निश्चित समयावधि में किसी अर्थव्यवस्था में होने वाली वास्तविक आय की वृद्धि, आर्थिक समृद्धि है। यह एक भौतिक अवधारणा है। यदि, राष्ट्रीय उत्पाद, सकल घरेलू उत्पाद तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो रही है, तो माना जाता है कि आर्थिक संवृद्धि हो रही है। Show
आर्थिक विकास की धारणा आर्थिक संवृद्धि की धारणा से अधिक व्यापक है। आर्थिक संवृद्धि उत्पादन की वृद्धि से संबंधित है, जबकि आर्थिक विकास उत्पादन की वृद्धि के साथ-साथ, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक गुणात्मक एवं परिणात्मक सभी परिवर्तनों से सम्बन्धित है। आर्थिक संवृद्धि वस्तुनिष्ट है जबकि आर्थिक विकास व्यक्तिनिष्ठ। आर्थिक विकास के माप में प्रति व्यक्ति आय के जीवन की गुणवत्ता को सही माप नही माना जाता है। इसकी माप में अनेक चारों को सम्मिलित किया जाता है जैसे-आर्थिक, राजनैतिक तथा सामाजिक संस्थाओं के स्वरूप में परिवर्तन, शिक्षा तथा साक्षरता दर, जीवन प्रत्याशा, पोषण का स्तर, स्वास्थ्य सेवायें प्रति व्यक्ति टिकाऊ उपभोग वस्तु आदि।
आर्थिक विकास की मापविभिन्न देशों के आर्थिक विकास की तुलनात्मक स्थिति ज्ञात करने के लिए पाँच दृष्टिकोण हैं-; (A) आधारभूत आवश्यक प्रत्यागम – (Basic Needs Approaches) इस दृष्टिकोण का प्रतिवादन-1970 में विश्व बैंक ने किया। (B) जीवन की भौतिक गुणवत्ता निर्देशांक (Physical Quality of Life Indext -PQLI) इस Index के जान टिनवर्जन एवं मारिश डी0 माॅरिश ने प्रस्तुत किया। च्फस्प् के अन्तर्गत आर्थिक विकास के मापन के लिए तीन सूचकांक का प्रयोग किया जाता है।
(C) निवल आर्थिक कल्याण (Net Economic Welfare) मापक -विलियम नोरधस तथा जेम्स टोबिन ने जीवन की गुणवत्ता में सुधार जो आर्थिक विकास की मापक है, की माप के लिए मंजर आॅफ इकनामिक वेलफेयर (MEW) की धारणा विकसित की जिसे बाद में सेमुएलसन और संशोधित किया तथा इसे (NEW) मापक रहा। NEW =G.N.P (सकल राष्ट्रीय उत्पाद)-(उत्पादन भप्रत्यक्ष लागत तथा आधुनिक नागरिक की हानियां ़ तथा गृहणियों की सीमायें। (D) क्रय शक्ति समता विधि (Purchasing Power Parity Method):- इस विधि का प्रतिपादन जी0आर0 कैसेल ने किया। इसके अन्तर्गत किसी देश की सकल राष्ट्रीय आय के किसी पूर्व निश्चित अन्तर्राष्ट्रीय विदेशाी विनिमय दर पर व्यक्त न करे, उस देश के भीतर मुद्रा की क्रयशक्ति के आधार पर व्यक्त किया जाता है। वर्तमान के विश्व बैंक इसी विधि का प्रयोग विभिन्न देशों के रहन-सहन की तुलना के लिए कर रहा है। (E) मानव विकास सूचकांक (Human Ebullient India):- इस सूचकांक की अवधारण यूनाइटेड नेशन्स से जुड़े प्रोग्राम से जुड़े प्रसिद्ध अर्थशास्त्री महबूत उल हक एवं उनके अन्य सहयोगी ए0के0 सेन तथा सिंगर हंस ने 1990 में किया। इनके द्वारा विकसित मानव विकास सूचकांक तीन चरों पर आधारित है-
वर्ष 2010 में इन तीनों आयामों को परिभाषित किया गया तथा मानव विकास के आफलय के तरीके में बदलाव लाया गया। अब मानव विकास के स्तर का पता निम्न चार सूचकांकों के सदंर्भ में लगाया जाता है।
