रंगोली पूरे देश में लोकप्रिय है और विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से जानी जाती है. वास्तव में भारत के प्रत्येक राज्यों में रांगोली की अपनी ही शैली है, डिजाइन चित्रण भी अलग-अलग होते हैं क्योंकि वे परंपराओं, लोककथाओं और प्रथाओं को प्रतिबिंबित करते हैं जो प्रत्येक क्षेत्र के लिए अद्वितीय हैं. आइये इस लेख के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार रंगोली के नाम और उसके महत्व के बारे में जानते हैं. Show कई अलग-अलग अनुष्ठानों का पालन भारत में शुभ संकेतों के
रूप में किया जाता है जैसे दीपावली में दीपक जलाना, घर के सामने में तुलसी वृक्ष का रोपण करना आदि. उनमें से एक रंगोली भी है. यह एक लोक-कला है और भारतीय संस्कृति को दर्शाती है. अधिकतर रंगोली मुख्य द्वार के फर्श पर बनाई जात है. रंगोली विभिन्न अवसरों जैसे दीपावली, विवाह, पूजा और कई अन्य जैसे त्योहारों पर हिंदू देवताओं और मेहमानों का स्वागत करने के लिए बनाई जाती है. भारतीय रंगोली को घर और परिवार के लिए शुभ और भाग्यशाली माना जाता है. Source: www.ebuild.in.com इस रंगोली को बनाने से पहले भिगोए हुए चावल को अच्छी तरह से पीस लिया जाता है फिर उसमें पानी मिलाकर गाड़ा घोल तैयार कर लिया जाता है जिसे ‘पिठार’ कहते है. जहां पर रंगोली बनाई जाती है वहां पर दिवार या आंगन को गोबर से लिप लिया जाता है और फिर महिलाएं पठार से अपनी उँगलियों की सहायता से चित्र बनाती है जिसे अरिपन कहते हैं. अलग-अलग उत्सव या त्यौहार के लिए विभिन्न प्रकार के अरिपन बनाए जाते है. 2. मांडना रंगोली- राजस्थान राजस्थान की लोक कला और चित्रकला मांडना है. इसे त्योहारों, मुख्य उत्सवों पर महिलाएं ज़मीन और दीवारों पर बनाती हैं. इसको ॠतुओं के आधार पर भी वर्गीकृत किया जाता है. इसे विभिन्न आकृतियों के आधार पर भी बांटा गया है जैसे कि चौका, मांडने की चतुर्भुज आकृति है जिसका समृद्धि के उत्सवों में विशेष महत्व है जबकि त्रिभुज, वृत्त एवं स्वास्तिक लगभग सभी पर्वों या उत्सवों में बनाए जाते है. Source: www. dsource.in.com मांडना की पारंपरिक आकृतियों में ज्यामितीय एवं पुष्प आकृतियों को लिया गया है. पुष्प आकृतियाँ ज्यादातर सामाजिक एवं धार्मिक विश्वास तथा जादू-टोने से जुड़ी हुई हैं जबकि ज्यामितीय आकृतियां तंत्र-मंत्र एवं तांत्रिक रहस्य से. इस चित्रकला को राजस्थान के लोग मिटटी के घर को सजाने में भी इस्तेमाल करते है. चुना या चाक के पेस्ट से डिजाईन को बनाया जाता है. शहरी घरों में भिन्नताएं मिलती हैं जो शीशों के टुकड़ो का भी उपयोग करते है, इस रंगोली को बनाने में. 3. अल्पना रंगोली- बंगाल अल्पना रंगोली बंगाल में प्रचलित है. यह आमतौर पर महिलाओं द्वारा की जाता है और यह कला पिछले अनुभवों के साथ-साथ समकालीन डिजाइनों के एकीकरण का प्रतिनिधित्व करती है. मौसम के बदलते रूपों के डिजाइनों में यह कला बहुत अच्छी तरह से परिलक्षित होती हैं. Source: www.i.ytimg.com इस कला का उपयोग धार्मिक और औपचारिक दोनों प्रयोजनों के लिए सालों से किया जा रहा है. आमतौर पर इसको ज़मीन पर किया जाता है. अल्पना पैटर्न पवित्र अनुष्ठानों का एक हिस्सा हैं और इन दिनों के दौरान ही बनाए जाते हैं. जब बंगाल में महिलाओं द्वारा व्रत रखा जाता है, तब इस कला को उस दौरान पूरे घर में और ज़मीन पर बनाया जाता है. परिपत्र अल्पना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस कला को देवता का पूजन करते समय उनके सिंहासन के रूप में बनाया जाता है, खासकर लक्ष्मी पूजा के दौरान. अल्पना डिजाइन को चावल पाउडर, पतला चावल का पेस्ट, पाउडर रंग (सूखे पत्तियों से उत्पादन), लकड़ी का कोयला आदि का उपयोग करके बनाया जाता है. मधुबनी पेंटिंग के बारे में 10 अज्ञात तथ्य Source: www.farm3.static.flickr.com कुमाइयों की यह कला, हिंदू देवताओं के प्रत्येक देवता का एक विशेष प्रतीक है और हर अवसर पर अलग-अलग तरह की ऐपण कला की मांग होती है. प्रत्येक ऐपण डिज़ाइन का एक विशिष्ट अर्थ होता है. 5. झोटी और चिता रंगोली – उड़ीसा झोटी या चिता परंपरागत उड़िया कला है जो कि ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय है. झोटी अन्य रंगोली से काफी अलग है. आमतौर पर रंगोली में रंगीन पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है परन्तु झोटी में पारंपरिक सफेद रंग, चावल या चावल का तरल पेस्ट का उपयोग करके लाइन कला शामिल होती है. उंगलियों को इस कला में ब्रश के रूप में उपयोग किया जाता है.
