क्षेत्र में ही वीरगति को प्राप्त हुई। वस्तुतः उनकी वीरता अनुपम थी, जो सदैव वीरों को प्रेरित और अनुप्रमाणित करती रहेगी। प्रश्न 19. (क) परन्तु निराशा की शक्ति भी कुछ विलक्षण ही होती है। ऐसे तो अंग्रेजों की विजय देख झाँसी में हाहाकार मचा हुआ है, पर यह सच्चे शूर-वीरों की धरती है, जो अपनी आन की रक्षा में जान देना जानते हैं। जिनके लिए दुश्मन के आगे घुटने और यादहयों को यह ठित होने कापक्ति में निरी टेकने की बजाय उन्हें मारते हुए शहीद हो जाना, लाख गुना अच्छा है। सच्चे वीर कभी निराश नहीं होते और यदि कभी निराशा पास फटकती है तो उसी से वे विलक्षण शक्ति-स्फोट कराते है। झाँसी के सिपाहियों को यह जानकर कि निर्मम और निर्दय अंग्रेज ही जीतेंगे और झाँसी उन्हीं के हाथ लगेगी, साहस और शौर्य कुंठित होने की बजाय और बढ़ जाता है। वे और उत्साह एवं मनोबल के साथ युद्ध में जुट जाते हैं। प्रस्तुत पंक्ति में निराशा की विलक्षण शक्ति का संकेत किया गया है। (ख) भेड़िए जब भेड़ों के झुंड पर झपटते हैं, तब भेड़ों के प्राण की जो दशा होती है वही इस समय लोगों की थी। अंग्रेजी फौज झाँसी शहर में घुस चुकी थी और जनता पर बेंइतहा जुल्म ढा रही थी। बच्चा या बूढा जिसे भी सामने पाती; मौत के घाट उतार देती इतना ही नहीं, इन वहशियों ने शहर के एक भाग में आग भी लगा दी, जिससे सर्वत्र हाहाकार मच गया। उस समय निरीह नागरिकों को प्राण बचाने का कोई उपाय न सूझता था। इसी भीषण और करुण दृश्य का वर्णन करते हुए भेड़ों पर भेड़ियों के आक्रमण का उदाहरण दिया गया है। भेड़े अत्यंत निरीह और दुर्बल जीव होती हैं। भेड़िए के सामने उनका कोई वश नहीं चलता। जब भेडिये आक्रमण करते है तो भेड़ों की दशा अत्यंत करुण हो जाती है, उनके प्राण नशों में समा जाते हैं। वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती, अपनी जान भी नहीं बचा सकती। यही हाल उस गोरे सिपाहियों के आतंक और जुल्म के सामने झाँसी के निरीह एवं निहत्थी जनता की थी। इस पंक्ति के क्रूर सिपाहियों के लिए भेड़िए और निरीह जनता के लिए भेड़ों की उपमा बड़ी सटीक बैठती है। (ग) आत्महत्या करना बड़ा पाप है, दुःख में धैर्य धारण करके गंभीरतापूर्वक सोचना चाहिए कि उससे बचने के लिए आगे कोई रास्ता निकल सकता है या नहीं। झाँसी का वह वृद्ध सरदार रानी लक्ष्मीबाई को प्रबोध देता हुआ कहता है कि आप जैसी वीर नारी के लिए ऐसा करना कदापि उचित नहीं। वीर कभी पलायनवादी नहीं होते, वे तो हँसकर संकटों का सामना करते हैं। वास्तव में आत्म हत्या की बात करना कायस्व. यह वीरों का धर्म नहीं। विपत्ति आने पर धैर्य से काम लिया जाना चाहिए और गंभीरतापूर्वक सोचकर आगे के लिए बचाव का रास्ता निकालना चाहिए। इस प्रकार यहाँ वृद्ध सरदार श्रांत-क्लांत तथा निराश-हताश एवं पीड़ित झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को समयोचित सही सलाह देता है। रान पर इसका तदनुकूल प्रभाव पड़ता है और वे पुनः अपने पुण्य-कर्म में सन्नद्ध होती है। विपत्ति में धैर्य धारण करने की सीख तथा आत्महत्या जैसे कृत्य की निन्दा की बात सर्वथा उचित लगता है। भाषा की बात। प्रश्न 1. प्रश्न 2. दूरबीन-(स्त्रीलिंग)-यह दूरबीन पुरानी है। मंजिल-(पुल्लिंग)-हमें अपनी मंजिल पर पहुँचना है। भिक्षुक-(स्त्रीलिंग)-भिक्षुक को देख किसे दया नहीं आती। किला-(पुल्लिंग)-झाँसी का किला बड़ा मजबूत था। धूल-(पुल्लिंग)-आपके चरणों के धूल भी पावन हैं। प्रश्न 3.
