Rajasthan Board RBSE Class 12 Economics Important Questions Chapter 4 आय और रोजगार के निर्धारण Important Questions and Answers. Show RBSE Class 12 Economics Important Questions Chapter 4 आय और रोजगार के निर्धारणवस्तुनिष्ठ प्रश्न: प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न
3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न: प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न
5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न
10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न
28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34. प्रश्न 35. प्रश्न 36.
प्रश्न 37. प्रश्न 38, प्रश्न 39. प्रश्न 40.
प्रश्न 41. प्रश्न 42. प्रश्न 43. प्रश्न 44. प्रश्न 45. प्रश्न 46. प्रश्न 47. प्रश्न 48. = \(\frac{1}{0.4}\) = 2.5 प्रश्न 49. प्रश्न 50. प्रश्न 51.
प्रश्न
52. प्रश्न 53. प्रश्न 54. प्रश्न 55. लघूत्तरात्मक प्रश्न: प्रश्न
1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न
13. प्रश्न 14. प्रश्न 15.
प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19.
प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. चित्रानुसार सभी लोगों द्वारा बचत करने पर समस्त माँग (AD) में कमी आएगी तथा अर्थव्यवस्था में संतुलन E, से E,हो जाएगा जहाँ समस्त माँग एवं आय दोनों में कमी हो जाएगी। प्रश्न 25. प्रश्न 26. चित्र में SS बचत वक्र है तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जा सकती है। सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = \(\frac{\Delta S}{\Delta Y}\) यहाँ ∆S = बचत में परिवर्तन एवं ∆Y = आय में परिवर्तन है। प्रश्न 27. प्रश्न 28. उपर्युक्त चित्र में \(\mathrm{Y}_{\mathrm{F}}\) पूर्ण रोजगार पर उत्पादन है। यह समस्त माँग AD1 से बढ़कर AD2 होने पर दोनों समस्त माँग वक्रों का अन्तराल (EA) स्फीतिक अन्तराल है। प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34.
प्रश्न
35. प्रश्न 36. प्रश्न 37.
उत्तर:
प्रश्न 38. = \(\frac{250}{1000}\) = 0.25
प्रश्न 39. प्रश्न 40. प्रश्न 41. प्रश्न 42. प्रश्न 43. प्रश्न 44. प्रश्न 45. प्रश्न 46. प्रश्न 47. प्रश्न 48. प्रश्न 49. प्रश्न 50. प्रश्न 51. प्रश्न 52. प्रश्न 53. प्रश्न 54. प्रश्न 55. प्रश्न 56. प्रश्न 57. प्रश्न 58. प्रश्न 59. प्रश्न 60. प्रश्न 61. प्रश्न 62.
प्रश्न 64.
प्रश्न 65. प्रश्न 66.
उत्तर:
प्रश्न 67. (ii) जब सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.25 हो। प्रश्न 68.
उत्तर:
प्रश्न 70. प्रश्न 71. प्रश्न 72. ∆S = 500 - 200 = 300 रुपये ∆Y = 1000 - 600 = 400 रुपये अतः सीमान्त बचत प्रवृत्ति \(\begin{aligned} &=\frac{\Delta S}{\Delta Y} \\ &=\frac{300}{400}=0.75 \end{aligned}\) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की गणना: सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1 - सीमान्त बचत प्रवृत्ति = 1 - 0.75 = 0.25 प्रश्न 73. सीमान्त बचत प्रवृत्ति की गणना: प्रश्न 74. प्रश्न 75. प्रश्न 76. (ii) राष्ट्रीय आय में वृद्धि (∆Y) की गणना प्रश्न 77. प्रश्न 78. प्रश्न 79. प्रश्न 80. = 50 करोड़ रुपये प्रश्न 81. आय प्रस्तुत रेखाचित्र में II स्वायत्त निवेश वक्र है अर्थात् आय के विभिन्न स्तरों पर निवेश की मात्रा समान है। प्रश्न 82. प्रश्न 83. प्रश्न 84. राष्ट्रीय आय स्वायत्त निवेश: इसका आय स्तर से कोई सम्बन्ध नहीं
होता। यह आय लोच नहीं है। स्वायत्त निवेश वक्र ox वक्र के समान्तर होता है। प्रश्न 85.
