महाभारत के रचयिता का नाम क्या है - mahaabhaarat ke rachayita ka naam kya hai

रामायण के अलावा एक अन्य महाकाव्य, जिसकी प्राचीनता रामायण के ही समकालीन है, महाभारत की है। संप्रति इस ग्रंथ में एक लाख श्लोकों का संग्रह है, जिसके कारण इसे शतसाहस्त्र संहिता कहा जाता है। यह जिस रूप में इस समय प्राप्त है, उससे स्पष्ट है, इसकी रचना किसी एक कवि द्वारा एक समय में नहीं की गई थी। शैली, भाषा, छंदादि की दृष्टि से इनमें भारी विषमता है। सामग्रियों की दृष्टि से भी इसमें अंतर है। अतः इस ग्रंथ का विकास वेदव्यास ने इसे काव्य का स्वरूप प्रदान किया। मुख्यतः महाभारत के विकास के तीन स्वरूप माने जाते हैं – जय, भारत, महाभारत। स्वयं महाभारत से ही पता चलता है, कि इसका प्राचीन नाम जय था। इसके बाद इस ग्रंथ को भारत तथा अन्ततः महाभारत संज्ञा प्रदान की गयी।

महाभारत के मूल अंश की रचना काल के विषय में भी मतभेद है। आश्वलायन गृह्यसूत्रों तथा बौधायन धर्मसूत्र में महाभारत एवं वर्णित आख्यानों का स्पष्टतः उल्लेख मिलता है। बौधायन गृह्यसूत्र में गीता का एक श्लोक उद्धृत किया गया है-

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो में भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपह्रतमश्नामि प्रयतात्मनः।।

बौधायन का समय ईसा पूर्व चतुर्थ शताब्दी निर्धारित किया गया है। अतः हम कह सकते हैं, कि महाभारत का मूल अंश इसी समय रचा गया होगा। विन्टरनित्स का यही निष्कर्ष है। मेकडाउन इसकी रचना ईसा पूर्व 500 निर्धारित करते हैं। महाभारत में बौद्धधर्म तथा यवनों के कई उल्लेख प्राप्त होते हैं। इससे भी प्रतिपादित होता है, कि महाभारत बुद्धकाल (ई.पू.छठी शती) के बाद की रचना है। इसके अंतिम स्वरूप में शक, यवन, पह्लव आदि का उल्लेख मिलता है, मंदिरों-स्तूपों का वर्णन है तथा विष्णु और शिव की उपासना का उल्लेख है। इन आधारों पर ऐसा निष्कर्ष निकाला जा सकता है, कि महाभारत का अंतिम स्वरूप ईसा पूर्व दूसरी शती तक पूर्ण हो चुका था। इस प्रकार महाभारत की प्रारंभिक तिथि ई.पू.500-400 तथा अंतिम तिथि ई.पू. तिथि ई.पू.200 मानी जा सकती है।

आजकल अधिकांश विद्वान महाभारत के युद्ध को एक ऐतिहासिक घटना के रूप में मान्यता देते हैं, जो संभवतः ई.पू.950 के लगभग लङा गया था। इस युद्ध के बहुत बाद ग्रंथ का प्रणयन हुआ होगा।


ग्रंथ परिचय- महाभारत में कुल 18 पर्व हैं-

  1. आदि पर्व,
  2. सभा पर्व,
  3. वन पर्व,
  4. विराद पर्व,
  5. उद्योग पर्व,
  6. भीष्म पर्व,
  7. द्रोणपर्व,
  8. कर्ण पर्व,
  9. शल्य पर्व,
  10. सौप्तिक पर्व,
  11. स्त्री पर्व,
  12. शांति पर्व,
  13. अनुशासन पर्व,
  14. अश्वमेघ पर्व,
  15. आत्रमवासी पर्व,
  16. मौसल पर्व,
  17. महाप्रस्थानिक,
  18. स्वर्गारोहण पर्व।

इसके अलावा हरिवंश इसका परिशिष्ट (खिल पर्व) है, जिसमें कृष्णवंश की कथा विस्तारपूर्वक वर्णित है।