उत्पत्ति की दृष्टि से शब्द मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं-तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशज। प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर। आँखों देखा गदर लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. आँखों देखा गदर अति लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. आँखों देखा गदर वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर। I. सही उत्तर का सांकेतिक चिह्न (क, ख, ग, या घ) लिखें। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें। प्रश्न. आँखों देखा गदर लेखक परिचय विष्णुभट्ट गोडसे वरसईकर (1828) भारम के प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 के गदर का आँखों देखा विस्तृत विवरण प्रस्तुत करने वाले श्री विष्णुभट गोडसे वरसईकर का जन्म 1828 ई. में महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले के ‘वरसई’ ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम पं. बालकृष्ण भट था। विष्णुभटजी ने स्वाध्याय द्वारा परंपरागत रूप में संस्कृत, मराठी आदि का गहन ज्ञान अर्जित किया था। उनका व्यक्तित्व आकर्षक एवं प्रभावशाली था। गौरवर्ण के ऊँचे और भव्य शरीर वाले विष्णुभटजी विद्वान एवं तेजस्वी पुरूष थे। पं. विष्णुभट गोडसे वरसईकर कोई पेशेवर लेखक नहीं, अपितु आजीविका से कर्मकांडी और पुरोहित थे। उनकी थोड़ी-बहुत खेती थी, परन्तु अपर्याप्त। परिवार को ऋण मुक्त करने तथा उसके समुचित निर्वाह के लिए धनार्जन हेतु वे उत्तर भारत की ओर आये थे, किन्तु सन् 1857 के गदन में फंस गये। मार्च 1857 में बैलगाड़ी से वे पुणे पहुँचे और वहाँ से इंदौर, अहमदनगर, धुलिया, सतपुड़ा होते हुए मध्यप्रदेश में महू पहुँचे जहाँ उन्हें सिपाहियों से क्रांति की खबरें पहले-पहल मिलीं। सिपाहियों की मनाही के बावजूद वे आगे बढ़ते हुए उज्जैन, धारा होते हुए ग्वालियर पहुँचे। इस बीच उन्होंने गदर की घटनाओं को बड़ी नजदीक से देखा-सुना था पुनः वे झाँसी आकर फंस गये। वहाँ वे इतिहासप्रसिद्ध वीरांगना झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के प्रत्यक्ष संपर्क में आये और उनका आश्रय तथा विश्वास प्राप्त कर काफी दिनों तक उनके साथ किले में रहे। उन्होंने अनेक कष्ट सहकर उत्तर भारत के कई तीर्थो की यात्रा की और करीब ढाई साल बाद अपने गाँव वरसई वापस लौटे। वहीं उन्होंने अपने प्रिय यजमान श्री चिन्तामणि विनायक वैद्य के अनुरोध पर अपनी यात्रा का आँखों देखा हाल स्मरण के आधार पर लिखा-‘माझाा प्रवास’। पं. विष्णुभट गोडसे वरसईकर की एक ही रचना है-माझा प्रवास (मेरा प्रवास), जो मूल रूप से मराठी में लिखित है। इस कृति में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई से संबंधित उनके संस्मरण प्रमाणिक रूप में प्रस्तुत हुए है। इसका हिन्दी अनुवाद सुप्रसिद्ध कथाकार और लेखक अमृतलाल नागर ने ‘आँखों देखा गदर’ नाम से बीसवी सदी के चौथे दशक में प्रस्तुत