प्रश्न 86. प्रश्न 87. प्रश्न 88.
प्रश्न 89. प्रश्न 90.
प्रश्न 91. निबन्धात्मक प्रश्न: प्रश्न 1. शून्य आय के स्तर पर भी उपभोग संभव है। यह उपभोग पुरानी बचतों में से या उधार द्वारा या आर्थिक अनुदान द्वारा हो सकता है। आय और उपभोग में प्रत्यक्ष संबंध पाया जाता है। उपभोग फलन को औसत उपभोग प्रवृत्ति (ARC) और सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) द्वारा व्यक्त किया जाता है। आय उपभोग सीमांत उपभोग औसत उपभोग
प्रस्तुत रेखाचित्र में cc वक्र उपभोग वक्र है तथा इस रेखाचित्र से स्पष्ट है कि शून्य आय पर भी न्यूनतम उपभोग होता है तथा आय में जैसे - जैसे वृद्धि होती है, उपभोग में भी निरन्तर वृद्धि होती है; किन्तु उपभोग में वृद्धि की दर आय में वृद्धि की दर से कम होती है। प्रश्न 2. बचत फलन को निम्न सारणी तथा रेखाचित्र की सहायता से समझा जा सकता है।
प्रस्तुत रेखाचित्र से स्पष्ट है कि शून्य आय के स्तर पर बचत ऋणात्मक होती है; क्योंकि शून्य आय के स्तर पर भी उपभोक्ता उपभोग करता है तथा वह यह उपभोग पूर्व की बचतों अथवा ऋण लेकर करता है जिससे बचत इस स्तर पर ऋणात्मक होती है। सामान्यतः बचत आय में वृद्धि के साथ-साथ बढ़ती है तथा बचत की दर, आय वृद्धि की दर से अधिक होती है। प्रश्न 3. यहाँ एक बात ध्यान देने की है, समीकरण (i) की बायीं ओर Y पद अन्तिम वस्तुओं की प्रत्याशित निर्गत अथवा नियोजित पूर्ति को प्रदर्शित करता है। दूसरी ओर, दायीं ओर की अभिव्यक्ति से अर्थव्यवस्था में अन्तिम वस्तु की प्रत्याशित अथवा नियोजित समस्त माँग प्रदर्शित होती है। जब अन्तिम वस्तु बाजार और अर्थव्यवस्था संतुलन की स्थिति में होती हैं, तभी प्रत्याशित पूर्ति प्रत्याशित माँग के बराबर होती है। अतः समीकरण (i) को इस तथ्य से भ्रमित नहीं करना चाहिए, जो कि यह बतलाता है कि कुल निर्गत का यथार्थ मूल्य हमेशा अर्थव्यवस्था के यथार्थ उपभोग और यथार्थ निवेश के कुल योग के बराबर होता है। यदि अन्तिम वस्तु के निर्गत सें, जो कि उत्पादक किसी नियत वर्ष में उत्पादन करने का नियोजन करता है, अन्तिम वस्तु की प्रत्याशित माँग कम हो, तो समीकरण (i) सही नहीं होगा। गोदाम में स्टॉक का अंबार लगा रहेगा, जिसे माल - सूची का अनभिप्रेत संचय कहा जाएगा। यह नियोजित अथवा प्रत्याशित निवेश का अंश नहीं है, किन्तु निश्चित रूप से यह वर्ष के अंत में माल - सूची में हुई वास्तविक वृद्धि का अंश है अथवा दूसरे शब्दों में, एक यथार्थ निवेश होगा। अत: यद्यपि नियोजित Y नियोजित C + I से अधिक है, फिर भी वास्तविक Y वास्तविक C +1 के बराबर होगी। लेखांकन तादात्म्य की दायीं ओर यथार्थ निवेश में मालों का अनभिप्रेत संचय के रूप में अतिरिक्त निर्गत को दर्शाता है। यदि यहाँ हम अर्थव्यवस्था में सरकार को शामिल करें। अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं की समस्त माँग को प्रभावित करने वाले सरकार के मुख्य
कार्यकलाप का संक्षिप्त विवरण राजकोषीय परिवर्त कर (T) और सरकारी व्यय (G) जो दोनों हमारे विश्लेषण में स्वायत्त हैं, के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता है। अन्य फर्मों तथा परिवारों की तरह सरकार अपने व्यय (G) के माध्यम से समस्त माँग में वृद्धि करती है। दूसरी ओर, सरकार कर लगाकर परिवारों की आय का एक अंश ले लेती है। अत: उसकी प्रयोज्य आय Y = Y - T हो जाती है। परिवार इस प्रयोज्य आय के केवल एक अंश का ही व्यय उपभोग के लिए करते हैं। प्रश्न 4.
