आत्म क्षमता की आवश्यकता क्यों है - aatm kshamata kee aavashyakata kyon hai

आत्म क्षमता क्या है

आत्म विकास - आत्मनिरीक्षण और अभिव्यक्ति

Submitted by Anand on 16 September 2021 - 2:27am

आत्म-विकास किसी व्यक्ति का स्वयं की खोजना और उसके भीतर अव्यक्त संभावनाओं को खोलने का या अनलॉक करने का एक संयोजन है, और इसके बाद संभव रूप से उनका उपयोग करना - दोनों, पेशेवर और व्यक्तिगत रूप से।

यह पाठ्यक्रम व्यक्तियों को स्वयं के विकास के सभी स्तरों पर सुविधा प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, साथ ही उन्हें गहन आत्मनिरीक्षण और यह आपको स्वयं की किसी भी शक्तियों और क्षमताओं की अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक कौशल में वृद्धि करने की यात्रा पर भी ले जाता है।

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आत्म अवलोकन से होता क्षमताओं का विकास

मथुरा: संसार में हम चींटी, कुत्ता, गाय, हाथी, शेर, कौआ आदि अनेक प्रकार के प्राणियों को देखते हैं। हर

मथुरा: संसार में हम चींटी, कुत्ता, गाय, हाथी, शेर, कौआ आदि अनेक प्रकार के प्राणियों को देखते हैं। हर प्राणी के शरीर की बनावट भिन्न है। सब प्राणियों में शारीरिक शक्ति और बुद्धि भी अलग-अलग होती है ।

मनुष्य भी एक सामाजिक प्राणी है परंतु यह इन सबसे श्रेष्ठ है। मनुष्य में अन्य प्राणियों से अधिक बुद्धि है। संसार में जो आविष्कार दिखाई देते हैं। वे मनुष्य की बुद्धि की उपज हैं।

मनुष्य में बुद्धि के साथ-साथ भावना का भी समावेश होता है। मनुष्य शरीर एक बहुमूल्य उपहार है, जो परमेश्वर ने हमें कृपा पूर्वक दिया है। हमें इसका अच्छे से अच्छा उपयोग करना चाहिए। पशु जब भूखा होता है तब बेचैनी से भोजन की खोज करता है। भोजन मिलने पर वह भरपेट खाता है और फिर सो जाता है। भोजन करना, सोना, सन्तान उत्पत्ति करना यही पशु का काम है।

वह इसके अतिरिक्त कुछ सोच या कर नहीं पाता, परंतु भगवान ने मनुष्य को धर्म का ज्ञान, विद्या, विवेक तथा भावना आदि दी है। मनुष्य ने धर्म का आचरण नहीं किया, विवेक से काम नहीं लिया, केवल भोजन, नींद और सन्तान उत्पत्ति में ही अपना सारा समय नष्ट कर दिया तो मनुष्य और पशु में क्या अंतर पड़ा।

परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जहां पल-पल में परिवर्तन होते हैं। मनुष्य में गर्भाधान से लेकर वयस्क होने तक और जीवन के अंतिम क्षणों तक परिवर्तन अर्थात विकास की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। इन परिवर्तनों के कारण जीवन में अदभुत क्षमताओं का विकास होता रहता है।

भावनात्मक क्षमताओं का विकास-

शिशु के जन्म के समय उसका भविष्य विकसित नहीं होता है। उसको सही और गलत, भय व खुशी, अच्छे या बुरे के भेद की समझ नहीं होती। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि शिशु प्रत्येक भक्ष्य या अभक्ष्य वस्तु को खाने की दृष्टि से मुख में ले जाने का प्रयास करता हैं। साथ ही वह जो मां उसे दूध पिलाती है, उसकी हर प्रकार की ¨चता करती है। उसी मां के बाल पकड़ कर खींचता है। किन्तु जब वह विकसित होता है तब हर प्रकार की वस्तु की प्रकृति के अनुसार व्यवहार करता है। वह उसी मां को सभी प्रकार से सम्मान देता है। यह प्रक्रिया उसके भावनात्मक क्षमताओं को प्रकट करती है।

