दैनिक भाषा संप्रेषण से आप क्या समझते हैं? - dainik bhaasha sampreshan se aap kya samajhate hain?

दैनिक भाषा संप्रेषण क्या है इसके लाभ और सीमाएं बताएं?...


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दिलीप दैनिक भाषा संप्रेषण का इसका लाभ और सीमाएं बताइए द टॉपिक है आपका इंटरपर्सनल इंटरेक्शन का है * पक्षी होता है कि अगर आप किसी से भी बातें करते हैं इंटरपर्सनल इंटरेक्शन आप किसी से भी बातें करते हैं जब मोर थन वन पीपल आपस में बातें करते इंटरेक्ट करते हैं आपस में तो इंटरपर्सनल सेक्शन में आता है इसे बहुत से पूरी टीम बेनिफिट्स इन टॉपिक भाषा संप्रेषण इन दिल्ली लैंग्वेज में डिलीवर कर बातें करते हैं तो उसका क्या होगा करते हैं तो आपके बारे में अभी से ही बातें करते हैं आप अपने फैमिली मेंबर से ऑफिस में कलिंग से निबट से लोन से दुकानदार से ऑटो वाले से रिक्शा वाले किसी से भी तुझी से बातें करते हैं तो वह आपकी बातें सुनता है देना को ही वोट देना है कि आप तबीयत सही है आप सही मूड में हैं आप बातें करना चाहते हैं नहीं चाहते हैं आप ठीक-ठाक हैं इसका पता चलता है वह रिप्लाई करता है तो उसके बारे में आपको चलता है या नहीं दैनिक माता संप्रेषण में दिल्ली किससे बातें करते हैं तो वह आपके बारे में जानता है आप उसके बारे में जानते हैं अगर एक लिमिट के बाद टेनिस से लाभ और सीमाएं बताइए लाभ तो हैप्पी है कि आप एक दूसरे को जानते हैं आप की दूसरी चीज बा एक दूसरे से बात करने के बाद आपको वापस में इंफेक्शन होता है देना आप अपनी दूसरी काम को पूरा करते हैं सब अपनी कलिक से रिप्लाई से ऑटो वाले से दूध वाले से फैमिली वालों से किसी बातें करते हैं तो आप अपने नीतू के कोडिंग या वैसे हालचाल पूछे थे इमोशंस कि अगर कोई आपसे बात करता है सब कुछ आप किसी अपने ऑफिस में करीब से बात करते हैं कल एक आपका जूनियर है आपने उससे बात किया चले आपकी तो फिर बेनिफिट होगा कि आपको काम के बारे में रिपोर्ट करेगा लेकिन एक लिमिट में बात करेगा या नहीं आपकी जरूरत थी आपको नींद था आपने बात कर लिया बस इतना रिप्लाई उसने भी कर लिया लेकिन उसके अलावा भी आप उसकी दुनिया है आप उससे ज्यादा बातें करेगा आप उनके सीनियर हो आप मैं भी वह आपके लिए नेगेटिव creative-i भजन दिन आप उसको डांट भी सकते हैं अरे मतलब है कि आप एक लिमिट तक बातें कर सके जिससे भी रिलेशन आपका इंटरपर्सनल कलेक्शन जिससे भैया एक लिमिट होना चाहिए ताकि दूसरे कोई गुस्से को कोई प्रॉब्लम नहीं मिटिगेशंस कि अगर कल ही है तो बातें कर सकते हैं जूनियर है तो उसी लेवल बात करेंगे सीनियर है तो उसके लिए फैमिली में बरसात उसके कोडिंग बात करेंगे उससे ज्यादा बात नहीं करेंगे या केबिन फैशन लिमिटेड

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Q.31: संप्रेषण से आप क्या समझते हैं? विस्तार से समझायें एवं उसके तत्त्वों का वर्णन करें।

उत्तर : संप्रेषण मानव का निहित गुण है मानव ही सृष्टि का ऐसा प्राणी है जो संप्रेषण करने में समर्थ है साधारण शब्दों में संप्रेषण को एक क्रिया माना गया है जो विचारों के आदान प्रदान से संबंधित है । इस आदान प्रदान के अंतर्गत व्यक्ति अपने विचार, भावनाएं, सूचनाएं इत्यादि दूसरों तक पहुँचाते हैं एवं साथ ही दूसरों के विचार को ग्रहण भी करते हैं।

