व्यावसायिक पर्यावरण दो शब्दों-व्यवसाय एवं पर्यावरण से बना है। व्यवसाय, विद्यमान पर्यावरण में रहकर अपनी क्रियाओं को संचालित करता है। व्यवसाय पर्यावरण को प्रभावित करता है। दोनों ही परस्पर सम्बन्धित हैं। व्यावसायिक पर्यावरण उन सभी परिस्थितियों, घटनाओं एवं कारकों का योग है जो व्यवसाय पर उचित या विपरीत प्रभाव डालता है। Show
व्यवसाय का शाब्दिक अर्थ मनुष्य को व्यस्त रखने वाली क्रियाओं से है। व्यवसाय में उन्हीं मानवीय आर्थिक क्रियाओं को शामिल किया जाता है जो समाज की कई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए की जाती है। खेलना-कूदना, खाना-पीना, यात्रा करना, विश्राम करना जैसी अनार्थिक क्रियाओं को व्यवसाय में शामिल नहीं किया जाता। मैकनॉटन ( Mc Naughton) के शब्दों में, “व्यवसाय शब्द से तात्पर्य, पारस्परिक हित के लिए वस्तुओं, मुद्रा अथवा सेवाओं के विनियम से है।” उर्विक ( Urwick) का कहना है, “यह एक ऐसा उपक्रम है जो समुदायों की आवश्यकता की पूर्ति हेतु वस्तुओं या सेवाओं का निर्माण, वितरण तथा इन्हें उपलब्ध कराता है।” एल.एच. हैने (L.H. Haney) ने लिखा है, “व्यवसाय से तात्पर्य उन मानवीय क्रियाओं से है जो वस्तुओं के क्रय-विक्रय द्वारा धन उत्पादन या धन प्राप्ति के लिए की जाती है।” इन परिभाषाओं के निष्कर्ष स्वरूप स्पष्ट है कि “व्यवसाय से तात्पर्य वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन, वितरण एवं विनियम सम्बन्धी क्रियाओं से है जिनके फलस्वरूप उपभोक्ताओं एवं समाज की आवश्यकताएँ पूरी होती है।” व्यावसायिक पर्यावरण जटिल एवं अनियंत्रित बाह्य, आर्थिक, सामाजिक- सांस्कृतिक, राजनीतिक तथा तकनीकी घटकों का योग है जिनके अन्दर एक व्यवसाय को कार्य करना पड़ता है। पर्यावरण ही व्यवसाय को नये आकार, नयी भूमिका तथा नये तेवर ग्रहण करने को बाध्य करता है। व्यावसायिक पर्यावरण की दी गयी परिभाषाओं का विश्लेषण के बाद बातें परिलक्षित होती है-
इस प्रकार स्पष्ट है कि “व्यावसायिक पर्यावरण कई गतिशील, जटिल व अनियंत्रित बाध्य आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, भौतिक एवं तकनीकी घटकों का योग है, जिसके अन्दर ही रहकर व्यवसाय को कार्य करना पड़ता है।” यह वातावरण, व्यवसाय को नये आकार, प्रकार, स्वरूप, नयी चुनौतियाँ, नयी भूमिका, मान्यताएँ व नये तेवर ग्रहण करने को बाध्य करता है। अलग-अलग परिस्थितियों में नये व सर्वश्रेष्ठ अवसरों की खोज के वातावरण से व्यवसाय को प्रोत्साहन व एक नयी ऊर्जा प्राप्त होती है। साथ ही साथ व्यवसाय भी वातावरण के परिवर्तन में बहुत महत्वपूर्ण घटक सिद्ध होता है। किसी भी व्यवसायी को आर्थिक क्षेत्र में अनेक आर्थिक निर्णय लेने होते हैं, जिसमें उत्पाद का आकार-प्रकार, उत्पाद की किस्म, मूल्य, लागत, संरचना, उत्पाद प्रणाली, वितरण श्रृंखला (distribution channel), पूँजी प्रबन्धन, आय प्रबन्धन प्रमुख होते हैं। खुली या स्वतन्त्र अर्थव्यवस्था में इस प्रकार के निर्णय व्यवसाय के स्वामी द्वारा स्वयं लिये जाते हैं, जबकि बन्द अर्थव्यवस्था (closed economy) में ऐसे निर्णय सरकार द्वारा लिये जाते हैं। व्यवसायी वर्ग व्यावसायिक निर्णय, गतिशील वातावरण तथा भविष्य के वातावरण को ध्यान में रखकर लेता है। व्यावसायिक पर्यावरण की परिभाषाव्यावसायिक पर्यावरण की परिभाषा विभिन्न विद्वानों द्वारा निम्न प्रकार दी गयी है- डेविक ( Devic) के अनुसार, “व्यावसायिक पर्यावरण उन सभी परिस्थितियों, घटनाओं एवं कारकों का योग है जो व्यवसाय पर प्रभाव डालते हैं।”
ग्लूक व जॉक (Gluek and Jouck) के शब्दों में, “पर्यावरण में फर्म के बाहर के घटक शामिल होते हैं, जो फर्म के लिए अवसर एवं खतरा पैदा करते हैं। इनमें सामाजिक, आर्थिक, प्रौद्योगिकी व राजनैतिक दशाएँ प्रमुख हैं।”
शॉल (Schoell) के कथनानुसार, “यह उन समस्त तत्वों का योग है, जिनके प्रति व्यवसाय अपने को अनावृत करता है तथा प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से प्रभावित करता है।”
रिचमैन एवं कोपन (Richman and Copen) के अनुसार, “पर्यावरण में दबाव व नियन्त्रण होते हैं, जो अधिकतर व्यक्तिगत फर्म एवं इसके प्रबन्धकों के नियन्त्रण के बाहर होते हैं।” व्यावसायिक पर्यावरण की विशेषताएँइन विशेषताओं को इन बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है-
इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यावसायिक पर्यावरण समाज में घटने वाली समस्त बड़ी घटनाओं से प्रभावित हो सकता है, जिसका प्रभाव किसी व्यवसाय पर सकारात्मक या नकारात्मक पड़ सकता है, जो व्यवसाय के आकार, प्रकार एवं सीमा पर निर्भर होता है। व्यावसायिक पर्यावरण के घटकव्यावसायिक पर्यावरण के विभिन्न घटकों घटकों का संक्षिप्त विवरण है-
1. व्यावसायिक पर्यावरण के आर्थिक घटकये घटक देश की आर्थिक घटनाओं से सम्बन्धित होते हैं। इनमें ये आर्थिक घटक शामिल होते हैं- 1. आर्थिक नीतियाँ (Economic policies)- किसी भी देश के संतुलित आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार मज़बूत आर्थिक नीति बनाती है। ये आर्थिक नीतियाँ देश की आय में असमानता को कम करने, बेरोजगारी दूर करने, संतुलित क्षेत्रीय विकास को प्राप्त करने,
प्राकृतिक संसाधनों का उचित एवं अधिकतम विदोहन करने, गरीबी दूर करने, अधिकतम कल्याण एवं सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने, आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के उद्देश्य से बनायी जाती है। साथ ही साथ देश में पूंजी निर्माण, विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि, विदेशी व्यापार में वृद्धि आदि को भी ध्यान में रखकर आर्थिक नीतियाँ तैयार की जाती है। 2. माँग एवं पूर्ति (Demand andsupply) - इसमें व्यवसाय के उत्पाद या सेवा की समाज में कितनी माँग (demand) है? कब-कब माँग है? कितने मूल्य पर उचित