(a) मानव विकास सूचकांक –2010 के पहले मानव विकास का आकलन जीवन-प्रकाश, साक्षरता और प्रति व्यक्ति आय पर की जाती थी, जबकि 2010 के बाद यह आकलन दीर्घ आयु और स्वस्थ्य जीवन, ज्ञान तक पहुँच और सम्मानजनक जीवन स्तर के आधार पर की जाती है। (b) इनइक्वलिटी एडजस्टेड मानव विकास सूचकांक (IHDI) :-यह मानव विकास के प्रत्येक आयामों में असाम्यता को समायोजित करता है। IHDI मानव-विकास सूचकांक असमाम्यता के वास्तविक स्तर को दर्शाता है जबकि मानव-विकास सूचकांक संभावित विकास स्तर को। लैंगिक विषमता सूचकांक (GII) :-यह सूचकांक महिलाओं की बंचना के दर्शाता है। इसमें प्रजनन-स्वास्थ्य, सशक्तीकरण और श्रम-बाजार जैसी चीजों को शामिल किया जाता है। GII पुरुषों और महिलाओं के बीच विषमता के कारण मानव विकास के हृास को दर्शाता है। यह 0 से 1 के बीच विचरण करता है। शून्य पूर्ण समता तथा 1 पूर्ण विषमता की स्थिति को दर्शाता है। इसमें निम्नलिखित संदर्भों के सम्मिलित किया जाता है।
बहुआयमी निर्धनता सूचकांक (M.P.I) :-यह सूचकांक व्यक्तिगत स्तर पर स्वास्थ्य शिक्षा और जीवन-स्तर में बचाना की पहचान करता है। डच्प् जनसंख्या के उस हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है, जो बहु आयमी निर्धनता का शिकार है। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन सतर से संबंधित कुल दस उप मानक हैं- शिक्षा से संबंधितः-
स्वास्थ्य से संबंधित:-
जीवन स्तर में संबंधित:-
मानव विकास का अधिकतम मान 1 और न्यूनतम मान 0 होता है। अर्थात 1 अधिकतम मानव विकास की स्थिति को दर्शाता है और शून्य न्यूनतम मानव विकास की स्थिति को। सतत् विकास(Sustainable development):-सतत् विकास की अवधारणा 1987 में पर्यावरण एवं विकास के विश्व आयोग की रिपोर्ट में आंवर काॅमन फ्यूचर’ नाम से प्रकाशित रिपोर्ट में सर्वप्रथम उभरकर आती है। जिसमें कहा गया है कि-’’वह विकास जो वर्तमान की जरूरतों को, भावी पीढ़ी की अपनी जरूरतों की क्षमता से समझौता किए बिना, पूरा करता है। 1992 के रियो डी जेनेरियो के पृथ्वी सम्मेलन में जहाँ इसके महत्व को स्वीकार किया गया वहीं 2002 में 1 सतत् विकास पर आयोजितविश्व सम्मेलन में जोड़ा संघर्ष प्लाॅन आॅफ इम्पली मेंटेशन को अंतिम रूप दिया गया। दिल्ली उद्घोषणा 2002 में सतत् विकास पर अन्तर्राष्ट्रीय विधि के सात मूल सिद्धांत पहचाने गये:- आर्थिक समृद्धि तथा आर्थिक विकास में क्या अंतर है?1. आर्थिक समृद्धि का मतलब देश के सकल घरेलू उत्पाद, प्रति व्यक्ति आय,में वृद्धि और गरीबों की जनसँख्या में कमी से होता है जबकि आर्थिक विकास से आशय किसी देश की आधारभूत संरचना की मजबूती, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों से होता है.
आर्थिक विकास और विकास में क्या अंतर है?सी. पी. किन्डलबर्गर (C. P. Kindle Berger) ने आर्थिक विकास और आर्थिक वृद्धि में अन्तर की व्याख्या की है । ”आर्थिक वृद्धि का अर्थ है अधिक उत्पादन और आर्थिक विकास का अर्थ अधिक उत्पादन और तकनीकी एवं संस्थागत प्रबन्धों में परिवर्तन दोनों हैं जिनके द्वारा इसे उत्पादित किया जाता है ।”
संवृद्धि एवं विकास से आप क्या समझते हैं?निश्चित समयावधि में किसी अर्थव्यवस्था में होने वाली वास्तविक आय की वृद्धि, आर्थिक समृद्धि है। यह एक भौतिक अवधारणा है। यदि, राष्ट्रीय उत्पाद, सकल घरेलू उत्पाद तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो रही है, तो माना जाता है कि आर्थिक संवृद्धि हो रही है।
संवृद्धि और विकास से आप क्या समझते हैं उनके बीच अंतर करें?आर्थिक संवृद्धि से अभिप्राय वास्तविक राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की प्रक्रिया से है। आर्थिक विकास को समाज में भौतिक कल्याण, धारणीय सुधार के रूप में परिभाषित किया जाता है। मानव विकास को लोगों के चुनाव में वृद्धि लाने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
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