प्रारम्भ में रेलवे का विकास नहीं हुआ था। उस समय नहरों का उपयोग सिंचाई के साथ-साथ मालवाहन के लिए भी किया जाता था। इंग्लैण्ड में कोयला नहरों के रास्ते ले जाया जाता था। नहरों के रास्ते माल ढोना सस्ता पड़ता था और समय भी कम लगता था। समय के साथ नहरों के रास्ते परिवहन में अनेक समस्याएँ दिखाई देनी लगी। नहरों के कुछ भागों में जलपोतों की अधिक संख्या के कारण परिवहन की गति धीमी पड़ गई। बाढ़ या सूखे के कारण इनके उपयोग का समय भी सीमित हो गया ऐसे में रेलमार्ग ही परिवहन का सुविधाजनक विकल्प दिखाई देने लगा। Rajasthan Board RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति Important Questions and Answers. RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 9 औद्योगिक क्रांतिवस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. अति लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7.
प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34. प्रश्न 35. प्रश्न 36. प्रश्न 37. प्रश्न 38. प्रश्न 39. प्रश्न 40. प्रश्न 41. प्रश्न 42. प्रश्न 43. प्रश्न 44. प्रश्न 45. प्रश्न 46. प्रश्न 47. प्रश्न 48. प्रश्न 49.
प्रश्न 50. प्रश्न 51. प्रश्न 52. प्रश्न 53. प्रश्न 54.
प्रश्न 55. प्रश्न 56. प्रश्न 57. प्रश्न 58. प्रश्न 59. प्रश्न 60. प्रश्न 61. लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA) प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4.
दूसरे शब्दों में, सम्पूर्ण राज्य में एक ही कानून, एक ही मुद्रा प्रणाली और एक ही व्यापार व्यवस्था थी। प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7.
प्रश्न 8.
प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. (2) अधिक उद्योगों के कारण मजदूरों की माँग बढ़ने लगी थी किन्तु मशीनों के आविष्कारों ने मजदूरी कम कर दी। अतः महिलाओं और बच्चों को भी घर का खर्च चलाने में सहयोग देने हेतु काम करना पड़ा। किन्तु उनकी मजदूरी पुरुषों की अपेक्षा कम थी, जबकि उनसे काम अधिक लिया जाता था। प्रश्न 18.
प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA) प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न
3. 18वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में एक कृषि क्रांति हुई, जिसमें बड़े जमींदारों ने छोटे किसानों की जमीन और सार्वजनिक जमीनों पर कब्जा कर लिया। परिणामस्वरूप उत्पादन बढ़ा किन्तु भूमिहीन, चरवाहों एवं पशुपालकों को रोजगार की तलाश में नगरों की ओर जाना पड़ा। इंग्लैण्ड सौभाग्यशाली था कि वहाँ उद्योगों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थी। इंग्लैण्ड में ही भाप की शक्ति का पता चला और उनके पास पर्याप्त भाप शक्ति थी। इसके अलावा नए-नए आविष्कारों के होने से ब्रिटेन में ही सर्वप्रथम औद्योगिक क्रांति हुई। प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. अब लोहे से अनेकानेक उत्पाद बनाना संभव हो गया था। 1770 ई. के दशक में जोन विल्किनसन ने सर्वप्रथम लोहे की कुर्सियाँ, आसव और शराब की भट्टियों के लिए टंकियाँ और लोहे की नलियाँ (पाइप) बनाईं। 1779 ई. में तृतीय डर्बी ने विश्व में पहला लोहे का पुल कोलब्रुकडेल में सेवन नदी पर बनाया। विल्किनसन ने पेरिस को पानी की आपूर्ति के लिए 40 मील लम्बी पानी की पाइप लाइन पहली बार ढलवाँ लोहे से बनाई। इसके बाद लौह उद्योग कुछ विशेष क्षेत्रों में कोयला खनन और लोहा प्रगलन की मिली-जुली इकाइयों के रूप में केन्द्रित हो गया। सन् 1800 ई. से 1830 ई. की अवधि के दौरान ब्रिटेन के लौह उद्योग ने अपने उत्पादन में चौगुनी वृद्धि की। प्रश्न 8. प्रश्न 9.
इसके लिए ब्रिटेन के पास अपने उपनिवेश होना आवश्यक थे ताकि वह इन उपनिवेशों से कच्चा कपास प्रचुर मात्रा में मँगा सके और फिर ब्रिटेन में उससे कपड़ा बनाकर तैयार माल को उन्हीं उपनिवेशों के बाजारों में बेच सके। प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13.
प्रश्न
14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. यह मशीनों और उन लम्बी गगनचुम्बी चिमनियों का शहर था, जिनमें से धुएँ के साँपों की अटूट पंक्तियाँ कभी कुंडलित न होकर, लगातार निकलती रहती थीं। नगर में एक काली नहर थी और एक नदी भी थी, जिसका पानी बदबूदार रंजक गंदगी से भरकर बैंगनी रंग का हो गया था। वहाँ ढेरों इमारतें थीं जो उनके भीतर चलने वाली मशीनों के कारण हरदम काँपती रहती थीं और उनकी खिड़कियाँ हमेशा ही खड़कती रहती थीं और वहाँ भाप के इंजन का पिस्टन उकताहट के साथ ऊपर-नीचे होता रहता था, मानो किसी हाथी का सिर हो, जो अपने दुःखभरे पागलपन में आँखों को फाड़कर एक ही ओर देख रहा हो।" प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21.
प्रश्न 22.
