भारत में कुल कितने आंदोलन हुए हैं? - bhaarat mein kul kitane aandolan hue hain?

1. 1857 का विद्रोह
1857 का विद्रोह को प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नाम से भी जाना जाता है। यह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था। यह विद्रोह दो वर्षों तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चला। इस विद्रोह का आरंभ मेरठ सहित देश के विभिन्‍न छावनी क्षेत्रों में छोटी झड़पों और आगजनी से हुआ था। आगे चलकर इसने एक बड़ा रूप ले लिया।

2. नील विद्रोह
19वीं शताब्दी के लगभग मध्य से लेकर भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति तक अंग्रेजी शासन के विरूद्ध अनेक किसान आंदोलन हुए। इनमें नील आंदोलन, पाबना आंदोलन, दक्कन विद्रोह, किसान सभा आंदोलन, एका आंदोलन, मोपला विद्रोह, बारदोली सत्याग्रह, तेभाग आंदोलन, तेलंगाना आंदोलन आदि। इनमें 1859-60 में बंगाल में हुआ नील-विद्रोह किसानों का अंग्रेजी शासन के विरूद्ध पहला संगठित व सर्वाधिक जुझारू विद्रोह था।

3. जालिया वाला बाग कांड
यह घटना 13 अप्रैल, 1919 की है। अमृतसर के जलिया वाला बाग में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने गोलियां चला के निहत्थे, बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों को मार डाला था। हजारों लोगों को घायल कर दिया था। यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकांड ही था।

4. चौरीचौरा कांड
एक फरवरी, 1922 को चौरीचौरा कांड भारत के इतिहास के पन्नों में कभी ना भूलने वाला काला दिन है। इसी दिन चौरीचौरा थाने के दारोगा गुप्तेश्वर सिंह ने आजादी की लड़ाई लड़ रहे बलिदानियों की खुलेआम पिटाई शुरू कर दी। सत्याग्रहियों ने इसके बाद पुलिसवालों पर पथराव शुरू कर दी। जवाबी कार्यवाही में पुलिस ने गोलियां चलाई। जिसमें 260 व्यक्तियों की मौत हो गई। पुलिस की गोलियां तब रुकीं जब उनके सभी कारतूस समाप्त हो गए। इसके बाद सत्याग्रहियों का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होनें थाने में बंद 23 पुलिसवालों को जिंदा जला दिया।

5. असहयोग आंदोलन
सितंबर, 1920 से फरवरी 1922 के बीच महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाया गया। जलियांवाला बाग नरसंहार सहित अनेक घटनाओं के बाद गांधी जी को लगा कि ब्रिटिश हाथों में एक उचित न्‍याय मिलने की कोई संभावना नहीं है इसलिए उन्होंने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की गई। सितंबर, 1920 से फरवरी 1922 के बीच महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाया गया। जलियांवाला बाग नरसंहार सहित अनेक घटनाओं के बाद गांधी जी को लगा कि ब्रिटिश हुकूमत से न्याय मिलने की उम्‍मीद नहीं है। इसलिए उन्होंने असहयोग आंदोलन की शुरुआत कर दी थी।

6. सविनय अवज्ञा आन्दोलन
ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ कांग्रेस द्वारा चलाये गए जन आन्दोलन में से एक था। 1929 तक भारतीय नेताओं को शक होने लगा था कि ब्रिटेन कभी देश को आजाद नहीं करेगा। न ही वह औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने की अपनी घोषणा पर अमल करेगा। इस बात को ध्‍यान में रखते हुए इस 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन को चलाया गया था। इसका उद्देश्य कुछ विशिष्ट प्रकार के गैर-कानूनी कार्य सामूहिक रूप से करके ब्रिटिश सरकार को झुका देना था।

7. पूर्ण स्‍वराज की मांग
1929 के लाहौर में रावी नदी के तट पर हुए कांग्रेस ने रावी अधिवेशन का आयोजन किया था। इस अधिवेशन में पहली बार पूर्ण स्वराज की मांग ब्रिटिश हुकूमत से की गई थी। कांग्रेस की इस मांग से ब्रिटिश सरकार हिल गई थी।