माँग है? महत्वपूर्ण है। यदि व्यवसाय की वस्तु या सेवा की माँग बाजार में प्रभावशाली है तो व्यवसाय की स्थिति संतोषजनक होगी। इसी प्रकार माँग के अनुरूप पूर्ति (supply) का भी होना आवश्यक होता है। यदि व्यवसाय अपने उत्पाद या सेवा की अच्छी माँग होने के बावजूद पर्याप्त एवं उचित पूर्ति करने में सक्षम नहीं है तो, इस व्यवसाय का आन्तरिक वातावरण संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। 3. पूँजी एवं विनियोग (Capital and investment )- किसी व्यवसाय में पूँजी एवं विनियोग की स्थिति (situation) एवं
उपलब्धता (availability) उसके वातावरण का एक महत्वपूर्ण घटक होता है। यदि किसी व्यवसाय में पूंजी एवं विनियोग की स्थिति व्यवसाय की आवश्यकता के अनुरूप है, तो वहाँ व्यावसायिक पर्यावरण स्वस्थ एवं सकारात्मक होगा, विकास के अवसर उत्पन्न होंगे। इसके विपरीत स्थिति में अनेक व्यावसायिक जटिलताएँ विद्यमान हो सकती हैं। 4. औद्योगिक प्रवृत्तियाँ ( Industrial trends )- यदि किसी देश की औद्योगिक प्रवृत्ति में महत्वपूर्ण सकारात्मक परिवर्तन जैसे- आधारित संरचना का निर्माण, उद्योगों का
सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ता योगदान, भारी तथा पूँजीगत वस्तु के उद्योगों का विकास, टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं का तीव्र विकास, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का विकास, आयात प्रतिस्थापन, उद्योगों का विकास आदि संतोषजनक रूप से हुए हैं, तो ऐसे देश में लगभग व्यावसायिक पर्यावरण अच्छा होगा। इसी प्रकार किसी एक उद्योग की प्रवृत्ति भी व्यावसायिक पर्यावरण का महत्वपूर्ण घटक होती है। 5. वित्तीय एवं आर्थिक दबाव (Financial and economic pressure )- यदि किसी देश में या किसी व्यवसाय में वित्तीय
एवं आर्थिक दबाव की मात्रा अधिक है, तो वहाँ के उद्योगों पर भी दबाव पड़ता है, वह आर्थिक एवं वित्तीय दबाव ऋण पर ब्याज, अधिक लाभ एवं लाभांश, पूंजी वापसी, कर का भुगतान आदि के रूप में पड़ सकता है। इन दबावों के बीच व्यवसाय को अपना कार्य संचालित करना पड़ता है। अत: ये वित्तीय एवं आर्थिक दबाव व्यावसायिक पर्यावरण के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 6. विनियोग एवं प्रवाह स्तर (Level and flow of Investment) - किसी देश में या किसी व्यवसाय के अन्दर स्वामी पूंजी (owner's
capitals), ऋण-पूँजी (borrowed capital), स्वामी पूँजी एवं ऋण पूँजी अनुपात, प्राप्त पूँजी, विनियोग या ऋण पूँजी की अवधि, पूँजी की लागत (cost of capital) आदि प्रमुख घटक होते हैं 7. आयात एवं निर्यात (Import and export) - ऐसा व्यवसाय जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का है या जिसके लिए कहीं न कहीं से निर्यात एवं आयात की आवश्यकता पड़ती है, उसमें आयात एवं निर्यात के अन्तर्गत आयात एवं निर्यात की मात्रा, समय, कीमत, उपलब्धता आदि महत्वपूर्ण घटक होते हैं। 8. राजकोषीय
एवं कराधान नीतियाँ (Flscal and taxation policy) - सरकार राजकोषीय एवं कराधान नीति के माध्यम से एक आरे व्यक्तिगत अर्थव्यवस्था, व्यय एवं बचत क्रियाओं को नियन्त्रित करके आवश्यक कोष (धनराशि) सरकारी खजाने (कोष) में जमा करती है वहीं दूसरी ओर अपनी व्यय नीति के द्वारा राष्ट्रीय कल्याण में वृद्धि के लिए प्राप्त धनराशि का वितरण करती है। राजकोषीय नीति का सम्बन्ध कर नीति, व्यय नीति, ऋणनीति, बजट निर्माण आदि से होता है। सरकार द्वारा इन क्रियाओं का उद्देश्यपूर्ण उपयोग आर्थिक स्थायित्व (economic stability),
दु्रतगामी एवं पूर्ण रोजगार आदि प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह राजकोषीय एवं कराधान नीतियाँ व्यावसायिक पर्यावरण के महत्वपूर्ण निर्धारक घटक होते हैं। 9. मौद्रिक नीति (Monetary policy) - किसी भी देश की मौद्रिक नीति का प्रमुख उद्देश्य आर्थिक विकास, अधिक रोजगार, मूल्यों में स्थिरता, अनुकूल भुगतान संतुलन, आय का समान वितरण आदि होता है। इन उद्देश्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त करने के लिए मुद्रा पर नियन्त्रण अति आवश्यक होता है। अत: मुद्रा से सम्बन्धित सभी प्रकार की अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन नीतियाँ मौद्रिक नीति के अन्तर्गत आती है जिसमें मूल्य नियन्त्रण, ब्याज दर में परिवर्तन, सरकारी बजट, विनिमय दर, सार्वजनिक व्यय, वेतन वृद्धि, साख का नियमन, आयात-निर्यात नियन्त्रण आदि सभी आर्थिक कार्य इसकी नीति के अन्तर्गत शामिल होते हैं। मौद्रिक नीति द्वारा किसी भी देश का व्यावसायिक पर्यावरण काफी हद तक प्रभावित होता है, इसलिए यह व्यावसायिक पर्यावरण का प्रमुख आर्थिक घटक माना जाता है। 2. व्यावसायिक पर्यावरण के पारिस्थितिक घटक1. प्राकृतिक संसाधन (Natural resources) - देश के प्राकृतिक संसाधन व्यावसायिक पर्यावरण के महत्वपूर्ण एवं निर्धारक घटक होते हैं। इन घटकों में भूमि, हवा, जल आदि आते हैं। 2. पर्यावरण (Environment)- पर्यावरण जिसमें जल, वायु तथा ध्वनि आदि आते हैं, ये घटक भी व्यावसायिक पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है। यदि किसी क्षेत्र में इस प्रकार के पर्यावरण प्रदूषण की मात्रा अधिक है, तो ऐसे उद्योग समाज पर प्रतिकूल प्रभाव
डालते हैं। अत: पर्यावरण को दृष्टिगत रखते हुए व्यवसाय का अनुज्ञापन स्थापना एवं विकास आदि का निर्धारण होता है। 3. जलवायु (Climate) - किसी भी देश की जलवायु व्यावसायिक पर्यावरण का प्रमुख निर्धारक घटक है। जलवायु के आधार पर भी अनेक व्यवसाय स्थापित एवं संचालित होते हैं। देश में जहाँ पर एक जैसी जलवायु रहती है, वहाँ अलग-अलग प्रकार के व्यवसाय सफल रहते हैं परन्तु वर्ष में विभिन्न जलवायु वाले क्षेत्रों में किसी एक ही प्रकार व प्रकृति के व्यवसाय सफल होते हैं। इस प्रकार यदि
