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15 अगस्त 1947 में भारत की आजा़दी से पांच साल पहले यूपी के बलिया जिले ने 4 दिन के लिए ही सही मगर खुद को आजाद तो करवा ही लिया था। वो आजादी इसलिए भी खास थी क्योंकि खुद तत्कालिन ब्रिटिश कलेक्टर जे.सी.निगम ने आधिकारिक तौर पर प्रशासन स्वतंत्रता सेनानी चित्तू पांडेय को सौंपा था।बलिया, पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक भदेस जिला, जिसे अक्सर लोग बागी बलिया कहकर पुकारते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में पहली गोली चलाने वाले मंगल पांडेय से लेकर भारतीय राजनीति के युवा तुर्क चंद्रशेखर तक का नाम इसी बलिया जिले से जुड़ा है। मगर आजादी की लड़ाई में बलिया ने वो कारनामा कर दिखाया है, जिसे सिर्फ भारतीय इतिहास में ही नहीं बल्कि ब्रिटिश हिस्ट्री में भी सुनहरे लफ्जों में दर्ज किया गया है। 1947 में भारत की आजादी से 5 साल पहले ही बलिया के लोगों ने खुद को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद करवा लिया था और वो भी बाकायदा सत्ता हस्तांतरण के जरिए। भारत छोड़ो आंदोलन की आग: अगस्त 1947, महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन की आग में पूरा बलिया जिला जल रहा था। जनाक्रोश चरम पर था। 9 अगस्त से ही बलिया में जगह- जगह थाने जलाये जा रहे थे। सरकारी दफ्तरों को लूटा जा रहा था। रेल पटरियां उखाड़ दी गई थी। जनाक्रोश को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार ने आंदोलन के सभी नेताओं को जेल में बंद कर दिया था। मगर अंग्रेज ये भूल गये कि वो बलिया जिला था, जहां का हर निवासी खुद को किसी नेता से कम नहीं समझता।लिहाजा नेताओं को जेल में बंद करने का कदम, खुद अंग्रेजों पर ही भारी पड़ गया। बिना लीडर के जनता: नेतृत्व विहीन जनता को जो समझ में आया, उन्होंने करना शुरु कर दिया। 11अगस्त को बलिया में आजादी का जुलूस निकला। 12 अगस्त को बलिया व बैरिया में विशाल जुलूस निकला। 13 अगस्त को बनारस से बलिया पहुची ट्रेन से आये छात्रों ने चितबड़ागांव स्टेशन को फूक दिया। 14 अगस्त को मिडिल स्कूल के बच्चों के जुलुस को सिकंदरपुर में थानेदार द्वारा बच्चों को घोड़ो से कुचला गया। 14 अगस्त को ही चितबड़ागांव, ताजपुर, फेफना में रेल पटरियों को उखाड़ दिया गया। वही बेल्थरारोड में मालगाड़ी को लूट कर पटरियों को उखाड़ दिया गया। इसके बाद बलिया रेल सेवा से पूरी तरह से कट गया। अंग्रेजों का दमन बेअसर: ऐसा नहीं था कि अंग्रेजों ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए दमन चक्र नहीं चलाया… फिरंगियों की कार्रवाई में बड़ी तादात में लोग शहीद हुए, जिनमे 16 अगस्त को पुलिस गोलीबारी में बलिया शहर के लोहापट्टी,गुदरी बाजार में दुखी कोइरी सहित 7 लोग शहीद हुए, 17 अगस्त को रसडा में 4 लोग पुलिस गोलीबारी में शहीद हुए, 18 अगस्त को बैरिया में थाने पर तिरंगा फहराने के जंग में कौशल कुमार सहित 18 लोग शहीद हुए। हजारों लोगों को जेलों में बंद कर दिया गया। लेकिन लोगों का गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा था। जनता के हाथों में कमान: 19 अगस्त को लोग अपने घरों से पैदल ही सड़को पर निकल पड़े थे। जिले के ग्रामीण इलाके से शहर की ओर आने वाली हर सड़क पर जन सैलाब उमड़ पड़ा था। जिले के कोने-कोने से हजारों की संख्या में लोग जिला कारागार