कमल किशोर कुंभकार Show
आस-पास स्कूली मैदान के एक कोने पर खेत की बागड़ है। एक दिन सुबह-सुबह घूमते हुए मैं इस कोने तक जा पहुंचा। इस कोने के पास पिछले कुछ दिनों से टिटहरी अक्सर दिखाई दे जाती थी। मेरे उस कोने के आस-पास पहुंचते ही टिटहरी ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी। मैंने उसकी चिल्ला-चोट को नज़रअंदाज़ कर दिया। थोड़ी देर बाद दो-तीन टिटहरी आकर मेरे इर्द-गिर्द मंडराने लगीं। इस अप्रत्याशित व्यवहार से मेरे होश फाख्ता हो गए और मैं उल्टे पांव भागा। यह सब देखकर विद्यालय के चौकीदार ने बताया कि मैं टिटहरी के अंडों तक पहुंच गया था, इसलिए ये सब हुआ। टिटहरी के अंडे! लेकिन वहां तो मुझे अंडे दिखाई भी नहीं दिए थे। इतना जानने के बाद मेरे अंदर का शोधार्थी जाग उठा, मैं अपना कैमरा लेकर चौकीदार के साथ टिटहरी से बचते-बचाते अंडों तक पहुंचा। शुरुआत में तो ज़मीन पर पड़े अंडे मुझे दिखे ही नहीं और दिखाई भी दिए तो ऐसे कि ज़मीन, सरकंडे और अंडे तीनों आपस में घुल
मिल गए थे। थोड़ी देर बाद तीन अंडे दिखाई दिए। इसके कुछ दिन बाद मुझे एक टिटहरी के पीछे चहल-कदमी करते तीन बच्चे दिखाई दिए, जो अभी भी उड़ नहीं पा रहे थे। मैं उन्हें काफी पास से देखना चाहता था। लेकिन जैसे ही मैं थोड़ा करीब पहुंचा, टिटहरी उड़कर दूर बैठ गई और बच्चे भी गायब। मुझे समझ नहीं आया कि इतने छोटे बच्चे जो ठीक से चल भी नहीं पाते थे आखिर गए तो कहां गए। ऐसा लगभग तीन बार हुआ। अपनी पढ़ाई के दौरान मैंने जंतु-व्यवहार एवं मिमिक्री के बारे में पढ़ा था कि विभिन्न जीव-जंतु अपनी रक्षा के लिए मिट्टी, कीट, पत्ते, इत्यादि की नकल करते हैं। ऐसी ही दसियों रोचक बातें पढ़ने को मिलती हैं,परंतु किसी भी घटना के प्रत्यक्ष अवलोकन का आनंद कितना रोमांचकारी होता है यह टिटहरी के बच्चों की लुका-छिपी के बाद ही जान पाया। कमल किशोर कुंभकार: उज्जैन में पढ़ाते हैं। विज्ञान लेखन में रुचि।
टिटहरी (अंग्रेज़ी:Sandpiper, संस्कृत : टिट्टिभ) मध्यम आकार के जलचर पक्षी होते हैं, जिनका सिर गोल, गर्दन व चोंच छोटी और पैर लंबे होते हैं। जीववैज्ञानिक रूप से इसकी जातियाँ स्कोलोपसिडाए (Scolopacidae) नामक कुल में संगठित हैं। यह प्राय: जलाशयों के समीप रहती है। इसे कुररी भी कहते हैं। नर अपनी मादा को हवाई करतबों से रिझाता है, जिनमें उड़ान के बीच में द्रुत चढ़ाव, पलटे और चक्कर होते है। यह तेज़ चक्करों, हिचकोलों और लुढ़कन भरी उड़ान है, जिसमें कुछ अंतराल पर पंख फड़फड़ाने की ऊंची दूर तक सुनाई देती है। ये धरती पर मामूली सा खोदकर अथवा थोड़े से कंकरों और बालू से घिरे गढ्डे में घोंसला बनाते हैं। इनका प्रजनन बरसात के समय मार्च से अगस्त के दौरान होता है। ये सामान्यत: दो से पांच नाशपाती के आकार के (पृष्ठभूमि से बिल्कुल मिलते-जुलते, पत्थर के रंग के हल्के पीले पर स्लेटी-भूरे, गहरे भूरे या बैंगनी धब्बों वाले) अंडे देती हैं। और यह पेड़ पर नही बैठते है।[1] वर्गीकरण[संपादित करें]Sandpipers, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के रोबक खाड़ी में गैर प्रजनन के मौसम के दौरान टिटहरियाँ टिटहरी का एक बृहद परिवार है विश्व में। इस बड़े परिवार को अक्सर कई पक्षियों के समूहों में विभाजित किया जाता रहा है। इन समूह आवश्यक रूप से एक ही जाति में शामिल नहीं है, अपितु वे अलग मोनोफाईलेटिक विकासवादी प्रजातियों और सम्मोहों में वर्गीकृत है।[2]यहाँ उसके कई रूपों को प्रस्तुत किया जा रहा है :
