विद्युत जनित्र में ब्रुशों का क्या कार्य है? - vidyut janitr mein brushon ka kya kaary hai?

नमस्कार मित्रों का क्या कार्य को समझने के लिए सहायता लेते हैं और इसमें उत्तरीपुरा यह तस्वीर है इसमें क्या लगा रहता है एक आयताकार कुंडली लगा रहता है और यहां पर जो रिंग और यह क्या है दूरी है दूरी क्या होता है इस पर घूमता है और यहां पर यह क्या लगे रहो जीवन और क्या है दो पुरुष है यह ग्रुप क्या करता है तो जब यह आयताकार कुंडली इसमें क्या होते हैं लगातार करते हैं कैसे क्या प्रवाहित होने लगता है विद्युत धारा यहां पर यह जो है रिंग से जुड़ा रहता है

प्रवाहित होता है तो इस विद्युत धारा का संग्रहण कौन करता है ग्रुप करता है और इसको बाय परिपथ में क्या कर देता है भेज देता अर्थात हो सकते हैं कि विद्युत जनित्र में ब्रिज का कार्य क्या है तो विद्युत धारा को विद्युत धारा को जनित्र से संग्रह कर जनित्र से बाय परिपथ मैं भेजता है तो यह किसका कार्य है ब्रूस का कार्य धन्यवाद

विद्युत जनित्र में ब्रुशों का क्या कार्य है? - vidyut janitr mein brushon ka kya kaary hai?

मूल सिद्धांत - विद्युत जनित्र मूलत: विद्युत-चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है। विद्युत जनित्र में यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग चुंबकीय क्षेत्र में रखे किसी चालक को घूर्णी गति प्रदान करने में किया जाता है जिसके कारण प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है, जिसकी दिशा फ्लेमिंग के दक्षिण-हस्त वलय नियम द्वारा ज्ञात की जाती है।

कार्यविधि - मान लीजिए कि प्रारंभिक अवस्था में एक कुंडली ABCD चुंबक के ध्रुवों के बीच उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र में दक्षिणावर्त घुमायी जाती है। भुजा AB ऊपर की ओर तथा भुजा CD नीचे। की ओर गति करती है। फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम लागू करने पर कुंडली में AB तथा CD दिशाओं के अनुदिश प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती हैं। बाह्य परिपथ में B2 से B1 की दिशा में विद्युत धारा प्रवाहित होती है।

अब आधे घूर्णन के बाद CD ऊपर की ओर तथा AB नीचे की ओर जाने लगती है। स्पष्टतः कुंडली के अंदर प्रेरित विद्युत धारा की दिशा बदलकर DCBA के अनुदिश हो जाती है और बाह्य परिपथ में B1 से B2 की दिशा में प्रवाहित होती है। इस तरह हम देखते हैं कि प्रत्येक आधे घूर्णन के बाद विद्युत धारा की दिशा बदल जाती है।

ब्रुश के कार्य - ब्रुश B1 और B2 वलयों R1 तथा R2 पर दबाकर रखा जाता है, जो कुंडली में प्रेरित धारा को बाह्य परिपथ में पहुँचाने में सहायक होते हैं।

नामांकित आरेख खींचकर किसी विद्युत् जनित्र का मूल सिद्धांत तथा कार्य विधि स्पष्ट कीजिए। इसमें ब्रुशों का क्या कार्य है? 


विद्युत् जनित्र एक प्रकार का यंत्र है जो यांत्रिक ऊर्जा को प्रत्यावर्तित विद्युत् धारा में परिवर्तित करता है।

सिद्धांत:
प्रत्यावर्तित विद्युत् जनित्र विद्युतचुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है। जब एक कुंडली समानांतर चुंबकीय क्षेत्र में घूर्णन करती है, तो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं कुंडली से गुजरती हैं और विद्युत् प्रेरित करती हैं और इसमें विद्युत् स्थापित करती हैं।

रचना: इसके मुख्य भाग निम्नलिखित हैं-
1. चुंबक: एक शक्तिशाली अवतल बेलनाकार चुंबक जैसे नाल चुंबक का कार्य है शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र बनाना।

2. कुंडली: एक आयताकार लोहे के टुकड़े पर तांबे की तार लपेटकर उसे कुंडली का रूप दिया जाता है। जिसमें विद्युत् धारा प्रवाह की जाती है और इसे चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है जिससे इस पर बल लगता है और ये अपने अक्ष पर घूमता है। चित्र में ABCD कुंडली को दर्शाया गया है।

3. विभक्त वलय: यह अर्धगोल छल्ले होते हैं। ये कुंडली के दोनों सिरों से परस्पर जुड़े होते हैं और कुंडली के अर्ध घूर्णन के साथ ये भी घूर्णन करती हैं। चित्र में इन्हें S1 और S2 से दर्शाया गया है।

4. ब्रुश: B1 और B2 दो कार्बन या लचीले धातु की छड़ें हैं जो अर्धगोल छल्लों से परस्पर जुड़े होते हैं और इनका काम विद्युत् धारा को लोड तक ले जाना है। चित्र में इन्हें गैल्वेनोमीटर से जोड़ा गया है जो विद्युत् धारा को मापता है।

विद्युत जनित्र में ब्रुशों का क्या कार्य है? - vidyut janitr mein brushon ka kya kaary hai?

