मृदा संरक्षण पर एक निबंध लिखिए | - mrda sanrakshan par ek nibandh likhie |

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मृदा संरक्षण पर एक निबंध कैसे लिखें इसके लिए आवश्यक है कि आप सबसे पहले या जाने की माता संरक्षण क्या है हम उसका संरक्षण कैसे कर सकते हैं कौन सा उपाय कारगर है विशेषकर वृक्षारोपण पत्रों का जाल लगाना दीवार लगाना उसके बाद मृदा कटाव से किस प्रकार की हानियां हो सकती है कौन कहां पर प्रभावित हो सकता है इस सब को जानकर क्रमबद्ध तरीके से निबंध लिखा जा सकता है इसके लिए आप उचित शब्दों का प्रयोग करें एक ही बात को बार-बार ना दोहराएं और प्रारंभ मुख्य विषय के बाद उप संघार दे निष्कर्ष निकाले निबंध का प्रभावी होगा लोग उसकी प्रशंसा करेंगे और अन्य विषयों पर भी निबंध लिखने के लिए आपका उत्साह बढ़ेगा धन्यवाद

mrida sanrakshan par ek nibandh kaise likhen iske liye aavashyak hai ki aap sabse pehle ya jaane ki mata sanrakshan kya hai hum uska sanrakshan kaise kar sakte hain kaun sa upay kargar hai visheshkar vriksharopan patron ka jaal lagana deewaar lagana uske baad mrida kataav se kis prakar ki haniyan ho sakti hai kaun kahaan par prabhavit ho sakta hai is sab ko jaankar krambaddh tarike se nibandh likha ja sakta hai iske liye aap uchit shabdon ka prayog kare ek hi baat ko baar baar na dohraen aur prarambh mukhya vishay ke baad up sanghar de nishkarsh nikale nibandh ka prabhavi hoga log uski prashansa karenge aur anya vishyon par bhi nibandh likhne ke liye aapka utsaah badhega dhanyavad

मृदा संरक्षण पर एक निबंध कैसे लिखें इसके लिए आवश्यक है कि आप सबसे पहले या जाने की माता संर

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मृदा पर निबंध: मतलब, घटक, प्रकार और संरक्षण | Essay on Soil: Meaning, Components, Types and Conservation in Hindi

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मृदा पर निबंध: मतलब, घटक, प्रकार और संरक्षण | Essay on Soil: Meaning, Components, Types and Conservation in Hindi!

मृदा पर निबंध (मिट्टी) | Essay on Soil  

Essay Contents:

  1. मृदा का अर्थ (Meaning of Soil)
  2. मृदा घटक (Components of Soil)
  3. मृदा के प्रमुख प्रकार (Types of Soil)
  4. मृदा टैक्सोनॉमी (Soil Taxonomy)
  5. मृदा अपरदन (Soil Erosion)
  6. मृदा संरक्षण (Soil Conservation)

Essay # 1. मृदा का अर्थ (Meaning of Soil):

धरातल की ऊपरी परत, जिससे मानव समाज की अधिकतर आवश्यकता की आपूर्ति होती है, मृदा अथवा मिट्टी कहलाती है । मानव की तीन मूलभूत आवश्यकतायें भोजन, वस्त्र एवं आवास की आपूर्ति के लिये मिट्टी सब से अधिक महत्वपूर्ण संसाधन है ।

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अपक्षपि पदार्थ (Regolith), अवरण शैल की ऊपर परत जिसमें गली-सड़ी वनस्पति, कीटाणु (Humus) आदि मिश्रित हों और उसमें पेड़-पौधे उगाने की क्षमता हो, मिट्टी कहलाती है । मिट्टी मुख्यत: खनिज कणों, जैविक पदार्थों, मृदा जल एवं जीवित जीवों (Living Organism) से बनी होती है । मिट्टी के भौतिक एवं रासायनिक पदार्थों में समय के अनुसार परिवर्तन होता रहता है ।

Essay # 2. मृदा घटक (

Components of Soil):

मिट्टी के मुख्य घटक निम्न प्रकार हैं:

1. मातृ पदार्थ (Parent Material):

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कार्बोनिक एवं खनिजों का एक असंगठित पदार्थ, जो मृदा विकास के लिये मूल पदार्थ होता है ।

2. ह्यूमस तथा जैविक खाद (Humus):

मृदा में विद्यमान विघटित जैविक पदार्थ, जिसकी उत्पत्ति वनस्पति तथा जंतुओं के गलने-सड़ने से होती है । जिस कृषि भूमि को कुछ समय के लिए जोत कर छोड़ दिया जाये, उसमें जंतु एवं पौधे गिरकर सड़ जाते हैं । ऐसी भूमि में काफी ह्यूमस पाया जाता है । गोबर और हरी-खाद आदि के द्वारा भी खेतों में ह्यूमस की मात्रा बढ़ाई जा सकती है ।