शिक्षा के अंतर्गत एक शिक्षक के लिए यह अनिवार्य प्रक्रिया है जिसके द्वारा वह अपना ज्ञान, विचार, भावनाएं, विद्यार्थियों तक पहुँचाता है।

आवश्यकता– संप्रेषण की आवश्यकता इसलिये पड़ती है क्योंकि प्रथम अनुभव द्वारा विश्व की अनेक घटनाओं, ज्ञान, विभिन्न विषयों की जानकारी प्राप्त कर लेना एक असंभव बात है। प्रथम अनुभव द्वारा प्राप्त की गई जानकारी शत प्रतिशत शुद्धता से पूर्ण होती है परन्तु चूंकि यह हमेशा संभव नहीं हो पाता अतः यहाँ संप्रेषण की आवश्यकता पड़ती है शिक्षक–शिक्षण के दौरान अपना पूरा भरसक प्रयास करता है कि विद्यार्थियों तक ज्ञान का संचार कर सके जिस ज्ञान को विद्यार्थी प्रथम अनुभव द्वारा ग्रहण करने में असमर्थ होता है। यहाँ यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि शिक्षण क्रिया एवं संप्रेषण कौशल में सीधा संबंध है।

इसी कारण यह कहा गया है

‘समझा पाना' एक अत्यंत सुखदायी अनुभव है क्योंकि यदि संप्रेषण–कौशल में न हों तो शिक्षक ज्ञानी होते हुए भी अपने ज्ञान का संचार विद्यार्थियों तक नहीं कर पाते।

इस प्रकार संप्रेषण समस्त मानवीय क्रियाओं एवं अंतक्रियाओं का आधार है एक व्यक्ति दूसरे से संप्रेषण कई प्रकार से कर सकता है शब्दों द्वारा शांत रहकर, शारीरिक अभिविन्यास द्वारा, हाव–भाव द्वारा, लिखित रूप में लेखन द्वारा, चित्रों द्वारा संगीत द्वारा, पेटिंग द्वारा एवं अभिव्यक्ति की अनेक सृजनात्मक तरीकों द्वारा –

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इस प्रकार संप्रेषण के अनेकों माध्यम हैं।

परिभाषा– संप्रेषण एक द्विमार्गी प्रक्रिया है जिसमें दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है।

परिभाषा द्वारा स्पष्ट है कि संप्रेषण एक मार्गी न होकर द्विमार्गी प्रक्रिया है एकांत या एकमार्गी संप्रेषण हो ही नहीं सकता है संप्रेषण होने के लिए दो व्यक्तियों का होना अत्यन्त आवश्यक है।

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इस प्रकार संप्रेषण एक दोहरी प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति का, उसके व्यक्तित्व का प्रभाव दूसरे व्यक्ति पर उसके व्यक्तित्व पर पड़ता है।

संप्रेषण के आधारभूत तथ्य हैं–

(1) संप्रेषण एक मार्गी नहीं बल्कि द्विमार्गी प्रक्रिया है यह एक दोहरी प्रक्रिया है।

(2) मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का अस्तित्व होता है संप्रेषण के अंतर्गत ये सिद्धान्त लागू होते हैं जैसे मानवीय स्वभाव, उद्दीपन–अनुक्रिया इत्यादि।

(3) अभिव्यक्ति कौशल, प्रत्यक्षीकरण करने की योग्यता चित्र, ग्राफिक्स एवं कोमल उपागम बनाने की योग्यता है यदि अमूर्त विचारों को दर्शाने की आवश्यकता है ।

(4) संचार साधनों की उपयोगिता की जानकारी अर्थात आवश्यकतानुसार श्रव्य, दृश्य, श्रव्य एवं दृश्य सामग्रियों सामग्रियों का उपयोग यहाँ तक कि प्रक्षेपित सामग्रियों का भी उपयोग।

(5) बहुइन्द्रिय संसाधनों का उपयोग

संप्रेषण कौशल को प्रभावशाली बनाने के लिये उसके प्रमुख तत्त्वों को जानना अत्यन्त आवश्यक है ये इस प्रकार है:

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इन तत्त्वों का विस्तृत विवरण इस प्रकार है–

'संप्रेषण संदर्भ' से तात्पर्य है संप्रेषण का वातावरण इसे तीन भागों में बाँटा गया है–