व्यवसाय जलवायु पर निर्भर करता है, तो ऐसी स्थिति में व्यवसाय की सफलता काफी सीमा तक जलवायु पर निर्भर होगी। 4. समुद्री एवं आकाशीय संरचना (Structure of ocean and beacon) - किसी देश के व्यवसाय की उन्नति या विकास देश के समुद्री एवं आकाशीय संरचना पर निर्भर करता है। भारत जैसे देश जहाँ पर समुद्रीय तट या सीमा है, वहाँ पर देश के अनेक उद्योग विकसित हुए हैं तथा वह क्षेत्र भी आर्थिक रूप से संपन्न हुआ है। आकाशीय संरचना से तात्पर्य देश की भौगोलिक स्थिति से है। यदि किसी देश की
आकाशीय संरचना देश के उद्योग एवं व्यापार के अनुकूल है, तो वह देश औद्योगिक रूप से विकसित होगा। 5. भूगर्भीय संसाधन (Geological resources)- भूगर्भीय संसाधन का आशय जमीन के अन्दर या जमीन में पड़ी प्राकृतिक वस्तुओं से है, इसमें कोयला, अभ्रक, लोहा, हीरा, पेट्रोलियम, मैंगनीज, पत्थर, सोना, ताँबा, बाक्साइट, लिग्नाइट आदि खनिज प्रमुख है। देश में भूगर्भीय संसाधन सभी स्थानों पर समान रूप से नहीं पाये जाते हैं। इन संसाधनों के मामले में बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, मध्य प्रदेश तथा
पश्चिम बंगाल धनी प्रदेश है। अत: देश के जिन स्थानों पर जिन भूगर्भीय संसाधनों की प्रचुरता है, वहाँ उस संसाधन से सम्बन्धित व्यवसाय के विकास की सम्भावना अधिकाधिक रहती है। यही कारण है कि बिहार एवं झारखण्ड में कोयला उद्योग, मध्य प्रदेश में हीरा एवं पन्ना उद्योग विकसित हुए हैं। अत: भूगर्भीय संसाधन व्यावसायिक पर्यावरण का प्रमुख घटक है। 6. चुम्बकीय एवं सौर ऊर्जा (Magnetic andsolar energy) - किसी देश में चुम्बकीय एवं सौर ऊर्जा वहाँ के व्यवसाय की दशा एवं दिशा का निर्धारक घटक हो सकता है क्योंकि कुछ ऐसे व्यवसाय होते हैं, जो चुम्बकीय एवं सौर ऊर्जा पर ही आधारित होते हैं। 3. राजनैतिक व शासकीय घटक1. राजनैतिक व शासकीय व्यवस्था (Political and administrative arrangement) - इसके अन्तर्गत किसी देश की समस्त राजनैतिक व शासकीय व्यवस्था को शामिल किया जाता है। व्यावसायिक पर्यावरण देश की राजनैतिक स्थिरता, व शासकीय इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। 2. आर्थिक व शासन प्रणाली (Economic
and administrative system) - किसी भी देश की आर्थिक एवं शासन प्रणाली यदि देश में अधिकाधिक औद्योगिक विकास चाहती है, तो आर्थिक एवं शासन नीति व्यवसाय के अनुकूल बनाती हैं एवं उन्हें आवश्यकतानुसार आर्थिक सहायता एवं सुविधाएँ उपलबध कराती है। अत: किसी देश की आर्थिक एवं शासन प्रणाली उस देश के व्यावसायिक पर्यावरण के निर्धारक मुख्य घटक होते हैं। 3. राजनैतिक दृष्टिकोण (Political approach) - वर्तमान वैश्वीकरण एवं भूमण्डलीकरण के दौर में व्यवसाय के विकास एवं विस्तार में देश का
राजनैतिक दृष्टिकोण व्यावसायिक पर्यावरण का महत्वपूर्ण घटक साबित हुआ है। इस दृष्टिकोण में घरेलू उद्योगों के संरक्षण की सीमा, विदेशी या बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर छूट की सीमा, पड़ोसी या अन्य देशों से राजनैतिक सम्बन्ध आदि महत्वपूर्ण होते हैं, जो व्यावसायिक पर्यावरण के निर्धारण में महत्वपूर्ण घटक माने जाते हैं। 4. प्रशासनिक संस्थाएँ (Administrative Institutions) - देश की विभिन्न प्रशासनिक संस्थाओं की कार्य प्रणाली, अधिकार, कार्यक्षेत्र एवं उत्तरदायित्व आदि व्यावसायिक
पर्यावरण के निर्धारक घटक होते हैं, जो व्यवसाय को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। 5. संवैधानिक व्यवस्था (Constitional arrangement) - देश की संवैधानिक व्यवस्था उस समाज के व्यवसाय के वातावरण का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत जैसे देश जहा की संवैधानिक व्यवस्था प्रजातान्त्रिक (Democratic) है, यहॉ व्यापार एवं व्यवसाय करने की पूर्ण स्वतन्त्रता है। ऐसी परिस्थिति व्यावसाय को अनुकूल एवं स्वस्थ वातावरण उपलब्ध कराती है। यदि किसी देश मे संवैधानिक
व्यवस्था कुछ लोगों के व्यवसाय के सन्दर्भ में होती है, तो यह निश्चित रूप से व्यवसाय की दशा एवं दिशा के निर्धारण में महत्वपूर्ण होगी। अत: संवैधानिक व्यवस्था भी व्यावसायिक पर्यावरण का एक अभिन्न घटक माना जाता है। 6. सुरक्षा व्यवस्था (Security arrangement) - देश की आन्तरिक सुरक्षा व्यवस्था केा ध्यान में रखकर देश के नीति नियम ऐसे हो सकते हैं, जो कुछ व्यवसायों पर प्रतिबन्ध लगा सकते हैं तथा सुरक्षा के विस्तार हेतु कुछ उद्योगों को संरक्षण दिया जा सकता है। इस प्रकार किसी देश की सुरक्षा व्यवस्था उस देश के व्यावसायिक पर्यावरण के निर्धारक तत्व हो सकते है। 4. वैधानिक एवं न्यायिक घटकवैधानिक घटक के अन्तर्गत देश में व्यवसाय एवं समाज के हित में चलाये जा रहे विभिन्न नियम अधिनियम, सरकारी गजट, आदि आते हैं, जबकि न्यायिक घटक के अन्तर्गत व्यवसाय एवं समाज के हितों की रक्षा के लिए विवादों का समाधान करने के उपरान्त विभिन्न न्यायालयों द्वारा दिये गये निर्णय शामिल होते हैं। वैधानिक एवं न्यायिक घटक के अन्तर्गत मुख्यत: व्यावसायिक, औद्योगिक व श्रम सन्नियम शामिल होते हैं व प्रशासन व्यवस्था, व्यावसायिक, औद्योगिक व श्रम अधिनियम या सन्नियम के अन्तर्गत सरकार द्वारा समय-समय पर पारित अधिनियम जैसे -
