आज के समय में तनाव (stress) लोगों के लिए बहुत ही सामान्य अनुभव बन चुका है, जो कि अधिसंख्य दैहिक और मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं द्वारा व्यक्त होता है। तनाव की पारंपरिक परिभाषा दैहिक प्रतिक्रिया पर केंद्रित है। हैंस शैले ( Hans Selye) ने 'तनाव' (स्ट्रेस) शब्द को खोजा और इसकी परिभाषा शरीर की किसी भी आवश्यकता के आधार पर अनिश्चित प्रतिक्रिया के रूप में की। हैंस शैले की पारिभाषा का आधार दैहिक है और यह हारमोन्स की क्रियाओं को अधिक महत्व देती है, जो ऐड्रिनल और अन्य ग्रन्थियों द्वारा स्रवित होते हैं। Show
शैले ने दो प्रकार के तनावों की संकल्पना की-
तनाव पर नवीन उपागम व्यक्ति को उपलब्ध समायोजी संसाधानों के सम्बन्ध में स्थिति के मूल्यांकन एवं व्याख्या की भूमिका पर केंद्रित है। मूल्यांकन और समायोजन की अन्योन्याश्रित प्रक्रियायें व्यक्ति के वातावरण एवं उसके अनुकूलन के बीच सम्बन्ध निर्धारण करती है। अनुकूलन वह प्रक्रिया है जिस के द्वारा व्यक्ति दैहिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक हित के इष्टतम स्तर को बनाए रखने के लिए अपने आसपास की स्थितियाँ एवं वातावरण को व्यवस्थित करता है। तनाव के कारक[संपादित करें]वातावरण की कोई घटना या कोई बात जो तनाव उत्पन्न कर सकती है उसे 'तनाव का कारक' कहा जाता है जैसे बहुत ज्यादा कार्यभार, भूकंप से हुई तबाही इत्यादि। तनाव के कारकों को व्यापक रूप से निम्नलिखित वर्गों में व्यवस्थित किया जा सकता है।
तनाव कारकों के प्रति साधारण प्रतिक्रियाएं[संपादित करें]तनाव के कारकों के प्रति हमारी प्रतिक्रियाओं को न्यून संवेदना से लेकर गम्भीर व्यवहारात्मक परिवर्तनों की व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। ये प्रतिक्रियाएं निम्नलिखित वर्गों में श्रेणीबद्व की गई हैं :- व्यवहारात्मक प्रतिक्रियाएं[संपादित करें]
अदर अदर दील जलना
भावनात्मक प्रतिक्रियाए[संपादित करें]
संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाएं[संपादित करें]
अंतरवैयक्तिक प्रतिक्रियाएं[संपादित करें]
जैविक प्रतिक्रियाएं[संपादित करें]
कल्पनात्मक : इनकी कल्पना[संपादित करें]
द्वन्द्व और निराशा के प्रकार[संपादित करें]जब कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में रुकावटों का सामना करता है तो वह तनावग्रस्त हो जाता है। यह अक्सर व्यक्ति में द्वन्द्व और निराशा की भावना पैदा करता है। प्रबल निराशा मिलने के कारण यह द्वन्द्व और भी तनावपूर्ण हो जाता है। आमतौर पर व्यक्ति द्वन्द्व में तब पड़ जाता है जब वह परस्पर विरोधी स्थिति का सामना करता है। उद्देश्य और परिस्थिति के स्वरूप पर निर्भर व्यक्ति जीवन में तीन प्रकार के द्वन्द्वों का सामना करता है।
प्रस्ताव-प्रस्ताव द्वन्द्व : इस तरह का द्वन्द्व तब उत्पन्न होता है जब किसी व्यक्ति को दो या अधिक वांछित उद्देश्यों में से चुनाव करना पड़ता है। इस तरह के द्वन्द्व में दोनों ही लक्ष्यों की प्राप्ति की चाहत होती है। उदाहरण के लिए, एक ही दिन में दो विवाहों के निमंत्रण में से किसी एक का चुनाव करना। परिहार-प्रस्ताव द्वन्द्व : इस तरह का द्वन्द्व तब उत्पन्न होता है जब किसी व्यक्ति को दो या अधिक अवांछित लक्ष्यों में चुनाव करना पड़ता