(1) रेखीय समीकरण: इसी प्रकार हम उपभोग फलन को भी रेखाचित्र में दर्शा सकते हैं इसे निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त कर सकते हैं। यहाँ C = उपभोग फलन को अन्तर्रोध व C = उपभोग फलन की ढाल है इस उपभोग फलन को निम्न रेखाचित्र में
दर्शाया गया हैं। रेखाचित्र - अंतधि के साथ उपभोग फलन: समष्टि अर्थशास्त्रीय समस्त मांग का रेखाचित्रीय प्रस्तुतीकरण: समस्त माँग फलन आय के प्रत्येक स्तर पर कुल माँग है (जो उपभोग + निवेश से प्राप्त होती है) को दिखाता है। ग्राफ के अनुसार, इसका यह अर्थ है कि समस्त मांग को उर्ध्वाधरीय आधार पर उपभोग एवं माँग फलनों को जोड़कर प्राप्त किया जा सकता है। समस्त माँग फलन उपभोग फलन के समानांतर हैं, अर्थात उनके पास ढलान C के ही समान है। यहाँ ध्यान दिया जा सकता है यह फलन प्रत्याशित माँग को दर्शाता है। समष्टि अर्थशास्त्रीय समस्त पूर्ति का रेखाचित्रीय प्रस्तुतीकरण-व्यष्टि अर्थशास्त्रीय सिद्धांत में, हम पूर्ति वक्र को उस चित्र से दिखाते हैं
जहाँ कीमत उध्वधिर अक्ष पर तथा पूर्ति मात्रा को क्षैतिजीय अक्ष पर होती है। समष्टि अर्थशास्त्र सिद्धान्त की प्रथम अवस्था में, हम कीमत को स्थिर मान लेते हैं। यहाँ, समस्त पूर्ति अथवा GDP को सरलता से ऊपर अथवा नीचे हटने वाला मान लिया जाता है, क्योंकि ये सब सभी प्रकार के अप्रयुक्त रेखाचित्र उपलब्ध साधन होते हैं GDP का कुछ भी स्तर क्यों न हो, उतनी पूर्ति तो करनी होगी और मूल्य स्तर का कोई योगदान नहीं होता। पूर्ति की इस प्रकार की स्थिति को 45° वाली रेखा से दिखाया गया है। अब 45° की रेखा की यह विशेषता है कि इसमें प्रत्येक बिन्दु का समान क्षैतिजीय और उर्ध्वाधर निर्देशांक होगा। साम्य का निर्धारण: साम्य को ग्राफ द्वारा प्रत्याशित समस्त मांग एवं पूर्ति को एक चित्र में एक साथ रखकर निम्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। वह बिन्दु जहाँ प्रत्याशित समस्त माँग, प्रत्याशित समस्त पूर्ति के बराबर है, साम्य होगा। यह साम्य बिन्दु E है और आय का साम्य स्तर OY, है।
बीजगणितीय रीति ( या विधि): प्रत्याशित समस्त माँग = I = C+CY प्रत्याशित समस्त पूर्ति वक्र =Y साम्य की यह आवश्यकता है कि पूर्तिकर्ताओं की योजनाएँ उनकी योजनाओं से मेल खाएँ जो अर्थव्यवस्था में अंतिम मांग को पूरा करते हैं। इसलिये, इस स्थिति में, प्रत्याशित समस्त माँग = प्रत्याशित समस्त पूर्ति। C + T+ cY + Y Y(1 - c) = C + I \(Y=\frac{\vec{C}+\bar{I}}{(1-c)}\) प्रश्न 5. 2. निवेश में परिवर्तन: अभी तक हमने माना है कि निवेश स्वतंत्र है। यद्यपि इसका अर्थ केवल इतना है कि यह आय के स्तर पर निर्भर नहीं करता। आय के अतिरिक्त भी ऐसे बहुत से चर हैं, जो निवेश स्तर को प्रभावित
कर सकते हैं। एक महत्वपूर्ण कारक है साख की उपलब्धता। साख की आसान उपलब्धता निवेश को बल देती है। एक अन्य कारक है ब्याज की दर-व्याज की दर निवेश योग्य निधि की लागत है। व्याज की ऊँची दरों पर, फर्मों की प्रवृत्ति, निवेश को कम करने की होती है। निम्नलिखित उदाहरण की सहायता से निवेश में परिवर्तन को समझ सकते हैं। रेखाचित्र जब स्वायत्त निवेश में वृद्धि होती है, तो रेखा AD, ऊपर की ओर समानांतर शिफ्ट होती है और AD, की स्थिति को प्राप्त करती है। निर्गत Y पर समस्त माँग का मूल्य Y* F है, जो निर्गत