विद्यालय से आप क्या समझते हैं? - vidyaalay se aap kya samajhate hain?

इसे सुनेंरोकेंविद्यालय संगठन वह संरचना है जिसमें शिक्षक, छात्र, परिनिरीक्षक एवं अन्य व्यक्ति विद्यालय के कार्यों को चलाने लिए मिलकर कार्य करते हैं। वास्तव में शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए समस्त उपलब्ध भौतिक एवं मानवीय तत्त्वों की समुचित व्यवस्था करना हो विद्यालय का संगठन कहलाता है।

जनतांत्रिक शिक्षा पद्धति से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंजनतांत्रिक नागरिकता का विकास- इस देश के जनतंत्र को सफल बनाने के लिए प्रत्येक बालक को सच्चा, ईमानदार तथा कर्मठ नागिरक बनाना परम आवश्यक है | अत: शिक्षा का परम उद्देश्य बालक को जनतांत्रिक नागरिकता की शिक्षा देना है | इसके लिए बालकों को स्वतंत्र तथा स्पष्ट रूप से चिन्तन करने एवं निर्णय लेने को योग्यता का विकास परम आवश्यक …

आप वर्तमान विद्यालय शिक्षा व्यवस्था में कौन से दो परिवर्तन करना चाहेंगे?

इसे सुनेंरोकेंहमें भी अपनी ज़रूरत के आधार पर शिक्षा प्रणाली में निस्सन्देह बदलाव करना ही चाहिए। सब से पहले शिक्षा का व्यपरिकरण बंद होना चाहिए । आजकल के स्कूल में कोई भी बच्चा फेल हो उसकी भी पास कर दिया जाता है ताकि फीस आती रहे। स्कूलों की आमदनी बढ़ाने के लिए अनाप शनाप चीजें जोड़ कर फी लिए जाती है।

पढ़ना:   लिंग से लगने गुड़ से आप क्या समझते हैं?

विद्यालय भवन का प्रयोग सीखने सिखाने के माध्यम के रूप में कैसे करेंगे वर्णन करें?

इसे सुनेंरोकेंस्कूल के रिक्त स्थान (उदाहरण के लिए कक्षा, गलियारे का स्थान, सड़क, प्राकृतिक वातावरण) और उनके घटक निर्मित तत्वों (जैसे कि फर्श, दीवार, छत, दरवाजा, खिड़कियाँ, फर्नीचर, खुले मैदान) का प्रयोग करके सीखने की एक श्रृंखला और सामग्री की तरह एकीकृत हो सकती है और वे सब सक्रिय रूप से एक सीखने के संसाधन के रूप में इस्तेमाल किये जा …

विद्यालय संगठन का क्या उद्देश्य?

इसे सुनेंरोकेंविद्यालय संगठन के उद्देश्य (1) सीखने और सिखाने के लिए उचित वातावरण का निर्माण करना। (2) शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति में सहायता करना। (3) छात्रों में सामुदायिक भावना का विकास करना। (4) समाज के लिए त्याग करने वाले नागरिकों का निर्माण करना।

विद्यालय की परिभाषा क्या है?

इसे सुनेंरोकेंविद्यालय वह स्थान है, जहाँ शिक्षा ग्रहण की जाती है। “विद्यालय एक ऐसी संस्था है, जहाँ बच्चों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं नैतिक गुणों का विकास होता है। ‘ विद्यालय’ शब्द के लिए आंग्ल भाषा में ‘स्कूल’ शब्द का प्रयोग होता है, जिसकी उत्पत्ति ग्रीक शब्द ‘Skohla’ या ‘Skhole’ से हुई है, जिससे तात्पर्य है- ‘अवकाश’।

पढ़ना:   फर्म का समामेलन क्या है?

क्या शिक्षा लोकतंत्रीय व्यवस्था को सुगम बनाती है चर्चा कीजिए?

इसे सुनेंरोकेंलोकतंत्र और शिक्षा का आपस में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है और एक के अभाव में दूसरा सफल नहीं हो सकता। लोकतंत्र लोगों को स्वतंत्रता प्रदान करने में विश्वास करता है। परंतु, यदि लोग शिक्षित नहीं हैं तो उनकी स्वतंत्रता अराजकता और अनुशासनहीनता की तरफ जा सकती है। लोकतांत्रिक शिक्षा के लिए आर्थिक- आत्मनिर्भरता भी आवश्यक है ।

शिक्षा सुधार की दृष्टि से आप शिक्षा प्रणाली में मुख्य रूप से क्या परिवर्तन करना चाहेंगे?

इसे सुनेंरोकेंऐतिहासिक रूप से, सुधार की प्रेरणाओं ने समाज की वर्तमान आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित किया है। सुधार के एक सुसंगत विषय में यह विचार शामिल है कि शैक्षिक मानकों में छोटे व्यवस्थित परिवर्तन नागरिकों के स्वास्थ्य, धन और कल्याण में महत्वपूर्ण सामाजिक लाभ उत्पन्न करेंगे।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में और सुधार क्या किए जा सकते हैं?

इसे सुनेंरोकेंइस शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत देश में नए-नए विश्वविद्यालयों, कॉलेजों एवं स्कूलों की स्थापना की गई और यह प्रक्रिया अनवरत जारी है। इसमें शिक्षा का प्रचार-प्रसार बढ़ाने के साथ-साथ साक्षरता दर में भी बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2011 की जनगणना के आकड़ों के अनुसार इस समय देश की कुल साक्षरता दर 73.0 प्रतिशत है।

पढ़ना:   डेटा प्रविष्टि पर सत्यापन कैसे लागू करें?

विद्यालय भवन से क्या तात्पर्य है इसका निर्माण किस प्रकार किया जाता है?

इसे सुनेंरोकेंविद्यालय भवन क्या है? विद्यालय भवन’ एक व्यापक शब्द है, जिसके अन्तर्गत स्थिति, इमारत, खेल के मैदान, फर्नीचर, यन्त्र, पुस्तकालय, छात्रावास और अन्य साज-सज्जा आती है। जब तक विद्यालय की स्थिति का चुनाव उपयुक्त ढंग से नहीं किया जायेगा।

विद्यालय दो शब्दों से मिलकर बना है- विद्या +आलय = ‘विद्या का घर’। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि विद्यालय वह स्थान है जहाँ विद्या प्रदान की जाती हैं अथवा हम यह भी कह सकते हैं कि विद्यालय का अर्थ उस स्थान अथवा संस्था से हैं जहाँ समाज की नवजात पीढ़ी को उसकी क्षमता एवं बुद्धि के अनुसार निश्चित विधि से सुप्रशिक्षित अध्यापकों द्वारा समाज, विज्ञान, कला, कौशल, धर्म, नैतिकता और दर्शन आदि का ज्ञान कराया जाता है। 

परिभाषा – विद्वानों द्वारा दी गयी विद्यालय की परिभाषा निम्नवत् है – 

रॉस के अनुसार, “विद्यालय वे संस्थाएं है जिनका मानव ने इस उद्देश्य से निर्माण किया है कि वे बालकों को समाज का योग्य एवं समायोजित सदस्य बनाने में सहायक हों।” 

जॉन डीवी का मत है कि “विद्यालय का तात्पर्य एक ऐसे वातावरण से हैं जहाँ जीवन के गुणों और कुछ विशेष प्रकार की क्रियाओं और व्यवसायों की शिक्षा इस उद्देश्य से ही जाती है कि बालक का विकास वांछित दिशा में हो।” 

ओटावे के अनुसार, “विद्यालय युवकों को विशेष प्रकार की शिक्षा देने वाले सामाजिक आविष्कार के रूप में समझे जाते हैं।” 

विद्यालय की आवश्यकता एवं महत्व – 

ऐसी संस्थाएँ जो समाज विकास और समाज सुधार के लिए अत्यन्त आवश्यक होती है उनकी स्थापना मानव द्वारा की जाती रही है। ऐसी मानव स्थापित संस्थाओं और समितियों में विद्यालय का स्थान, महत्व तथा आवश्यकता की दृष्टि से सर्वोपरि है। आज शिक्षा के लिए विद्यालय एक अत्यन्त ही आवश्यक एवं शक्तिशाली साधन है। शिक्षा प्रत्येक स्तर के लिए आवश्यक है। अतः समाज में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। निम्नलिखित तथ्यों से इनकी आवश्यकता एवं महत्व स्पष्ट हो जाता है – 