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. (2) राजनीतिक स्थिरता-ब्रिटेन सत्रहवीं शताब्दी से राजनीतिक दृष्टि से सुदृढ़ एवं संतुलित था। वहाँ अन्य देशों की अपेक्षा राजनीतिक स्थिरता अधिक थी। ब्रिटेन में एक ही कानून व्यवस्था, एक ही मुद्रा तथा एक ही बाजार व्यवस्था थी, इस बाजार व्यवस्था में स्थानीय प्राधिकरणों का कोई हस्तक्षेप नहीं था। (3) मुद्रा का प्रयोग-सत्रहवीं सदी के अंत तक मुद्रा का प्रयोग विनिमय अर्थात् आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में होने लगा था। तब तक बहुत से लोग अपनी कमाई को, वस्तुओं के स्थान पर मजदूरी और नगद वेतन के रूप में पाने लगे। इससे लोगों को अपनी आमदनी से खर्च करने के लिए अधिक विकल्प मिल गये और वस्तुओं की बिक्री के लिए बाजार का विस्तार हो गया। (4) कृषि-क्रांति का होना-अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में 'कृषि-क्रांति' हुई। इसके फलस्वरूप बड़े-बड़े ज़मींदारों ने अपनी जमीनों के आस-पास छोटे-छोटे खेत खरीद लिए और गाँव की सार्वजनिक जमीनों को घेर लिया। इससे विवश होकर भूमिहीन किसान, चरवाहे और पशुपालक रोजगार की तलाश में शहरों में चले गये। (5) जनसंख्या वृद्धि-इंग्लैण्ड की जनसंख्या में काफी वृद्धि हो गई थी, जिसके कारण वस्तुओं की माँग बहुत अधिक बढ़ गई थी। इसलिए ब्रिटेन के लोगों का ध्यान औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने की ओर गया। (6) लोहे तथा कोयले का प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होना-ब्रिटेन में लोहे तथा कोयले की खाने पर्याप्त मात्रा में थीं। ये खानें एक-दूसरे के बिल्कुल समीप थीं। इन खानों की समीपता भी ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति के सर्वप्रथम होने का कारण बनी। (7) व्यापार की उन्नति-ब्रिटेन में विदेशी व्यापार उन्नत अवस्था में था। लन्दन, इंग्लैण्ड, अफ्रीका और वेस्टइण्डीज के बीच स्थापित त्रिकोणीय व्यापार का केन्द्र बन गया था। अमेरिका और एशिया में व्यापार करने वाली कम्पनियों के कार्यालय भी लंदन में ही थे। ब्रिटेन अपने उपनिवेशों से कच्चा माल प्राप्त कर सकता था तथा वहीं अपना तैयार माल बेच सकता था। (8) बैंकों का विकास-ब्रिटेन में बैंकों का विकास हो चुका था। 1694 ई. में बैंक ऑफ इंग्लैण्ड की स्थापना हो चुकी थी। यह देश की वित्तीय प्रणाली का केन्द्र था। 1784 ई. तक ब्रिटेन में लगभग 100 से अधिक प्रांतीय बैंक थे जो बढ़कर 1820 तक में 600 से भी अधिक हो गये और अकेले लंदन में ही 100 ही अधिक बैंक थे। जिनसे उद्योग-धन्धे स्थापित करने के लिए आवश्यक ऋण मिल जाता था। (9) परिवहन का विकास-जलमार्गों द्वारा परिवहन स्थल-मार्ग की तुलना में सस्ता पड़ता था और उसमें समय भी कम लगता था। ब्रिटेन की नदियों के समस्त नौचालन के भाग समुद्र से जुड़े हुए थे। इसलिए नदी पोतों के द्वारा ढोया जाने वाला माल समुद्रतटीय जहाजों तक सरलता से ले जाया और सौंपा जा सकता था। अंग्रेजों के पास बहुत अच्छा समुद्री बेड़ा था, इससे उन्हें माल को लाने और ले-जाने में पर्याप्त सुविधा रहती थी। अच्छे समुद्री बेड़े के होने से भी औद्योगिक क्रांति सर्वप्रथम ब्रिटेन में ही आई। (10) नये-नये वैज्ञानिक आविष्कार-18वीं शताब्दी में ब्रिटेन में अनेक.वैज्ञानिक हुए जिन्होंने कृषि, व्यवसाय, यातायात आदि क्षेत्रों में अनेक आविष्कार किये। इन आविष्कारों ने औद्योगिक क्रांति को सफल बनाने में योगदान दिया। इसके अतिरिक्त ब्रिटेन में ही भाप की शक्ति का पता चला और उनके पास पर्याप्त भाप-शक्ति थी। (11) कुशल श्रमिकों की उपलब्धता-ब्रिटेन में कुशल श्रमिक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थे। यूरोप के कई देशों में आन्तरिक शान्ति का अभाव था। इसलिए वहाँ के अनेक कुशल श्रमिक भागकर ब्रिटेन आ गए थे। (12) विचारों की स्वतंत्रता-ब्रिटेन के लोगों को विचारों की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त थी। उन पर ब्रिटिश सरकार की ओर से कोई प्रतिबन्ध न थे। अतः लोगों ने नई खोजें की जो औद्योगिक क्रांति का मुख्य कारण बनीं। (13) औपनिवेशिक साम्राज्य-18वीं शताब्दी के अन्त तक ब्रिटेन ने एक विस्तृत औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित कर लिया था। ब्रिटेन इन उपनिवेशों से कच्चा माल प्राप्त कर सकता था एवं वहाँ अपने तैयार माल का विक्रय कर सकता था। प्रश्न 2.