8. नमक सत्‍याग्रह/दांडी मार्च
नमक सत्याग्रह महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए प्रमुख आंदोलनों में से एक था। 12 मार्च, 1930 में बापू ने अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला था। उन्होंने यह मार्च नमक पर ब्रिटिश राज के एकाधिकार के खिलाफ निकाला था। अहिंसा के साथ शुरू हुआ यह मार्च ब्रिटिश राज के खिलाफ बगावत का बिगुल बन कर उभरा। उस दौर में ब्रिटिश हुकूमत ने चाय, कपड़ा, यहां तक कि नमक जैसी चीजों पर अपना एकाधिकार स्थापित कर रखा था। उस समय भारतीयों को नमक बनाने तक का अधिकार नहीं था। हमारे पूर्वजों को इंगलैंड से आनेवाले नमक के लिए कई गुना ज्यादा पैसे देने होते थे। बाद में बापू के इस सत्याग्रह को दांडी मार्च के नाम से भी जाना गया।

9. आजाद हिंद फौज
सुभाष चंद्र बोस ने भारत को अंग्रेजों के कब्जे से आजाद कराने के लिए 1942 में आजाद हिंद फौज नामक सशस्त्र सेना का गठन किया गया। एक साल के अंदर ही इस फौज ने ब्रिटिश सेना और हुकूमत दोनों को हिलाकर रख दिया। इस सेना ने देश के लोगों में मर मिटने की जज्‍बा और देश को आजाद कराने के लिए संघर्ष के मनोबल को चरम पर पहुंचाने का काम किया था। इस काम को अंजाम तक पहुंचाने में सुभाष चंद्र बोस ने अहम भूमिका निभाई थी।

10. भारत छोड़ो आंदोलन
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में निर्णायक भूमिका निभाने वाले भारत छोड़ो आंदोलन ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाने का काम किया था। यह वह आंदोलन था जिसमें पूरे देश की व्यापक भागीदारी रही थी। इस आंदोलन के बाद ही अंग्रेजी हुकूमत को यह अहसास हो गया था कि अब भारत में लंबे अरसे तक बने रहना मुमकिन नहीं है।

National Movement in India- ऐसा आंदोलन जो, किसी देश में एकता, अखंडता तथा उसकी स्वतंत्रता के लिए स्थापित किया जाता हो, उसे राष्ट्रीय आंदोलन कहा जाता है। यह आंदोलन राष्ट्र व्यापी तब होता है, जब हर वर्ग के लोग एकमात्र देश के प्रति एकजुट होकर लड़ाई लड़ते है। भारत सैकड़ों वर्षों से अन्य- अन्य साम्राज्यों से गुलाम रहा, इसी कड़ी में ब्रिटिश शासन भी भारत पर हावी रही। इसी ब्रिटिश शासन से निजात पाने के लिए भारत में मुख्यतः 16 ऐसे आंदोलन हुए जो राष्ट्रीय आंदोलन थे, जिनका नेतृत्व बड़े स्तर पर राजनेताओं, क्रांतिकारियों तथा समाजसेवकों द्वारा किया गया। भारत का ब्रिटिशर्स के खिलाफ प्रमुख आंदोलन स्वतंत्रता आंदोलन से शुरू होकर ऐसे ही भारत छोड़ो आंदोलन कर समाप्त हुआ। और अंततः भारत को स्वतंत्र राष्ट्र का श्रेय हासिल हुआ। भारतीयों द्वारा लड़ा गया राष्ट्रीय आंदोलन का वर्णन निम्नवत है- अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now. / GK Capsule Free pdf - Download here

