समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है? - samaaj par kya prabhaav padata hai?

समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है? - samaaj par kya prabhaav padata hai?

समाज शिक्षा के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित करता है तो ठीक उसी प्रकार शिक्षा भी समाज को प्रत्येक पक्ष पर प्रभावित करती है, चाहे आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक स्वरूप हो।

शिक्षा व समाज का स्वरूप-शिक्षा का नया प्रारूप समाज के स्वरूप् को बदल देती है क्योंकि शिक्षा ही समाज में परिवर्तन का साधन है। समाज प्राचीनकाल से आत तक निरन्तर विकसित एवं परिवर्तित होता चला आ रहा है क्येांकि जैसे-जैसे शिक्षा का प्रचार-प्रसार होता गया इसने समाज में व्यक्तियों के प्रस्थिति, दृष्टिकोण, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाजों पर असर डाला और इससे सम्पूर्ण समाज का स्वरूप बदलता है l

शिक्षा व सामाजिक सुधार एवं प्रगति-शिक्षा समाज के व्यक्तियों को इस योग्य बनाती है कि वह समाज में व्याप्त समस्याओं, कुरीतियों ग़लत परम्पराओं के प्रति सचेत होकर उसकी आलोचना करते है और धीरे-धीरे समाज में परिवर्तन हेाता जाता है। शिक्षा समाज के प्रति लेागों को जागरूक बनाते हुये उसमें प्रगति का आधार बनाती है। जैसे शिक्षा पूर्व में वर्ग विशेष का अधिकार थी जिससे कि समाज का रूप व स्तर अलग तरीके का या अत्यधिक धार्मिक कट्टरता, रूढिवादिता एवं भेदभाव या कालान्तर में शिक्षा समाज के सभी वर्गों के लिये अनिवार्य बनी जिससे कि स्वतंत्रता के पश्चात् सामाजिक प्रगति एवं सुधार स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है। डयूवी ने लिखा है कि-शिक्षा में अनिश्चितता और अल्पतम साधनों द्वारा सामाजिक और संस्थागत उद्देश्यों के साथ-साथ, समाज के कल्याण, प्रगति और सुधार में रूचि का दूषित होना पाया जाता है।

समाज की रचना मनुष्य ने की है और समाज का आधार मानव क्रिया है ये-अन्त: क्रिया सदैव चलती रहेगी और शिक्षा की क्रिया के अन्तर्गत होती है इसीलिये शिक्षा व्यवस्था जहां समाज से प्रभावित हेाती है वहीं समाज को परिवर्तित भी करती है जैसे कि स्वतंत्रता के पश्चात् सबके लिये शिक्षा एवं समानता के लिये शिक्षा हमारे मुख्य लक्ष्य रहे हैं इससे शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ और समाज का पुराना ढांचा परिवर्तन होने लगा। आध्यात्मिक मूल्यों के स्थान पर भौतिक मूल्य अधिक लोकप्रिय हुआ। सादा जीवन उच्च विचार से अब हर वर्ग अपनी इच्छाओं के अनुरूप जीना चाहता है। शिक्षा ने जातिगत व लैंगिक असमानता को काफी हद तक दूर करने काप्रयास किया और ग्रामीण समाज अब शहरी समाजों में बदलने लगे और सामूहिक परिवारों का चलन कम हो रहा है। शिक्षा के द्वारा सामाजिक परिवर्तन और इसके द्वारा शिक्षा पर प्रभाव दोनों ही तथ्य पूर्णतः अपने स्थान पर स्पष्ट है।

हमरे जीवन में स्कूली शिक्षा का भी बहुत महत्त्व और प्रभाव होता है। एक बच्चा पारिवारिक परिवेश से समाज में विलेयता की ओर स्वंयम और समाज के उतथान की ओर एक कदम बढ़ाता है। पारिवारिक संस्कारो से युक्त होकर देश समाज की संस्कर्ति को सीखता है, प्रयोग करता है। समाज में सवयंम की हिस्सेदारी निर्धारित करने हेतु अनथक परिश्रम और समाज के प्रति संवेदनशीलता मुख्यता जीवन का उद्देश्य होना आरंभ हो जाता है। भारतीय संस्कृति में हमेशा से शिक्षा और शिक्षक का विशेष महत्त्व रहा है, माता-पिता की आज्ञा और अध्यापक के वचनो का सीधा प्रभाव केवल भारत देश में ही दिखाई प्रतीत होता है। अध्यापक द्वारा कहे गए वचन छात्र के लिए जीवन भर उत्साह और एक ऊर्जा का संचरण करते रहते है। ये भारत देश की संस्कृति ही है जहाँ अध्यापक के वचनो की सत्यता और महतत्व का माता-पिता द्वारा बनाये गए मानक भी पीछे होकर छात्र जीवन में बच्चे की प्राथमिकता पर आ जाते हैं। अतः शिक्षा और शिक्षक समाज का एक अभिन्न और महत्त्वपूर्ण अंग है जिसका दायित्व समाज की परिस्थितियों के अनुसार निर्धारित होता है।

