सरदार पटेल प्रधानमंत्री क्यों नहीं बने - saradaar patel pradhaanamantree kyon nahin bane

आजादी के बाद सरदार पटेल क्यों नहीं बन पाए प्रधानमंत्री? जानें पूरी कहानी

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अनिल कुमार

| नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: Aug 23, 2022, 6:32 AM

15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। यह इसलिए हुआ क्योंकि ब्रिटिश सरकार की तरफ से यह कैबिनेट मिशन प्लान था कि अंतरिम सरकार के तौर पर वॉयसराय की अध्यक्षता में एग्जिक्यूटिव काउंसिल बनेगी। कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष इस काउंसिल का वाइस प्रेसिडेंट बनेगा। आजादी के बाद इस वाइस प्रेसिडेंट का पीएम बनना तय था।

हाइलाइट्स

  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार ने 1946 में कैबिनेट मिशन प्लान बनाया था
  • इसके तहत अंतरिम सरकार के तौर पर वायसराय की एग्जिक्यूटिव काउंसिल बननी थी
  • एग्जिक्यूटिव काउंसिल का वाइस प्रेसिडेंट पर कांग्रेस के अध्यक्ष की नियुक्ति होनी थी

नई दिल्ली : 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। नेहरू प्रधानमंत्री कैसे बने? क्या उस समय पीएम पद के लिए नेहरू से बेहतर सरदार पटेल थे। अक्सर यह सवाल उठाया जाता है कि सरदार पटेल अगर देश के पहले प्रधानमंत्री होते तो आज देश की स्थिति कुछ और होती। क्या सरदार पटेल खुद प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते थे या सरदार पटेल को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया गया। उस समय महात्मा गांधी की प्रधानमंत्री चुने जाने में कोई भूमिका थी? ऐसे कई सवाल हैं जो कई दशकों से लोगों के मन में हैं और अक्सर अलग-अलग मौके पर उठते हैं।

1946 में ब्रिटिश सरकार का कैबिनेट मिशन का प्लान
1945 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म हुआ तो ब्रिटिश सरकार को यह समझ में आ गया था कि अब भारत को अधिक समय तक गुलाम बनाकर नहीं रखा जा सकता है। वहीं, आजादी के लिए आंदोलन में जुटे स्वतंत्रता संग्राम के नेता भी इस बात को समझ रहे थे कि अब लड़ाई बिल्कुल अंतिम चरण में ही है। ऐसे में ब्रिटिश हुकूमत ने 1946 में कैबिनेट मिशन का प्लान बनाया। इस कैबिनेट मिशन को इस तरह से समझा जा सकता है कि यह आजादी के बाद के सरकार की रूपरेखा था। अंग्रेज अधिकारियों को इस बात की जिम्मेदारी दी गई कि वे भारतीय नेताओं से मिलकर इस दिशा में बातचीत करें। इस तरह से देश में अंतरिम सरकार की रूपरेखा बननी तय हुई।
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कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनता प्रधानमंत्री
इसके तहत देश में वॉयसराय की एग्जिक्यूटिव काउंसिल बननी थी। अंग्रेज वॉयसराय को इसका अध्यक्ष होना था। दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष को इस काउंसिल का वाइस प्रेसिडेंट बनना था। उस समय यह भी लगभग तय था कि यह वाइस प्रेसिडेंट ही आगे चलकर भारत का प्रधानमंत्री बनेगा। जिस समय यह पूरी चर्चा और कवायद चल रही थी उस समय मौलाना अबुल कलाम आजाद कांग्रेस के अध्यक्ष थे। कलाम आजाद 1940 से ही इस पद पर बने हुए थे। महात्मा गांधी चाहते थे कि अबुल कलाम आजाद यह पद छोड़े लेकिन वह ऐसा नहीं करना चाहते थे। आखिरकार गांधी का दबाव काम आया और मौलाना अबुल कलाम आजाद ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ दिया।

1946 में कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक
इसके बाद कांग्रेस के नए अध्यक्ष की तलाश शुरू हुई। दूसरे शब्दों में कहें तो देश के भावी प्रधानमंत्री का चेहरा खोजा जा रहा था। अप्रैल 1946 में कांग्रेस कार्यसमिति की मीटिंग बुलाई गई। इस मीटिंग में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, खान अब्दुल गफ्फार खान, आचार्य जेबी कृपलानी, समेत अन्य दिग्गज नेता शामिल हुए। उस समय कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस कमेटियां करती थीं। खास बात थी कि किसी भी प्रांतीय कमेटी ने जवाहर लाल नेहरू के नाम का प्रस्ताव नहीं किया था। कांग्रेस की 15 प्रांतीय कमेटियों से 12 सरदार वल्लभ भाई पटेल के पक्ष में थीं। इसकी वजह थी कि सरदार पटेल की संगठन पर पकड़ काफी मजबूत थी। उस समय तीन कमेटियों ने जेबी कृपलानी और पी. सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया था। इससे एक बात तो साफ थी कि बहुमत पटेल के पक्ष में था।