समस्या के समाधान हेतु किए गए प्रयास (धातुकर्म उद्योग में डर्बी परिवार का योगदान)-इस समस्या का समाधान कई वर्षों के प्रयत्न के पश्चात् श्रीपशायर के डर्बी परिवार, जो लौह-उस्ताद भी माने जाते थे, ने किया। इससे धातु कर्म उद्योग में क्रांति आ गई। इस क्रान्ति की शुरुआत 1709 ई. में प्रथम अब्राहम डर्बी के द्वारा 'धमन भट्टी' का आविष्कार करके की गयी जिसमें सर्वप्रथम कोक का इस्तेमाल किया गया। कोक में उच्च ताप उत्पन्न करने की शक्ति थी और वह पत्थर के कोयले से गन्धक और अपद्रव्य निकालकर तैयार किया जाता था। इस धमन भट्ठी के आविष्कार से काठ-कोयले पर निर्भरता समाप्त हो गई और इन धमन भट्ठियों से उत्पादित लोहा पहले की अपेक्षा अधिक बढ़िया था। इस प्रक्रिया में कुछ और आविष्कारों द्वारा आगे और सुधार किया गया। द्वितीय डर्बी ने ढलवाँ लोहे से पिटवाँ लोहे का निर्माण किया जो कम भंगुर था। हेनरी कोर्ट ने आलोड़न भट्टी और बेलन मिल का आविष्कार किया, जिसमें परिशोधित लोहे से छड़ें तैयार करने के लिए भाप की शक्ति का प्रयोग किया जाता था। अब लोहे से विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाना संभव हो गया। 1770 ई. के दशक में जॉन विल्किनसन ने सर्वप्रथम लोहे की कुर्सियाँ, आसव और शराब की भट्टी के लिए टंकियाँ और लोहे की नलियों बनाईं। 1779 ई. में तृतीय डर्बी ने विश्व में पहला लोहे का पुल कोलबुकडेल में सेवन नदी पर बनाया। विल्किनसन ने पेरिस को पानी की आपूर्ति के लिए 40 मील लम्बी पानी की पाइप पहली बार ढलवाँ लोहे से बनाई। इसके बाद लौह उद्योग कुछ विशेष क्षेत्रों में कोयला खनन और लौह प्रगलन की मिली-जुली इकाइयों के रूप में केन्द्रित हो गया। प्रश्न 3. एक ओर सूत कातने वाले लोग दिन: 18वीं शताब्दी में ब्रिटेन में कताई और बुनाई के क्षेत्र में निम्नांकित आविष्कार हुए -
1780 ई. के दशक से कपास उद्योग कई रूपों में ब्रिटिश औद्योगीकरण का प्रतीक बन गया। इस उद्योग की दो प्रमुख विशेषताएँ थीं, जो अन्य उद्योगों में भी दिखाई देती थीं
इस सम्पूर्ण प्रक्रिया के लिए इंग्लैण्ड के पास अपने उपनिवेश होना जरूरी था जिससे कि इन उपनिवेशों से कच्ची कपास भरपूर मात्रा में मँगाई जा सके और फिर इंग्लैण्ड में उससे कपड़ा बनाकर उन्हीं उपनिवेशों के बाजारों में बेचा जा सके। यह उद्योग प्रमुख रूप से कारखानों में काम करने वाली स्त्रियों और बच्चों पर बहुत ज्यादा निर्भर था। इससे औद्योगीकरण के प्रारम्भिक काल की यह घिनौनी तस्वीर हमारे सामने आती है जिसमें स्त्रियों और बच्चों का शोषण होता था। प्रश्न 4. (2) स्पिनिंग जैनी-इस कताई मशीन का आविष्कार जेम्स हरग्रीव्ज़ ने किया था। उसके द्वारा 1765 ई. में बनाई इस मशीन से एक अकेला व्यक्ति एक साथ कई धागे कात सकता था। इस आविष्कार से बुनकरों को उनकी आवश्यकता से अधिक तेजी से धागा मिलने लगा। (3) वाटर फ्रेम-रिचर्ड आर्कराइट ने 1769 में इस मशीन का आविष्कार किया। इस मशीन द्वारा पहले से कहीं अधिक मजबूत धागा बनाया जाने लगा। इससे लिनन और सूती धागा दोनों मिलाकर कपड़ा बनाये जाने की अपेक्षा अकेले सूती धागे से ही विशुद्ध सूती कपड़ा बनाया जाने लगा। (4) म्यूल-इसे सैम्यूअल क्रॉम्टन ने 1779 ई. में बनाया था। इससे कता हुआ धागा बहुत मजबूत और बढ़िया होता था। इसमें हरग्रीब्ज़ की जैनी और आर्कराइट के वाटर फ्रेम दोनों ही मशीनों के लाभ मिलने लगे। (5) पावर लूम-एडमंड कार्टराइट ने 1787 ई. में शक्ति से चलने वाला पावरलूम नामक करघे का आविष्कार किया। 'पावरलूम' को चलाना अत्यन्त आसान था। जब भी धागा टूटता, वह अपने आप काम करना बन्द कर देता था। इससे किसी भी प्रकार के धागे से बुनाई की जा सकती थी। (6) भाप का इंजन-सर्वप्रथम 1712 ई. में भाप के इंजन का आविष्कार थॉमस न्यूकॉमेन ने किया था। तत्पश्चात जेम्सवाट ने 1769 ई. में इसमें कई सुधार किए। इसके बाद इसकी उपयोगिता और भी बढ़ गई। वास्तव में यदि देखा जाए तो औद्योगिक क्रान्ति का आरम्भ ही जेम्स वाट के भाप के इंजन से हुआ। (7) पफिंग डेविल-1801 ई. में रिचर्ड ट्रेविथिक ने एक इंजन का निर्माण किया जो ट्रकों को कार्नवाल में उस खान के चारों ओर खींचकर ले जाता था जहाँ रिचर्ड काम करता था। इसी इंजन को पफिंग डेविल अर्थात् 'फुफकारने वाला दानव' नाम से पुकारा जाता था। (8) राकेट-यह पहला भाप से चलने वाला रेल का इंजन था। जिसे 'स्टीफेनसन का राकेट' कहा जाता था। स्टीफेनसन ने इसे 1814 ई. में बनाया। (9) ब्लचर-1814 ई. में, एक रेलवे इंजीनियर जॉर्ज स्टीफेनसन ने एक रेल इंजन बनाया जिसे ब्लचर कहा जाता था। यह इंजन 30 टन भार 4 मील प्रतिघंटा की गति से एक पहाड़ी पर ले जा सकता था। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि 18वीं शताब्दी के दौरान लगभग 2600 आविष्कार हुए जिनमें से आधे से अधिक आविष्कार 1782 ई. से 1800 ई. की अवधि में ही हुए थे। इन आविष्कारों के कारण लौह उद्योग, कपास की कताई-बुनाई तथा रेलवे का बहुत अधिक विकास हुआ। प्रश्न 5. (1) भाप के इंजन के मॉडल का आविष्कार-भाप की शक्ति का सर्वप्रथम उपयोग खनन उद्योगों में किया गया। खानों में अचानक पानी भर जाना भी एक जटिल समस्या थी। 1678 ई. में थॉमस सेवरी ने खानों से पानी बाहर निकालने के लिए 'माइनर्स फ्रेंड' (खनक-मित्र) नामक एक भाप के इंजन का मॉडल बनाया। यह इंजन छिछली गहराइयों में धीरे-धीरे कार्य करता था एवं अधिक दबाव हो जाने पर उसका बायलर फट भी सकता था। (2) भाप के और इंजन का निर्माण- भाप का एक दूसरा इंजन 1712 ई. में थॉमस न्यूकॉमेन द्वारा बनाया गया। इसमें सबसे बड़ी कमी यह थी कि यह संघनन बेलन (कंडेन्सिंग सिलिंडर) के लगातार ठंडा होते रहने से इसकी ऊर्जा खत्म होती रहती थी। (3) जेम्सवाट द्वारा भाप के इंजन का आविष्कार करना-भाप के इंजन का उपयोग 1769 ई. तक केवल कोयले की खानों में ही होता था, परन्तु जेम्सवाट ने इसका एक और प्रयोग खोज निकाला। जेम्सवाट ने एक ऐसी मशीन विकसित की जिससे भाप का इंजन केवल एक साधारण पम्प की अपेक्षा एक 'प्राइम मूवर' अर्थात प्रमुख चालक के रूप में काम देने लगा, जिससे कारखानों में शक्ति चालित मशीनों को ऊर्जा मिलने लगी। (4) सोहो फाउण्डरी का निर्माण-एक धनी निर्माता मैथ्यू बॉल्टन की सहायता से जेम्स वॉट ने 1775 ई. में बर्मिंघम में 'सोहो फाउण्डरी' का निर्माण किया। 18वीं शताब्दी के अन्त तक जेम्सवाट के भाप इंजन ने द्रवचालित शक्ति का स्थान लेना प्रारम्भ कर दिया था। (5) भाप के इंजन की तकनीकी का विकास-1800 ई. के बाद, अधिक हल्की और मजबूत धातुओं के उपयोग से अधिक सटीक मशीनों तथा औजारों के निर्माण से और वैज्ञानिक जानकारी के अधिक व्यापक प्रसार से, भाप के इंजन की प्रौद्योगिकी और अधिक विकसित हो गई। 1840 ई. में स्थिति यह थी कि ब्रिटेन में बने भाप के इंजन ही सम्पूर्ण यूरोप में आवश्यक ऊर्जा की 70 प्रतिशत से अधिक अश्व शक्ति का उत्पादन कर रहे थे। प्रश्न 6. इंग्लैण्ड में बनाई गयी प्रथम नहर वर्सली कैनाल थी। इसका निर्माण 1781 ई. में जेम्स ब्रिडली द्वारा किया गया। इस नहर के निर्माण का केवल यही उद्देश्य था कि इसके द्वारा वर्सले के कोयला भण्डारों से शहर तक कोयला ले जाया जाए। इस नहर के बन जाने के बाद कोयले का मूल्य घटकर आधा हो गया। ब्रिटेन में रेलों का विकास-रेलवे के आविष्कार के साथ औद्योगीकरण की सम्पूर्ण क्रान्ति ने दूसरे चरण में प्रवेश कर लिया। 1801 ई. में रिचर्ड ट्रेविथिक ने एक इंजन का निर्माण किया जिसे 'पफिंग डेविल' यानी 'फुफकारने वाला दानव' कहते थे। यह इंजन ट्रकों को कॉर्नवाल में उस खान के चारों ओर खींचकर ले जाता था जहाँ रिचर्ड काम करता था। 1814 ई. में रेलवे के एक इंजीनियर जॉर्ज स्टीफेनसन ने एक रेल इंजन बनाया, जिसे 'ब्लचर' कहा जाता था। यह इंजन 30 टन भार 4 मील प्रति घण्टे की गति से एक पहाड़ी पर ले जा सकता था। सर्वप्रथम 1825 ई. में स्टॉकटन और डार्लिंगटन शहरों के मध्य 9 मील लम्बा रेलमार्ग बनाया गया। इसके बाद 1830 ई. में लिवरपूल और मैनचेस्टर को आपस में रेलमार्ग द्वारा जोड़ दिया गया। अगले 20 वर्षों के दौरान रेल का 30 से 50 किमी प्रति घण्टे की रफ्तार से दौड़ना एक सामान्य बात हो गयी थी। 1830 से 1850 ई. के मध्य ब्रिटेन में रेल पथ कुल मिलाकर दो चरणों में लगभग 6000 मील लम्बा हो गया था -