जीनस न्यूमेनियस (8 प्रजाति, जो 1-2 हाल ही में विलुप्त)
जीनस बर्ट्रमिया (मोनोटाईपीक)
जीनस लिमोसा (4 प्रजाति)
जीनस लिम्नोड्रोमस (3 प्रजाति)
पीढ़ी और एस्कोलोपैक्स (लगभग 30 प्रजातियों के अलावा कुछ 6 विलुप्त)
जीनस फलारोप्स (3 प्रजाति)
जनेरा, जीनस, एक्टिटिस और त्रिंगा अब काइटोप्ट्रोफोरस तथा हेटरोसेल्स (16 प्रजातियों) भी शामिल है जो
जीनस प्रोसीओबेनिया (1 वर्तमान प्रजातियों, 3-5 विलुप्त)
ज्यादातर कई पीढ़ियों में विभाजित किया जा सकता है जो कैलिड्रिस में लगभग 25 प्रजातियों. वर्तमान में स्वीकार अन्य पीढ़ी : एरेनारिया टर्नस्टोन्स -2 के अलावा, अफरिजा, यूरिनोर्हिंचास, लिमिकोला, त्रिंगिट्स और फिलोमेचस हैं।[3] इसी प्रकार दक्षिण एशिया में नौ प्रकार की टिटहरियाँ पायी जाती है :
लाल और पीले गलचर्म वाली टिटहरी काफी आम है और बहुतायात में पायी जाती है। लाल गलचर्म वाली टिटहरी की आँखों के आगे लाल मांसल तह होती है, जबकि पीले रंग की टिटहरी की आँखों के सामने चमकीले पीले रंग की मांसल तह और काली टोपी होती है। मादा टिटहरियों का कद नर की तुलना मे छोटा और रंग फीका होता है। प्रवृतियाँ[संपादित करें]चार अंडों के साथ टिटहरी का घोसला टिटहरियाँ बाहरी आक्रमण के प्रति निरंतर सजग रहती हैं और ख़तरा भांपते ही शोर मचाती हैं। लाल गलचर्म वाली टिटहरी का शोर सबसे अधिक तेज़ व वेधक होता है। टिटहरियाँ आक्रांता पर झपट पड़ती हैं और विशेष तौर पर घोंसला क़रीब होने पर उनके चारों तरफ उत्तेजित होकर चक्कर लगाती हैं। नवजातों को शिकारियों की नज़र से बचाने के लिए छद्म आवरण में रखा जाता है। किसी भी शिकारी के आने पर माता-पिता चूज़ों को मरने का स्वांग करने का संकेत देते हैं। यही तकनीक लोमड़ी जैसे अन्य पशु भी अपनाते हैं। उभरे हुए पंखों वाली टिटहरी के मगरमच्छ के खुले जबड़े के भीतर प्रवेश करने के प्रसंग विवादास्पद हैं, लेकिन हो सकता है कि ये मगर के दांतों और मसूड़ों से जोंक निकालती हों, लेकिन इन्हें कभी भी मुंह के भीतर घुसते हुए नहीं देखा गया है और मगरमच्छ के जबड़ों के पास या भीतर झुका हुआ कम ही पाया गया है। ये चीख़ मारकर मगरमच्छ को शिकारी के आगमन से आगाह करती है। दलदल और खुले मैदानों के लुप्त होने, चूजों, अंडों को खाए जाने, शिकारी व जाल में फंसाने तथा कीटनाशकों व प्रदूषण के कारण टिटहरी विलुप्तप्राय प्रजाति बन गई है। टिटहरी के पर्यावास को बचाने के लिए और अन्य जलपक्षियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रेखाकिंत करने के लिए संरक्षणवादी प्रयास कर रहे हैं। इसके बारे मे सबसे रोचक बात ये हे की ये कभी भी पेड़ पर नहीं बैठती हे निवास स्थान[संपादित करें]टिटहरियाँ पानी और खेतों के आसपास खुले और सूखे समतल इलाकों, ताजे पानी की दलदल, झीलों के दलदली किनारों, जुते खेतों तथा रेतीले या कंकरीले नदी के तटों में भी पाई जाती हैं। पीले गलचर्म वाली और झुंड में रहने वाली टिटहरियाँ शुष्क आवास पसंद करती हैं, जबकि लाल गलचर्म वाली टिटहरियाँ पानी से निकटता और उभरे पंख वाली टिटहरी या तटीय टिटहरी, जलासिक्त क्षेत्र में ही रहती है। इस श्रेणी के जलचर पक्षियों के शारीर और पैर लम्बे, एवं पंख संकीर्ण होते हैं। अधिकांश प्रजातियों के चोंच संकीर्ण होते है, लेकिन उनके आकार और लम्बाई में काफी विविधता होती है। सफ़ेद पूंछ वाली टिटहरी (प्रजनन बलूचिस्तान में), झुंड में रहने वाली व धूसर सिर वाली और यूरोप तथा मध्य एशिया की उत्तरी टिटहरी शीत ॠतु में प्रवास के लिए दक्षिण एशिया में आती हैं, जबकि अन्य टिटहरियाँ यहीं की मूल निवासी हैं। वर्गीकरण विशेषज्ञ उभरे हुए पंख की टिटहरी को तेज़ दौड़ लगाने वालों की श्रेणी में रखते हैं। भोजन[संपादित करें]भोजन की तलाश में टिटहरियाँ छोटी-छोटी दौड़ भरती हैं, रुककर, सीधी खड़ी हो जाती हैं और फिर झुककर शिकार चोंच में ले जाती हैं, इनकी उड़ान तेज़, शक्तिशाली, सीधी और सधी हुई होती है। इनके भोजन में मोलस्क, कीड़े कृमियों और अन्य छोटे रीढ़हीन जंतुओं के साथ-साथ नरम कीचड़ से बनी हुई वनस्पतियाँ भी होती हैं।[4] वीथिका[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
टिटहरी घर में आने से क्या होता है?ऐसी मान्यता है कि टिटहरी जिस दिन पेड़ पर या किसी के घर में अचानक से रहने लगे तो कही से भूकंप आने के संकेत मिलते हैं। क्योंकि टिटहरी हमेशा जमीन पर ही रहती है। और जमीन पर ही अपने अंडे देती है। इनका घर में अचानक बैठना अच्छा संकेत नहीं होता है।
टिटहरी का बोलना क्या संकेत देता है?कहते हैं कि जब टिटहरी झुंड गोल घेरे में चक्कर लगाते हुए आवाज करता है तब किसी दुखद घटना का संदेश होता है।
टिटहरी क्यों बोलती है?टिटहरी बाहरी आक्रमणों के प्रति अत्यंत सजग रहने वाली चिड़िया होती है। जो खतरा महसूस होते ही तीव्र ध्वनि के साथ शोर मचाती है। टिटहरी की आवाज तेज और वेधक होती हैं। मातृत्व शक्ति और निडरता से भरी है मनमौजी चिड़िया एक ऐसा अनोखा पक्षी है जो उड़ता कम है और अपना अधिकांश समय जमीन पर बिताता है।
टिटहरी अपने बच्चों की रक्षा कैसे करती है?पहले की तरह ही टिटहरी उड़कर दूर बैठ गई और तीनों बच्चे अपनी-अपनी जगह दुबक कर बैठ गए। पर वे मेरी नज़र से बच नहीं पाए थे। उनको देखने से ऐसा लगा कि वे किसी पत्थर या मिट्टी के टुकड़े हों। एक बच्चा मिट्टी में छुपकर मिट्टी जैसा हो गया, दूसरा गाजर घास और सरकंडों के बीच अपने को छुपा गया।
टिटहरी के अंडे में से बच्चे कितने दिन में निकलते हैं?20-21 दिनों में पूरी होती है प्रॉसेस...
अंडे के अंदर शुरुआत में पीले रंग की जर्दी लिक्विड में मौजूद होती है, जो कुछ दिनों में धीरे-धीरे लाल रंग में बदलते जाती है। यही जर्दी आगे जाकर चूजे का रूप लेती है और फिर 21 वें दिन अंडे के अंदर से चूजे बाहर निकलते हैं।
टटीरी क्या है?टिटहरी (अंग्रेज़ी:Sandpiper, संस्कृत : टिट्टिभ) मध्यम आकार के जलचर पक्षी होते हैं, जिनका सिर गोल, गर्दन व चोंच छोटी और पैर लंबे होते हैं। जीववैज्ञानिक रूप से इसकी जातियाँ स्कोलोपसिडाए (Scolopacidae) नामक कुल में संगठित हैं। यह प्राय: जलाशयों के समीप रहती है।
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