Table of Content  

1. National Movement in India 
2. 1857 से 1947 तक के भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों की सूची
2.1 1857 का विद्रोह
2.2 कांग्रेस की स्थापना
2.3 स्वदेशी आन्दोलन
2.3.1 स्वदेशी आंदोलन के बाद की गतिविधियाँ -
2.4 मुस्लिम लीग की स्थापना
2.5 ग़दर आन्दोलन
2.6 होम रूल लीग
2.7 चंपारण सत्याग्रह
2.8 खेड़ा सत्याग्रह
2.9 अहमदाबाद मिल हड़ताल
2.10 रॉलेट एक्ट सत्याग्रह

2.11 खिलाफ़त आन्दोलन

National Movement in India  (भारत में राष्ट्रीय आंदोलन)

1857 से 1947 तक के भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों की सूची

  • 1857 का विद्रोह
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना- 1885
  • स्वदेशी आन्दोलन (बंग-भंग आन्दोलन)- 1905
  • मुस्लिम लीग की स्थापना- 1906
  • ग़दर आंदोलन-1913
  • होम रूल आंदोलन- अप्रैल 1916
  • चंपारण सत्याग्रह – 1917
  • खेड़ा सत्याग्रह – 1917
  • अहमदाबाद मिल हड़ताल – 1918
  • रॉलेट एक्ट सत्याग्रह – 1919
  • खिलाफ़त आन्दोलन – 1920
  • असहयोग आंदोलन- 1920
  • बारदोली सत्याग्रह – 1928
  • नमक सत्याग्रह (डांडी मार्च) – 1930
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन – 1930
  • भारत छोड़ो आंदोलन – 1942

1857 का विद्रोह
1857-59 का भारतीय विद्रोह भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ पहला व्यापक विद्रोह था. लेकिन यह विरोध असफल रहा था.

  • यह विद्रोह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ भारतीयों का पहला संगठित विरोध था
  • यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के सिपाहियों के विद्रोह के रूप में शुरू हुआ था लेकिन आगे चल कर इसने जनता की भागीदारी भी हासिल कर ली थी.
  • इस विद्रोह को कई नामों से जाना जाता है: सिपाही विद्रोह (ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा), भारतीय विद्रोह, महान विद्रोह (भारतीय इतिहासकारों द्वारा), 1857 का विद्रोह और स्वतंत्रता का पहला युद्ध (विनायक दामोदर सावरकर द्वारा)

कांग्रेस की स्थापना

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना गोकुलदास तेजपाल संस्कृत स्कूल, बॉम्बे के परिसर में हुई थी. डब्ल्यूसी बनर्जी की अध्यक्षता में कुल 72 प्रतिनिधियों ने इसमें भाग लिया. एओ ह्यूम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले महासचिव बने और ब्रिटिश सरकार के सुरक्षा मूल्य की रक्षा के लिए काम किया.

स्वदेशी आन्दोलन

स्वदेशी आन्दोलन या बंग-भंग आन्दोलन की शुरुआत 1905 में लार्ड कर्ज़न द्वारा बंगाल विभाजन करने के विरोध में हुयी थी. इसके बाद रवींद्रनाथ टैगोर ने “अमार सोनार बांग्ला” की रचना की थी और सभी हिन्दू-मुस्लिम ने एक दूसरे को राखी बांधकर इस विभाजन के प्रति विरोध प्रकट किया था.

स्वदेशी आंदोलन के बाद की गतिविधियाँ -
1905 - बनारस में कांग्रेस का अधिवेशन.

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अध्यक्षता गोपाल कृष्ण गोखले ने की.
1906 - कलकत्ता में कांग्रेस का अधिवेशन. अध्यक्षता दादाभाई नरोजी ने की.
1907 -  सूरत में कांग्रेस का अधिवेशन. रास बिहारी बोस की अध्यक्षता में नरमपंथियों और चरमपंथियों के बीच मतभेदों के कारण कांग्रेस में पहला विभाजन हुआ.

मुस्लिम लीग की स्थापना

मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में हुयी थी. इसकी स्थापना आगा खान द्वितीय और मोहसिन मुल्क ने की थी.

भारत में कुल कितने आंदोलन हुए हैं? - bhaarat mein kul kitane aandolan hue hain?