बौद्धिक क्षमताओं का विकास -

मनुष्य में भावनात्मक विकास के साथ बौद्धिक क्षमताओं का विकास भी सम्पूर्ण जीवन काल में चलता है। शिशु के मस्तिष्क को खाली स्लेट की संज्ञा दी जाती है, लेकिन वहीं मस्तिष्क विकसित होकर संसार की सभी आवश्यक वस्तुओं का अनुसंधान कर उपलब्ध कराता है।

जिस प्रकार पहाड़ से एक पत्थर टूट कर जल में प्रवाहित होकर और निर्माण की प्रक्रिया को पूर्ण कर एक शिव रूप धारण कर सभी के लिए श्रद्धा का केंद्र बनता है। हम भी इस जीवन रूपी पुष्प को पूर्ण विकसित कर इस समाज और राष्ट्र को समर्पित कर अपना इस जन्म का उद्देश्य पूर्ण करें।

यां मेघां देवगणा: पितरष्चोपासतें ।

तथा मामद्यविनं कुरु स्वाहा ।। ( यजुर्वेद)

(जिस धारणवती मेधावी बुद्धि की विद्धान, तत्वदर्शी, आत्म ज्ञानी और सुधारक जन उपासना करते हैं, हे ज्ञान स्वरूप परमेश्वर मुझे भी उसी मेधा से युक्त करो।

प्रमोद कुमार वर्मा, प्रधानाचार्य

सरस्वती विद्या मंदिर सीनियर सेकेंड्री स्कूल, कोसीकलां

बच्चों की बात..

आत्म अवलोकन से तात्पर्य है स्वयं का मूल्यांकन। व्यक्ति को स्वयं का मूल्यांकन करना चाहिए कि उसमें कितनी क्षमता है। उसे अपनी क्षमता के अनुसार अपना लक्ष्य निर्धारित कर उसे प्राप्त करना चाहिए।

भावना ¨सघल, कक्षा 12

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जब व्यक्ति को यह आभास हो जाता है कि वह कौन है। उसका धरती पर जन्म लेने का उद्देश्य क्या है। उसके अंदर कौन-कौन सी बुराइयां हैं। क्या अच्छाइयां हैं और उसके जीवन का ध्येय क्या है। इसे उसका आत्मज्ञान कहा जाता है।

सत्यप्रकाश, कक्षा 12

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स्वयं के अवलोकन से हम अपनी भावनात्मक और बौद्धिक क्षमता का पता लगा सकते हैं। हमारे अंदर कितनी बौद्धिक क्षमता है, ये हम खुद का अवलोकन करके पता लगा सकते हैं।

तनीशा, कक्षा 12

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व्यक्ति जिस दिशा में सोचता है, उसकी बुद्धि भी उसी दिशा में कार्य करती है। वह इस संसार को भी अपने अनुरूप समझता है। व्यक्ति आत्मअवलोकन करने से सांसारिक मोहमाया से मुक्त हो जाता है। आत्मअवलोकन न होने पर आत्मा तथा परमात्मा का मिलन नहीं हो पाता है।

आदिश जैन, कक्षा 12

विषयसूची

  • 1 आत्म अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
  • 2 आत्म नियंत्रण का क्या अर्थ है?
  • 3 आत्म अभिव्यक्ति को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं?
  • 4 व्यक्तित्व और आत्म अवधारणा व्यवहार को कैसे प्रभावित करते है समझाइये?
  • 5 नियंत्रण का अर्थ क्या होगा?
  • 6 आत्म नियंत्रण की आवश्यकता क्यों होती है?
  • 7 आत्म जागरूकता क्या है इसका महत्व?
  • 8 आत्मा क्षमता क्या है?

आत्म अवधारणा से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंआत्म-धारणा एक के नजरिए और स्वभाव को , जो आत्म – ज्ञान परिभाषित किया गया है करने के लिए इस हद तक संदर्भित करता है जो आत्म जागरूकता, से अलग पहचाना सुसंगत , और वर्तमान में लागू है। आत्म-धारणा आत्मसम्मान से अलग है: स्वयं अवधारणा आत्म का एक संज्ञानात्मक या वर्णनात्मक घटक है जबकि आत्मसम्मान मूल्यांकन और स्वच्छंद है।

आत्म नियंत्रण का क्या अर्थ है?

