परामर्श की आवश्यकता मनुष्य को सदैव से पड़ती रही है किन्तु परिवार एवं समाज के स्वरूप में परिवर्तन के साथ-साथ परामर्श के रुप में भी परिवर्तन हुआ है। पहले संयुक्त परिवार में व्यक्ति अपने परिवार के बुजुर्गों से परामर्श प्राप्त कर संतुष्ट हो जाता था। वर्तमान आर्थिक, प्रतिस्पर्धात्मक एवं गतिशील जटिल युग में व्यक्ति पारिवारिक सदस्य से परामर्श प्राप्त कर संतुष्ट नहीं होता, उसे प्रशिक्षित परामर्शदाता की आवश्यकता होती है। Show
परामर्श का अर्थपरामर्श शब्द अंग्रेजी के ‘counselling’ शब्द का हिन्दी रुपान्तर है, जो लैटिन के ‘Consilium’ से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है सलाह लेना या परामर्श लेना। अत: परामर्श एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें परामर्श प्रार्थी अपने से अधिक अनुभवी, योग्य व प्रशिक्षित व्यक्ति के पास जाकर पूछताछ, विचार-विमर्श, तर्क-वितर्क तथा विचारों का विनिमय करता है। इस प्रक्रिया के उपरान्त प्रार्थी समस्या समाधान योग्य होता है, उसका अधिकतम विकास होता है और वह अपना निर्णय स्वयं ले सकने योग्य हो जाता है। परामर्श की परिभाषाए0जे0जोन्स के अनुसार -’’परामर्श एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से एक छात्र व्यवहारों के सीखने अथवा परिवर्तन करने और विशिष्ट लक्ष्यों को स्थापित करने में व्यावसायिक रुप से प्रशिक्षित व्यक्ति के साथ कार्य करता है जिससे वह इन लक्ष्यों को प्राप्त करनें की दिशा में अधिकार रख सके।’’ रुथ स्ट्रांग के अनुसार - ‘‘परामर्श प्रक्रिया समस्या समाधान का सम्मिलित प्रयास है।’’ रॉबिन्सन के अनुसार- परामर्श शब्द दो व्यक्तियों के सम्पर्क की उन सभी स्थितियों का समावेश करता है जिनमें एक व्यक्ति को उसके स्वयं के एवं पर्यावरण के बीच अपेक्षाकृत प्रभावी समायोजन प्राप्त करने सहायता की जाती है। बरनार्ड तथा फुलमर के अनुसार - परामर्श को उस अन्तर-वैयक्तिक सम्बन्ध के रूप में देखा जा सकता है जिसमे वैयक्तिक तथा सामूहिक परामर्श के साथ-साथ वह कार्य भी सम्मिलित है जो अध्यापकों एवं अभिभावकों से संम्बंधित है और जो विशेष रूप से मानव सम्बन्धों के भावात्मक पक्षों को स्पष्ट करता है। कार्ल रोजर्स के अनुसार- परामर्श एक निश्चित रूप से निर्मित स्वीकृत सम्बन्ध है जो उपबोध्य को अपने को उस सीमा तक समझने में सहायता करता है जिसमें वह अपने ज्ञान के प्रकाश में विद्यात्मक कार्य में अग्रसर हो सकें। परामर्श के प्रकार
परामर्श के तत्वआर्बकल ने परामर्श की परिभाषाओं के आधार पर निष्कर्ष निकाले कि परामर्श के तीन तत्व मुख्य हैं।
इसी प्रकार विलियम कोटल ने परामर्श के तीन के स्थान पर पाँच तत्व बताये है
परामर्श की विशेषताएं
परामर्श के सिद्धांतपरामर्श एक निर्धारित रूप से संरचित स्वीकृत सम्बन्ध है जो परामर्श प्रार्थी को पर्याप्त मात्रा में स्वयं के समझने में सहायता देता है जिससे वह अपने नवीन ज्ञान के परिप्रेक्ष्य में ठोस कदम उठा सके। सिद्धांत की व्याख्या प्राय: किन्हीं दृष्टिगोचर व्यापार या घटनाओं के अन्तर्निहित नियमों अथवा दिखायी देने वाले सम्बन्धों के प्रतिपादनों के रूप में की जाती है जिनका एक निश्चित सीमा के अन्दर परीक्षण सम्भव है परामर्श के क्षेत्र में सैद्धान्तिक ज्ञान का विशद भण्डार है। परामर्शकर्ता के लिए इन सैद्धान्तिक आधारों का परिचय आवश्यक है। परामर्श के सिद्धान्तों को चार वगोर्ं में बॉटा जा सकता है-
1. प्रभाववर्ती सिद्धांतयह सिद्धांत मूलत: अस्तिववादी-मानववादी दर्शन की परम्परा से उत्पन्न हुआ है। इसमें उपबोध्य या परामर्शप्राथ्री को प्रभावपूर्ण ढंग से समझने पर विशेष बल दिया जाता है। यह उपागम, उपबोध्य को एक व्यक्ति के रूप में समझने पर, उसके बारे में जानने की अपेक्षा अधिक महत्व देता है। इसमें परामर्शदाता बाह्य वस्तुनिष्ठ परीक्षण की परिधि को लॉघकर उपबोध्य के आन्तरिक संसार में प्रवेश करने का प्रयत्न करता है। परामर्शदाता व्यक्ति से व्यक्ति के साक्षात्कार का वातावरण निर्मित करता है। उपबोध्य को एक व्यक्ति के रूप में समझने पर उसके बारे में जानने की अपेक्षा अधिक महत्व दिया जाता है। इस प्रकार उपागम के अन्तर्गत परामर्शदाजा बाह वस्तुनिष्ठ परीक्षण की परिधि लॉघकर, उपबोध्य के आन्तरिक वैषयिक संसार में प्रवेश का प्रयत्न करता है। मानवीय अन्त:क्रिया ही प्रभाववर्ती परामर्शदाता के लिए ध्यान का केन्द्र है। जिन्हें संक्षेप में निम्न रूप से व्यक्त किया जा सकता है।