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जवाहर लाल नेहरू के पक्ष में थे महात्मा गांधी
हालांकि, उस समय तक एक बात तो साफ हो चुकी थी कि महात्मा गांधी प्रधानमंत्री पद पर जवाहर लाल नेहरू को देखना चाहते थे। महात्मा गांधी ने जब मौलाना अबुल कलाम आजाद को कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ने को कहा था उस समय भी यह बात कही थी। बताया जाता है कि कांग्रेस की बैठक से पहले महात्मा गांधी ने मौलाना को पत्र में लिखा था, 'अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं जवाहर लाल को ही प्राथमिकता दूंगा। मेरे पास इसकी कई वजहें हैं। अभी उसकी चर्चा क्यों की जाए?' महात्मा गांधी के इस रुख के बावजूद नेहरू के नाम पर सहमति नहीं बनी। अंत में आर्चाय कृपलानी को यह कहना पड़ा कि मैं बापू की भावनाओं का सम्मान करते हुए जवाहर लाल नेहरू के नाम का प्रस्ताव करता हूं। इस बात के साथ ही उन्होंने एक कागज पर जवाहर लाल नेहरू का नाम लिखकर आगे बढ़ा दिया। कार्यसमिति के कई सदस्यों ने इस पर हस्ताक्षर किए। इस कागज पर सरदार पटेल ने भी हस्ताक्षर किया। बैठक में महासचिव जेबी कृपलानी ने एक और कागज पर सरदार पटेल से उम्मीदवारी वापस लेने का जिक्र किया। बैठक में जेबी कृपलानी ने सरदार पटेल से स्पष्ट रूप से कह दिया कि वह अपनी उम्मीदवारी वापस लें और जवाहर लाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष बनने दें। अंतिम तौर फैसला महात्मा गांधी पर छोड़ दिया गया। इसके बाद महात्मा गांधी ने नेहरू के नाम वाला कागज सरदार पटेल की तरफ हस्ताक्षर करने के लिए बढ़ा दिया। महात्मा गांधी के निर्णय का सम्मान करते हुए सरदार पटेल ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली।

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संगठन में सरदार तो जनता में लोकप्रिय थे नेहरू
राजमोहन गांधी अपनी किताब 'पटेल-ए लाइफ' में लिखा है कि कोई और वजह हो ना हो लेकिन इससे पटेल आहत जरूर हुए होंगे। वहीं, कार्यसमिति की बैठक में नेहरू के पक्ष में समर्थन नहीं होने का सवाल पूछने और उम्मीदवारी वापस लेने की बात से पटेल की चोट पर मलहम जरूर लगी होगी। दरअसल महात्मा गांधी को लगता था कि पंडित नेहरू के चुने जाने के बाद भी देश को सरदार पटेल की सेवाएं मिलती रहेंगी। जबकि पटेल के प्रधानमंत्री बनने के बाद से नेहरू उनके नेतृत्व में काम नहीं करेंगे। हालांकि, सरदार पटेल भी इस बात को मानते थे कि जवाहर लाल नेहरू लोकप्रियता के मामले में उनसे कहीं आगे थे। महात्मा गांधी ने उस समय के पत्रकार दुर्गा दास को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि जवाहर लाल नेहरू बतौर कांग्रेस अध्यक्ष अंग्रेजी हुकूमत से बेहतर तरीके से समझौता वार्ता कर सकते थे। गांधी जी को लगता था कि नेहरू अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व सरदार पटेल से बेहतर तरीके से कर पाएंगे। इस तरह से नेहरू के प्रधानमंत्री बनने की राह महात्मा गांधी की वजह से खुली थी। आजादी के बाद 15 अगस्त 1947 को सरदार पटेल को उप प्रधानमंत्री बनाया गया। पटेल के पास आजाद भारत के गृहमंत्रालय का भी जिम्मा दिया गया। उनके पास सूचना और प्रसारण मंत्रालय का भी प्रभार था। 15 दिसंबर 1950 को सरदार पटेल ने अंतिम सांस ली।

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गांधीजी ने सरदार वल्लभभाई पटेल को प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनाया?

इससे एक बात तो साफ थी कि बहुमत पटेल के पक्ष में था। हालांकि, उस समय तक एक बात तो साफ हो चुकी थी कि महात्मा गांधी प्रधानमंत्री पद पर जवाहर लाल नेहरू को देखना चाहते थे। महात्मा गांधी ने जब मौलाना अबुल कलाम आजाद को कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ने को कहा था उस समय भी यह बात कही थी।

1947 में नेहरू प्रधानमंत्री कैसे बने?

सन् १९४७ में भारत को आजादी मिलने पर जब भावी प्रधानमन्त्री के लिये कांग्रेस में मतदान हुआ तो सरदार पटेल को सर्वाधिक मत मिले। उसके बाद सर्वाधिक मत आचार्य कृपलानी को मिले थे। किन्तु गांधीजी के कहने पर सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी ने अपना नाम वापस ले लिया और जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमन्त्री बनाया गया।

सरदार पटेल की गिरफ्तारी का देश पर क्या असर?

सरदार पटेल की गिरफ्तारी का देश पर क्या असर हुआ ? उत्तरः सरदार पटेल की गिरफ्तारी से देश भर में प्रतिक्रिया हुई। दिल्ली में मदन मोहन मालवीय ने एक प्रस्ताव द्वारा इसके लिए सरकार की भत्र्सना की। प्रस्ताव के लिए अनेक नेताओं ने अपनी राय सदन में रखी तथा इसे अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर खतरा बताया गया।

सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश के लिए क्या किया?

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