भौतिक वातावरण– संप्रेषण का भौतिक वातावरण कैसा है इसे जानना अत्यन्त आवश्यक है जैसे किसी कमरे में या हौल में या पार्टी में संप्रेषणकर्ता को हमेशा इसका ध्यान रखना चाहिये कि ग्रहणकर्ता, किसी कमरे में है, किसी हौल में है या फिर पार्टी का माहौल है क्योंकि व्यक्ति तक पहुँच पाने के लिए अलग–अलग भौतिक परिस्थिति अलग–अलग प्रभाव रखती है।

सामाजिक वातावरण– संदर्भ संबंधी यह एक दूसरी आवश्यकता है जो मुख्यतः विभिन्न व्यक्तियों के बीच पाई जाने वाले संबंधों एवं उनके स्तरों पर निर्भर करती है जैसे संबंध औपचारिक एवं अनौपचारिक हो सकते हैं उसी तरह स्तर–निम्न स्तर, मध्यम स्तर या उच्च स्तर का हो सकता है। अतः सामाजिक वातावरण की भिन्नता के अनुसार संप्रेषण में भी भिन्नता लाना, संप्रेषण कौशल की प्रमादशीलता के लिए आवश्यक होगा।

समयाधारित वातावरण– जैसा कि एक कहावत है, 'चोर तभी करना चाहिये जब लोहा गर्म हो' ठीक यही बात संप्रेषण के अंतर्गत भी सही है, समय की नजाकत का ध्यान रखते हुए ही संप्रेषण करना चाहिये जिससे ग्रहणकर्ता शत प्रतिशत रूप में संदेश को ग्रहण कर सके।

स्रोत– स्रोत तत्त्व का अर्थ है एक व्यक्ति या घटना जो शाब्दिक या अशाब्दिक रूप में प्रसारित करती है और जिस पर प्रतिक्रिया की जा सकती है । यदि स्रोत व्यक्ति के रूप में हो तो उसे प्रेषक भी कहा जाता है जैसे शिक्षक।

ग्रहणकर्ता– ग्रहणकर्ता वह व्यक्ति है जो संदेश को ग्रहण करता है जैसे छात्र या विद्यार्थी ।

संदेश– संदेश, शाब्दिक, अशाब्दिक, वार्तालाप चित्र, हाव–भाव, विभिन्न माध्यमों के द्वारा दी जाने वाली सूचनाएं हो सकती हैं।

संकेत– संकेत वह है जो किसी अन्य वस्तु को बताता है,जैसे यातायात में हरा रंग–गति, पीला रंग रुकने का एवं लाल रंग–पूर्णतः रुकने का संकेत देता है। रसायनशास्त्र में H2O पानी के लिये, O2 ऑक्सीजन के लिये संकेत के रूप में उपयोग में लाया जाता है।

माध्यम – माध्यम का अर्थ है वह साधन जिसका उपयोग संदेश को प्रसारित करने के लिये किया जाता है माध्यम ज्ञानेन्द्रियों से संबंधित होते हैं जैसे दृश्य, श्रव्य, स्पर्श, सूंघने और स्वाद इन्द्रियों संबंधी।

सांकेतिक लेखन – यह एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा संकेतों का उपयोग विचार एवं भावनाओं को अभिव्यक्त किया जाता है उदाहरण के लिए भाव – हँसी का, – रोने का, – गुस्से का भाव दर्शाने के लिए उपयोग में लाया जाता है इसी तरह गणित के विषय में –,–, =, >, <, % इत्यादि सांकेतिक लेखन द्वारा संदेश दिया जाता है ।

संकेतों का अर्थापन– यह भी एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा ग्रहण कर्ता संदेशों के अर्थ को समझ पाता है जो प्रेषक या स्रोत द्वारा प्रेषित किया जाता है।

पृष्ठ पोषण– यह एक प्रतिक्रिया है जो ग्रहणकर्ता प्रेषक या स्रोत के संदेश को ग्रहण करने के बाद देता है।

कोलाहल– यह संदेश को विकृत करने वाला तत्त्व होता है जो कि आंतरिक या बाह्य दोनों प्रकार का हो सकता है साथ ही यह प्रेषक स्रोत और ग्रहणकर्ता दोनों से संबंधित हो सकता है ।