इसे सुनेंरोकेंआत्मनियंत्रण किसी उद्देश्य की प्राप्ति या दंड से बचने के लिए प्रदर्शित की गई भावना, कामना और व्यवहार पर नियंत्रण की क्षमता है। मनोविज्ञान में इसे स्वनियंत्रण भी कहा गया है। . 3 संबंधों: धैर्य, नियंत्रण, संयम।

आत्म अभिव्यक्ति को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं?

इसे सुनेंरोकेंआत्म के अन्तर्गत व्यक्ति का चिंतन, अनुभूति और कार्य के कर्ता का रूप आता है। इस प्रकार जब मैं क्रोध का अनुभव करता हूँ या स्वतंत्रता के विचार के बारे में सोचता हूँ, वह “मैं” है आत्म कर्तारूप में। दूसरी ओर आत्म कारक के रूप में आत्म के बारे में दूसरे व्यक्ति का दष्टिकोण या “मुझे” है।

आत्म अन्वेषण का अर्थ और उद्देश्य क्या है?

इसे सुनेंरोकेंआत्म अन्वेषण के माध्यम से हमें स्वयं का मूल्य प्राप्त होता है। यह अपने आप पर ध्यान केन्द्रित करने की एक प्रक्रिया है, कि हमारी वर्तमान मान्यताएँ और आकांक्षाएँ क्या हैं तथा हम वास्तव में जो बनना चाहते हैं (जो स्वाभाविक रूप से हमारे लिए स्वीकार्य है) अगर ये दोनों एक ही हैं, तो कोई समस्या नहीं है।

आत्म संप्रत्यय से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंविशेषकों या विशेषताओं को दर्शाती हैं जिन्हें व्यक्ति की सामाजिक एवं भूमिका पहचानों से अलग महसूस किया जा सकता है या इन पहचानों में से कुछ या सभी से संबद्ध किया जा सकता है – इस प्रकार, व्यक्तिगत पहचानें विषयवस्तु की तुलना से संबंधित हैं जिसे मनोविज्ञान साहित्य में प्रारूपिक रूप से आत्म-संप्रत्यय के रूप में संदर्भित किया …

व्यक्तित्व और आत्म अवधारणा व्यवहार को कैसे प्रभावित करते है समझाइये?

इसे सुनेंरोकेंवास्तव में आत्म व्यक्तित्व के मूल रूप में स्थित होता है। आत्म एवं व्यक्तित्व का अध्ययन न केवल यह समझने में कि हम कौन हैं अपितु हमारी अनन्यता और दूसरों से हमारी समानताओं को भी समझने में हमारी सहायता करता है। आत्म एवं व्यक्तित्व की समझ के द्वारा हम स्वयं के और दूसरों के व्यवहारों को भिन्न परिस्थितियों में समझ सकते हैं।

नियंत्रण का अर्थ क्या होगा?

इसे सुनेंरोकेंनियंत्रण का अर्थ पूर्व निर्धारित लक्ष्यों व उद्देश्यों के अनुसार प्रमापित कार्य सम्पन्न हो रहा है या नहीं जॉंच करना, यदि नहीं हो रहा है तो कमियों एवं कारणों की खोज कर सुधारात्मक कार्यवाही करना है।

आत्म नियंत्रण की आवश्यकता क्यों होती है?

इसे सुनेंरोकेंआत्म-नियंत्रण में अशांतिकारक और विघटनकारी संवेगों को प्रबंधित करना सीखना सम्मिलित है। यह इस तरह के संवेगों पर बाधा डालता है, इस प्रकार आवेगी व्यवहार और कार्यों से बचाता है। यह परिस्थिति के विषय में चिंतन करने में मदद करता है जिससे विवेकी निर्णय लेने और उचित कदम उठाने में हम सक्षम होते है।

आत्मसम्मान के कितने स्तर होते हैं?