है। इस तरह के द्वन्द्व को अक्सर 'एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई' वाली स्थिति कहा जाता है। जैसे कि कम शैक्षिक योग्यता वाले युवा को या तो बेरोजगारी का सामना करना पड़ेगा या फिर बहुत ही कम आय की अनचाही नौकरी को स्वीकार करना पड़ेगा। इस तरह का द्वन्द्व बहुत ही गम्भीर सामंजस्य की समस्याएं उत्पन्न करता है, क्योंकि द्वन्द्व का समाधान करने पर भी चैन की बजाय निराशा ही उत्पन्न होगी। प्रस्ताव-परिहार द्वन्द्व : इस तरह के द्वन्द्व में किसी व्यक्ति में समान उद्देश्य का चुनाव करने एवं उसे नकारने दोनों के प्रति प्रबल रूझान होता है। जैसे कि एक युवा सामाजिक और सुरक्षा कारणों से विवाह करना चाहता है लेकिन उसी स्थिति में वह विवाह की जिम्मेदारियों और निजी स्वतंत्रता के खत्म हो जाने का भय भी रखता है। ऐसे द्वन्द्व का समाधान लक्ष्य के कुछ नकरात्मक और सकरात्मक पहलुओं को स्वीकृत करने से ही सम्भव है। बहुसंख्यक विकल्पों के होने के कारण कभी-कभी प्रस्ताव-परिहार द्वन्द्व को "मिश्रित-अनुग्रह" द्वन्द्वों के संदर्भ में भी देखा जाता है। कुंठा : (देखें, कुण्ठा) कुंठा एक प्रयोगात्मक अवस्था है जो कि कुछ कारणों के परिणामस्वरूप होती है जैसे
अवरोध व बाधाएं भौतिक एवं सामाजिक दोनों प्रकार की हो सकती हैं और ये व्यक्ति में निराशा या कुंठा का भाव उत्पन्न करती हैं। इस में दुर्घटना, अस्वस्थ अंतरवैयक्तिक संबंध, प्रिय की मृत्यु हो जाना। व्यक्तिगत् अभिलक्षण जैसे शारीरिक विकलांगता, अपूर्ण योग्यता और आत्मानुशासन का अभाव भी कुंठा की जड़ है। कुछ साधारण कुंठाएं हैं जो अक्सर कुछ निश्चित मुश्किलों का कारण बन जाती है। इनमें वांछित लक्ष्य की प्राप्ति में विलम्ब, संसाधानों का अभाव, असफलता, हानि, अकेलापन और निरर्थकता सम्मिलित है। सन्दर्भ[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]इन्हें भी देखें[संपादित करें]
तनाव कितने प्रकार के होते हैं?तनाव कई प्रकार का हो सकता है, जो कि आपके दैनिक जीवन को प्रभावित कर सकता है. आइए जानते हैं कि स्ट्रेस के कौन-कौन से टाइप हैं.. एंटीसिपेट्री स्ट्रेस (Anticipatory Stress) ... . एनकाउंटर स्ट्रेस (Encounter Stress) ... . टाइम स्ट्रेस (Time Stress) ... . सिचुएशनल स्ट्रेस (Situational Stress). 3 तनाव क्या है?तनाव एक द्वन्द है, जो मन एवं भावनाओं में गहरी दरार पैदा करता है। तनाव अन्य अनेक मनोविकारों का प्रवेश द्वार है। उससे मन अशान्त, भावना अस्थिर एवं शरीर अस्वस्थता का अनुभव करते हैं। ऐसी स्थिति में हमारी कार्यक्षमता प्रभावित होती है और हमारी शारीरिक व मानसिक विकास यात्रा में व्यवधान आता है।
तनाव के दो स्रोत कौन है?तनाव दो प्रकार के होते हैं: यूस्ट्रेस ("सकारात्मक तनाव ") तथा डिस्ट्रेस (नकारात्मक तनाव), जिसका सामान्य अर्थ चुनौती तथा अधिक बोझ होता है।
तनाव के मुख्य कारण क्या है?तनाव की स्थिति तब होती है, जब हम दवाब लेने लगते हैं और जीवन के हर पहलू पर नकारात्मक रूप से सोचने लगते हैं। यह समस्या शारीरिक रूप से कमजोर करने के साथ-साथ भावनात्मक रूप से भी आहत करती है। इससे ग्रस्त व्यक्ति न तो ठीक से काम कर पाता है और न ही अपने जीवन का खुलकर आनंद उठा पाता है।
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