भारत में हरित क्रांति कब हुई थी? - bhaarat mein harit kraanti kab huee thee?

अनुक्रम

  • 1 हरित क्रांन्ति के चरण
  • 2 हरित क्रांन्ति की विशेषताएं
  • 3 हरित क्रांन्ति का फसलों पर प्रभाव
  • 4 हरित क्रांन्ति से प्रभावित राज्य
  • 5 वाह्य सूत्र

हरित क्रांन्ति के चरण[संपादित करें]

  • प्रथम चरण (१९६६-६७ से १९८०-८१)
  • दूसरा चरण (१९८०-८१ से १९९६-९७)

हरित क्रांन्ति की विशेषताएं[संपादित करें]

  • अधिक उपज देने वाली किस्में
  • सुधरे हुए बीज
  • रासायनिक खाद
  • गहन क्रषि जिला कार्यक्रम
  • लघु सिंचाई
  • कृषि शिक्षा
  • पौध संरक्षण
  • फसल चक्र
  • भूसंक्षण
  • किसानों को बेंको की सुविधायं

हरित क्रांन्ति का फसलों पर प्रभाव[संपादित करें]

  • रबी की फसल
  • खरीफ की फसल
  • ज़ायद की फसल

हरित क्रांन्ति से प्रभावित राज्य[संपादित करें]

  • पंजाब
  • हरियाणा
  • उत्तर प्रदेश
  • मध्य प्रदेश
  • बिहार
  • हिमाचल प्रदेश
  • आन्ध्र प्रदेश
  • तमिलनाडु

वाह्य सूत्र[संपादित करें]

  • क्या हरित क्रांति असफल रही? (बीबीसी की हिन्दी सेवा)

हरित क्रांति सन् १९४०-६० के मध्य कृषि क्षेत्र में हुए शोध विकास, तकनीकि परिवर्तन एवं अन्य कदमों की श्रृंखला को संदर्भित करता है जिसके परिणाम स्वरूप पूरे विश्व में कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। इसने हरित क्रांति के पिता कहे जाने वाले नौरमन बोरलोग के नेतृत्व में संपूर्ण विश्व तथा खासकर विकासशील देशों को खादान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया। उच्च उत्पादक क्षमता वाले प्रसंसाधित बीजों का प्रयोग, आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल, सिंचाई की व्यवस्था, कृत्रिम खादों एवं कीटनाशकों के प्रयोग आदि के कारण संभव हुई इस क्रांति को लाखों लोगों की भुखमरी से रक्षा करने का श्रेय दिया जाता है।[1]

हरित क्रांति का पारिभाषिक शब्द के रूप में सर्वप्रथम प्रयोग १९६८ ई. में पूर्व संयुक्त राज्य अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी (USAID) के निदेशक विलियम गौड द्वारा किया गया जिन्होंने इस नई तकनीक के प्रभाव को चिन्हित किया।

भारत के हरित क्रांति के जनक एम॰ के॰ स्वामीनाथन हैं। ऐसी दिशा में उठाए गए कुछ महत्वपूर्ण कदमों ने सूखा, बाढ़, चक्रवात, आग, तथा बीमारी के लिए फसल बीमा के प्रावधान और किसानों को कम दर पर सुविधाएं प्रदान करने के लिए ग्रामीण बैंक, सहकारी समितियों और बैंकों की स्थापना सम्मिलित थे। किसानों के लाभ के लिए भारत सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड और दुर्घटना बीमा योजना (पीएआईएस) भी शुरू की।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • भारत की हरित क्रांति

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Kapūra, Sudarśanakumāra (1974). Bhāratīya krshi-arthavyavasthā - Economics of agricultural development in India. अभिगमन तिथि 21 फरवरी 2021.

भारत में हरित क्रांति कब हुई थी? - bhaarat mein harit kraanti kab huee thee?