चित्र: प्रत्यावर्तित विद्युत् जनित्र

कार्य: मान लीजिये एक कुंडली ABCD क्षैतिज अवस्था में है। अब कुंडली दक्षिणार्थ घूर्णन कर रही है कुंडली चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं को काटती है। कुंडली का AB भाग ऊपर की तरफ और CD भाग नीचे की तरफ घूमता है। फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम के अनुसार विद्युत् कुंडली के AB भाग में A से B और CD भाग में C से D ABCD की दिशा में प्रेरित होगा। प्रेरित विद्युत् परिपथ में ब्रुश B2 से B1 की तरफ जाएगा।

कुंडली के आधे घूर्णन के बाद, CD भाग ऊपर की तरफ और AB भाग नीचे की तरफ घूर्णन करेगा। प्रेरित विद्युत् अब उत्क्रमित दिशा में प्रवाहित होगी यानी DCBA की तरफ से। विद्युत् B1 से B2 की दिशा में प्रवाहित होगा। यानी कुंडली के हर आधे घूर्णन के बाद विद्युत् की दिशा उत्क्रमित हो जाएगी। यह विद्युत् जो हर बराबर के अंतराल के बाद अपनी दिशा परिवर्तित करती है, प्रत्यावर्तित विद्युत् कहलाती है। और यह यंत्र प्रत्यावर्तित विद्युत् जनित्र कहलाता है।

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पश्चिम की और प्रक्षेपित कोई धनावेशित कण ( अल्फा-कण ) किसी चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा उत्तर की और विक्षेपित हो जाता है। चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा क्या है? 

  • दक्षिण की ओर 

  • पूर्व की ओर

  • अधोमुखी

  • अधोमुखी

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किसी कुंडली में विद्युत् धारा प्रेरित करने के विभिन्न ढंग स्पष्ट कीजिये। 


किसी कुंडली में विद्युत् धारा प्रेरित करने के विभिन्न ढंग निम्नलिखित हैं-
i) दूसरी कुंडली में चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं में परिवर्तन करके।
ii)चुम्बक को कुंडली के भीतर या बहार गति करके।
iii) कुंडली में प्रवाहित विद्युत् धारा में परिवर्तन करके। 
iv) कुंडली को चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाने से। 

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मेज़ के तल में पड़े तार के वृत्ताकार पाश पर विचर कीजिये। मान लीजिये इस पाश में दक्षिणावर्त विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम को लागु करके पाश के भीतर तथा बाहर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात कीजिये। 


यदि मेज़ के तल में तार का वृत्ताकार पाश पड़ा है और इसमें दक्षिणावर्त विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है तो दक्षित हस्त अंगुष्ठ नियम द्वारा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा तल के लम्बवत ऊपर से नीचे की तरफ होगी। पाश के बाहर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा पाश के लम्बवत नीचे से ऊपर की ओर होगी। 

विद्युत जनित्र में ब्रुशों का क्या कार्य है? - vidyut janitr mein brushon ka kya kaary hai?

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किसी प्रोटोन का निम्नलिखित में से कौन-सा गुण किसी चुम्बकीय क्षेत्र में मुक्त गति करते समय परिवर्तित हो जाता है? ( यहां एक से अधिक सही उत्तर हो सकते हैं )। 

  • द्रव्यमान 

  • चाल 

  • वेग

  • वेग


सही विकल्प (c) और (d) हैं। चुम्बकीय बल प्रोटोन की गति पर लंबवत कार्य करता है। यह प्रोटोन के द्रव्यमान और चाल को प्रभावित नहीं करता, वेग और संवेग को प्रभावित करता है। 

सही विकल्प (c) और (d) हैं। चुम्बकीय बल प्रोटोन की गति पर लंबवत कार्य करता है। यह प्रोटोन के द्रव्यमान और चाल को प्रभावित नहीं करता, वेग और संवेग को प्रभावित करता है। 

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किसी विद्युत् धारावाही सीढ़ी लम्बी परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र -

  • शून्य होता है।

  • इसके सिरे की ओर जाने पर घटता है।

  • इसके सिरे की ओर जाने पर बढ़ता है।

  • इसके सिरे की ओर जाने पर बढ़ता है।

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विद्युत जनित्र में ब्रश का क्या कार्य है?

विद्युत मशीनों के सन्दर्भ में, ब्रश (brush) या कार्बन ब्रश किसी नरम एवं विद्युतचालक पदार्थ से बना हुआ एक घनाभ के आकार की युक्ति है जो दो विद्युत परिपथों को जोड़ता है जिनमें से एक परिपथ घूर्णनशील है (विद्युत मशीन के रोटर पर) तथा दूसरा परिपथ अचल प्रायः मशीन के स्टेटर पर) स्थित होता है।

विद्युत जनित्र का दूसरा नाम क्या है?

एक डायनेमो (ग्रीक शब्द डायनामिस से व्युत्पन्न हुआ है; इसका अर्थ है पावर या शक्ति), मूल रूप से विद्युत जनरेटर का दूसरा नाम है।

4 विद्युत जनित्र का मूल सिद्धांत एवं कार्यविधि स्पष्ट कीजिए इसमें ब्रुशों का क्या कार्य है 3 2 2 7?

इसमें ब्रुशों का क्या कार्य है? उत्तर : सिद्धांत-जनित्र इस सिद्धांत पर आधारित है कि किसी चालक में प्रेरित धारा तब उत्पन्न होती है जब इससे संबंधित चुंबकीय रेखाओं में परिवर्तन होता है। उत्पन्न विद्युत धारा की दिशा फ्लेमिंग के दायें हाथ के नियम के अनुसार होती है।

विद्युत जनित्र का सिद्धांत क्या है?

विद्युत् जनित्र विद्युतचुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर आधारित है। जब किसी कुंडली को उसके अक्ष पर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के लम्बवत घुमाया जाता है तो कुंडली से गुज़रने वाली चुम्बकीय रेखाओं में परिवर्तन होता है और विभान्तर प्रेरित होता है, जिसके कारण कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है।.