इस सम्पूर्ण कार्य में कोयले और लोहे का भारी मात्रा में उपयोग किया गया। बड़ी संख्या में लोगों को काम पर लगाया गया और निर्माण तथा उद्योगों के क्रियाकलापों में तेजी लाई गयी। 1850 ई. तक इंग्लैण्ड के अधिकांश नगर व गाँव रेल मार्ग से जुड़ गए। ब्रिटेन में रेलवे के विकास के कारण यूरोप, उत्तरी अमेरिका और भारत से कच्चा माल बहुतायत में समुद्री मार्ग से लाकर उसे रेलवे के द्वारा ब्रिटेन के कारखानों तक आसानी से पहुँचाया जाने लगा। दूसरी तरफ इंग्लैण्ड के उद्योगों से तैयार माल भारत सहित विभिन्न ब्रिटिश बस्तियों और यूरोप के अन्य देशों को भेजा जाने लगा। फलस्वरूप ब्रिटेन में औद्योगिक विकास की दर बढ़ गई। अब ब्रिटेन दूर-दूर स्थित अपने उपनिवेशों को भी शीघ्रता से नियन्त्रित करने में सफल हुआ। प्रश्न 7. 1850 ई. के दशक में बटनों के निर्माण एवं व्यापार में काम
करने वाले कुल मजदूरों में से दो-तिहाई स्त्रियाँ और बच्चे थे। पुरुषों को प्रति सप्ताह 25 शिलिंग मज़दूरी मिलती थी, जबकि उतने ही काम के लिए बच्चों को सिर्फ 1 शिलिंग और स्त्रियों को 7 शिलिंग मज़दूरी दी जाती थी। स्त्रियों और बच्चों को लंकाशायर और यार्कशायर नगरों के सूती कपड़ा उद्योग में बड़ी संख्या में काम पर लगाया जाता था। रेशम, फीते बनाने और बुनने के उद्योग-धन्धों तथा बर्मिंघम के धातु उद्योगों में स्त्रियों को ही अधिकांशतया नौकरी दी जाती थी।
प्रश्न 8. बच्चों को काम पर लगाने की पसन्द होने का एक अन्य कारण कपास कातने की 'जैनी' जैसी मशीनों की बनावट थी जो इस तरह की बनाई गयी थी कि उनमें बच्चे ही अपनी फुर्तीली उँगलियों और उनकी कद-काठी के कारण आसानी से काम कर सकते थे। बच्चों को अक्सर कपड़ा मिलों में रखा जाता था क्योंकि वहाँ सटाकर रखी गयी मशीनों के बीच छोटे बच्चे आसानी से आ जा सकते थे। बच्चों से कई घण्टों तक काम लिया जाता था यहाँ तक कि उन्हें प्रत्येक रविवार को छुट्टी के दिन भी मशीनें साफ करने के लिए काम पर आना पड़ता था। इसके परिणामस्वरूप उनको ताजी हवा खाने का और व्यायाम करने का कभी भी मौका नहीं मिलता था। कई बार तो बच्चों के बाल मशीनों में फंस जाते थे या उनके हाथ कुचल जाते थे, यहाँ तक कि बच्चे काम करते-करते इतने थक जाते थे कि उन्हें नींद की झपकी आने पर वे मशीन में गिरकर मौत के आगोश में चले जाते थे। कपड़ा मिलों के अलावा बच्चों को कोयले की खानों, जो बहुत खतरनाक होती थीं, में भी काम पर रखा जाता था। कोयला खानों के मालिक कोयले के अंतिम छोरों को देखने के लिए बच्चों को भेजते थे, क्योंकि वहाँ सँकरे रास्तों में वयस्क नहीं जा सकते थे। छोटे बच्चों को कोयला खानों में 'ट्रैपर' एवं कोल बियरर्स के रूप में रखा जाता था। कारखानों के मालिक बच्चों से काम लेना बहुत जरूरी समझते थे, जिससे वे अभी से काम सीखकर बड़े होने पर उनके लिए अच्छा कार्य कर सकें। ब्रिटेन के कारखानों के आँकड़े बताते हैं कि कारखानों के कुल श्रमिकों में से 50 प्रतिशत श्रमिक 10 वर्ष से छोटे, 28 प्रतिशत श्रमिक 14 वर्ष से कम उम्र के होते थे। इस प्रकार उपरोक्त वर्णित कारणों से मिल मालिक कपड़ा मिलों में बच्चों को काम पर लगाना पसंद करते थे। लेकिन इससे बच्चों का जीवन अत्यंत कष्टकारक हो गया था। प्रश्न 9. परन्तु पुराने भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन चलता रहा। 'पुराना भ्रष्टाचार' शब्द का प्रयोग राजतंत्र और संसद के सम्बन्ध में किया जाता था। संसद के सदस्य जिनमें भू-स्वामी, उत्पादक और व्यवसायी लोग शामिल थे, श्रमिकों को वोट का अधिकार दिए जाने के खिलाफ़ थे। उन्होंने अनाज के कानून (कार्न लॉज) का समर्थन किया। इस कानून के अन्तर्गत विदेश से सस्ते अनाज के आयात पर तब तक रोक लगा दी गई थी जब तक कि ब्रिटेन में इन अनाजों की कीमत में निश्चित स्तर तक वृद्धि न हो जाए। ब्रैड के लिए दंगे-जैसे-जैसे ब्रिटेन के कारखानों में मजदूरों की संख्या बढ़ने लगी तो उनके भोजन के लिए भी समस्या बढ़ने लगी। इस काल में गरीबों का मुख्य भोजन ब्रैड ही था और इसके मूल्य पर ही उनके रहन-सहन का स्तर निर्भर करता था। जैसे ही ब्रैड की कीमतें बढ़ना प्रारम्भ हुईं मजदूरों का विरोध बढ़ता गया। उन्होंने आन्दोलन प्रारम्भ कर ब्रैड के भण्डारों पर अधिकार कर लिया तथा उन्हें मुनाफाखोरों द्वारा निर्धारित ऊँची कीमतों से काफी कम मूल्य में बेचना शुरू कर किया। यह कीमत सामान्य व्यक्ति