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नशे का प्रभाव परिवार और समाज पर पड़ता है, इससे दूर रहें: डॉ. कलाधर

एजुकेशन रिपोर्टर | बिलासपुर

किसी एक व्यक्ति की नशे की लत से परिवार और समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है इसलिए किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहना ही इसका सर्वोत्तम इलाज है। कुछ बीमारियों का इलाज ही बचाव है, जबकि कुछ बीमारियों से बचाव ही उनका इलाज है। नशे की आदत को छोड़ने के लिए पीड़ित को ऐसे लोगों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहिए, जो नशा ना करते हों। साथ ही सकारात्मक विचार रखते हों। नशे की सामग्री व्यक्ति को पहले उत्तेजित करती है, लेकिन उसके पश्चात जैसे-जैसे आप उसकी गिरफ्त में आते जाते हैं, वो व्यक्ति को भीतर से नकारात्मक बनाती है। जिससे व्यक्ति के भीतर आत्मविश्वास कम होने लगता है, जीवन में निराशा का भाव आने लगता है। साथ ही चिड़चिड़ापन पैदा होता है, जो उसकी सफलता और जीवन के रोजमर्रा के कामों में बाधक बनता है। उक्त बातें बिलासपुर यूनिवर्सिटी के माइक्रोबॉयाेलॉजी के प्रोफेसर डॉ. कलाधर ने कही।

बीयू ने मंगलवार को शिक्षक, छात्र-छात्राओं को नशा नहीं करने के लिए जागरूक किया। यूनिवर्सिटी के शिक्षकों और छात्रों के लिए यह कार्यक्रम बिलासा सभागार में किया। बीयू में हुए कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सेंट्रल यूनिवर्सिटी के बॉटनी के प्रोफेसर एके दीक्षित और शिक्षा विभाग के प्रो. सुजीत मिश्रा थे। उन्होंने बताया कि नशा, नाश का द्वार है। उन्होंने कहा कि नशे की लत व्यक्ति को सबसे पहले परिवार से दूर करती है। साथ ही अपनी बुरी आदत की वजह से पीड़ित आर्थिक तंगी की दौर से गुजरता है, जिसकी वजह से उसमें नकारात्मक भाव पैदा होते है और समय के साथ उसके करीबी मित्र भी उसका साथ छोड़ देते हैं। इसके अलावा कॅरियर प्वाइंट और आंध्रा स्कूल के छात्रों को भी जागरूक किया गया। कॅरियर प्वाइंट के चेयरमैन किरणपाल सिंह चावला ने कहा कि काफी संख्या में युवा नशा कर रहे हैं। उन्हें जागरूक होना होगा। इसके लिए इस तरह कि जागरूकता कार्यक्रम हर क्षेत्र में करानी चाहिए। वहीं बीयू के एनएसएस अधिकारी डॉ. एएलएस चंदेल ने कहा कि गांव-गांव घर-घर में लोग व्यसनों से मुक्त हों इसके लिए हम सब कटिबद्ध हों। नशामुक्ति अभियान को जन आंदोलन का रूप दिया जाना आज जरूरी है। उन्होंने कहा कि नशा के सेवन से आज हर घर परिवार प्रभावित हैं तथा इसका सबसे बुरा प्रभाव भावी पीढ़ी पर पड़ रहा है। अगर एक परिवार में कोई एक व्यक्ति भी नशाखोरी करता है, तो सिर्फ वही प्रभावित नहीं होता है बल्कि इसका बुरा नतीजा पूरा परिवार भोगता है। इसी के तहत गौरव साहू, ममता साहू, डी. लक्ष्मी, एचएस शर्मा आदि ने अपना व्याख्यान दिया। बीयू के इस कार्यक्रम में 30 शिक्षकों और 250 छात्रों को जागरूक किया गया।

आंध्र स्कूल में छात्रों को किया गया जागरूक।