व्यापार एवं वस्तु चिन्ह अधिनियम आदि प्रमुख हैं जो देश की व्यावसायिक गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने में सहायता करते हैं। न्यायिक घटक के अन्तर्गत देश या समाज की ऐसी व्यावसायिक गति- विधियाँ जो समाज के हित में न्यायालय के हस्तक्षेप द्वारा समय-समय पर निण्र्ाीत की गयी हों, शामिल किये जाते हैं। ये न्यायिक घटक तभी लागू होते हैं, जब वैधानिक घटक किसी व्यावसायिक समस्या को हल करने में सक्षम होता है। न्यायिक घटक भविष्यलक्षी प्रकृति के होते हैं अर्थात् एक बार निर्णय हो जाने पर समान वाद (sue) समस्या पर भविष्य में वही निर्णय लागू होते हैं। व्यावसायिक पर्यावरण वैधानिक एवं न्यायिक घटक के अधीन एवं नियन्त्रण में संचालित होता हैं। कोई भी व्यवसाय इसका उल्लंघन नही कर सकता है। इस प्रकार वैधानिक एवं न्यायिक घटक किसी समाज के व्यवसाय का अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं निर्धारक घटक होता है। 5. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकीय घटकबदलते व्यापारिक परिवेश में गलाकाट प्रतियोगिता के अन्तर्गत कोई देश, एक व्यवसायी या व्यवसाय दूसरे से आगे निकलने के लिए सदैव तत्पर रहता है जिसमें ये घटक व्यवसाय को नयी-नयी ऊँचाइयों पर पहुँचने में सक्षम होते हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकीय घटक के अन्तर्गत वैज्ञानिक शोध (Sciencific research), प्रौद्योगिकीय विकास, यान्त्रिकी, आणविक शक्ति (Atomic energy), सैटेलाइट सम्प्रेषण (Satellite communication), नाभिकीय शोध, आकाशीय शोध प्रयोगशालाएँ आदि प्रमुख हैं। इन घटकों के माध्यम से व्यावसायिक कार्यक्षमता एवं उत्पादन में वृद्धि के लिए व्यावसायिक गतिविधियों का बेहतर संचालन तथा नियन्त्रण सम्भव हो पा रहा है। इस प्रकार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकीय घटक, व्यावसायिक पर्यावरण की दशा एवं दिशा तय करने के दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्वपूर्ण घटक है। 6. सामाजिक - सांस्कृतिक घटकव्यवसाय किसी भी देश के समाज या लोगों के बीच अपनी समस्त गतिवि धियों को संचालित करता है। अत: व्यवसाय को उस समाज के विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक घटकों जैसे-सामाजिक मूल्य, प्रथाएँ (customs), आस्थाएँ, धारणाएँ, सामाजिक व्यवस्था, भौतिकवाद, धर्म, संस्कार आदि प्रमुख रूप से प्रभावित करते हैं। भारत जैसे देश जहॉ सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों को सर्वोपरि रखा गया है, यहॉ पर कोई भी व्यवसाय इन मूलयों की अनदेखी करके दीर्घकाल तक सफल नहीं हो सकता हैं। इस प्रकार किसी भी व्यवसाय इन मूल्यों की अनदेखी करके दीर्घकाल तक सफल नहीं हो सकता है। इन प्रकार किसी भी व्यवसाय के लिए यह आवश्यक है कि वह देश के सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों को बनाये रखते हुए स्थापित, संचालित एवं नियन्त्रित हो, ताकि उसको इन घटकों के विरोध का सामना न करना पड़े। अत: व्यावसायिक पर्यावरण को किसी समाज के सामाजिक-सांस्कृतिक घटक प्रभावित एवं निर्धारित करते हैं। 7. अन्य घटककिसी भी देश या समाज के व्यावसायिक पर्यावरण के घटक भी महत्वपूर्ण होते हैं -
अत: स्पष्ट है कि व्यवसाय को सरलतापूर्वक एवं सफलापूर्वक संचालित करके कोई भी देश या समाज अपना व्यावसायिक विस्तार एवं विकास तभी कर सकता है, जब वह व्यावसायिक पर्यावरण के प्रमुख घटकों का अध्ययन करके उसके अनुरूप अपने व्यवसाय को संचालित करता है। ये उपरोक्त घटक या तत्व देश के समस्त व्यवसायों से या किसी एक व्यवसाय से सम्बन्धित हो सकते हैं। साथ ही साथ यह आवश्यक नहीं है कि सम्पूर्ण घटक समस्त व्यवसायों या किसी व्यवसाय पर एक साथ लागू हों अर्थात किसी व्यवसाय के लिए कुछ ही घटक महत्वपूर्ण हो सकते है। इस प्रकार स्पष्ट है कि जो भी घटक व्यवसाय से सम्बन्धित होते हैं, उनके द्वारा व्यवसाय प्रभावित होता है। व्यावसायिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाले तत्वव्यावसायिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाले तत्वों को दो प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है-
1. व्यावसायिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाले आन्तरिक तत्वआन्तरिक तत्व वे होते हैं, जो किसी संगठन के अन्तर्गत होते हैं,
इन आन्तरिक तत्वों को व्यवसाय अपने पक्ष में कर सकता हैं, क्योंकि ये तत्व फर्म के नियन्त्रण में होते हैं। इन तत्वेां का शीर्षकवार विश्लेषण निम्नलिखित है- 1. व्यापारिक आचार संहिता (Business code of conduct)- विभिन्न व्यवसायेां में व्यापारिक आचार संहिता विद्यमान रहती है। यह आचार संहिता समाज के हित को ध्यान में रखकर सरकार द्वारा निर्मित एवं विनियमित की जाती हैं। इसके अन्तर्गत व्यवसाय को सुचारू रूप से चलाने के लिए कानून, नियम व दिशा-निर्देश रहते हैं। यह आचार संहिता
विभिन्न प्रकार की प्रकृति के व्यवसायेां के लिए भिन्न-भिन्न होती है। व्यवसाय को इन्हीं आचार संहिताओं की परिर्मिा में रहकर संचालित होना पड़ता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ये आचार संहितायें व्यवसाय के आन्तरिक तत्व को प्रभावित करती है। 2. संस्था या व्यवसाय का वातावरण (Environment of institute or business)- किसी व्यवससाय के आन्तरिक वातावरण के अन्तर्गत उसके कारखाने का वातावरण बहुत महत्वपूर्ण होता है, जो व्यावसायिक पर्यावरण को प्रभावित करने में सक्षम होता है। यदि कारखाने
में पर्याप्त कच्चे माल की उपलब्धता, मशीनों का समुचित सदुपयोग, कम से कम क्षय व अपव्यय, श्रमिकों में आपसी भाईचारा, पर्याप्त मजदूरी व बोनस, पर्याप्त कल्याण सम्बन्धी सुविधाएं, प्रबन्धन से अच्छे सम्बन्ध् ा आदि की स्थिति विद्यमान है, तो ऐसा वातावरण व्ययवसाय व कर्मचारियों पर सकारात्मक प्रभाव डालता है, इसके विपरीत स्थिति होने पर संस्था के अन्दर तनाव, भय, अशान्ति, क्षमता का निम्न उपयोग आदि की स्थिति विद्यमान रहती है, जो नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। अत: व्यवसाय का वातावरण सम्बन्धी तत्व व्यवसाय की