के लिए उचित थी और नैतिक दृष्टि से भी सही थी। ऐसे दंगे, विशेषकर 1795 ई. में इंग्लैण्ड तथा फ्रांस के बीच चलने वाले युद्ध के दौरान बार-बार हुए परन्तु वे 1840 के दशक तक जारी रहे। चकबंदी या बाड़ा पद्धति के विरुद्ध मजदूरों का आन्दोलन-ब्रिटेन के लोगों में चकबन्दी या बाड़ा-पद्धति के विरुद्ध भी बहुत अधिक असन्तोष था। इस पद्धति के अन्तर्गत 1770 ई. के दशक से छोटे-छोटे सैकड़ों खेत शक्तिशाली जमींदारों के बड़े फार्मों में मिला दिए गए। इस पद्धति से कई गरीब परिवार जैसे खेतिहर किसान, पशुपालक व चरवाहे बेरोजगार होने लगे और वे बुरी तरह प्रभावित हुए। उन्होंने उद्योगों में काम देने की मांग की। बुनकरों द्वारा हड़ताल-वस्त्र उद्योग में मशीनों के आने के कारण हजारों की संख्या में हथकरघा बुनकर बेरोजगार हो गए। वे गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे थे क्योंकि वे मशीनों का मुकाबला नहीं कर सकते थे। 1790 ई. के दशक से बुनकर लोग अपने लिए न्यूनतम वैध मजदूरी की मांग करने लगे। परन्तु जब ब्रिटेन की संसद ने उनकी माँग को अस्वीकार कर दिया, तो वे हड़ताल पर चले गए। परन्तु सरकार ने दमनकारी नीति अपनाते हुए आन्दोलनकारियों को तितर-बितर कर दिया। इससे क्रुद्ध होकर सूती कपड़े के बुनकरों ने लंकाशायर में पावरलूमों को नष्ट कर दिया। इसका कारण यह था कि वे अपना रोजगार छिन जाने के लिए इन विद्युत के करघों को ही उत्तरदायी मानते थे। नोटिंघम में ऊनी वस्त्र उद्योग में भी मशीनों के प्रयोग का प्रतिरोध किया गया। इसी प्रकार लैसेस्टरशायर तथा डर्बीशायर में भी मजदूरों ने विरोध-प्रदर्शन किए। यार्कशायर में विरोध प्रदर्शन-यार्कशायर में ऊन कातने वालों ने शीयरिंग फ्रेम (ऊन कातने के ढाँचों) को नष्ट कर दिया। ये लोग अपने हाथों से भेड़ों के बालों की कटाई करते थे। 1830 ई. के दंगों में फार्मों में काम करने वाले
श्रमिकों को भी अपना धंधा चौपट होता दिखाई दिया, क्योंकि भूसी से दाना अलग करने के लिए नयी थ्रेशिंग मशीन का प्रयोग शुरू हो गया था। दंगाइयों ने इन मशीनों को तोड़ डाला। परिणामस्वरूप नौ दंगाइयों को फाँसी का दंड दिया गया और 450 लोगों को कैदियों के रूप में आस्ट्रेलिया भेज दिया गया। लुडिज्म आन्दोलन-ब्रिटेन में जनरल नेड लूड के नेतृत्व में लुडिज्म नामक आन्दोलन चलाया गया। लुडिज्म के अनुयायियों की माँगें निम्नलिखित थीं - सेंट पीटर्स के मैदान में प्रदर्शन-औद्योगीकरण के प्रारम्भिक चरण में श्रमिकों के पास अपना क्रोध व्यक्त करने के लिए वोट देने का अधिकार था फलस्वरूप अगस्त 1819 ई. में 80,000 श्रमिक अपने लिए लोकतांत्रिक अधिकारों, जैसे-राजनीतिक संगठन बनाने, सार्वजनिक सभाएँ करने और प्रेस की स्वतंत्रता के अधिकारों की माँग करने हेतु मैनचेस्टर में सेंट पीटर्स मैदान में शान्तिपूर्वक इकट्ठे हुए। लेकिन सरकार ने उनका कठोरतापूर्वक दमन कर दिया। इसे पीटरलू नरसंहार कहा जाता है। ब्रिटेन की सरकार पर मजदूरों के विरोध का प्रभाव-ब्रिटेन की सरकार पर मजदूरों के विरोध आन्दोलन का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा, पीटरलू नरसंहार के बाद उदारवादी राजनीतिक दलों द्वारा ब्रिटिश संसद के निचले सदन 'हाउस ऑफ कॉमन्स' में प्रतिनिधित्व बढ़ाए जाने की आवश्यकता अनुभव की गई। 1824-25 ई. में जुड़वाँ अधिनियम को भी रद्द कर दिया गया। प्रश्न
10. (2) 1833 का अधिनियम: (3) 1847 का दस घण्टा विधेयक: (4) 1842 का खान व कोयला खान अधिनियम: (5) 1847 का फील्डर्स
फैक्ट्री अधिनियम: प्रश्न 11. (2) नयी-नयी मशीनों का आविष्कार-औद्योगिक क्रान्ति से नयी-नयी मशीनों का आविष्कार हुआ। अतः उत्पादन में अधिक से अधिक मशीनों का प्रयोग करने से मानव को नीरस और थका देने वाले काम से मुक्ति मिल गयी तथा उत्पादन में भी वृद्धि हुई। (3) यातायात तथा संचार क्षेत्र में विकास-औद्योगिक क्रांति से यातायात और संचार के साधनों के लिए नए-नए आविष्कार हुए तथा पुराने साधनों में सुधार किया गया। जैसे स्टीफेनसन ने भाप का इन्जन बनाया। लकड़ी की लाइनों के स्थान पर लोहे की लाइनें बिछाई गयीं। कुछ समय बाद भाप के इंजन के स्थान पर डीजल से चलने वाले इंजन आ गए जो अब विद्युत इंजनों के रूप में देखे जा