महाभारत की कथा का मूल कौरव-पाण्डवों के बीच संघर्ष है। किन्तु इसके विषय इतने व्यापक हैं, कि इसमें दर्शन, धर्म, इतिहास, पुराण, स्मृति, आख्यान आदि सभी का समावेश हो गया है। इस प्रकार यह ग्रंथ प्रााचीन भारतीय जीवन का विश्वकोश बन गया है। ग्रंथकार का यह दावा है धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष(चार पुरुषार्थ) के विषय में जो नहीं है वह कहीं नहीं है तथा जो इसमें है वही अन्यत्र भी है-

धर्मे अर्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
यदिहास्तितदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत्क्वचित।।

महाभारत को एक ही साथ अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र, कामशास्त्र कहा गया है। व्यास ने इसी सभी कवियों का उपजीव्य बताया है। अनेक काव्यों, महाकाव्यों, नाटकों तथा आख्यानों का स्त्रोत महाभारत ही है। साहित्य की अपेक्षा संस्कृति की दृष्टि से इस रचना का अधिक महत्त्व है। यह ऐसा ग्रंथ है, जिसमें प्रत्येक श्रेणी का मनुष्य अपने नैतिक उत्थान के लिये सामग्री प्राप्त कर सकता है। इसके भीष्म, शांति एवं अनुशासन पर्व अध्यात्म, धर्म एवं राजनीति की दृष्टि से अत्युत्तम हैं। भीष्म पर्व का अंग गीता है, जिसमें कर्म, ज्ञान तथा भक्ति का सुन्दर समन्वय है। शांतिपर्व में राजधर्म का अच्छा विवेचन मिलता है, जहां राजा और प्रजा के कर्त्तव्यों तथा अधिकारों का अलग-अलग वर्णन है। अनुशासन पर्व में धर्म तथा नीति विषयक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। महाभारत का मुख्य प्रतिपाद्य धर्म की प्रतिष्ठा है। धर्माचरण द्वारा ही मुनष्य को सच्चा सुध मिल सकता है। व्यास का मत है, कि भय या लोभ के वशीभूत होकर धर्म का परित्याग कदापि नहीं करना चाहिये। इसमें कर्मवाद का प्रतिपादन करते हुये इसे मनुष्य का लक्षण बताया गया है। राजधर्म-संबंधी जो आदर्श महाभारतकार ने सुनिश्चित किये हैं वे आज के युग में भी अनुकरणीय एवं श्लाध्य हैं।

इस प्रकार भारतीय संस्कृति के विविध पक्षों का सम्यक् निरूपण महाभारत में प्राप्त होता है। रामायण तथा महाभारत दोनों ही हमारी संस्कृति की अक्षयनिधियाँ हैं।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

महाभारत के रचयिता का नाम क्या है - mahaabhaarat ke rachayita ka naam kya hai

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Mahabharat ke rachayita kaun hai? or महाभारत के रचयिता कौन हैं? दोस्तों क्या आप जानना चाहते हैं कि महाभारत (mahabharata) के रचयिता कौन हैं या who wrote mahabharata, तो हमारे इस article को अंत तक जरूर पढ़िएगा।

आप में से बहुत लोगों ने कई websites पर यह सवाल पूछा है कि महाभारत के रचयिता कौन हैं, who wrote mahabharat और लोगों के मन में आज भी यह सवाल है कि आखिर महाभारत के रचयिता कौन हैं। 

इसी वजह से हमने आपके लिए यह आर्टिकल लिखा है, जिसमें हम आपके इस सवाल का जवाब देंगे और आपको इससे जुड़ी सारी जानकारी देंगे।

  • महाभारत के रचयिता कौन हैं? (mahabharat ki rachna kisne ki)
  • महाभारत कैसे लिखी गई थी?
    • Ved Vyasa कौन थे?
    • Ved Vyasa को महाभारत लिखने की inspiration कहां से मिली थी?
    • महाभारत लिखने में Ved Vyasa को क्या दिक्कत आई थी?
    • Ganesha ने महाभारत  लिखने में क्या मदद की थी?
  • श्री गणेशा ने वेद व्यासा जी के सामने क्या condition रखी थी?
  • Mahabharat को शब्दों में लिखते समय गणेश और व्यास जी  को क्या दिक्कत आई?
  • महाभारत से हमें क्या सीख मिलती है?
  • निष्कर्ष 