मुस्लिम लीग की स्थापना के बाद 1909 में ब्रिटिशों द्वारा मॉर्ले-मिंटो सुधार अधिनियम लाया गया था.

ग़दर आन्दोलन

ग़दर आन्दोलन की शुरुआत लाला हरदयाल द्वारा 1913 में की गयी थी. इसके बाद 1914 में प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया था, जो कि 1918 तक चला.

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होम रूल लीग

बाल गंगाधर तिलक द्वारा अप्रैल 1916 में स्वराज की मांग के लिए बेलगाम में होम रूल आंदोलन शुरू किया गया. इसके बाद सितम्बर 1916 में मद्रास में एनी बेसेंट द्वारा भी होम रूल लीग की शुरुआत की गयी.

चंपारण सत्याग्रह

चंपारण, बिहार के किसानों ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में 1917 में नील की खेती के लिए लगाई गई शर्तों के विरोध में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था. यह सत्याग्रह सफल रहा और अंग्रेजों को नील की खेती से सम्बंधित शर्तों को बदलना पड़ा था.

खेड़ा सत्याग्रह

खेड़ा सत्याग्रह 1918 में किया गया था. यह सत्याग्रह भारत में गुजरात के खेड़ा जिले में हुआ था. यह ब्रिटिश भारत के समय महात्मा गाँधी के द्वारा आयोजित किया गया था.  भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की बात की जाए तो यह सत्याग्रह उस कड़ी में एक बहुत बड़ा विद्रोह था. चंपारण सत्याग्रह के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा सत्याग्रह आंदोलन था.

अहमदाबाद मिल हड़ताल

अहमदाबाद मिल हड़ताल सन् 1918 में जब भारत में प्लेग फैला हुआ था उस समय एक घटना हुई. महामारी की वजह से मिल के मजदूर, कर्मचारी आदी काम छोड़कर अपने-अपने घर जा रहे थे. तब अहमदाबाद के मिल मालिकों ने उन लोगों को महामारी ख़त्म होने के बाद 35% का बोनस देने का लालच देकर उन्हें वहां से जाने से रोक लिया. लेकिन बाद में वह मिल मालिक अपनी बात से मुकर गया. तब महात्मा गाँधी ने अहमदाबाद के मिल मजदूरों द्वारा उन मिल मालिकों के खिलाफ़ आन्दोलन करने के लिए आयोजित इस सत्याग्रह का नेतृत्व किया जिन्होनें मिल मजदूरों को मजदूरी देने से मना कर दिया था. यह महात्मा गाँधी का पहला भूख हड़ताल सत्याग्रह भी था.

     रॉलेट एक्ट सत्याग्रह

6 अप्रैल 1919 को, महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित अन्यायपूर्ण रॉलेट एक्ट के खिलाफ एक अहिंसक सत्याग्रह शुरू किया था. इस अधिनियम द्वारा सरकार को बिना किसी मुकदमे के अधिकतम दो साल की अवधि के लिए आतंकवादी गतिविधियों के संदिग्ध किसी भी व्यक्ति को कैद करने की शक्ति दी. इसने बिना वारंट के गिरफ्तारी का भी प्रावधान किया. अन्य प्रावधान निषिद्ध राजनीतिक कृत्यों के लिए जूरी रहित ट्रायल थे. दोषी लोगों को उनकी रिहाई पर प्रतिभूति जमा करनी थी और किसी भी राजनीतिक, धार्मिक या शैक्षिक गतिविधियों में भाग नहीं लेना था. इस एक्ट को गाँधीजी ने काला कानून कहा था. पुलिस को भारी शक्ति देने वाले इस अधिनियम का लोगों ने विरोध किया. इस अधिनियम को "ना दलील, ना वकील, ना अपील" के रूप में परिभाषित किया गया था.

खिलाफ़त आन्दोलन

खिलाफत आंदोलन भारतीय राष्ट्रवाद से सम्बंधित एक बहुत बड़ा आन्दोलन था जो प्रथम विश्व युद्ध के बाद के सालों में भारतीय मुसलमानों के द्वारा किया गया था. इस आन्दोलन का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाना था ताकि ब्रिटिश सरकार इस्लाम के खलीफा के रूप में तुर्क सुल्तान के अधिकार को बनाए रहने दे.