सकते हैं। परिवहन के तीव्रगामी साधनों से समय और दूरी पर मानव ने विजय प्राप्त कर ली तथा सम्पूर्ण विश्व एक बड़े बाजार के रूप में परिवर्तित हो गया है। (4) सुखी जीवन हेतु वस्तुओं का निर्माण-औद्योगिक क्रांति के कारण मानव के सुख और आराम की अनेक वस्तुओं का निर्माण होने लगा। अब ये वस्तुएँ बड़ी मात्रा में और कम कीमतों पर उपलब्ध होने लगी थीं, जिससे साधारण व्यक्ति भी इनका उपयोग करने में सक्षम हो गये। (5) कारखानों की संख्या-औद्योगिक क्रांति का एक अच्छा परिणाम यह हुआ कि इससे कारखानों की संख्या में वृद्धि होने लगी और उनके लिए कच्चे माल की माँग बढ़ गई। फलस्वरूप माँग की पूर्ति के लिए कृषि में भी क्रांतिकारी सुधार किए गए। (6) उत्पादन में वृद्धि-औद्योगिक क्रांति के अन्तर्गत मशीनों के प्रयोग से उत्पादन अधिक होने लगा। अब कामगारों के पास अतिरिक्त समय बचने लगा, जिसका उपयोग उन्होंने मनोरंजन के खेलों, सिनेमा और परिवार के साथ करना प्रारम्भ कर दिया। साथ ही खाली समय में शिक्षा, साहित्य, कला आदि विभिन्न प्रकार के कार्यों को करना भी शुरू कर दिया। (7) बैंकिंग सेवाओं का विकास-औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप बैंकों का विकास हुआ। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के बाजारों का विकास होने लगा। आयात-निर्यात के व्यापार में वृद्धि हुई, जिससे देशों में आपसी निर्भरता बढ़ गई। अब लोग एक-दूसरे को तथा उनकी सभ्यताओं और संस्कृतियों को समझने लगे। (8) राजनीतिक शक्ति में वृद्धि-इस क्रांति के कारण इंग्लैण्ड विश्व का अग्रणी देश बन गया। उसका व्यापार इतना बढ़ गया कि उसके धन की अपार वृद्धि हुई और उसने विश्व में अपनी राजनीतिक शक्ति को इतना बढ़ा दिया कि भारत सहित सैकड़ों उपनिवेश बनाकर उसने अपना विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया। प्रश्न 12. (2) शहरी जनसंख्या में वृद्धि-रोजगार की तलाश में गाँव से लोगों के शहरों की ओर जाने से शहरों में भीड़ इतनी अधिक होने लगी कि लोगों को मूलभूत आवश्यकताओं की वस्तुओं को प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा। आवास, स्वास्थ्य एवं सफाई, स्वच्छ पेयजल आदि की समस्याएँ बहुत जटिल हो गयीं। कारखानों के कारण प्रदूषण फैलने लगा तथा वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण के कारण अनेक संक्रामक बीमारियों ने महामारियों का रूप धारण कर लिया, जिनमें हजारों लोगों की जान चली गईं। (3) श्रमिकों के शोषण में वृद्धि-कारखानों के मालिकों ने पुरुषों के स्थान पर स्त्रियों और बच्चों को काम पर रखना शुरू कर दिया क्योंकि उनकी मजदूरी पुरुषों की तुलना में बहुत कम थी और वे मालिकों के शोषण एवं काम करने की अमानवीय स्थितियों का भी विरोध नहीं करते थे। अतः स्त्रियों और बच्चों का शोषण होने लगा। बच्चों को तो रविवार को भी मशीनों की सफाई करने के लिए काम पर आना पड़ता था। फलतः उन्हें खुली हवा, व्यायाम और मनोरंजन का बिल्कुल भी समय नहीं मिलता था। कभी-कभी तो बच्चे थककर मशीनों में काम करते हुए सो जाते थे, जिससे उनके बाल मशीनों में चले जाते थे, हाथ मशीन में पिस जाते थे या कभी-कभी गिरकर उनकी मौत हो जाती थी। (4) सामाजिक वर्गों का निर्माण-औद्योगिक क्रान्ति के कारण समाज दो वर्गों में बँट गया-एक कारखानों के मालिक और दूसरे मजदूर वर्ग। उस समय अमीर और गरीब की खाई और गहरी हो गई थी-एक अभिजात वर्ग और दूसरा सर्वहारा वर्ग। उद्योगपति दिन-प्रतिदिन अमीर एवं धनाढ्य होते चले गये और मजदूर और अधिक निर्धन हो गये। इस प्रकार औद्योगिक क्रान्ति के कारण सामाजिक विषमताएँ बढ़ती गईं और मालिक तथा मजदूर के मध्य सदैव चलने वाले संघर्ष का उदय हुआ। (5) साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद को बढ़ावा-औद्योगिक क्रांति ने साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया। विश्व में तनाव एवं अशान्ति बढ़ गई और मानवता को प्रथम एवं द्वितीय विश्वयुद्ध का सामना करना पड़ा, जिसमें बहुत बड़ी जन एवं धन की क्षति हुई। (6) घरेलू व कुटीर उद्योगों का नष्ट होना-औद्योगिक क्रांति के कारण घरेलू एवं कुटीर उद्योग नष्ट हो गये। बड़े-बड़े कारखानों में तैयार