आर्थिक अधिकार से आप क्या समझते हैं? - aarthik adhikaar se aap kya samajhate hain?

आर्थिक अधिकार किसे कहते हैं?

लोकतंत्रीय राज्य में नागरिकों को आर्थिक विकास के लिए आर्थिक अधिकार भी प्राप्त होते हैं। नागरिकों को प्राय: निम्नलिखित आर्थिक अधिकार प्राप्त होते हैं-

1. काम पाने का अधिकार: काम करने का अधिकार से अभिप्राय यह है कि नागरिक वैतनिक काम करने की माँग करते हैं। राज्य का कर्तव्य है कि वह सभी नागरिकों को काम दे ताकि नागरिक अपनी आजीविका कमा सके।

2. उचित मजदूरी का अधिकार: नागरिकों को काम मिलना ही काफी नहीं है, उन्हें अपने काम की उचित मजदूरी भी मिलनी चाहिए। रूस में उचित मजदूरी का अधिकार नागरिकों को संविधान से प्राप्त है। पूँजीवादी देशों में न्यूनतम वेतन कनूनी बनाए जाते हैं। 

3. अवकाश पाने का अधिकार: मजदूरों को अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए काम करने के पश्चात् अवकाश पाने का अधिकार भी प्राप्त होता है। रूस में अवकाश पाने का अधिकार नागरिकों को संविधान से प्राप्त है। अवकाश के दिनों में वेतन भी दिया जाता है। 

4. काम के नियत समय का अधिकार: आधुनिक राज्यों में काम करने के घण्टे भी निश्चित होते हैं ताकि पूँजीपति मजदूरों का शोषण न कर सके। काम करने के घण्टे भी निश्चित किए जाने से पूर्व मजदूरों से 12-12 या 15-15 घण्टे काम लिया जाता था। आजकल प्राय: सभी राज्यों में मजदूरों से 8 घण्टे काम लिया जाता है। 

5. आर्थिक सुरक्षा का अधिकार: नागरिकों को आर्थिक सुरक्षा के अधिकार भी प्राप्त होते हैं। इस अधिकार के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति काम करते समय अंगहीन या अंधा हो जाता है तो सरकार उसको आर्थिक सहायता प्रदान करती है। ऐसी व्यवस्था होने पर कोई नागरिक किसी दूसरे पर आश्रित नहीं रहता और न ही उसे भीख आदि माँगनी पड़ती है। आर्थिक चिन्ता से स्वतंत्र होकर ही व्यक्ति राजनीतिक स्वतंत्रता का उचित प्रयोग कर सकता है। 

6. सम्पत्ति का अधिकार: प्राय: सभी आधुनिक राज्यों में नागरिक को सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त होता है। इस अधिकार से अभिप्राय यह है कि नागरिक सम्पत्ति खरीद, बेच और जिसे चाहे अपनी सम्पत्ति दे सकता है। नागरिक को पैतृक सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त होता है। लॉक के अनुसार सम्पत्ति का अधिकार प्राकृतिक अधिकार है और राज्य का प्रथम कर्तव्य अपने नागरिकों के इस अधिकार की रक्षा करना है। कई लोगों का विचार है नागरिकों को सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त नहीं होना चाहिए क्योंकि सम्पत्ति के अधिकार से पूँजीपति गरीबों का शोषण करते हैं। जिन व्यक्तियों के पास सम्पत्ति होती है सरकार पर उन्हीं का नियंत्रण होता है और वे सरकार की शक्तियों का प्रयोग अपने हितों के लिए करते हैं। रूस में उत्पादन के साधनों पर राज्य का नियंत्रण है। 

अधिकारों का बदलता स्वरूप

परिवर्तन प्रकृति का नियम है और प्रत्येक जीव विकासशील होता है। मानव समाज भी विकासशील है। मानव समाज के विकास के साथ-साथ अधिकारों में परिवर्तन आना स्वाभाविक है, इसीलिए व्यक्ति के अधिकारों की एक निश्चित एवं स्थायी देना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव भी है। अधिकारों का विषय-क्षेत्र देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक परिस्थितियों तथा समय पर निर्भर करता है। 

20वीं शताब्दी के मानव के अधिकार 19वीं शताब्दी के अधिकारों से भिन्न हैं। 19वीं शताब्दी में व्यक्तिवाद का बोलबाला था और प्रजातंत्र का अभी पूरी तरह विकास नहीं हुआ था। व्यक्ति का जीवन निरंकुश शासनों की दया पर निर्भर था, इसलिए 19वीं शताब्दी में व्यक्तियों को शिक्षा का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, काम करने का अधिकार इत्यादि प्राप्त नहीं थे। परन्तु 20वीं शताब्दी लोकतंत्र, अंतर्राष्ट्रवाद और कल्याणकारी राज्यों का युग है, इसलिए प्रत्येक कल्याणकारी राज्य ने अपने नागरिकों को ऐसे अधिकार प्रदान किए हैं, जिनके द्वारा व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के सभी पहलुओं का विकास कर सके। 