असहयोग आन्दोलन

  • असहयोग आंदोलन की शुरुआत 1920 में महात्मा गांधी द्वारा की गयी थी. इस आन्दोलन के तहत गाँधी जी ने भारतीयों को ब्रिटिश सरकार के प्रति अपने सहयोग को वापस ले लेने के लिए प्रेरित किया था.
  • 18 मार्च 1919 को ब्रिटिश सरकार द्वारा रॉलेट एक्ट लाने के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) ने ब्रिटिश सुधारों के लिए अपना समर्थन वापस ले लिया. जिसके परिणामस्वरूप यह आन्दोलन शुरू हुआ था.

बारदोली सत्याग्रह

बारदोली सत्याग्रह 1928 में, सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में बारदोली के किसानों के लिए अन्यायपूर्ण करों के खिलाफ एक आंदोलन था.

नमक सत्याग्रह-

महात्मा गांधी द्वारा चलाये गये प्रमुख आंदोलनों में से एक नमक सत्याग्रह आन्दोलन था. अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम से महात्मा गाँधी ने 12 मार्च, 1930 ईस्वी को दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला था. नमक के ऊपर ब्रिटिश राज की मोनोपॉली के विरुद्ध महात्मा गाँधी ने यह प्रदर्शन किया था.

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने के तुरंत बाद यह घोषणा की थी कि वे ब्रिटिश भारत के सर्वाधिक घृणित क़ानूनों में से एक कानून, नमक कानून का विरोध करेंगे. इस कानून ने भारतीयों को नमक उत्पादन से वंचित कर दिया था. ना हीं वे नमक का उत्पादन कर सकते थे और ना हीं नमक बेच सकते थे. इससे सम्बंधित सारे एकाधिकार अंग्रेज सरकार के पास थे. नमक कानून को तोड़ने के लिए  गाँधी जी एक पैदल यात्रा का नेतृत्व करने वाले थे. महात्मा गाँधी ने 'नमक एकाधिकार' के जिस मुद्दे की बात की थी, वह गाँधीजी की दूरदर्शी सोच और कुशल समझदारी का एक अनन्य उदाहरण था. प्रत्येक भारतीय के घर में नमक का प्रयोग अपरिहार्य रूप से होता है, लेकिन इसके बावज़ूद उन्हें घरेलू प्रयोग के लिए भी नमक बनाने से रोक दिया गया था और इस तरह उन्हें दुकानों से ऊँचे दाम पर नमक ख़रीदने के लिए बाध्य कर दिया गया था. इसी मुद्दे से असंतुष्ट होकर गाँधी जी ने ब्रिटिश राज के खिलाफ नमक सत्याग्रह किया था.

सविनय अवज्ञा आन्दोलन -

असहयोग आन्दोलन के बाद लगभग 8 वर्षों तक देश के राजनीतिक जीवन में शिथिलता रही थी. काँग्रेस ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध कोई ख़ास कदम नहीं उठाया. केवल स्वराज्य पार्टी ने विधायिकाओं में जाकर अपनी असहयोग नीति का कार्यान्वन किया और जब भी जहाँ भी मौका मिला उन्होंने संविधान में गतिरोध उत्पन्न किया. लेकिन इसी बीच कुछ ऐसी परिस्थितियाँ बन गई जिसने एक जन आन्दोलन (सविनय अवज्ञा आन्दोलन) को जन्म दे दिया. यह जन आन्दोलन 1930 से 1934 ई. तक चला. गाँधी जी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत करने का अधिकार, कांग्रेस के  1929 के लाहौर अधिवेशन में दिया गया. इस सिलसिले में 1930 ईस्वी में साबरमती आश्रम में कांग्रेस कार्यकारणी की बैठक हुई. जिसमें एक बार फिर ये बात सुनिश्चित की गई कि महात्मा गाँधी जब चाहें जैसे चाहें सविनय अवज्ञा आंदोलन को आरंभ करें.