किया। इस प्रकार यह एक उत्कृष्ट यात्रा-संस्मरण है, जिसमें विद्वान लेखक विष्णुभट द्वारा यात्राओं के दौरान देखी-सुनी बातों का बड़ा यथार्थ, जीवंत और चित्ताकर्षक वर्णन हुआ है। आँखों देखा गदर पाठ का सारांश भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 के गदर का आँखों देखा विस्तृत विवरण प्रस्तुत करनेवाले भारतीय विष्णुभट गोडसे की उत्कृष्ट स्मृति ‘माझा प्रवास’ का प्रमाणिक भाषांतर ‘आँखों देखा गदर’ झाँसी प्रवास और लक्ष्मीबाई से जुड़े संस्मरण में अविकल रूप में प्रस्तुत है। वसंत की विदाई और ग्रीष्म ऋतु के राज्य में एक दिन झांसी शहर के दक्षिणी मैदान में गोरे पलटनों ने तम्बू झाँसी को अपने-अपने खूनी पंजों में गाड़ चुका था। दूसरे दिन गोरे पलटनों ने मोर्चा बाँधकर युद्ध का शंखनाद कर दिया। झाँसी के सैनिकों ने भी अंग्रेजी आक्रान्ताओं को खदेड़ने के लिए रणभेड़ी की दुर्दभि बजा दिया। तीसरे दिन अंग्रेजी पलटनों को शहर या किले के मोर्चा का पता चल गया और उनकी गरनाली तोपें चलने लगीं। शहर में तोप के गोले की अन्धाधुन्ध बारिस ने रैयतों को भयाक्रान्त कर दिया और छोटे घर खंडहर बनकर गिरने लगे। बाई साहब ने भी अंग्रेजों को ‘ईट का जनाब पत्थर’ से देने के लिए जबरदस्त नाकेबन्दी की। चौथे दिन अंग्रेजों के आक्रमक प्रहार ने किले के दक्षिण बुर्ज को बन्द कराकर हौलदिली फैला दी। दिन-रात लगातार युद्ध होने से शहर जर्जर हो गया। पाँचवें और छठे दिन भी युद्ध अनवरत जारी रहा। सातवें दिन सूर्यास्त के बाद शत्रुओं की तोपों ने बाई साहब के पश्चिमी मोर्चे को तोड़ डाला। कारीगर की चतुरता से पुनः मोर्चा बन्दी कर तोपों का मुँह खोल देने से अंग्रेज बहुत हताहत हुए। आठवें दिन बड़ा प्रलय मचा तथा घनघोर युद्ध हुआ। इस विकट घड़ी में पेशवा की तरफ से मदद न मिलने से बाई साहब किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। दसवें दिन कालपी से तात्यां टोपें पन्द्रह हजार फौजों को लेकर झाँसी पहुँचे। परन्तु तात्या टोपी की अकुशलता या हिन्दी सिपहियों को अशूरता ने उन्हें टूटकर भागने पर मजबूर कर दिया। इस प्रकार युद्ध की विभीषिका लगातार ग्यारह दिनों तक कायम रही। रानी लक्ष्मीबाई स्वयं अपने नेतृत्व में युद्ध का संचालन कुशलतापूर्वक की। परन्तु गोरी पलटनों ने घास की सीढ़ी बनाकर किले में घुस गए और भारी रक्तपात किया। बाई साहब ने भी पन्द्रह सौ विलायती बहादुरों की फौज का नेतृत्व कर अंग्रेजी पलटनों पर कहर ढा दिया। अंग्रेजी पलटनों की भीषण रक्तपात निरापराध प्राणियों की निर्मम हत्या ने बाई साहब को हिलाकर रख दिया। वह निरापराध प्राणियों की हत्या का पापी खुद को समझकर आत्महत्या के लिए उद्धत हो गई। परन्तु एक वृद्ध द्वारा आत्महत्या को महापाप करार देने तथा “आत्महत्या के पाप को संचय करने की अपेक्षा युद्ध में स्वर्ग जितना उत्तम है।” इन शब्दों से प्रभावित होकर वह मर्दाना पोशाक धारण कर अपने फौजों की जत्था के साथ कालपी के रास्ते चल दी। कालपी के रास्ते में लेखक से उनकी मुलाकात हुई। प्यास से व्याकुल बाई साहब को पानी के लिए तैयार लेखक को मना कर दिया कि ‘आप विद्वान है’। उन्हें खुद कुएँ से पानी खींचकर पीया जिससे उनकी महानता के प्रति उनका सर