आधुनिक लोकतंत्रीय राज्यों में नागरिकों को न केवल राजनीतिक अधिकार बल्कि सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक अधिकार भी दिए जाते हैं, परन्तु साम्यवादी देशों में जैसे कि सोवियत रूस और चीन में काम करने का अधिकार सर्वप्रथम अधिकार है। परन्तु भारत में सभी आर्थिक अधिकार पूरी तरह नहीं दिए गए हैं, अत: अधिकारों का स्वरूप देश की राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है।

आर्थिक स्वतंत्रता (Economic freedom) या आर्थिक मुक्ति (Economic liberty) किसी समाज के नागरिको और व्यापारिक ईकाईयों द्वारा आर्थिक निर्णय लेने की स्वतंत्रता को कहते हैं। इसके कई आयाम होते हैं, जैसे कि स्वयं किसी नौकरी को लेना या छोड़ देना, किसी अन्य व्यक्ति को नौकरी पर रखना या निकाल देना, कारखाना खोलना या बंद कर देना, कोई धंघा आरम्भ करना या बंद कर देना, सम्पत्ति खरीदना व बेचना, इत्यादि। मुक्त बाज़ार की अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक स्वतंत्रता का दर्जा अधिक होता है और इनमें आर्थिक संतुलन स्वतंत्र रूप से बिना अधिक सरकारी हस्तक्षेप के उभरने दिया जाता है। इसके विपरीत नियोजित अर्थव्यवस्थाओं में सरकार द्वारा नागरिकों और व्यापारियों को स्वयं आर्थिक निर्णय लेने से रोका जाता है और सरकार उनके निर्णयों की परख कर के उन्हें रोकने का अधिकार स्वयं को देती है। आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक एक विख्यात सूचकांक है जो विभिन्न देशों की आर्थिक स्वतंत्रता का स्तर मापता है।[1][2][3]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक (Index of Economic Freedom)
  • अर्थिक संतुलन
  • मुक्त बाज़ार
  • नियोजित अर्थव्यवस्था
  • अभाव अर्थव्यवस्था

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • आर्थिक सुधारों के दो दशक
  • आर्थिक स्वतंत्रता, फ्रेज़र इंस्टिट्यूट के रॉबर्ट लॉसन द्वारा व्याख्यान
  • मुक्त, अखिरकर मुक्त, जॉन मिलर, डॉलर्ज़ ऐण्ड सेंट्स मैगेज़ीन
  • आर्थिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Bronfenbrenner, Martin (1955). "Two Concepts of Economic Freedom". Ethics. 65 (3): 157–70. JSTOR 2378928. डीओआइ:10.1086/290998.
  2. Surjit S. Bhalla. Freedom and economic growth: a virtuous cycle?. Published in Democracy's Victory and Crisis. (1997). Cambridge University Press. ISBN 0-521-57583-4 p. 205
  3. David A. Harper. Foundations of Entrepreneurship and Economic Development. (1999). Routledge. ISBN 0-415-15342-5 pp. 57, 64

आर्थिक अधिकारों से आप क्या समझते हैं?

इस अधिकार के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति काम करते समय अंगहीन या अंधा हो जाता है तो सरकार उसको आर्थिक सहायता प्रदान करती है। ऐसी व्यवस्था होने पर कोई नागरिक किसी दूसरे पर आश्रित नहीं रहता और न ही उसे भीख आदि माँगनी पड़ती है। आर्थिक चिन्ता से स्वतंत्र होकर ही व्यक्ति राजनीतिक स्वतंत्रता का उचित प्रयोग कर सकता है।

अधिकार से आप क्या समझते हैं स्पष्ट कीजिए?

अधिकार का आशय राज्य द्वारा व्यक्ति को प्रदान की जाने वाली उन सुविधाओं से है जिनका प्रयोग कर व्यक्ति अपनी शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक शक्तियों का विकास करता है। अधिकारों के बिना मानव जीवन के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसीलिए वर्तमान में प्रत्येक राज्य अपने नागरिकों को अधिकाधिक अधिकार प्रदान करता है।

अधिकार से आप क्या समझते हैं अधिकार के विभिन्न सिद्धांतों का संक्षेप में वर्णन कीजिए?

अधिकार वे सामाजिक परिस्थितियां हैं जो एक व्यक्ति को समाज के सदस्य के रूप में प्रदान की जाती हैं। वे व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में सहयोगी होते हैं। या फिर कहा जा सकता है कि वे सामाजिक परिस्थितियां जिनके बिना कोई भी व्यक्ति अपने सर्वोत्तम स्वरूप को नहीं पा सकता।

अधिकार का क्या महत्व है?

इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। किसी वस्तु को प्राप्त करने या किसी कार्य को संपादित करने के लिए उपलब्ध कराया गया किसी व्यक्ति की कानूनसम्मत संविदासम्मत सुविधा, दावा विशेषाधिकार है। कानून द्वारा प्रदत्त सुविधाएँ अधिकारों की रक्षा करती हैं।