मौर्यसाम्राज्यकीप्रशासनिकव्यवस्था मौर्यकालीन प्रशासन लोक-कल्याणकारी राज्य की अवधारणा पर आधारित था। यहाँ प्रशासनिक व्यवस्था केंद्रीकृत थी परन्तु इसे निरंकुश नहीं कहा जा सकता । कौटिल्य ने राज्य की सप्तांग विचारधारा को प्रतिपादित किया। राज्य के सात अंग हैं-राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, दंड और मित्र। इन सप्तांगों में कौटिल्य राजा को सर्वोच्च स्थान प्रदान करता है तथा शेष को अपने अस्तित्व के लिए राजा पर ही निर्भर बताता है। सप्तांग सिद्धांत राजा (सिर) → अमात्य (आँख) → जनपद (जंघा) → दुर्ग (बाँह) → कोष (मुख) → दंड/बल/सेना (मस्तिष्क) → मित्र (कान) अर्थशास्त्र में वर्णित प्रमुख तीर्थ एवं अध्यक्ष
मौर्य प्रशासन के प्रमुख अध्यक्ष
मौर्यकालीनप्रांत
गुप्तचर व्यवस्था
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