(1) आधुनिक युग में ज्ञान की विविधता एवं सांस्कृतिक विरासत इतनी बढ़ गयी है कि घर अथवा परिवार द्वारा इनको शिक्षा देना असम्भव हो गया है। अतः यह कार्य विद्यालय के द्वारा ही पूर्ण किया जाता है। संस्कृति को एकत्रित करने तथा उनकों दूसरों तक पहुँचाने का उपयुक्त साधन विद्यालय ही है। विद्यालयं बालक के पारिवारिक जीवन एवं बाह्य जीवन को जोड़ने वाली एक महत्वूपर्ण कड़ी है। दूसरों के सम्पर्क में आने से बालक का दृष्टिकोण विशाल हो जाता है और उसका बाह्य समाज से सम्पर्क स्थापित हो जाता है। 

(2) किसी शिक्षण संस्था अथवा विद्यालय के कुछ पूर्व निश्चित उद्देश्य एवं आदर्श होते हैं। इसका बालक पर प्रभाव पड़ता है और उसके व्यक्तित्व का सामन्जस्यपूर्ण विकास होता है। यद्यपि शिक्षा के अन्य कई साधन भी है, परन्तु वे बालक के व्यक्तित्व के विकास में इतने सहायक नहीं होते हैं, जितने की विद्यालय होते हैं। अतः विद्यालय का अत्यन्त महत्व होता है। 

(3) विद्यालय एक स्वच्छ,सरल, शुद्ध एवं सन्तुलित वातावरण देते हैं जिसका बालक की प्रगति एवं विकास पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। इसी वातावरण में बालक का शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक विकास सम्भव होता है और पर बालक को अपने यह भविष्य के लिए रोटी-रोजी कमाने की शिक्षा मिलती है। 

(4) विद्यालय में शिक्षा देने का कार्यक्रम एक निश्चित पाठ्यक्रम के अनुसार चलता है। इसलिए बालकों की शक्ति का अपव्यय नही होता है और समय की बचत होती है। यह पर बालकों में उचित आदतों, रूचियों एवं दृष्टिकोण का विकास होता है। यहाँ पर अनेक परिवारों के बालक एक साथ रहकर सामाजिक शिष्टाचार, सहानुभूति, निष्पक्षता, सहयोग आदि का गुण ग्रहण करते हैं। 

(5) विद्यार्थियों के वातावरण तथा समाज के साथ अनुकूलीकरण करने में विद्यालय विशेष रूप से सहायता करते हैं, इनके सहयोग तथा मार्गदर्शन से अनुकूलीकरण सरलता एंव सुगमता से हो जाता है। अतः विद्यालय का महत्व एवं आवश्यकता मानव, समाज में अनिवार्य बन गयी है। 

विद्यालयों को प्रभावशाली बनाने का सुझाव विद्यालय को शिक्षा का प्रभावशाली साधन बनाने के सुझाव निम्नवत है – 

(1) परिवार या घर से सहयोग – विद्यालयों को शिक्षा का प्रभावशाली साधन बनाने के लिए उनका विद्यार्थियों के परिवार या घर से सहयोग तथा सम्पर्क किया जाना चाहिए। बालक के शारीरिक विकास में गृह एवं पाठशाला का सहयोग होना चाहिए। अध्यापकों को बालकों के स्वास्थ्य के विषय में अभिभावकों को परिचित कराते रहना चाहिए। समय-समय पर अध्यापकों तथा अध्यापिकाओं को विद्यार्थियों के घर जाना चाहिए और उनके माता-पिता से विद्यार्थी के कार्यों आदि के विषय में बातचीत करना चाहिए। प्रत्येक विद्यालय में माह में एक दिन अभिभावक दिवस का आयोजन किया जाना चाहिए जिसमें बालकों के अभिभावकों को आमंत्रित किया जाना चाहिए। अभिभावक संघ की स्थापना भी अत्यन्त आवश्यक है। विद्यालय की प्रबन्ध समिति में अभिभावकों का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिए। बालकों के शारीरिक, मानसिक नैतिक तथा सामाजिक विकास की रिपोर्ट अभिभावकों को अवश्य भेजी जानी चाहिए। अभिभावकों को इस रिपोर्टों का सार भी अवश्य देना चाहिए। समय-समय पर अध्यापकों, अभिभावकों एवं शिक्षा विभाग के कर्मचारियों का सम्मेलन आयोजित किया जाना चाहिए। इन कार्यों से विद्यालयों और परिवार में अवश्य ही सहयोग स्थापित होगा और विद्यालय शिक्षा के प्रभावशाली साधन बनेंगे। 

