माल्थस का जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत क्या है - maalthas ka janasankhya vrddhi ka siddhaant kya hai

माल्थस एक प्रमुख अर्थशास्त्री थे। उन्होंने 1779 में Principle of Population जनसंख्या के सिद्धांत नामक निबंध में अपने जनसंख्या संबंधी विचार प्रस्तुत किए। इन्होंने जनसंख्या संसाधन के अनुपातिक स्थिति के संदर्भ में जनसंख्या का सिद्धांत दिया। इस विचार के बाद ही जनसंख्या की आर्थिक विवेचना प्रारंभ हुई। इनके अनुसार, संसाधन की उपलब्धता जनसंख्या में वृद्धि करता है। यदि किसी भी देश में जनसंख्या नियंत्रण के प्रभावी उपाय नहीं किए जाते हैं, तो जनसंख्या में संसाधन की तुलना में अत्यंत तीव्र गति से वृद्धि होती जाती है, और ऐसे में जनसंख्या सकारात्मक उपायों के द्वारा अंततः नियंत्रित हो जाती है। इन्होंने मृत्यु को जनसंख्या नियंत्रण का सकारात्मक उपाय माना है।

माल्थस के अनुसार, यदि जनसंख्या को नियंत्रित छोड़ दिया जाए तो किसी भी देश की जनसंख्या 25 वर्षों में दुगनी हो जाएगी। जबकि इस अनुपात में संसाधन में वृद्धि नहीं होती। संसाधन के अंतर्गत माल्थस ने खाद्यान्न की उपलब्धता को रखा है। इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी देश की जनसंख्या में वृद्धि गुणोत्तर श्रेणी या ज्यामितिय में होती है, जैसे –

    • जनसंख्या 1,2,4,8,16, 32, 64…. के अनुपात में बढ़ती है। जबकि संसाधनों में 1,2,3,4,5,6,7,8 के अनुपात में बढ़ते हैं।

इस प्रकार, 200 वर्षों में किसी भी देश की जनसंख्या और संसाधन का अनुपात 256:9 होगा। स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि एक लंबी अवधि के बाद संसाधन की तुलना में जनसंख्या बहुत अधिक हो जाती है।

माल्थस के जनसंख्या एवं संसाधन के अनुपात की 3 अवस्थाएं बतायी हैं।

  1. संसाधनों की तुलना में जनसंख्या की मांग कम
  2. खाद्यान्न उपलब्धता एवं जनसंख्या की मांग बराबर
  3. खाद्यान्न की तुलना में जनसंख्या की मांग अधिक

तीसरी अवस्था ही जनाधिक्य की अवस्था है, जिसमें जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण जनसंख्या की मांग के अनुरूप साधन उपलब्ध नहीं हो पाते। ऐसे में जनसंख्या सकारात्मक उपायों के द्वारा स्वत: नियंत्रित हो जाती है। सकारात्मक उपाय के अंतर्गत अकाल, महामारी, फ्लैग, युद्ध, प्राकृतिक आपदा जैसे कारक आते हैं। कई विशेषज्ञों के अनुसार तीसरी अवस्था के बाद जनसंख्या में मृत्यु के कारण भारी कमी हो जाती है और ऐसे में पुनः पहली अवस्था उत्पन्न होती है। हालांकि यह अवस्था अस्थायी संतुलन की अवस्था है। क्योंकि पुनः जनसंख्या में वृद्धि प्रारम्भ हो जाती है। इस प्रकार माल्थस के सिद्धांत की तीन अवस्थाएं सक्रिय रूप से चलती रहती है।


माल्थस में जनसंख्या नियंत्रण के दो उपाय बताए हैं :


  1. निवारक उपाय : आत्मसंयम, ब्रह्मचार्य, विवाह के बाद आत्मसंयम, विवाह देर से करना आदि
  2. सकारात्मक उपाय : अकाल, महामारी, युद्ध तथा प्राकृतिक आपदा आदि।

माल्थस ने अपने सिद्धांत में इस बात पर बल दिया की जनसंख्या नियंत्रण के निवारण उपाय अपनाए जाते हैं, तो जनसंख्या पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है। लेकिन यदि अनुकूल निवारक उपाय नहीं अपनाया जाए गए तो सकारात्मक उपायों के द्वारा जनसंख्या स्वत: नियंत्रित हो जाएगी।