भारत एक कृषि प्रधान देश है। आज भारत को विश्व के 15 सबसे बड़े कृषि उत्पादक देशों में गिना जाता है।  लेकिन विश्वभर में कृषि के क्षेत्र में जो स्थिति आज भारत की है, उसका श्रेय कहीं ना कहीं तो हरित क्रांति को भी जाता है। क्योंकि यही वो समय था जब देश में कृषि उत्पादन में बड़ा बदलाव आया। हरित क्रांति ने भारतीय कृषि को जीवन निर्वाहक की जगह पर व्यापारिक आयाम प्रदान किया है। भारत आज आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी, भौतिक और जैविक विज्ञान पर निर्भर है।

Know Your Career in Agriculture & Framing – Take free career counselling

इस लेख में आप जानेंगे:

  • भारत में हरित क्रांति
  • कैसे हुई भारत में हरित क्रांति की शुरुआत
  • भारत में हरित क्रांति के लिए इन सभी तत्वों को अहम माना गया है

भारत में हरित क्रांति

  • भारत में हरित क्रांति की शुरुआत साल 1966-67 में हुई थी। हरित क्रांति के बाद देश के कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। इन दिनों कृषि क्षेत्र की प्रक्रियाओं में क्रांतिकारी परिवर्तन आया।
  • कृषि के परम्परागत तरीकों के स्थान पर रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशक दवाईयों, उन्नत बीजों, आधुनिक कृषि उपकरण, विस्तृत सिंचाई परियोजनाओं आदि के प्रयोग को बढ़ावा मिला और खरीफ की फसल के साथ ही एक नये युग की शुरुआत हुई। जिसे हरित क्रांति के नाम से जाना जाता है।
  • विश्व भर में हरित क्रांति की शुरुआत का श्रेय नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर नॉरमन बोरलॉग को जाता है। हरित क्रांति के बाद कृषि उत्पादकों की गुणवत्ता के साथ- साथ देश में कृषि उत्पादन भी बढ़ा। खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता आई।

अब कृषि के क्षेत्र में करियर बनाने के बहुत सारे अवसर मौजूद हैं। कृषि के क्षेत्र में तेजी से विकास होने की वजह से कृषि से संबंधित कई तरह के पाठ्यक्रम अब कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में चलाए जा रहे हैं, जिन्हें पूरा करने के बाद अच्छी नौकरी प्राप्त की जा सकती है और खुद भी कृषि से जुड़कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसलिए इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए career counselling for agriculture jobs भी महत्वपूर्ण हो जाती है, ताकि सही पाठ्यक्रम का चुनाव करने में और पाठ्यक्रम पूरा कर लेने के बाद सही रोजगार या व्यापार के चयन में मदद मिले।

कैसे हुई भारत में हरित क्रांति की शुरुआत

भारत में हरित क्रांति कब हुई थी? - bhaarat mein harit kraanti kab huee thee?
  • पूरे विश्व में हरित क्रांति के जनक के रुप में भले ही प्रोफेसर नारमन बोरलॉग को देखा जाता हो, लेकिन भारत में हरित क्रांति के जनक के रुप में एम एस स्वामीनाथन का ही नाम लिया जाता है। क्योंकि स्वामीनाथन ने तत्कालीन कृषि मंत्री सी सुब्रहण्यम के साथ मिलकर देश में हरित क्रांति लाने पर बल दिया था।
  • आजादी से पहले ही पश्चिम बंगाल में भीषण अकाल पड़ा, जिसमें लाखों लोगों की मौत हो गई। 1947 के आज़ाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने भी कृषि क्षेत्र पर जोर तो दिया, लेकिन उस वक्त तक भी पुराने तरीकों से ही खेती की जा रही थी, जिसकी वजह से देश में कई फसलों का आयात भी करना पड़ता था। यानी कि भारत में अनाज की उपज बढ़ाने की सख्त जरुरत थी। इसके बाद भारत को बोरलॉग और गेहूं की नोरिन क़िस्म का पता चला।
  • 1965 में भारत के कृषि मंत्री थे सी सुब्रमण्यम। उन्होंने गेंहू की नई क़िस्म के 18 हज़ार टन बीज आयात किए, कृषि क्षेत्र में ज़रूरी सुधार लागू किए, कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से किसानों को जानकारी उपलब्ध कराई, सिंचाई के लिए नहरें बनवाईं और कुंए खुदवाए, किसानों को दामों की गारंटी दी और अनाज को सुरक्षित रखने के लिए गोदाम बनवाए।
  • देखते ही देखते भारत अपनी ज़रूरत से ज़्यादा अनाज पैदा करने लगा। इस अवधि के दौरान कृषि की नई रणनीति प्रयोग मे लाई गई। पायलट प्रोजेक्ट के रुप में 7 जिलों में गहन कृषि जिला कार्यक्रम शुरू किया गया।