महाभारत के रचयिता कौन हैं? (mahabharat ki rachna kisne ki)

महाभारत के रचयिता का नाम क्या है - mahaabhaarat ke rachayita ka naam kya hai

ऐसा माना जाता है कि समय के साथ महाभारत और भी ज्यादा evolve हो गई है। पहले इसे Jay Samhita (जय संहिता) कहा जाता था। 

इसमें कुल 18 परवास या chapters हैं। Scriptures के हिसाब से इसके रचयिता Ved Vyasa हैं, जो कि एक बहुत ही बड़े साधु थे जिन्होंने इस epic को लिखा था। 

वह सत्यवती के पुत्र थे, जिन्हे Chitrangada (चित्रांगदा) और Vichitravirya (विचित्रवीर्य) के मरने के बाद हस्तिनापुर की रानी बनाने के लिए बुलाया गया था।

लेकिन हम में से कुछ ही लोगों को मालूम है कि वह तो गणेशा जी थे जिनकी मदद से यह epic कहानी हम तक पहुंच सकी थी। 

यह एक बहुत ही ज्यादा मजेदार कहानी है, जिसमें सबसे ज्यादा बेहतरीन कहानी सुनाने वाला और सबसे बेहतरीन लेखक ने मिलकर महाभारत लिखी थी।

अब जबकि आपको यह पता चल गया है कि महाभारत किसने लिखी थी, हम आपको यह बताते हैं कि महाभारत को कैसे लिखा गया था।

महाभारत कैसे लिखी गई थी?

हिंदू धर्म की दो सबसे बड़ी किताबें रामायण और महाभारत है। महाभारत दुनिया की सबसे लंबी लिखी जाने वाली कहानी है, जो मानवजाती के इतिहास में होने वाले सबसे बड़े युद्ध की दास्तां लोगों को सुनाती है। जो कौरवों और पांडवों के बीच में हुआ था। 

Ved Vyasa कौन थे?

जैसा कि हमने आपको बताया कि महाभारत को बहुत ही बड़े गुरु Ved Vyasa ने लिखा था।

इतना ही नहीं वेद व्यासा उन पांच पांडवों और 100 कौरवों के दादा थे। उनके पिताजी Dhritarashtra (धृतराष्ट्र) और पांडु, जोकि Vichitravirya (विचित्रवरिया) के बेटे थे उन्हें Kuru clan में ही दोनों ने पाला था। ऐसा कहा जाता है कि वेद व्यासा की जिंदगी अपने बच्चों और पोतों से भी बड़ी थी और उन्होंने उनसे भी ज्यादा लंबा जीवन जिया था।

Ved Vyasa को महाभारत लिखने की inspiration कहां से मिली थी?

एक बार जब वेद व्यासा  हिमालय पर्वत पर प्रार्थना कर रहे थे और ध्यान लगा रहे थे, तब उन्हें ब्रह्मा जी (जिन्होंने यह संसार बनाया है) का एक vision  दिखाई दिया, उस vision में ब्रह्मा जी ने वेद व्यासा को महाभारत लिखने को कहा, क्योंकि उन्होंने उसे अपनी आंखों के सामने होते हुए देखा और वही उसे लिखने के लिए सबसे बढ़िया इंसान थे।

महाभारत लिखने में Ved Vyasa को क्या दिक्कत आई थी?

वेद व्यासा को मालूम था कि महाभारत को लिखना बहुत ही ज्यादा कठिन काम होगा, क्योंकि इसमें ऐसी बहुत सी घटनाएं घटित हुई थी, जिन्हें लिखना बहुत ही ज्यादा कठिन था। 

और इसमें इतने बड़े-बड़े characters थे जिनके बारे में शब्दों में लिखना उन्हें बहुत ही ज्यादा कठिन लग रहा था। 

वेद व्यासा को यह बात समझ आ गई थी कि उन्हें इसे लिखने में किसी की सहायता की जरूरत पड़ेगी। ब्रह्मा जी ने जब उन्हें यह सलाह दी कि वह गणेशा जी की मदद ले, जोकि लोगों के दुखों को हरते हैं।

Ganesha ने महाभारत  लिखने में क्या मदद की थी?