दशा एवं दिशा दोनो तय करता है। 3. व्यवसाय का उद्देश्य (Object of business) - विभिन्न व्यवसायों के उद्देश्य भिन्न-भिन्न होते हैं। कुछ व्यवसाय सफल होने के लिए छोटे-छोटे उद्देश्यों को निर्धारित करते हैं, जबकि कुछ बड़े उद्देश्य निर्धारित करते हैं। कुछ प्रबन्धक समयावधि के हिसाब से अल्पकालीन उद्देश्य निर्धारित करते हैं, जबकि कुछ दीर्घकालीन। कुछ व्यवसाय में एक निश्चित समय में विकास के कुछ लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं जबकि अन्य में कुछ, और इस प्रकार
समग्र रूप से कहा जा सकता है कि व्यवसाय के उद्देश्य व्यावसायिक वातावरण को प्रभावित करने वाले आन्तरिक तत्व होते हैं। 4. व्यावसायिक एवं प्रबन्धकीय नीतियाँ (Business and managerial policies) व्यावसायिक एवं प्रबन्धकीय नीतियों का ढाँचा व प्रारूप व्यावसायिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाले तत्वों में से एक है। यदि व्यावसायिक एवं प्रबन्धकीय नीतियाँ केवल व्यावसायिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए बनाई गयी हैं, जिसमें संगठन में हित रखने वाले अन्य पक्षकारों को महत्व नहीं दिया
गया है, तो ऐसी नीतियाँ दीर्घकाल तक सफल नहीं हो पाती हैं। इसके विपरीत यदि ऐसी नीतियाँ संगठन में हित रखने वाले समस्त पक्षकारों के हितों को ध्यान में रखकर बनायी गयी हैं, तो सम्भव है, वे अल्पकाल में उतनी सफल न हों, परन्तु दीर्घकाल में निश्चित रूप से सफल होंगी। 5. श्रम-प्र्रबन्ध सम्बन्ध (Relation of labour management) श्रम तथा प्रबन्ध सम्बन्ध किसी संस्था के पर्यावरण को प्रभावित करने वाले तत्व होते हैं। किसी संगठन में श्रमिक कार्य करने वाला तथा प्रबन्धक कार्य कराने वाला
होता है। अत: यदि इनके मध्य तालमेल या अच्छे सम्बन्ध नहीं होंगे तो निश्चित रूप से संगठन को लक्ष्य प्राप्त करना असम्भव हो जाता है। इसके विपरीत यदि इनके मध्य अच्छे सम्बन्ध हैं, तो कठिन से कठिन लक्ष्य आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार श्रम-प्रबन्ध सम्बन्ध किसी संगठन में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। 6. संसाधनों की उपलब्धता (Avialability of resources) किसी भी संगठन का आन्तरिक तत्व उस संगठन को उपलब्ध मानवीय एवं आर्थिक संसाधनों की मात्रा, दर व प्राप्ति समय द्वारा
प्रभावित होता है। यदि किसी संगठन में इन संसाधनों की उपलब्धता आसानी से एवं उचित मात्रा, उचित बाजार दर पर एवं उचित समय पर है, तो संस्था को लक्ष्य प्राप्त करना आसान हो जाता है। इसके विपरीत यदि संस्था में इन संसाधनों का अभाव रहता है, तो संस्थागत लक्ष्य प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। इस प्रकार संसाधनों की उपलब्धता व्यावसायिक पर्यावरण को प्रभावित करती है। 7. प्रबन्धकीय सूचना प्रणाली (Management informationsystem) प्रबन्ध सूचना प्रणाली से तात्पर्य उस संरचना से है, जो
प्रबन्धकों को उनकी समस्याओं के अभिज्ञान, विश्लेषण एवं समाधान में सहायता प्रदान करती है। इस प्रणाली द्वारा सही समय पर, सही व्यक्ति का, सही रूप में, उपयुक्त सूचना प्रदान करके प्रबन्धक द्वारा सम्प्रेषण की समस्या को हल करने का प्रयास किया जाता है। यह सूचना प्रणाली जितनी मजबूत व कारगर होगी संगठन में निर्णयन सम्बन्धी प्रक्रिया उतनी ही सरल एवं आसान होती है। यदि संगठन में प्रबन्ध सूचना प्रणाली (MIS) कमजोर है, तो कोई भी सूचना सही व्यक्ति तक सही समय पर नहीं पहुंच पायेगी जिससे संगठनात्मक लक्ष्य को प्राप्त
करना मुश्किल होगा। इस प्रकार ‘प्रबन्ध सूचना प्रणाली’ व्यवसाय के आन्तरिक वातावरण को प्रभावित करने वाला प्रमुख तत्व या घटक माना जाता है। 8. व्यावसायिक विकास की सम्भावना (Possibility of business growth) - वर्तमान में चल रहे व्यवसाय के विकास की सम्भावना तथा विकास की अवधि भी व्यावसायिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाली घटक होती है। यदि व्यवसाय पुराना हो गया है तथा उसने विकास के चरम बिन्दु स्पर्श कर लिये हैं, तो व्यवसाय में गतिहीनता की स्थिति विद्यमान होगी और संस्था में उत्साह की कमी दिख सकती है। इसके विपरीत यदि व्यवसाय में विकास की अपार सम्भावनाएं विद्यमान हैं, तो ऐसी स्थिति में नयी ऊर्जा का संचार होता है, तथा संस्था से सम्बन्धित समस्त वर्ग विकास की उच्च रेखा स्पर्श करने के लिए तत्पर रहते हैं, जिससे समग्र सकारात्मक वातावरण विद्यमान रहता है। 2. व्यावसायिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाले बाह्य तत्वव्यावसायिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाले बाह्य तत्व व्यवसाय के नियन्त्रण में नहीं रहते हैं। इन
तत्वों के कुप्रभावों से बचने के लिए केवल कुछ ही उपाय किये जा सकते हैं। इन वाºय तत्वों का विवरण निम्नलिखित है- 1. व्यावसायिक प्रतिद्वन्द्वी (Business competitior) व्यावसायिक प्रतिद्वन्द्वी का सदैव यह प्रयास रहता है कि वह व्यावसायिक दृष्टिकोण से आगे निकल जाय। अत: यदि किसी व्यवसाय में कड़ी प्रतिस्पर्धा (competition) विद्यमान है तथा कई प्रतिद्वन्द्वी हैं, तो ऐसी स्थिति में व्यवसायी को प्रति इकाई कम लाभ से ही सन्तोष करना पड़ता है। इसके विपरीत यदि प्रतिस्पर्धा कम या नहीं
है, तो व्यवसाय में प्रति इकाई उत्पादन पर अधिक लाभ कमाने की सम्भावना रहती है। साथ ही साथ व्यावसायिक प्रतिद्वन्द्वी आर्थिक एवं व्यावसायिक रूप से सुदृढ़ है, तो भी व्यवसाय पर असर पड़ता है। अत: स्पष्ट है कि व्यावसायिक प्रतिद्वन्दिता की सीमा, दृढ़ता आर्थिक स्थिति आदि तत्व व्यावसायिक पर्यावरण को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं। 2. ग्राहक (Customers) किसी भी व्यवसाय के लिए ग्राहक रीढ की हड्डी के समान होते हैं, बिना ग्राहक के व्यवसाय की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। ये