3. मृदा जल (Soil Water):

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जल भी मृदा का एक मुख्य घटक है । विभिन्न प्रकार की मिट्‌टियों में जल की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है । उष्ण मरुस्थलों तथा शुष्क प्रदेशों की मिट्टी में जल की मात्रा नाम-मात्र की होती है, जबकि आंध्र प्रदेश की मिट्टी में जल की मात्रा अधिक होती है । जल की मात्रा का प्रभाव मृदा की उर्वकता पर पड़ता है । जल की मात्रा से मिट्टी के रसायनिक तत्व भी प्रभावित होते हैं ।

4. मृदा संरचना (Soil Texture):

मृदा की विशिष्टता की पहचान उसमें पाये जाने वाले कणों के आधार पर की जाती है । चिकनी मिट्टी (Clay) में सूक्ष्म कणों की मात्रा अधिक होती है, जबकि बलुई मृदा में मोटे कणों की मात्रा अधिक होती है । इनके विपरीत सिल्ट में महीन तथा बलुई कणों की मात्रा लगभग समान होती है (Fig. 5.6 तथा 5.7) ।

5. मृदा वर्गिकी (Soil Structure):

मृदा कणों की विद्यमानता तथा उनका संगठन । दूसरे शब्दों में महीन, मोटे कण और ह्यूमस (Humus) आपस में किस प्रकार संगठित हैं ।

6. मृदा संस्तर (Soil Horizon):

मृदा परिच्छेदिका में सुनिश्चित परत, जो स्थानीय भू-सतह के समानान्तर होती  है । मृदा संस्तर को कई परतों में विभाजित किया जा सकता है जैसा कि Fig. 5.6 में दिखाया गया है ।

7. मृदा प्रोफाइल (Soil Profile):

किसी स्थान की मृदा का लम्बवत् परिच्छेदिका, जिसमें मृदा की विभिन्न परतों को तथा उनकी भौतिक एवं रासायनिक विशेषताओं को दर्शाया जाता है (Fig. 5.6) ।

8. मृदा उर्वरता (Soil Fertility):

मृदा की फसलों तथा पेड़-पौधों को उगाने की क्षमता को उसकी उर्वरता कहते हैं ।

Essay # 3. मृदा के प्रमुख प्रकार

(Types of Soil):

मृदा को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:

(i) कटिबंधीय मृदा (Zonal Soil),

(ii) गैर-कटिबंधीय मृदा (Azonal Soil) तथा

(iii) अन्तक्षेत्रीय मृदा (Interzonal Soil) ।

(i) कटिबंधीय मृदा (Zonal Soil):

जो मिट्टियाँ अपने मातृ-पदार्थ, जलवायु एवं वनस्पति से प्रभावित हों, कटिबंधीय मृदा कहलाती हैं, जैसे- भारतीय प्रायद्वीप की काली तथा लाल मिट्टी तथा कश्मीर घाटी की करेवा (Karewa) मिट्टी ।

(ii) गैर-कटिबंधीय मृदा (Azonal Soil):

ऐसी मृदा जो स्थानीय मातृ-पदार्थ, जलवायु तथा वनस्पति से प्रभावित न हो तथा गैर-कटिबंधीय मृदा कहलाती है । इस प्रकार की मृदा में ‘B’ संस्तर (B-Horizon) का अभाव होता है ।

(iii) अन्तक्षेत्रीय मृदा (Interzonal Soil):

ऐसी मृदा जो मृदा-उत्पत्ति के विभिन्न चरणों से गुजर कर न विकसित हुई हो । इसकी उत्पत्ति पर स्थानीय जलवायु तथा प्राकृतिक वनस्पति का अधिक प्रभाव नहीं देखा जाता । इस मृदा में ‘ब’ संस्तर नहीं होता ।

Essay # 4. मृदा टैक्सोनॉमी (

Soil Taxonomy):

संयुक्त राज्य अमेरिका के मृदा विशेषज्ञों ने विश्व-मृदा को भौतिक तथा रसायनिक गुणों के आधार पर विभाजित किया था, जिसको मृदा टैक्सोनॉमी कहते हैं । यह वर्गीकरण पूरी दुनिया से मृदा के नमूने (Soil Samples) एकत्रित करके विश्लेषण (Analysis) के आधार पर किया गया था (तालिका 5.3) ।

Essay # 5. मृदा अपरदन (

Soil Erosion):

मृदा की ऊपरी सतह के अनावरण (कटने) को मृदा अपरदन कहते हैं । जल तथा पवन इत्यादि के द्वारा अपरदन एक निरन्तर प्राकृतिक प्रक्रिया है । कुछ प्रदेशों में मानव द्वारा भूमि के दुरुपयोग के कारण भी अपरदन प्रक्रिया तीव्र हो जाती है । मृदा अपरदन से लगभग 75,000 मिलियन टन उपजाऊ भूमि नष्ट होती है ।