OY' = YE, के मूल्य से E,F के परिमाण के बराबर अधिक है। EF से अधिमांग के परिणाम की माप होती है, जो अर्थव्यवस्था में स्वायत्त व्यय में वृद्धि के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। अत: E, संतुलन को निरूपित नहीं करता। अन्तिम वस्तु बाजार में नये संतुलन की प्राप्ति के लिए हमें उस बिन्दु की खोज करनी होगी, जहाँ नयी समस्त माँग रेखा AD 45° रेखा को प्रतिच्छेद करेगी। यह बिन्दु E, पर होता है, जो नया संतुलन बिन्दु है। निर्गत और समस्त मांग के नये मूल्य क्रमश: Y', और AD', हैं। नये संतुलन निर्गत तथा समस्त मांग में EG = EG के परिमाण में वृद्धि होती है, जो स्वायत्त व्यय AT = EF= E,J में प्रारंभिक वृद्धि से अधिक है। अतः स्वायत्त व्यय में प्रारंभिक वृद्धि से प्रतीत होता है कि समस्त माँग और निर्गत के संतुलन मूल्यों पर अधिप्लावन प्रभाव पड़ता है। प्रश्न 6. उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ाने के उपाय: किसी
अर्थव्यवस्था में उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ाने के निम्न उपाय हो सकते हैं (2) मजदूरी दरों में वृद्धि करना: यदि अर्थव्यवस्था में श्रमिकों की मजदूरी दरों में वृद्धि की जाए तो उनकी आय बढ़ेगी तथा श्रमिकों की उपभोग प्रवृत्ति में भी वृद्धि होगी, परन्तु इस हेतु यह आवश्यक है कि श्रमिकों की उत्पादकता में भी वृद्धि होनी चाहिए। (3) सामाजिक सुरक्षा उपाय: यदि अर्थव्यवस्था में सामाजिक सुरक्षा व्यवस्थाएँ जैसे-वृद्धावस्था पेंशन, बेरोजगारी बीमा, चिकित्सा सुविधाएँ आदि पर्याप्त व उपयुक्त हों तो ये भावी अनिश्चितताओं को दूर करती हैं
तथा लोगों (4) सरल एवं आसान शर्तों पर ऋण सुविधाएँयदि देश में बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थाओं द्वारा सरल एवं आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध करवाए जाते हैं तो इससे लोग आसानी से ऋण लेंगे तथा उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि होगी। अतः उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ाने हेतु ऋण सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिए। (5) विज्ञापन: विभिन्न माध्यमों के द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं का व्यापक प्रचार अथवा विज्ञापन करने से लोगों को वस्तुओं एवं सेवाओं की पर्याप्त जानकारी प्राप्त होगी तथा वे उनका उपभोग करने हेतु प्रेरित होंगे। इससे उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि होती है। (6) शहरीकरण: जब देश में शहरीकरण बढ़ता है तो लोग गाँवों से शहरों की ओर आकर्षित होते हैं तथा उनमें भौतिकवाद भी बढ़ता है जिससे उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि होती है। (7) परिवहन सुविधाओं का विस्तार: यदि देश में परिवहन सुविधाओं का विस्तार हो तो वस्तुओं को एक बाजार से अन्य बाजार तक आसानी से तथा कम लागत पर लाया व ले जाया जा सकता है। इससे लोगों की उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि होती है। प्रश्न 7. गुणक का आकार अथवा मूल्य: गुणक: बीजगणितीय रूप में इसे निम्न प्रकार लिख सकते K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\) यहाँ K गुणक है तथा MPC सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति। यदि हमें सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात हो तो हम उपर्युक्त सूत्र से गुणक ज्ञात कर सकते हैं। माना कि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है तब गुणक होगा \(K=\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=4\) चूँकि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) + सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 1 होता है। अतः 1 - सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) होगी। अतः सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) ज्ञात होने पर भी गुणक का मूल्य ज्ञात किया जा सकता है। इसलिए हम गुणक के सूत्र को निम्न प्रकार भी व्यक्त कर सकते हैं। K= \(\frac{1}{\text { MPS }}\) यहाँ MPS सीमान्त बचत प्रवृत्ति है। अत: हमें सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) अथवा सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) ज्ञात हो तो हम गुणक ज्ञात कर सकते हैं। गुणक ज्ञात करने का तरीका बिल्कुल सरल है। यदि हमें सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) दी हुई हो तो सबसे पहले हमें 1 में से MPC को घटाकर MPS ज्ञात कर लेना चाहिए तथा MPS का व्युत्क्रम करके गुणक निकाल लेना चाहिए। तालिका 1 में गुणक गणना दिखायी गयी है। उपर्युक्त तालिका 1 से कुछ महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकलते हैं, जो निम्न हैं:
इसलिए कहा जा सकता है कि गुणक का मूल्य 1 से अनन्त के मध्य होता है। गुणक का रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण: रेखाचित्र में Y = C + I आय तथा उपभोग व निवेश की 45° सन्तुलन रेखा है जिस पर प्रारम्भिक C + । रेखा बिन्दु E, पर काटती है जो आय के प्रारम्भिक स्तर पर OY का द्योतक है; किन्तु जब स्वायत्त निवेश में वृद्धि हो जाती
है तो नई C + 1 + AI रेखा 45° आय रेखा को
प्रश्न 8.
उत्तर:
उत्तर:
बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है चित्र सहित?आय में परिवर्तन के फलस्वरूप उपभोग में भी परिवर्तन हो जाता है अर्थात् जब आय में वृद्धि होती है तो उपभोग में भी वृद्धि होती है और जब आय में कमी होती है तो उपभोग भी धट जाता है। आय का कुछ भाग जो उपभोग के बाद शेष बचता है उसे बचत कहते है। बचत में परिवर्तन व आय में परिवर्तन का अनुपात सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहते है।
बचत प्रवृत्ति से आप क्या समझते हैं?आय और बचत के बीच के सम्बन्ध को बचत प्रवृत्ति या बचत फलन कहते हैं। बचत, आय पर निर्भर होती है, क्योंकि आय के बढ़ने पर बचत बढ़ती है तथा आय के घटने पर बचत भी घटती है। लेकिन बचत में वृद्धि की दर सामान्यतः आय में वृद्धि की दर से अधिक होती है।
बचत प्रवृत्ति कितने प्रकार की होती है?बचत के प्रकार | बचत के निर्धारक तत्त्व | भारत में बचत की.... (1) ऐच्छिक बचत. (2) अनिवार्य बचत. (3) बाह्य बचत. बचत फलन से क्या तात्पर्य है बचत फलन के प्रकार लिखिए?बचत फलन किसी अर्थव्यवस्था में बचत और आय के संबंध को बताता है । बचत को आय (प्रयोज्य) के उस भाग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसे उपभोग नहीं किया जाता। यह जैसा कि पहले कहा जा चुका है, उपभोग के मनोवैज्ञानिक नियम का परिणाम है।
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