ग्राहक व्यवसाय से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े होते हैं। ऐसे तत्व जो व्यावसायिक पर्यावरण को प्रभावित करते हैं, उनमें ग्राहकों की संख्या, क्रय शक्ति, क्रय की मात्रा, उधार या नकद लेने की प्रवृत्ति, उनका संस्था के प्रति विश्वास व व्यवहार आदि प्रमुख है। 3. जनसंख्या (Population) कार्इे भी व्यवसाय प्राय: तभी उन्नति या विकास करता है, जब उसके ग्राहकों की संख्या अधिक हो, अत: ग्राहकों की अधिक संख्या के लिए पर्याप्त जनसंख्या का होना आवश्यक है। व्यावसायिक दृष्टिकोण से अधिक
जनसंख्या व्यवसाय के लिए लाभप्रद होती है। इसके विपरीत यदि किसी क्षेत्र में जैसे-पहाड़, जंगल, नदी, समुद्र, पठार आदि अधिक हैं तथा जनसंख्या नाम मात्र की है, तो वहाँ व्यावसायिक गतिविधियाँ संकुचित एवं कम होंगी। इस प्रकार जनसंख्या सम्बन्धी तत्व व्यावसायिक पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। 4. विपणन श्रृंखला (Marketing channel) विपणन श्रृंखला से आशय उत्पादक से उपभोक्ता तक वस्तु या सेवा को पहुंचाने वाले मध्यस्थों (middlemen) से है। यदि किसी व्यवसाय में मध्यस्थों की संख्या अधिक है,
तो निश्चित रूप से वस्तु या सेवा की कीमत अधिक होगी। इसके विपरीत कम मध्यस्थ की दशा में वितरण लागत कम होती है, जिससे कुल लागत भी कम आती है। अत: यह विपणन या वितरण श्रृंखला व्यावसायिक पर्यावरण को प्रभावित करने के लिए महत्वपूर्ण तत्व सिद्ध होती है। 5. तकनीकी स्थिति (Technicalsituation) व्यावसायिक पर्यावरण में तकनीक के प्रयोग की सीमा तथा आवश्यकता भी व्यावसायिक पर्यावरण के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि देश या समाज तकनीकी रूप से सुदृढ़ है, तो वहां व्यावसायिक
पर्यावरण पिछड़े तकनीकी क्षेत्र से भिन्न होगा तथा व्यवसाय गलाकाट प्रतियोगिता की स्थिति में निपटने में सक्षम होगा, जिससे व्यवसाय के विकास एवं विस्तार के मार्ग प्रशस्त होंगे। 6. राजनैतिक, शासकीय एवं प्रशासनिक वातावरण (Political, Governmental and Administrative environment) किसी देश की राजनीति, सरकार, प्रशासन तथा व्यवसाय के बीच होने वाली गतिविधियाँ व्यवसाय की कार्य प्रणाली को प्रभावित करती हैं। व्यवसाय की अनेक संरचनाओं का जन्म राजनैतिक निर्णयों के कारण होता है, कई बार ऐसे
राजनैतिक निर्णय होते हैं, जो व्यवसाय की समृद्धि में सहायक होते हैं। परन्तु कुछ व्यावसायिक निर्णय ऐसे होते हैं, जो व्यवसाय की पूरी दिशा ही बदल देते हैं। ये राजनैतिक निर्णय अनेक कारणों से प्रभावित व शासित होते हैं। इनमें विचारधाराएं, चिन्तन, जनकल्याण, जनसेवा, राजनैतिक दबाव, अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव/दबाव, स्वार्थ भावना, समूह विशेष का दबाव राष्ट्रीय सुरक्षा एवं एकता तथा राष्ट्रहित आदि प्रमुख हैं। शासकीय तथा प्रशासनिक वातावरण से परिचित होना अत्यन्त आवश्यक होता है, क्योंकि यही तत्व व्यावसायिक पर्यावरण
को प्रभावित करते हैं। 7. आर्थिक वातावरण (Economic environment) किसी देश के आर्थिक वातावरण के अन्तर्गत आने वाले तत्वों व व्यावसायिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाले तत्वों में कृषि नीति, औद्योगिक नीति, व्यापार नीति, मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति, आर्थिक संरचना, बचत एवं विनियोग (निवेश) नीति, सरकार की आर्थिक भूमिका, विदेशी पूंजी आदि प्रमुख हैं। 8. कानूनी वातावरण (Legal environment) कानूनी वातावरण का निर्माण देश द्वारा समाज के आर्थिक एवं सामाजिक
लक्ष्यों, विचारधाराओं तथा मूल्यों के आधार पर निर्धारित होता है। विकासोन्मुखी व कल्याणकारी राज्य में उपभोक्ताओं, निर्धनों, बेरोजगारों, महिलाओं, बूढ़ों तथा अन्य जरूरतमन्द लोगों के हितों की रक्षा के लिए कानूनी प्रावधान किये जाते हैं। इसके लिए सरकार विभिन्न अधिनियमों एवं नियमों के माध्यम से व्यवसाय का संचालन करती है। अत: व्यवसाय भी इन्हीं परिसीमाओं के मध्य संचालित होता है। इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री आर्थरलेविस का कहना है कि ‘‘सरकार का व्यवहार आर्थिक क्रियाओं के प्रोत्साहन एवं हतोत्साहन
द्वारा भी व्यवसाय की दिशा व दशा तय करने में महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करने वाला तत्व है। 9. अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण (International enviornment) अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण का सम्बन्ध विदेश नीति, विदेशी विनियम नीति, अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियाँ या समझौते, विदेशी आर्थिक मन्दी, संरक्षण नीति आदि से प्रमुख रूप से है। ये तत्व किसी व्यवसाय या देश के व्यावसायिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाले तत्व होते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि व्यावसायिक पर्यावरण दो प्रमुख तत्वों या घटकों- आन्तरिक एवं वाºय से मिलकर बना है तथा यही तत्व व्यावसायिक पर्यावरण को सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार से प्रभावित करते हैं। व्यावसायिक पर्यावरण का महत्वव्यावसायिक पर्यावरण की उपयुक्तता किसी भी देश के लिए अत्यन्त आवश्यक होती है। व्यावसायिक पर्यावरण एक ओर जहाँ देश की आर्थिक विकास, समृद्धि एवं रोजगार का मार्ग प्रशस्त करता है, वहीं दूसरी ओर यदि उपयुक्त व्यावसायिक पर्यावरण का अभाव है तो गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी एवं अशान्ति की स्थितियाँ सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख देती हैं। तीव्र बदलते आर्थिक, सामाजिक, कानूनी एवं राजनैतिक परिवेश का मूल्यांकन, पूर्वानुमान एवं इसके प्रभावों का निर्धारण करने के पश्चात ही किसी भी व्यवसाय द्वारा सफलतापूर्वक अपनी नीतियों एवं योजनाओं का निर्माण किया जा सकता है। इस प्रकार