भारत छोड़ो आन्दोलन -

भारत छोड़ो आन्दोलन राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के आवाहन पर 9 अगस्त, 1942 को प्रारम्भ हुआ था. भारत को जल्द आज़ादी दिलाने के लिए महात्मा गाँधी द्वारा अंग्रेज़ सत्ता के विरुद्ध यह एक बड़ा आन्दोलन' था. 'क्रिप्स मिशन' की असफलता के बाद गाँधी जी ने एक और बड़ा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय लिया था इसी आन्दोलन को 'भारत छोड़ो आन्दोलन' का नाम दिया गया. भारत छोड़ो आन्दोलन आन्दोलन में पहली बार भारतीयों ने बड़ी संख्या में भाग लिया था. जिसमें मजदूर और किसानों से लेकर उच्चवर्गीय लोग तक शामिल थे. इस आन्दोलन के माध्यम से गाँधी जी ने एक सौम्य और निष्क्रिय राष्ट्र को शताब्दियों की निद्रा से जगाने का काम किया.'भारत छोड़ो आन्दोलन' भारत को स्वतन्त्र भले न करवा पाया हो, लेकिन इसका दूरगामी परिणाम सुखद रहा. इसलिए इसे भारत की स्वाधीनता के लिए किया जाने वाला अन्तिम महान् प्रयास भी कहा गया है. 1942 ई. के आन्दोलन की विशालता को देखते हुए अंग्रेज़ों को ये विश्वास हो गया कि वे अब भारत में शासन का वैद्य अधिकार खो चुके हैं. इस आन्दोलन के कारण विश्व के कई देश भारतीयों के समर्थन में खड़े हो गए. 25 जुलाई, सन् 1942 को चीन के तत्कालीन मार्शल च्यांग काई शेक ने संयुक्त राज्य अमेरीका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट को एक पत्र में लिखा कि "अंग्रेज़ों के लिए सबसे उचित नीति यही है कि वे अब भारत को पूर्ण स्वतन्त्रता दे दें. रूजवेल्ट ने भी इस बात का समर्थन किया. सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस आन्दोलन के बारे लिखा है कि- "भारत में ब्रिटिश राज के इतिहास में ऐसा विप्लव कभी नहीं हुआ, जैसा कि पिछले तीन वर्षों में हुआ, लोगों की प्रतिक्रियाओं पर हमें गर्व है."

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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के अंतिम उद्देश्य के साथ ऐतिहासिक घटनाओं की एक श्रृंखला थी। जो 1857 से 1947 तक चला थी।

स्वदेशी आंदोलन। 
सत्याग्रह आंदोलन। 
खिलाफत आंदोलन। 
असहयोग आंदोलन। 

भारत में कुल कितने आंदोलन है?

भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन दो प्रकार का था, एक अहिंसक आन्दोलन एवं दूसरा सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलनभारत की आज़ादी के लिए 1857 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोये क्रान्तिकारियों और शहीदों की उपस्थित सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई।

भारत में कौन कौन से आंदोलन हुए?

भारत के प्रमुख आंदोलन (Important Movement of India).
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सन् 1857 का विद्रोह यह भारत का ब्रिटिश के विरुद्ध पहला सशस्त्र विद्रोह था। ... .
नील विद्रोह सन् 1859 से 1860 ई. ... .
कूका विद्रोह ... .
वासुदेव बलवंत फड़के के मुक्ति प्रयास ... .
बंग-भंग आंदोलन ... .
जालियाँ वाला बाग़ कांड ... .
असहयोग आंदोलन ... .
चौरी चौरा कांड.

महात्मा गांधी ने कुल कितने आंदोलन किए?

महात्मा गांधी के नेतृत्व में 6 प्रमुख आंदोलन

भारत में प्रथम आंदोलन कब हुआ?

१८५७ का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था। यह विद्रोह दो वर्षों तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चला।