महाभारत के रचयिता का नाम क्या है - mahaabhaarat ke rachayita ka naam kya hai

जैसे ही वेद व्यासा ने श्री गणेशा के बारे में ध्यान लगाना शुरू किया, गणेशा जी उनके उनकी आंखों के सामने आ गए। और गणेशा जी ने व्यासा जी की महाभारत लिखने में मदद करने के लिए खुशी होकर हां कर दिया।  

लेकिन गणेशा जी को हिंदू धर्म में सबसे ज्यादा mischievous भगवान माना जाता है, उन्होंने एक बहुत ही बेहतरीन आईडिया बताया जिसकी मदद से वेद व्यासा इस महान कहानी को बहुत ही कम समय में लिख पाए।

श्री गणेशा ने वेद व्यासा जी के सामने क्या condition रखी थी?

वेद व्यासा से इस महान कहानी को बहुत ही जल्दी compose कर वाने के लिए, गणेश जी ने उनके सामने एक कंडीशन रखी है, उन्होंने यह कहा कि वेद व्यासा जी आप इस महान कहानी को मुझे बताइए और मैं इसे बहुत ही जल्दी लिखूंगा। 

हालाकि, अगर आप इस कहानी को सुनाते हुए कहीं भी रुक गए तो मैं जितनी भी कहानी लिखी हुई है, उसे साथ लेकर चला जाऊंगा और वेद व्यास जी ने उनकी इस कंडीशन को मान लिया।

हालांकि, वेद व्यासा जी ने भी गणेश जी के सामने अपनी एक कंडीशन रखी, उन्होंने कहा कि आप तभी इस कहानी की किसी लाइन को लिखना शुरू करेंगे जब आपको उस वाक्य का मतलब समझ में आएगा, और ऐसा करते समय वेद व्यासा जी को अगली लाइन बताने के लिए कुछ समय मिल जाएगा।

और फिर गणेशा जी ने इस महान कहानी को लिखना शुरू कर दिया।

जब भी वेद व्यासा जी थकने लगते थे वह गणेशा जी को इतनी ज्यादा कठिन लाइन बता देते थे कि उसे समझने में गणेशा जी को कुछ समय लग जाता था, जिसकी मदद से व्यासा जी को थकान मिटाने के लिए कुछ समय मिल जाता था और वह आगे की लाइन बताने के लिए तैयार हो जाते थे।

जब यह दोनों इस कहानी को लिख रहे थे तब उन्हें एक और दिक्कत का सामना करना पड़ा। गणेशा जी जिस प्राचीन पेन से लिख रहे थे वह लिखते समय टूट गया, क्योंकि वह गणेशा जी की लिखने की गति के साथ नहीं चल पा रहा था हालांकि, गणेश जी ने लिखना बंद नहीं किया और उन्होंने अपने एक tusk तोड़कर उससे लिखना शुरु कर दिया।

इसी वजह से, बहुत सी pictures में, गणेशा जी की केवल एक ही tusk दिखती है, और इसी तरह से इस महान कहानी को लिखा गाया था। 

हालाकि, यह एक बहुत ही बड़ी कहानी थी, इसे केवल तीन सालों में लिख दिया गया था, और यह काम गणेशा जी और व्यासा जी की कोशिशों के बिना नहीं हो पता।

महाभारत के रचयिता का नाम क्या है - mahaabhaarat ke rachayita ka naam kya hai

महाभारत, इस दुनिया में 5000 सालों से भी ज्यादा समय से पहले मौजूद थी।

महाभारत सच में एक ऐसी कहानी है जो कुछ ऐसे सत्य बताती है, जो हमेशा जिंदा रहेंगे। 

महाभारत Greek के ग्रंथों से बहुत ही ज्यादा अलग है, जो ग्रीक के भगवानों के एडवेंचर और खोजों के बारे में बताते हैं। 

महाभारत अपनी सत्य कहानियों के साथ मोरल concepts के बारे में भी लोगों को बताती है, जो हर समय इंसान के साथ रहते हैं।