संप्रेषण के संपूर्ण तत्त्व को संप्रेषण चक्र द्वारा भलीभाँति समझा जा सकता है।

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प्रभावशाली संप्रेषण हेतु यह आवश्यक शर्त है कि स्रोत सही सूचना प्रसारित करे, पर्याप्तता के साथ एवं ग्राह्य गति के साथ । यह पहली शर्त है दूसरी शर्त यह है कि ग्रहणकर्ता प्रसारित संदेश को समझ सके दूसरे शब्दों में ग्रहणकर्ता संदेश ग्रहण करने के बाद सही ढंग से पृष्ठपोषण दे सके।

जब उपरोक्त दोनों शर्ते पूरी हो एवं किसी प्रकार की बाधाओं का कोई दखल न हो तभी संप्रेषण को प्रभावशाली माना जा सकता है

संप्रेषण के प्रकार

संप्रेषण के तीन प्रकार हैं

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उपरोक्त प्रकारों में संप्रेषण के कुछ प्रकार ऐसे हैं जिसमें प्रेषक एवं ग्रहणकत्र्ता में आमने–सामने का संबंध होता है ऐसा माना गया है कि जब स्रोत या प्रेषक का ग्रहणकुत्ता क साथ प्रत्यक्ष आमने सामने का संबंध होता है तो वह संप्रेषण अधिक प्रभावशाली होता है।

संप्रेषण का एक प्रकार लिखना एवं पढ़ना, इसमें उदाहरण के रूप में लेखकों द्वारा लेख जो पढ़ा जाता है उसका भी दूसरे व्यक्ति पर प्रभाव पड़ता है भले ही इसमें संप्रेषक अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालता है। इसी तरह प्रत्यक्षीकरण एवं अवलोकन में भी स्रोत एवं ग्रहणको एक दूसरे के सामने भी हो सकते हैं नहीं भी, परन्तु प्रभाव पड़ता है।

गुणात्मक दृष्टिकोण से स्रोत एवं ग्रहणकर्ता का प्रत्यक्ष संबंध होना संप्रेषण की प्रभावशीलता को बढाता है।

एक शिक्षक को प्रभावशाली संप्रेषण करने हेतु निम्नलिखित सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए।

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उपरोक्त संप्रेषण सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है–

(1) स्पष्टता का सिद्धान्त यह माँग करता है कि जो कुछ भी संप्रेषण के दौरान कही जाये वह आवाज, उच्चारण, गति के स्तर पर उपयुक्त से तभी स्पष्टता पाई जाएगी।

(2) यह सिद्धान्त भाषा एवं शब्दकोश की पर्याप्तता की आवश्यकता बताता है संप्रेषणकर्ता का भाषा पर अधिकार हो यह आवश्यक है साथ ही यह भी कि उसका शब्दकोष भंडार भी पर्याप्त हों जिससे वह संदेश की बारीकियों को उचित शब्दों का प्रयोग कर, संप्रेषित कर सकें।

(3) यह सिद्धान्त बताता है कि शिक्षक पढ़ाते समय प्रमुख विषय पर ही केन्द्रित रहे विभिन्न विषयों में भटकता न रह जाये।

(4) सामान्य स्रोत से तात्पर्य यह कि शिक्षक को एक सामान्य पृष्ठभूमि की पहचान होनी चाहिये जो विद्यार्थी समझ सके यह सामान्य भाषा हो सकती है साथ ही शिक्षक को छात्रों के मानसिक स्तर के अनुसार ही अपना संदेश प्रसारित करना चाहिये।

(5) समय का सिद्धान्त बताता है कि संप्रेषण समय के अनुरूप होना चाहिये उदाहरण के लिये वर्षा ऋतु के समय वर्षा के बारे में पढ़ाना उसे प्रभावशाली बनायेगा क्योंकि विद्यार्थी के दैनिक अनुभव में वर्षा ऋतु होने पर उससे संबंधित संदेश वह आसानी से ग्रहण कर पायेगा।

(6) अधिगमकर्ता की स्थिति के अंतर्गत भौतिक वातावरण जैसे कमरा प्रकाश हवा युक्त, उचित फर्नीचर के अतिरिक्त उसकी मानसिक स्थिति का प्रेरणा पूर्ण होना आवश्यक है।