मृदा अपरदन के मुख्य क्षेत्रों को मानचित्र 5.8 में दिखाया गया है । भारत में प्रतिवर्ष लगभग 6000 मिलियन टन उपजाऊ मिट्टी अपरदित हो जाती है । मृदा अपरदन का प्रभाव केवल उन स्थानों पर नहीं होता जहाँ पर वह निक्षेपित होती है । इस महत्वपूर्ण संसाधन को सुरक्षित करने के लिये अनिवार्य कदम उठाने की आवश्यकता है ।

Essay # 6. मृदा संरक्षण

(Soil Conservation):

मृदा संरक्षण के लिये निम्न उपाय बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं:

1. वृक्षारोपण- वृक्षारोपण मृदा अपरदन में कमी लाता है । वृक्ष न केवल मृदा की ऊपरी उर्वर परत को जल द्वारा बहाये जाने अथवा हवा द्वारा उड़ाये जाने से रोकते हैं, बल्कि वे जल के रिसाव की बेहतर व्यवस्था करके मृदा में नमी और जल-स्तर (Water Label) को भी बनाये रखने में सहायक होते हैं ।

2. वृक्षों की कटाई पर प्रतिबंध- वृक्षारोपण के अतिरिक्त वृक्षों की निर्बाध कटाई को नियंत्रित करने की आवश्यकता है । चिपको आन्दोलन जैसे जग-जागरूकता अभियानों द्वारा वृक्ष एवं वनों के महत्व को प्रचारित एवं प्रसारित किए जाने की आवश्यकता है ।

3. समोच्च जुताई और सीढ़ीनुमा खेत बनाकर ढलानों पर खेती करना ।

4. बाढ़ नियन्त्रण- भारत में मृदा अपरदन का बाढ़ से काफी नजदीकी सम्बंध है । बाढ़ प्राय: वर्षा काल में ही आती है । अत: वर्षा काल के जल को संगृहीत करने से अतिरिक्त जल-निकासी, काफी उपयोगी हो सकता है ।

5. नदियों द्वारा अपरदन (Gully Erosion)- अवनालिकाओं तथा रेवाइन (Ravine) का उद्धार (Reclamation) मृदा अपरदन की समस्या के निदान के लिए एक आवश्यक कार्य है । चम्बल नदी की इस प्रकार की बीहड़ भूमि को फिर से कृषि योग्य बनाने का प्रयास किया जा रहा है ।

6. स्थानान्तरी कृषि पर प्रतिबंध- भारत के उत्तर-पूर्व के पर्वतीय राज्यों में बहुत-से किसान वनों को जलाकर खेती करते हैं, जिससे वन सम्पदा को भारी हानि होती है ।

मृदा संरक्षण क्या है इसे समझाइए?

मृदा संरक्षण की विधियाँ हैं - वनों की रक्षा, वृक्षारोपण, बांध बनाना, भूमि उद्धार, बाढ़ नियंत्रण, अत्यधिक चराई पर रोक, पट्टीदार व सीढ़ीदार कृषि, समोच्चरेखीय जुताई तथा शस्यार्वतन। मृदा एक बहुत ही महत्वपूर्ण संसाधन है। यह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विभिन्न प्रकार के जीवों का भरण-पोषण करती है।

मृदा से आप क्या समझते हैं?

मृदा कई ठोस, तरल और गैसीय पदार्थों का मिश्रण है जो भूपर्पटी के सबसे ऊपरी स्तर में पाई जाती है। जैविक, भौतिक और रासायनिक प्रक्रियाओं के एक लंबी अवधि तक बने रहने से मृदा का निर्माण होता है। भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न प्रकार की मृदा पाई जाती है फलस्वरूप फसलों, घासों तथा पेड़-पौधों में भी भिन्नता पाई जाती है।

मृदा अपरदन से आप क्या समझते हैं?

मृदा अपरदन प्राकृतिक रूप से घटित होने वाली एक भौतिक प्रक्रिया है जिसमें मुख्यत: जल एवं वायु जैसे प्राकृतिक भौतिक बलों द्वारा भूमि की ऊपरी मृदा के कणों को अलग कर बहा ले जाना सम्मिलित है। यह सभी प्रकार की भू-आकृतियों को प्रभावित करता है।

मृदा अपरदन क्या है इसके द्वारा होने वाले प्रभाव को बतायें?

मृदा अपरदन में मिट्टी की उपजाऊ सतह अपने मूल स्थान से हटकर दूसरे स्थानों पर स्थानांतरित हो जाती है। मृदा अपरदन में अनेक भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन होते रहते हैं। मृदा अपरदन के कारण- मृदा अपरदन के दो मुख्य कारक हैं <br> (i) वातावरणीय कारक-- जल तथा वायु। <br> (ii) जैवीय कारक- वनों का नष्ट होना।

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