कृषि के क्षेत्र में करियर

कृषि के क्षेत्र में करियर बनाना आज मुनाफे का सौदा बन गया है, क्योंकि हरित क्रांति के कारण कृषि का जिस तरह से विकास हो रहा है, वैसे में इसमें प्रयोग में आ रहीं उन्नत बीजों के इस्तेमाल से लेकर नवीनतम तकनीकों तक के प्रयोग के लिए सही जानकारी की आवश्यकता पड़ती है। कृषि से संबंधित पाठ्यक्रमों की यदि सही तरीके से पढ़ाई कर ली जाए तो ऐसे में कृषि विशेषज्ञ के तौर पर करियर बना कर अच्छे-खासे पैसे भी कमाए जा सकते हैं।

उसी तरह से उन्नत बीजों, सिंचाई से जुड़ी तकनीकों और पैदावार को बेहतर बनाने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली नवीनतम तकनीकों की अच्छी जानकारी हो जाए तो खुद से भी खेती शुरू करके एक किसान के तौर पर भी अच्छी कमाई की जा सकती है। वास्तव में कृषि एक ऐसा क्षेत्र है, जो हमेशा फायदा ही देता रहेगा, क्योंकि धरती पर जीवन का आधार ही कृषि है।

भारत में हरित क्रांति के लिए इन सभी तत्वों को अहम माना गया है

  • अधिक उपज देने वाली फसलों का कार्यक्रम
  • बहुफसल कार्यक्रम
  • लघु सिंचाई
  • रासायनिक खाद, उन्नत बीज
  • कृषि यंत्रीकरण को बढ़ावा
  • कृषि शिक्षा और शोध
  • फसलों का बीमा

वहीं भारत में हरित क्रांति आने के बाद बहुत सारे बदलाव देखे गए। जो अगर बिंदुओं में समझा जाए तो इस प्रकार हैं:

  • फसलों के उत्पादन में अपार वृद्धि
  • फसल की उन्नत किस्मों का उत्पादन
  • खेतिहर मजदूरों के लिए रोजगार
  • ग्रामीणों की निर्धनता में कमी
  • व्यवसाय को बढ़ावा
  • आधुनिकरण को बढ़ावा
  • किसानों को उचित सुविधाएं
  • आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल

भारत में हरित क्रांति का शुरुआत कब हुई थी?

भारत में हरित क्रांन्ति की शुरुआत सन 1966- 67से हुईहरित क्रांन्ति प्रारम्भ करने का श्रेय नोबल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर नारमन बोरलॉग को जाता हैं। हरित क्रांन्ति से अभिप्राय देश के सिंचित एवं असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाले संकर तथा बौने बीजों के उपयोग से फसल उत्पादन में वृद्धि करना हैं।

भारत में हरित क्रांति के जनक कौन है?

तो नॉरमन बोरलॉग हरित क्रांति के प्रवर्तक माने जाते हैं लेकिन भारत में हरित क्रांति लाने का श्रेय सी सुब्रमण्यम को जाता है. एम ऐस स्वामीनाथन एक जाने माने वनस्पति विज्ञानी थे जिन्होंने हरित क्रान्ति लाने के लिए सी सुब्रमण्यम के साथ काम किया.

भारत में दूसरी हरित क्रांति कब हुई थी?

हरित क्रांति दो चरणों में शुरू की गई थी, पहला चरण 1966-76 से 1995-96 था। दूसरा चरण बीजीआईईआई कार्यक्रम 2010-11 में शुरू किया गया।

विश्व में हरित क्रांति का जनक कौन है?

हरित क्रांति का जन्मस्थान और कब्रगाह मेक्सिको है क्योंकि नॉर्मन बोरलॉग मेक्सिको के मूल निवासी थे। भारत में, डॉ एम एस स्वामीनाथन को हरित क्रांति के पिता के रूप में जाना जाता है।