व्यवसाय एवं इसके प्रबन्धकों के साथ-साथ समाज के लिए व्यवसाय या प्रबन्धकों आदि के लिए व्यावसायिक पर्यावरण की महत्ता को इन शीर्षकों के माध्यम से भलीभांति समझा जा सकता है- 1. व्यवसाय के आन्तरिक वातावरण की जानकारी (Understanding Internal environment of business) किसी भी व्यवसाय के उद्देश्य की प्राप्ति हेतु आवश्यक होता है कि यह व्यवसाय प्रबन्धकों द्वारा बनायी गयी नीतियों एवं निर्देशों के अनुरूप संचालित हो। अत: व्यवसाय के पूर्वानुमान की नीतियों, लक्ष्यों, साधनों, योजनाओं, व्यूहरचनाओं आदि की जानकारी के साथ-साथ इनमें हो रहे परिवर्तनों की भी जानकारी व्यवसाय (प्रबन्ध तन्त्र या स्वामी) के लिए अत्यन्त आवश्यक होती है। अत: व्यावसायिक पर्यावरण में हो रहे नित नये परिवर्तन की जानकारी के लिए संगठनों द्वारा विकसित एवं आधुनिकतम प्रबन्धन सूचना प्रणाली (Management Informationsystem) का सहारा लिया जाता है। 2. व्यवसाय की समस्याओंं एवं चुनौतियोंं का ज्ञान (Knowledge of problem and challenges of business) व्यवसाय के आन्तरिक वातावरण के माध्यम से व्यवसाय में उत्पन्न समस्याओं एवं नयी-नयी उत्पन्न चुनौतियों आदि के बारे में समय रहते पता चला जाता है। अत: व्यावसायिक पर्यावरण के अध्ययन एवं विश्लेषण के पश्चात् व्यवसाय में उत्पन्न इस तरह की आन्तरिक समस्याओं एवं चुनौतियों का सामना करने व समाधान खोजने के लिए प्रबन्धकों को विशेष कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता है। 3. आर्थिक प्रणालियों का अध्ययन (Study of economic system) आर्थिक प्रणाली का स्वरूप अर्थव्यवस्था में संलग्न व्यवसाय को प्रभावित करता है। विश्व की अर्थव्यवस्थाएं पूंजीवादी, समाजवादी, साम्यवादी तथा मिश्रित अर्थव्यवस्था के रूप में पायी जाती हैं। इन सभी अर्थव्यवस्थाओं की अपनी अलग-अलग विशेषताएं होती हैं, जो विभिन्न व्यवसायों को प्रतिकूल या अनुकूल रूप से प्रभावित करती हैं। तीव्र बदलते आर्थिक परिवेश में जहां समाजवादी तथा साम्यवादी अर्थव्यवस्थाएं, मिश्रित अर्थव्यवस्था की तरफ अग्रसर हो रही हैं वहीं मिश्रित अर्थव्यवस्थाएं, पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर हो रही हैं। इसलिए इन परिवर्तनों के कारण व्यवसाय पूर्ण रूप से प्रभावित होता है। इसलिए इन परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए व्यवसाय के सम्पूर्ण वातावरण का अध्ययन करना अति आवश्यक हो जाता है। इसलिए व्यावसायिक पर्यावरण के अध्ययन के उपरान्त ही व्यवसाय आवश्यक सुधारात्मक कार्यवाही करने में सक्षम होता है। 4, उत्पन्न होने वाले खतरों के प्रति सतर्कता (Being alert regarding impending trouble) वर्तमान वैश्वीकरण एवं भूमण्डलीकरण परिवेश या वातावरण के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में खुलापन विद्यमान होने लगा है। इस कारण विभिन्न वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में जहां विकास की नयी-नयी ऊँचाइयाँ प्राप्त हुई हैं तथा रोजगार एवं अन्य विभिन्न अवसर उत्पन्न हुए हैं, वहीं हर पल नयी-नयी चुनौतियों, खतरों व समस्याओं के उत्पन्न होने की आशंका बनी रहती है। इनमें आर्थिक नीतियो, मांग एवं पूर्ति में कमी या वृद्धि, उपभोग की प्रवृत्ति, क्रय प्राथमिकताएं, प्रतिस्पर्धा आदि में होने वाले परिवर्तन व्यवसाय के लिए अनेकों चुनौतियाँ या प्रश्न खड़ा कर देते हैं। अत: इन परिवर्तनों के कारण किसी व्यवसाय में उत्पन्न होने वाले खतरों की जानकारी व समाधान व्यावसायिक पर्यावरण का अध्ययन एवं मूल्यांकन करके ही प्राप्त किया जा सकता है। 5. सरकार की आर्थिक नीतियाँ (Economic Policies of Government) किसी भी देश की सरकारी नीति वहाँ के व्यावसायिक पर्यावरण का महत्वपूर्ण अंग होती है। सरकार द्वारा समयानुसार घोषित औद्योगिक नीति, (Industrial Policy), अनुज्ञापन नीति (Licencing policy), आयात-निर्यात नीति (Exim Policy), विदेशी विनिमय नीति (Foreign Exchange policy) मौद्रिक नीति (Monetary policy), राजकोषीय नीति (Fiscal policy) व कराधान नीति (Taxation policy) आदि व्यवसाय पर स्पष्ट एवं प्रत्यक्ष प्रभाव डालती हैं। अत: व्यावसायिक पर्यावरण के अध्ययन एवं मूल्यांकन के द्वारा इन नीतियों का व्यवसाय पर पड़ने वाले प्रभाव को न्यूनतम करके अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन योजनाएं मांगी जा सकती है। 6. अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं की दशा में (Impact of International events) वर्तमान व्यावसायिक क्षेत्र के वैश्विक होने के कारण विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं पर अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं व इसके प्रभाव व्यवसाय पर पड़ने लगते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक परिवर्तनों से कोई भी राष्ट्र व वहां का व्यवसाय प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। साथ ही साथ अर्थव्यवस्थाओं में लिये जाने वाले निर्णय, अन्तर्राष्ट्रीय प्रभावों व संस्थागत एवं शासकीय दबावों से प्रभावित होते हैं, जिसका प्रभाव व्यवसाय पर पड़ता है। अत: व्यवसाय के स्थायित्व, अस्तित्व, लाभदेयता एवं प्रभावशाली कार्य प्रणाली के लिए अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं, प्रभावों व दबावों का अध्ययन व विश्लेषण किया जाना अत्यन्त आवश्यक होता है। यह सब कार्य व्यावसायिक पर्यावरण के माध्यम से सरलतापूर्वक सम्पन्न किया जा सकता है। 