Source: www.globindian.files.wordpress.com केरल में रंगोली को कोलम कहते है. यह एक लोक कला है जो शुभअवसरों पर घर के फ़र्श को सजाने के लिए की जाती है. कोलम बनाने के लिए सूखे चावल के आटे को अँगूठे व तर्जनी के बीच रखकर एक निश्चित आकार में गिराया जाता है और धरती पर सुन्दर डिजाईन बन जाता है. कभी-कभी इस सजावट में फूलों का प्रयोग किया जाता है और इस रंगोली को पुकोलम कहते है. इसे ओणम पर्व के दौरान बनाया जाता है. पुरे सप्ताह चलने वाले ओणम के प्रत्येक दिन अलग –अलग रंगोली बनाई जाती है. रंगोली में उन फूलों का इस्तेमाल किया जाता है जिनकी पत्तियाँ जल्दी मुर्झाती नहीं है. इस्तेमाल में होने वाले फूलों में गुलाब, चमेली, गेंदा, आदि प्रमुख हैं. 7. मुग्गु रंगोली – आंध्र प्रदेश आंध्र प्रदेश में जो रंगोली की जाती है उसे मुग्गु कहते है. इस चित्रकला को बनाने के लिए महिलाएं गोबर से घर को लीपती है और इकसार कर लेती है ताकि इस कला का डिजाईन उभर कर आ सके. इस कला को चाक और कैल्शियम के पाउडर को मिलाकर किया जाता है. यह पाउडर थोड़ा मोटा होता है और गीली ज़मीन पर जब इस पाउडर से डिज़ाइन बनाया जाता है तो यह उस पर चिपक जाता है और बहुत सुंदर उभर कर आता है.
दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर के बारे में 10 आश्चर्यजनक तथ्य रंगोली कितने प्रकार की होती है?रंगोली दो प्रकार से बनाई जाती है। सूखी और गीली। दोनों में एक मुक्तहस्त से और दूसरी बिंदुओं को जोड़कर बनाई जाती है। बिंदुओं को जोड़कर बनाई जाने वाली रंगोली के लिए पहले सफेद रंग से जमीन पर किसी विशेष आकार में निश्चित बिंदु बनाए जाते हैं फिर उन बिंदुओं को मिलाते हुए एक सुंदर आकृति आकार ले लेती है।
रंगोली डिजाइन के कितने प्रकार हैं उनके नाम लिखो?क्षेत्रों के अनुसार रंगोली के विभिन्न नाम और उनके महत्व. अरिपन रंगोली – बिहार अरिपान बिहार की लोक चित्र कला है. ... . मांडना रंगोली- राजस्थान राजस्थान की लोक कला और चित्रकला मांडना है. ... . अल्पना रंगोली- बंगाल ... . ऐपण रंगोली – उत्तराखंड ... . झोटी और चिता रंगोली – उड़ीसा ... . कोलम रंगोली – केरल ... . मुग्गु रंगोली – आंध्र प्रदेश. रंगोली क्या है इन हिंदी?अल्पना भी एक संस्कृत शब्द 'अलेपना' से बना है। जिसका अर्थ है लीपना या लेपन करना। कहा जाता है कि रंगोली बनाने से सकारात्मक ऊर्जा अधिक पैदा होती है। देवी-देवताओं के स्वागत के लिए खासकर मां लक्ष्मी को घर में आगमन के लिए रंगोली मुख्य द्वार में बनाना शुभ माना जाता है।
रंगोली कब मनाई जाती है?दिवाली के दिन बनाई जाने वाली रंगोली को समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि घर के बाहर और भीतर बनाई जानेव वाली रंगोली मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए बनाई जाती है, जिससे आकर्षित होकर वो दोड़ी चली आती हैं.
|