माल्थस का जनसंख्या संबंधी सिद्धांत यूरोप में जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियों और वहां खाद्यान्न संकट के संदर्भ में तत्कालीन परिस्थितियों में बहुत हद तक लागू होता था। परंतु यूरोप में तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या की तुलना में होने वाले खाद्यान्न की कमी की समस्या को संसाधन विकास, कृषि विकास, नवीन कृषि भूमि उपयोग या कृषि क्षेत्रों में विकास, कृषि में नवीन तकनीक का प्रयोग इत्यादि से समाधान कर लिया गया और यह देखा गया कि जनसंख्या की तुलना में खाद्यान्न उपलब्धता और संसाधनों का विकास अधिक तीव्रता से हुआ।

इस प्रकार यूरोपीय देशों में ही माल्थस के सिद्धांत के अनुरूप जनसंख्या एवं संसाधन के अनुपात की प्रवृतियां नहीं पाई गई। पुनः विश्व के अन्य देशों में भी माल्थस के सिद्धांत के अनुरूप प्रवृतियां नहीं मिलती है, अतः माल्थस के सिद्धांत की आलोचना की जाने लगी।


आलोचना :


  1. संसाधनों में केवल खाद्यान्न कों रखा, जबकि अन्य संसाधन भी हो सकते हैं।
  2. इन्होंने माना खाद्यान्न संकट से जनसंख्या नियंत्रण होगा, जबकि खाद्यान्न की कमी आयात के द्वारा भी दूर की जा सकती है।
  3. कृषि भूमि का विस्तार, उत्पादन में वृद्धि, नवीन तकनीक के उपाय आदि से खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि होती है। यह वृद्धि जनसंख्या में वृद्धि की तुलना में अधिक होती है।
  4. इन्होंने जनसंख्या को भार माना, जबकि जनसंख्या भी संसाधन है।
  5. इनके अनुसार, संसाधन में वृद्धि जनसंख्या वृद्धि को प्रेरित करता है, जबकि जीवन स्तर में वृद्धि होने से जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आती है।
  6. जनसंख्या ज्यामितिय अनुपात में तथा संसाधन अंकगणितीय अनुपात में नहीं बढ़ता है।
  7. हर 25 वर्षों में जनसंख्या दुगनी नहीं होती।
  8. जनसंख्या नियंत्रण के निवारक उपाय अव्यवहारिक है।
  9. जनसंख्या नियंत्रण के सकारात्मक उपाय कहीं नहीं देखे गए। बड़े पैमाने पर जनसंख्या स्वत: नियंत्रित हो सकती है। अतः यह भी व्यवहारिक नहीं है।              

स्पष्टत: माल्थस के सिद्धांत की आलोचना विभिन्न आधारों पर की जाती है, विशेषकर वर्तमान समय में जहां जनसंख्या नियंत्रण के कई वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक उपाय अपनाए जा रहे हैं, परिवार नियोजन कार्यक्रम के अंतर्गत कई विधियां अपनाई जा रही है। ऐसे में माल्थस द्वारा दिए गए निवारक निरोध के उपाय अव्यावहारिक हैं। पुनः वैज्ञानिक प्रगति, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं के विकास के कारण सकारात्मक उपाय द्वारा जनसंख्या नियंत्रण अव्यावहारिक है, क्योंकि मृत्यु दर पर लगभग नियंत्रण स्थापित किया जा चुका है, जबकि विश्व की जनसंख्या विस्फोट अवस्था में है। भूमंडलीकरण के दौर में खाद्यान्न, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं को किसी भी क्षेत्र में उपलब्ध करा दिया जाता है और खाद्यान्न समस्या वाले क्षेत्रों में भी अकाल, महामारी, युद्ध जैसी समस्या वृहद स्तर पर उत्पन्न नहीं होती।