महाभारत अपने characters की जिंदगी  की मदद से हमें कर्म और धर्म के issues को संभालने के तरीकों के बारे में भी बताते हैं। 

इसमें कुछ ऐसे भी lessons हैं जो पढ़ने वाले के दिमाग में बहुत सारे सवालों को जन्म देते हैं, जिनके बारे में अपनी आम जिंदगी में नहीं सोचता है।

महाभारत की कहानी का सबसे जरूरी भाग है कुरुक्षेत्र में पांडवों और कौरवों के बीच में धर्म की लड़ाई। श्री कृष्णा ने इस युद्ध को धर्मयुद्ध भी कहा है।

इसमें Duryodhana (दुर्योधन) एक चालाक और schemes बनाने  वाला राजा होता है जो पांडवों की वीरता से जलता था और उसने पांडवों को राज्य से धोखाधड़ी से निकल दिया था। 

उसने Yudhisthira (युधिस्ठिर) को dice के एक गेम के लिए बुलाया और छल से उसे राज्य के बाहर निकल दिया।

पांडवों ने अपने जीवन के तेराह साल exile में गुजारे और जिसके बाद उन्हें अपना आधा राज्य वापस मिलना चाहिए था लेकिन दुर्योधन ने उन्हें वह देने से कर दिया।

उसके बाद भी पांडव लड़ना नहीं चाहते थे और वह केवल पांच गांव ही मांग रहे थे। हालाकि, दुर्योधन बहुत ही ज्यादा stubborn राजा था और उसने उन्हें वह भी देने से मना कर दिया था।

आखिर में, पांडवों ने कौरवों को युद्ध की चुनौती दी। पांडवों को पता था कि युद्ध में कितनी जाने जाती हैं, लेकिन उनके पास यही एक रास्ता बचा था। लेकिन महाभारत इस चीज का भी जिक्र करती है, की Yudhisthira (युधिष्ठिर) अभी भी लड़ना नहीं चाहते थे।

इसी तरह से, जंग के मैदान पर, जहां पर दो armies एक दूसरे को मारने के लिए उतरी थीं, Arjuna (अर्जुन) जोकि पांडवों की ओर से एक बहुत ही बड़ी शूरवीर थे, वह एक धर्म संकट में थे। 

उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने गुरुओं को कैसे मार सकते हैं, जिन्होंने उन्हें लड़ना सिखाया था। लेकिन अब वह दुश्मन की ओर से लड़ रहे थे, और जंग केवल उनको मार कर ही जीती जा सकती थी, वह अपने हत्यारों को डालना चाहते थे। महाभारत अर्जुन की इस दुविधा की मदद से हमें इंसान के जीवन में आई दिक्कतों के बारे में बहुत ही ज्यादा clarity से बताती है। 

उसके बाद, श्री कृष्ण उन्हें यह बताते हैं कि धर्म की जीत के लिए कभी-कभी अधर्म को भी अथॉरिटी के साथ मिटाना पड़ता है।  

और तभी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता सुनाई। इस धर्मयुद्ध से यह सवाल उठता है कि सही रास्ता क्या है? 

एक इंसान यह सकता है कि जंग चाहे जितनी भी दर्दनाक हो बुराई को मिटाने के लिए इसकी जरूरत पड़ती ही है।

क्या यह कहना सही होगा कि धर्म तभी माना जाता है, जब ज्यादा लोगों वाले group को ज्यादा फायदा मिलता है?

हालांकि महाभारत हमारी आम जिंदगी में आने वाली चुनौतियों के बारे में हमें बताने की कोशिश करती है। महाभारत के बारे में सबसे ज्यादा interesting बात यह है कि यह पढ़ने वाले को मोरल issues के बारे में सोचने पर मजबूर कर देती है। 

हमारे आर्टिकल के इस भाग में हमने आपको mahabharata story के बारे में बताया। अब हम आपको बताएंगे कि आप महाभारत से क्या सीख सकते हैं।

महाभारत से हमें क्या सीख मिलती है?