7. अधिकतम लाभ प्रा्रा्राप्त करने की चाहत (Desire of getting maximum profit) वर्तमान व्यावसायिक परिवेश में व्यवसाय का प्रमुख उद्देश्य अधिकाधिक लाभ कमाना माना जाने लगा है। अत: अधिकतम लाभ प्राप्ति हेतु व्यवसायों के लिए आवश्यक हो जाता है कि वे अपने उत्पाद एवं सेवा की लागत को न्यूनतम करने के साथ-साथ सर्वोत्तम सेवा प्रदान करके अधिकतम लाभ कमायें। अत: इसके लिये व्यवसाय को उत्पादन से लेकर वितरण तक की समस्त पहलुओं या प्रक्रियाओं का गहन अध्ययन एवं विश्लेषण करके सर्वोत्तम विकल्प एवं अधिकतम कुशलता प्राप्त करनी होगी। यह लक्ष्य व्यावसायिक पर्यावरण के अध्ययन एवं मूल्यांकन के पश्चात् ही प्राप्त हो सकता है। 8. उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम या अनुकूलतम उपयोग (Maximum or optimum utilisation of available resources) किसी भी देश में उपलब्ध साधनों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है- पहला प्राकृतिक संसाधन (Natural Resources) तथा दूसरा-मानवीय संसाधन (Human Resources) देश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन किसी व्यवसाय की प्रकृति, परिमाप एवं प्रगति निर्धारित करते हैं, जबकि मानवीय संसाधन व्यवसाय में अपनाये जाने वाली तकनीक, ज्ञान, उत्पादन, परिमाप, तकनीकें, औद्योगिक सद्भाव, प्रबन्धकीय कुशलता से काफी सीमा तक प्रभावित होती है। अत: व्यावसायिक पर्यावरण के अध्ययन द्वारा यह ज्ञात हो जाता है कि किसी देश या व्यवसाय में उपलब्ध संसाधनों का कितना प्रयोग हो रहा है? यदि पूर्ण क्षमता प्रयोग नहीं हो पा रहा है तो भी इसको व्यावसायिक पर्यावरण के अध्ययन द्वारा परिलक्षित किया जा सकता है। 9. बाजार की परिस्थितियों का ज्ञान (Knowledge of market situations) किसी भी देश या समाज के व्यवसाय के लिए बाजार की संरचना एवं इसमें होने वाले परिवर्तनों की नवीनतम जानकारी रखना अपरिहार्य हो गया है जिसमें वस्तुओं की मांग का सृजन, एकाधिकारी प्रवृत्तियाँ, व्यापार चक्र (business cycle), लाभ प्रवृत्तियों के साथ-साथ सरकार द्वारा संचालित व्यावसायिक गतिविधियों, नियमों आदि की सही व पर्याप्त जानकारी रखना व्यवसाय के लिए अनिवार्य हो जाता है। इस प्रकार यह सब महत्वपूर्ण जानकारी व्यावसायिक पर्यावरण के अध्ययन के उपरान्त ही स्पष्ट हो पाती है। 10. दीर्घकालीन नीति या रणनीति के लिए (For long term policy or strategy) व्यवसाय के दीर्घकालीन लक्ष्य को ध्यान में रखकर व्यवसाय द्वारा दीर्घकालीन नीति या रणनीति का निर्माण किया जाता है। इसके लिए व्यावसायिक पर्यावरण के समस्त घटकों की विस्तृत जानकारी प्राप्त करना व्यवसाय के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है। इसमें भविष्य में माँग की प्रकृति व सीमा, व्यवसाय की उत्पादन क्षमता, उपभोक्ता की बदलती आदत आदि का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। वर्तमान व्यावसायिक पर्यावरण में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की सफलता की दर इसलिए अधिक है, क्योंकि ये कम्पनियाँ उत्पादन एवं वितरण की दीर्घकालीन नीति या रणनीति बनाकर लक्ष्य की ओर अग्रसर होती हैं। अत: इस प्रकार की नीति या रणनीति का सफल निर्माण एवं सुचालन व्यावसायिक पर्यावरण के उचित अध्ययन एवं मूल्यांकन द्वारा ही सम्भव होता है। 11. वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकीय विकास की दशा में (Impact of Scientific and technological development) वर्तमान समय में व्यवसाय का सफल संचालन वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकीय प्रयोग की सीमा पर अधिक निर्भर होने लगा है। व्यवसायों को नये उत्पादों, नये माडल तथा उत्पादन की नवीन तकनीकों को अपनाने के लिए नये नये प्रौद्योगिकीय विकास एवं वैज्ञानिक प्रगति की जानकारी रखना आवश्यक होता है। इस प्रकार के विकास की जानकारी व्यवासायिक वातावरण के अध्ययन एवं विश्लेषण करने के उपरान्त ही पायी जा सकती है। उपरोक्त बिन्दुओं के अन्तर्गत व्यावसायिक पर्यावरण के महत्व का अध्ययन करने के उपरान्त यह कहा जा सकता है कि किसी भी व्यवसाय के प्रवर्तन (formation) से लेकर उसके उत्पाद या सेवा के वितरण तक एवं उपभोक्ताओं या समाज की संतुष्टि के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि व्यवसाय अधिकतम कुशलता के साथ कार्य करे, जिसके लिए व्यावसायिक पर्यावरण या माहौल का पूर्ण ज्ञान आवश्यक हो जाता है। व्यावसायिक पर्यावरण से आप क्या समझते हैं?व्यावसायिक पर्यावरण की परिभाषा
डेविक ( Devic) के अनुसार, “व्यावसायिक पर्यावरण उन सभी परिस्थितियों, घटनाओं एवं कारकों का योग है जो व्यवसाय पर प्रभाव डालते हैं।” ग्लूक व जॉक (Gluek and Jouck) के शब्दों में, “पर्यावरण में फर्म के बाहर के घटक शामिल होते हैं, जो फर्म के लिए अवसर एवं खतरा पैदा करते हैं।
व्यावसायिक पर्यावरण कितने प्रकार के होते हैं?व्यवसाय के बाह्य पर्यावरण को दो वर्गों में रखा जा सकता है:. व्यवसाय का सूक्ष्म या विशिष्ट पर्यावरण तथा. व्यवसाय का व्यापक या समष्टि पर्यावरण. व्यावसायिक वातावरण से क्या तात्पर्य है इसके विभिन्न घटकों का वर्णन कीजिए?व्यावसायिक पर्यावरण की परिभाषा
“व्यावसायिक पर्यावरण को बाह्य घटकों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें आर्थिक, सांस्कृतिक, सरकारी, वैधानिक, जनांकिकीय एवं प्राकृतिक घटकों को शामिल किया जाता है। इन घटकों को नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है. तथा वे एक फर्म के व्यावसायिक निर्णय को प्रभावित करते हैं।
व्यावसायिक पर्यावरण क्यों आवश्यक है?व्यावसायिक वातावरण व्यावसायिक फर्मों को उनकी गतिविधियों को करने के लिए ये सभी इनपुट प्रदान करता है और बदले में कुछ की अपेक्षा भी करता है। फर्में पर्यावरण को अपने उत्पादन की आपूर्ति करती हैं, उदाहरण के लिए ग्राहक को सामान और सेवाएं, निवेशकों को उनके द्वारा निवेश किए गए धन के लिए भुगतान, श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान आदि।
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