(2) विद्यालयों का सामाजिक जीवन से सम्बन्ध स्थापित करना – सामान्यतया यह होता है कि जो विद्यालय प्रचालन में है उसका सम्बन्ध समाज से बिल्कुल ही नही होता है जिसके परिणाम स्वरूप हमारे देश के बालक जब शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् वास्तविक जीवन में प्रवेश करते हैं तो उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। विद्यालयों की शिक्षा को प्रभावशाली साधन बनाने के लिए यह आवश्यक है कि विद्यालयों का सामाजिक जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित किया जाये। 

जान डीवी के शब्दों में – “विद्यालयों को समाज का प्रतिनिधि होना चाहिए।” 

इसके लिए सामाजिक विषयों यथा नगारिकशास्त्र, इतिहास, शिक्षाशास्त्र और अर्थशास्त्र आदि के अध्ययन पर बल दिया जाना चाहिए जिससे विद्यालयी शिक्षा प्रभावशाली बनेगी और वालक का सम्बन्ध समाज से बनना प्रारम्भ होगा।

विद्यालय से क्या समझते हो?

विद्यालय वह स्थान है, जहाँ शिक्षा ग्रहण की जाती है। "विद्यालय एक ऐसी संस्था है, जहाँ बच्चों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं नैतिक गुणों का विकास होता है। ' विद्यालय' शब्द के लिए आंग्ल भाषा में 'स्कूल' शब्द का प्रयोग होता है, जिसकी उत्पत्ति ग्रीक शब्द 'Skohla' या 'Skhole' से हुई है, जिससे तात्पर्य है- 'अवकाश'।

विद्यालय से क्या समझते हैं विद्यालय की प्रमुख विशेषता?

विद्यालय की विशेषताएं (Vidyalaya ki visheshta).
विद्यालय समाज द्वारा निर्मित संस्था है।.
विद्यालय एक विशिष्ट वातावरण है जिसमें बालकों के वांछित विकास के लिए विशिष्ट गुणों, क्रियाओं तथा व्यवसायों की व्यवस्था की जाती है।.
विद्यालय समाज का लघुरूप है जिसका उद्देश्य समाज द्वारा मान्य व्यवहार व कार्य की शिक्षा देना है।.

विद्यालय की क्या भूमिका है?

शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है और उसके लिए विद्यालय ही एक सामाजिक संस्था है जिसमें बालक का सामाजिक विकास होता हैविद्यालय स्वस्थ नागरिकों के निर्माण में सहायक हो। विद्यालय शैक्षिक प्रक्रियाओं में समयानुकूल परिवर्तन करते हुए समाज की आर्थिक राजनैतिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति में पूर्ण सहयोग करें।

स्कूल के बारे में क्या क्या लिखें?

स्कूल के बारे में 10 लाइन हिंदी में.
स्कूल शिक्षा का मंदिर है।.
स्कूल से हम शिक्षा ग्रहण करते हैं।.
स्कूल में हमें अच्छी-अच्छी चीजें सिखाई जाती हैं।.
स्कूल जाने से हमारा ज्ञान बढ़ता है।.
स्कूल में हमें लिखना और पढना सिखाया जाता है।.
हर किसी को स्कूल जाना चाहिए।.
स्कूल जाने वाला व्यक्ति शिक्षित और समझदार होता है।.