(7) श्रवण कौशल का संप्रेषण के अंतर्गत बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है कहा भी गया है कि श्रवण एक कला है अतः प्रेषक को श्रवण कला की युक्तियों की जानकारी होनी चाहिए साथ ही संप्रेषण के दौरान उसका उपयोग करना चाहिये।

(8) पृष्ठ पोषण संप्रेषण के अंतर्गत यह आवश्यक है कि प्रेषक या स्रोत, पृष्ठपोषण हेतु अपने छात्रों या ग्रहणकर्ता को पर्याप्त स्वतंत्रता प्रदान करे जिससे ग्रहणकर्ता अपनी प्रतिक्रिया बेझिझक संप्रेषित कर सके। तभी स्रपेषण प्रभावशाली होगा।

(9) कम बिचौलियों का सिद्धान्त यह दर्शाता है कि स्रोत या प्रेषक एवं ग्रहणकर्ता या विद्यार्थी के बीच संप्रेषण के दौरान एक दूसरे के साथ प्रत्यक्ष संबंध हो तो संदेश भी सही एवं प्रभावशाली ढंग से पहुँचता है।

परन्तु यदि दोनों के बीच यदि कुछ बिचौलिये आ जायें तो संदेश का पूरी तरह से विकत रूप ग्रहणकर्ता तक पहुंचता है। इससे संबंधी एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग भी है जिसमें यह सिद्ध किया जा चुका है कि बिचौलियाँ की अधिक संख्या, स्रोत ये संदेश को ग्रहणकर्ता तक विकृति के रूप में ही पहुँचती है।

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(10) विश्वास एवं आत्म विश्वास का सिद्धान्त यह बताता है प्रेषक या स्रोत के प्रति, ग्रहण कर्ता का विश्वास होना चाहिये कि संदेश का स्रोत या प्रेषक सही है। दूसरी ओर प्रेषक में स्रोत के प्रति संदेश के प्रति आत्मविश्वास होना आवश्यक है जिससे वह प्रभावपूर्ण ढंग से संप्रेषण कर सके।

एक संप्रेषक के रूप में प्रभावशाली संप्रेषक की छवि

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दैनिक भाषा संप्रेषण क्या है?

संकेत भाषा तथा लेखन को सामान्यतः शाब्दिक संप्रेषण का रूप माना जाता है क्योंकि दोनों में शब्दों का इस्तेमाल होता है - यद्यपि वाणी की तरह दोनों में पैराभाषीय तत्व हो सकते हैं एवं जो प्रायः अशाब्दिक संदेशों में दिखलायी देते हैं। अशाब्दिक संप्रेषण किसी भी < माध्यम द्वारा हो सकता है।

संप्रेषण से आप क्या समझते हैं?

संप्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच मौखिक, लिखित, सांकेतिक या प्रतिकात्मक माध्यम से विचार एवं सूचनाओं के प्रेषण की प्रक्रिया है। संप्रेषण हेतु सन्देश का होना आवश्यक है। संप्रेषण में पहला पक्ष प्रेषक (सन्देश भेजने वाला) तथा दूसरा पक्ष प्रेषणी (सन्देश प्राप्तकर्ता) होता है।

दैहिक भाषा सम्प्रेषण से आप क्या समझते हैं इसके लाभ तथा हानियों को समझाइए?

' शारीरिक अभिव्यक्तियाँ उस व्यक्ति के बारे में बहुत सी बातें प्रकट करती हैं जो उनका उपयोग कर रहा है। उदाहरण के लिए, इशारों द्वारा किसी खास बिंदु पर बल दिया जा सकता है या एक संदेश को आगे बढाया जा सकता है, आसन संचार में आपकी ऊब या रुचि को प्रदर्शित कर सकता है और स्पर्श प्रोत्साहन या चेतावनी जैसे भाव प्रकट कर सकता है।

संप्रेषण क्या है और उसके प्रकार?

सम्प्रेषण प्रक्रिया में प्रेषक अनेक संकेतों द्वारा, अपने हाव-भावों द्वारा, अपनी भाषा द्वारा संदेश को प्राप्तकर्ता तक पहुँचाने का प्रयास करता है। प्राप्तकर्ता लिखित संकेतों को पढ़ता है तथा मौखिक संकेतों को सुनता है, उन्हें समझने एवं उन पर अमल करने का प्रयास भी करता है। संदेश भेजने का माध्यम कुछ भी हो सकता है।