इस प्रकार यह सिद्धांत न तो तत्कालिक परिस्थितियों में लागू होता है और न ही वर्तमान परिस्थितियों में पूर्णतः लागू होती है। अतः इस सिद्धांत को अव्यावहारिक एवं अमान्य करार दे दिया गया। लेकि20वीं सदी में ओसवर्ग एवं बोवेट ने 1948 में नवमाल्थस सिद्धांत दिया। जिससे पुनः माल्थस के सिद्धांत की प्रासंगिकता स्थापित हो गई। नवमाल्थसवाद सिद्धांत के अनुसार, हालांकि विश्व की जनसंख्या में वृद्धि के साथ ही खाद्यान्न उपलब्धता में भी वृद्धि हुई लेकिन अभी भी विश्व की जनसंख्या वृद्धि दर तीव्र बनी हुई है। और यदि ऐसा रहा तो आने वाले समय में कृषि भूमि की कमी, मृदा की गुणवत्ता में कमी, उत्पादकता में कमी के कारण खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो सकता है। अर्थात माल्थस की तीसरी अवस्था उत्पन्न हो सकती है।

इस विचार को क्लब ऑफ रोम के वैज्ञानिकों द्वारा लिखी गई पुस्तक Limits to Growth 1972 का समर्थन प्राप्त हुआ। Limits to Growth के अनुसार, पृथ्वी एक अंतरिक्ष यान की तरह है, जिसमें निश्चित मात्रा में संसाधन तथा रसद पानी उपलब्ध है, अतः अत्यधिक जनसंख्या संसाधन पर दबाव बनाएगा और जनाधिक्य की समस्या उत्पन्न होगी, जब जनसंख्या की तुलना में संसाधन की कमी हो जाएगी। इस तरह वर्तमान समय में भी माल्थस के जनसंख्या संबंधी सिद्धांत की प्रसंगिकता बनी हुई है, जिस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण और वायुमंडलीय पारिस्थितिकीय समस्याओं में वृद्धि हो रही है, यह भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं में तीव्र वृद्धि करेगा। ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन क्षरण, जैव विविधता का ह्रास, जैसी समस्या मानव के अस्तित्व के लिए संकट उत्पन्न करेगी। माल्थस ने भी प्राकृतिक आपदाओं को सकारात्मक उपाय के अंतर्गत स्वीकार किया है।

इस प्रकार माल्थस के जनसंख्या संबंधित सिद्धांत में कई मूलभूत कमियां होने के बावजूद किसी न किसी रूप में इसकी प्रसंगिकता बनी हुई है। और इसकी अवहेलना करना उचित नहीं होगा। इस संदर्भ में क्लर्क महोदय का यह कथन अत्यंत उचित है कि माल्थस के सिद्धांत की जितनी आलोचना की जाती है, यह उतना ही पुष्ट और प्रसांगिक होता जाता है।

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माल्थस का जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत क्या है - maalthas ka janasankhya vrddhi ka siddhaant kya hai

माल्थस का जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत क्या है - maalthas ka janasankhya vrddhi ka siddhaant kya hai

माल्या का जनसंख्या वृद्धि सिद्धांत क्या है?

माल्थस के अनुसार जनसंख्या तथा भरण-पोषण के बीच की खाई अधिक चौड़ी होती जाती है और भरण-पोषण के साधनों पर जनसंख्या का भार बढ़ता जाता है. इसके परिणामस्वरूप पूरा समाज अमर तथा गरीब वर्गों में विभाजित हो जाता है और पूंजीवादी व्यवस्था स्थापित हो जाती है.

माल्थस का क्या सिद्धांत है?

अपने सिद्धान्त में माल्थस ने बताया कि देश में जनसंख्या जीवन-निर्वाह (खाद्य सामग्री) के साधनों से निर्धारित होती है तथा यह जीवन - निर्वाह के साधनों से तीव्र गति से बढ़ने की प्रवृत्ति रखती है ।

माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत कब दिया?

माल्थस एक प्रमुख अर्थशास्त्री थे। उन्होंने 1779 में Principle of Population जनसंख्या के सिद्धांत नामक निबंध में अपने जनसंख्या संबंधी विचार प्रस्तुत किए।

माल्थस जनसंख्या वृद्धि में परिवर्तन की व्याख्या कैसे करता है?

माल्थस के अनुसार यदि जनसंख्या अनियंत्रित रहती है तो यह गुणोत्तर गति/ज्यामितीय गति से बढ़ती है जैसे (1,2,4,8,16……) यदि जनसंख्या वृद्धि दर इसी गति से जारी रहती है तो प्रत्येक 25 वर्ष में जनसंख्या दोगुनी और 200 वर्षो में 256 गुनी हो जाएगी।