श्रद्ध से झुक गया। कालपी में युद्ध तीन दिनों तक चला। सैकड़ों की हत्या हुई। युद्ध में हार का अभास मिलते ही बाई साहब, तात्या टोपे और राव साहब जंगलों के लिए निकल गए। ग्वालियर में शिंदे की बहुत पलटनियों ने पेशवा पर मुरार नदी पर गोली चलाने से इंकार कर दिया। मुरार के घमासान युद्ध में झाँसीबाई को गोली लगी फिर तलवार का करार चोट खाकर महारानी घोड़े से गिरने लगीं। तात्यां टोपे ने उन्हें संभालकर घोड़ा आगे बढ़ा दिया। बाई साहब की नश्वर शरीर को एक जगह लोगों ने चिता पर रखकर तेज को तेज में विलीन कर दिया। रणाणण में क्रान्ति के दूत, मनुजता की पुजारी देवी स्वरूपिणी वीरांगना ने मृत्यु पाकर स्वर्ण जीता। इस प्रकार स्वतंत्रता संग्राम के देदीप्यमान सूर्य सदा के लिए अस्त हो गया। जब तक सृष्टि है, सूर्य और चन्द्रमा, धरती और जगत का अस्तित्व कायम है; उत्साह और शूरता से चमकनेवाली अनुजता के प्रेमाधिकारी, कालदधि का महास्तंभ आत्मा के नभ के तुंग केतू तथा मानवता के मर्मी सुजान, कालजयी, कालोदधि महास्तम्भ महारानी लक्ष्मीबाई का यशोगान इतिहास गाता रहेगा। आँखों देखा गदर कठिन शब्दों का अर्थ। बंदोबस्त-प्रबंध। गोलंदाज-गोला दागने वाला। रैय्यत-प्रजा। त्रास-भय। बंबा-पानी वाला बड़ा कनस्तर। नाकाबंदी-घेराबंदी। वायव्य-उत्तर-पश्चिम। बुर्ज-किले का सबसे ऊपरी गोलाकार हिस्सा। हौलदिली-भय, आतंक की मनोदशा। बुरुज-बुर्ज, गुंबद। अप्रतिम-फीका, चमकविहीन। जर्जर-कमजोर, पुराना। पलटन-सेना। नसेनी-सीढ़ी। ग्रास-निवाला। किंकर्तव्यविमूढ़-यह मनोदशा जिसमें कोई उपाय न सूझे। नरसिंहा-एक प्रकार का वाद्ययंत्र जो युद्ध में बजाया जाता है। बिगुल–एक प्रकार का वाद्ययंत्र जो युद्ध में बजाया जाता है। गाफिल-लापरवाह। परकोटा-किले की सुरक्षा दीवार। नादान- भोला। रिसाला-घुड़सवार। भेदिया-जासूस, भेद बताने वाला। बख्शीश-इनाम। शनि दृष्टि-बुरी नजर। भंबक-बड़ा छेद। गश्त लगाना-पहरा देना। बाजू-बाँह और सहस्त्र हजार। विजन-निर्जन, जनशून्य। दीवानखाना-मुख्य हॉल। शोक विह्वल-दुःख से व्याकुल। आर्तनाद-दुःख से भरी पुकार। जुगत-उपाय, युक्ति। माल-असबाब-समान। चिंताक्रांत-चिंता से घिरा हुआ। महापातकी-महानीय, महापापी। शूर-वीर। खास महल-महल का भीतरी हिस्सा जिसमें राजा-रानी रहते हैं। लश्कर-सेना का पड़ाव। हकीकत-वास्तविकता। सर कर लेना-जीत लेना। आब-आभा, चमक। युक्ति-उपाय। निरूपाय-लाचार। दत्तक पुत्र-गोद लिया पुत्र। खेड़ा-निर्जन मैदान। किंचित-थोड़ा। आरक्त-लाल। म्लान-मुरझाया हुआ। दैवगति-भाग्य का लिखा। संचय-जमा, इकट्ठा। अर्थ-धन। प्रत्यूष बेला-भोर का समय। लिलार-ललाट, भाग्य। दक्षिणी-दक्षिण में रहनेवाला। ब्रह्मावर्त-पुष्कर के आस-पास का इलाका। तजुर्बेकार-अनुभवी। जाहिरनामा-विज्ञप्ति, प्रकाशित सूची। नौसिखिए-अनुभवहीन। कवायद-परेड। मास-युद्ध में बजाया जाने वाला वाद्य। कारकुन-कर्मचारी। ताकीद-विदित, . चेतावनी, सावधान। महत्त्वपूर्ण पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या 1. मुसर में घमासान युद्ध छिड़ गया। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को गाली लगी, लेकिन वे लड़ती रहीं, अंग्रेजों की तलवार का करारा हाथ उनकी जाँघ पर लगा और वे वीरगति की प्राप्ति हुयीं। |