इसे सुनेंरोकेंसामान्य तौर पर तीन प्रकार के आत्म-सम्मान हैं जो बदले में अलग-अलग उपप्रकार रख सकते हैं। एक ओर, हम उच्च आत्म-सम्मान पाते हैं जो उच्च और स्थिर और उच्च और अस्थिर में विभाजित है। दूसरी ओर, हमारे पास औसत आत्म-सम्मान और कम आत्म-सम्मान है।

आत्म पहचान की विशेषताएं क्या है?

इसे सुनेंरोकेंऔर स्व-सम्मान की व्यक्तिगत अनुभूति है, जो दूसरों के प्रभावों से मुक्त होता है अर्थात यह दूसरों की प्रशंसा, निंदा और मूल्यांकन आदि से स्वतंत्र है। वास्तव में आत्म-सम्मान व्यक्ति का स्व दृष्टी में स्वयं का मूल्यांकन है और अपनी मौलिक अद्वितीयता की आंतरिक समझ और इसकी गौरवपूर्ण अनुभूति है।

आत्म जागरूकता क्या है इसका महत्व?

इसे सुनेंरोकेंआत्म-जागरूकता (कभी-कभी आत्मा-ज्ञान या आत्मनिरीक्षण के रूप में भी जाना जाता है) आपकी अपनी जरूरतों, इच्छाओं, असफलताओं, आदतों, और अन्य सभी चीजों को समझने के बारे में है जो आपको एक अद्वितीय व्यक्ति बनाता है। जितना अधिक आप अपने बारे में जानते हैं, उतना ही बेहतर आप जीवन के परिवर्तनों को स्वीकार करते हैं।

आत्मा क्षमता क्या है?

इसे सुनेंरोकेंआत्म- जागरूकता को स्व से बाहर स्व को अभिव्यक्त करने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। आत्म-जागरूकता से आशय आस-पास के वातावरणीय उद्दीपकों के प्रति मानसिक रूप से सचेतन रहने से है।

आत्म क्षमता से क्या अभिप्राय है?

आत्म-विकास किसी व्यक्ति का स्वयं की खोजना और उसके भीतर अव्यक्त संभावनाओं को खोलने का या अनलॉक करने का एक संयोजन है, और इसके बाद संभव रूप से उनका उपयोग करना - दोनों, पेशेवर और व्यक्तिगत रूप से।

आत्म क्षमता का अर्थ बताइए आत्म क्षमता की आवश्यकता क्यों है?

इसके द्वारा वह अपनी शक्तियों क्षमताओं, कमजोरियों आदि को समझ सकता है। वह अपनी बाह्य क्रियाओं के प्रति भी सजग, सतर्क, जागृत, विवेकशील हो सकता है। यूं तो आत्मावलोकन द्वारा स्वयं की पहचान करना किसी के लिए भी अच्छा है, मगर यह शिक्षा से जुड़े व्यक्तियों के लिए बहुत जरूरी हो जाता है।

आत्म पहचान की विशेषता क्या है?

इस प्रकार आत्म का तात्पर्य अपने संदर्भ में व्यक्ति के सचेतन अनुभवों, विचारों, चिंतन एवं भावनाओं की समग्रता से है। व्यक्ति के यही अनुभव एवं विचार व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों ही स्तरों पर व्यक्ति के अस्तित्व को परिभाषित करते हैं।

आत्म क्या है मनोविज्ञान?

हम अपनी व्यक्ितगत और सामाजिक अनन्यताओं से जुड़े रहते हैं और इस ज्ञान से कि ये अनन्यताएँ आजीवन स्िथर रहेंगी, हम सुरक्ष्िात अनुभव करते हैं। जिस प्रकार से हम अपने आपका प्रत्यक्षण करते हैं तथा अपनी क्षमताओं और गुणों के बारे में जो विचार रखते हैं, उसी को आत्म - संप्रत्यय या आत्म - धारणा ;ेमसबिवदबमचजद्ध कहा जाता है।