पर उपस्थित हो चुके थे। जेल के बाहर पहुंचे लोगों के हाथ में लाठी, भाला, बल्लम, गड़ासा, बर्छी, रम्मा, टांगी, खुखरी, ईंट, पत्थर आदि थे। कुछ लोग तो मिट्टी के बर्तन में बिच्छू, हड्डा, चिउटा आदि भी अपने साथ लेकर आए थे। लोगों के अंदर अंग्रेजों के दमनात्मक कार्रवाई को लेकर रोष व्याप्त था। अंग्रेज कलेक्टर ने सौंपी सत्ता: जेल पर एकत्र हो रहे लोगों की भीड़ का दबाव बढ़ते देख अंग्रेज कलेक्टर जे सी निगम और पुलिस कप्तान जियाउद्दीन अहमद जेल के अंदर घुस गए और दूसरी बार चित्तू पांडेय समेत क्रांतिकारी नेताओं से वार्ता कर जेल का फाटक खुलवा दिया। टाउन हाल क्रांति मैदान में एकत्रित जनसमूह के बीच पंडित चित्तू पांडे, राधा मोहन सिंह, राधागोविंद सिंह तथा विश्वनाथ चौबे आदि का भाषण हुआ। नेताओं ने कहा जनआंदोलन के दबाव में यह रिहाई हुई है। आंदोलनकारियों के उग्र तेवर को देख जिले के 10 से अधिक थानों की पुलिस निष्क्रिय हो गई थी। उधर, अंग्रेजी हुकूमत के बलिया में पंगु हो जाने के बाद 20 अगस्त 1942 को नए प्रशासन की विधिवत घोषणा कर दी गई। ब्रिटिश हुकूमत के कलेक्टर जे सी निगम ने बाकायदा चित्तू पांडेय को प्रशासन का हस्तांतरण किया और चलते बने। स्वराज सरकार का गठन: बलिया में राष्ट्रीय स्वराज सरकार का गठन हुआ। इस सरकार का नेतृत्व एक करिश्माई नेता चित्तू पांडेय ने किया। जनता ने राष्ट्रीय स्वराज सरकार का समर्थन किया और हजारों रुपये चंदा के रूप में इकट्ठा कर दिए। इस प्रकार भारत के आजादी से 5वर्ष पूर्व ही आजाद हुए बलिया जिले के पहले कलेक्टर चित्तू पांडेय तथा पंडित महानन्द मिश्रा पुलिस अधीक्षक घोषित किए गए। बीबीसी का वो ऐलान: 23 अगस्त की रात में ब्रिटिश सरकार के गवर्नर जनरल हैलेट ने बनारस के कमिश्नर नेदर सोल को बलिया का प्रभारी जिलाधिकारी बना कर बलूच फौज के साथ भेज दिया। जिसने बनारस के तरफ से रेल पटरियों को बिछाते हुए बलिया आते ही कत्लेआम मचा दिया, 23 अगस्त को ही दोपहर में बक्सर की ओर से जलमार्ग से मार्क स्मिथ के नेतृत्व में और 24 अगस्त की सुबह आजमगढ की ओर से कैप्टन मुर के नेतृत्व में ब्रिटिश फौज बलिया पहुँच गयी। ब्रिटिश फौज का भारी दमन चक्र शुरू हो गया, इस दौरान 84लोग शहीद हुए और बलिया पर फिर ब्रिटिश का शासन हो गया। समस्त नेता फिर जेल में डाल दिये गए। गांव-गांव दमन का चक्र चलना शुरू हुआ जो 1944 तक चलता रहा। बीबीसी रेडियो ने बाकयदा बलिया पर फिर से कब्जे का ऐलान किया, जो ये बताने के लिए काफी था कि इस बगावत ने ब्रिटिश हुकूमत की दुनियाभर में कितनी किरकिरी कराई थी। इंडिया में सबसे पहले जिला कौन सा आजाद हुआ?भारत का कौन सा जिला सबसे पहले आजाद हुआ था? - Quora. उत्तर प्रदेश का बलिया जिला। आजादी के समय भारत में कुल कितने राज्य थे?
Ballia कब आजाद हुआ था?19 अगस्त 1942 को आंदोलनकारियों के आगे तत्कालीन कलेक्टर ने घुटने टेक दिए। चित्तू पांडेय समेत सभी सेनानियों को जेल से रिहा कर दिया गया। इसके बाद चित्तू पांडेय के नेतृत्व में बलिया को आजाद घोषित कर दिया गया।
भारत पूरी तरह से आजाद कब हुआ था?Memories of 15 August 1947: आज हमें आजाद हुए 75 साल हो गए. एक मुल्क आजादी के पहले पल में क्या महसूस करता है, कैसी रही होगी आजादी की वो रात...
1947 से पहले भारत का क्या नाम था?भारत का पहला नाम आर्यावर्त था।
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