माल अधिक सस्ता और टिकाऊ होता था। इसलिए घरेलू-कुटीर उद्योग उनका सामना न कर सके और समाप्त हो गये। (7) बेरोजगारी में वृद्धि-औद्योगिक क्रांति के कारण मशीनों का आविष्कार होने से अनेक मजदूरों का काम अकेली एक मशीन करने लगी जिसके कारण बहुत से मजदूर बेकार हो गये। अब वे रोजगार की तलाश में दर-दर भटकने लगे। (8) प्रदूषण एवं महामारियों का प्रकोप-औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूरों के गन्दे वातावरण, दूषित पर्यावरण, अशुद्ध पेयजल, गन्दी बस्तियों में रहने के कारण अनेक महामारियाँ; जैसे-चेचक, हैज़ा, क्षयरोग फैलने लगीं। 1832 में हैज़े के भीषण प्रकोप से 31,000 से अधिक लोगों का मरना इसका एक उदाहरण है। (9) मजदूरों के जीवन की औसत अवधि में कमी-वेतनभोगी मजदूरों के जीवन की औसत अवधि शहरों में रहने वाले उच्च सामाजिक वर्गों की तुलना में बहुत कम हो गई। 1842 के सर्वेक्षण के अनुसार, बर्मिंघम में यह 15 वर्ष, मैनचेस्टर में 17 वर्ष तथा डर्बी में 21 वर्ष थी। 19वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में नगर-प्राधिकारी जीवन की इन भयंकर परिस्थितियों की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे। मजदूरों के स्वास्थ्य की देखभाल करने और बीमारियों का उपचार करने के सम्बन्ध में चिकित्सकों या अधिकारियों को कोई जानकारी नहीं थी। (10) अनेक सामाजिक बुराइयों का जन्म-औद्योगिक क्रांति के कारण भोग-विलास की वस्तुओं का बड़ी मात्रा में उत्पादन होने लगा। लोग सुन्दर चमकीले वस्त्र पहनने लगे। सौन्दर्य प्रसाधनों; जैसे-साबुन, क्रीम, पाउडर आदि का प्रयोग बहुत बढ़ गया। धन की अधिकता के कारण धनी लोगों का नैतिक पतन हो गया। धन के प्रति लालच बढ़ गया। लोग भोग-विलासी हो गये। शराब आदि नशे की वस्तुओं का सेवन करने लगे और जुए जैसी बुराई का जन्म हो गया। फलस्वरूप सम्पन्न परिवारों में वासना एवं व्यभिचार बढ़ गया। अतः समाज में अनेक बुराइयों का उद्भव होने लगा। (11) भविष्य के युद्धों के लिए मार्ग प्रशस्त-औद्योगिक क्रांति के कारण अब कच्चे माल की आवश्यकता व तैयार माल को बेचने के लिए अपने देश के बाहर के बाजारों की आवश्यकता पड़ी, जिससे उपनिवेशवाद को बढ़ावा मिला। इससे भविष्य के युद्धों के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ। इंग्लैण्ड तथा फ्रांस के बीच अनेक युद्ध इसी कारण हुए थे। प्रश्न 13. (2) लौह एवं कपास उद्योगों में हुए विकासों को क्रांतिकारी कहना अनुचित-कुछ विद्वानों का मत है कि 1780 ई. के दशक तक लौह व कपास उद्योग में हुए विकास को क्रांतिकारी कहना अनुचित है। सूती वस्त्र उद्योग में नई मशीनों के कारण जो उल्लेखनीय विकास हुआ, वह एक ऐसे कच्चे माल पर आधारित था जो इंग्लैण्ड में बाहर से आयात किया जाता था। यह कच्चा माल कपास था, इसी प्रकार तैयार माल भी दूसरे देशों को विशेषकर भारत को निर्यात किया जाता था। धातु से निर्मित मशीनें तथा भाप की शक्ति तो उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक दुर्लभ रहीं। ब्रिटेन के आयात और निर्यात में 1780 ई. के दशक से जो तीव्र गति से बढ़ोत्तरी हुई उसका कारण यह था कि अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के कारण उत्तरी अमेरिका के साथ व्यापार में जो रुकावट आ गयी थी, अब वह व्यापार पुनः प्रारम्भ हो गया। (3) 1815-20 ई. के पश्चात औद्योगीकरण का दिखाई देना-1780 ई. के दशक से 1820 ई. के दशक के बीच औद्योगिक विकास को औद्योगिक क्रांति की संज्ञा देना तर्कसंगत नहीं मानने वाले विद्वानों का मत था कि ब्रिटेन में सतत् औद्योगीकरण 1815-20 ई. से पहले की बजाय बाद में दिखाई दिया था। 1820 ई. के पश्चात् लाभदायक निवेश का स्तर धीरे-धीरे बढ़ने लगा, 1840 के दशक तक कपास, लोहा और इन्जीनियरिंग उद्योगों में आधे से भी कम औद्योगिक उत्पादन होता था। तकनीकी उन्नति केवल इन्हीं उद्योगों में ही नहीं हुई बल्कि वह कृषि उपकरणों एवं मिट्टी के बर्तन बनाने जैसे अन्य उद्योग-धन्धों में भी देखी जा सकती थी। मानचित्र सम्बन्धी प्रश्नोत्तर प्रश्न 1.
उत्तर: प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न
13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. |