2. व्यवहारवादी उपागमव्यवहारवादी उपागम उपबोध्य के अवलोकनीय व्यवहारों पर बल देते है। दूसरे शब्दों में व्यवहारवादी उपबोध्य के अनुभवों की अपेक्षा उसके व्यवहारों को जानने व समझने में अधिक रूचि रखते है। व्यवहारवादी समस्याग्रस्त व्यक्ति के लक्षणों पर अधिक ध्यान देते है। ये समस्याएं अधिकांशत: उपबोध्य द्वारा अपने व्यवहार करने के ढंग या असफल व्यवहार के कारण होती है। इस प्रकार व्यवहारवादी परामर्शदाता मुख्यत: क्रिया पर बल देते है। उनके अनुसार व्यक्ति अपने वातावरण के साथ प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप व्यवहारों को जन्म देता है। व्यक्ति जब उत्तरदायी रूप से व्यवहार करने में समर्थ नहीं हो पाते तो वे चिन्तित रहते हैं और बहुधा अनुपयुक्त व्यवहार करते करते है। इसके कारण उनमें आत्म पराजय का भाव जाग्रत होता है। 3. बोधात्मक सिद्धांतबोधात्मक सिद्धांत में यह स्वीकार किया जाता है कि संज्ञान या बोध व्यक्ति के संवेगों व व्यवहारों के सबसे प्रबल निर्धारक हैं। व्यक्ति जो सोचता है उसी के अनुसार अनुभव व व्यवहार करता है। बोधाध्मक सिद्धांत के अन्तर्गत कार्य सम्पादन विश्लेषण अत्यधिक प्रचलित विधा है। इसमें व्यवहार की समझ इस मान्यता पर निर्भर करती है कि सभी व्यक्ति अपने पर विश्वास करना सीख सकते हैं, अपने लिये चिन्तन या विचार कर सकते हैं, अपने निर्णय ले सकते हैं तथा अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने में समर्थ है। परामर्शदाता इसके अन्तर्गत परमर्श प्रार्थी को जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने व विकसित करने की क्षमता दृढ़ करने का सम्बल दान करता है। 4. व्यवस्थावादी विभिन्न-दर्शनग्राही प्रारूप उपागमव्यवस्थावादी उपागम की प्रमुख विशेषता परामर्श का विभिन्न चरणें में संयोजित होना है।
परामर्श की परिभाषा क्या है?किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत समस्याओं एवं कठिनाइयों को दूर करने के लिये दी जाने वाली सहायता, सलाह और मार्गदर्शन, परामर्श (Counseling) अथवा उपबोधन कहलाता है। परामर्श देने वाले व्यक्ति को परामर्शदाता (काउन्सलर) कहते हैं। निर्देशन (गाइडेंस) के अन्तर्गत परामर्श एक आयोजित विशिष्ट सेवा है। यह एक सहयाेगी प्रक्रिया है।
परामर्श का क्या महत्व है?परामर्श की आवश्यकता
छात्र को उसी सफलता के महत्व के विषयों की जानकारी प्रदान करना। छात्र की शैक्षिक एवं व्यावसायिक चयन की योजना निर्माण में सहायता करना। शैक्षिक उद्धेश्य की पूर्ति यथोचित प्रयास करने की प्रेरणा छात्र को देना। छात्रों में, विशिष्ट योग्यताओं एवं सही दृष्टिकोणों को प्रोत्साहित तथा विकसित करना।
परामर्श से आप क्या समझते हैं परामर्श के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए?परामर्श का अर्थ / परामर्श किसे कहते हैं
अन्य शब्दों में परामर्शदाता परामर्श चाहने वाले व्यक्ति की समस्या या कठिनाई को समझने का प्रयास करता है तथा उससे विचारों का आदान-प्रदान करके उसकी समस्या का समाधान करने में सहायता प्रदान करता है। इस प्रकार की सहायता ही परामर्श कहलाती है।
परामर्श क्या है और इसके उद्देश्य?परामर्श का उद्देश्य छात्रों को अपनी समस्याओं का समाधान करने में इस प्रकार सहायता देने के अवसर प्रदान करना है, जिससे कि किसी प्रकार की सहायता के बिना समस्याओं का समाधान करने की उनकी योग्यता का विकास हो जाए।
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