महाभारत के रचयिता का नाम क्या है - mahaabhaarat ke rachayita ka naam kya hai

महाभारत से हमें बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है, लेकिन यह कुछ सात जरूरी चीजें हैं जो हम महाभारत से सीख सकते हैं।

1. अगर आप किसी इंसान से बदला लेना चाहते हैं, तो इस process में आपका भी नाश हो जाएगा। जैसे की कौरवों का हो गया था क्योंकि वह पांडवों को मिटाना चाहते थे।

2. आपको हमेशा सच के साथ होना चाहिए, चाहे उसके लिए आपको लड़ना ही क्यों ना पड़े। जैसे कि श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि  उन्हें धर्म के साथ खड़ा होना होगा, चाहे उन्हें अपने परिवार से ही क्यों ना करना पड़े।  

इसी वजह से अर्जुन ने अपने शस्त्र (weapons) उठाए थे और कौरवों का नाश किया था।

3. महाभारत से हमें दोस्ती के अटूट बंधन के बारे में भी पता चलता है। जैसे कृष्ण और अर्जुन और साथ ही में Duryodhan और कर्ण की दोस्ती को देखकर भी हमें यह पता चलता है कि दोस्ती के लिए इंसान किस हद तक जा सकता है।

4. किसी भी विषय के बारे में आधी जानकारी होना बहुत ही ज्यादा खतरनाक हो सकता है। जैसे कि अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से हमें यह बात पता लगती है कि आधी जानकारी होने से, कभी- कभी हमें बहुत ही ज्यादा दुखद परिणाम झेलना पड़ता है। 

जैसे अभिमन्यु इस जंग में घुस गए थे लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इससे बाहर कैसे निकला जाता है।

5. आपको लालच में आकर कभी भी फैसला नहीं लेना चाहिए। जैसा कि हमें युधिष्ठिर को देखकर पता लगता है कि उन्होंने अपनी लालच की वजह से क्या जीता था? बल्कि, लालच में आकर वह अपना सब कुछ हार गए थे।

6. चाहे हमारी जिंदगी में कितनी भी कठिनाइयां आ जाए, हमें हार नहीं माननी चाहिए। इस वाक्य के लिए कर्ण से बेहतर उदाहरण क्या हो सकता है। कर्ण ने अपनी पूरी जिंदगी हार नहीं मानी। 

उन्होंने इस धर्मयुद्ध में अपनी पूरी जान लगा दी और वह भी अपनी दोस्ती की वजह से।

7. अगर आप एक स्त्री हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि आप किसी से कम हैं। Draupadi (द्रौपदी) को कौरवों ने humiliate किया और वह भी अपने पति की गलती की वजह से। 

लेकिन उन्होंने भी यह कसम खा ली की वह अपने बाल Duryodhana और दुशानना के खून से ही धोएंगी, यह शायद एक और वजह थी जिसपर यह धर्मयुद्ध (DharmaYudh) हुआ था।

अब आपको यह समझ आ गया होगा कि mahabharat kisne likha tha, अब हम आपको महाभारत पर अपने अंतिम विचार बताएंगे।

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निष्कर्ष 

दोस्तों महाभारत एक ऐसी कहानी है जिससे हमें कई विषयों पर सीख मिलती है, इससे हमें अपने जीवन का मकसद भी पता चलता है और हमें यह भी जानकारी मिलती है कि हमें इस जीवन को किस तरह से जीना चाहिए। आप चाहें तो इसपर बनी mahabharat katha भी देख सकते हैं।

इस आर्टिकल में हमने आपको बताया की महाभारत का रचयिता कौन थे या mahabharat kisne likhi, इसे कैसे लिखा गया और इससे हमें क्या सीख मिल सकती है। 
उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल महाभारत के रचयिता कौन हैं? or Mahabharat ke rachayita kaun hai पसंद आया होगा, अगर आपका कोई सवाल है, तो उसे comment करके जरूर पूछें। इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद!

हेलो दोस्तों, मै हुँ राज कपूर, आपका दोस्त! मुझे Blogging, SEO, Online Paise Kaise Kamye के तरीकों के बारे में पढ़ना और लिखना अच्छा लगता हैं! मैं सिर्फ उन्हीं तरीकों के बारे में लिखता हूँ जिन्हे मै खुद अजमाया हूँ की काम करते है या देख रहा हूँ की दूसरे लोग उस काम से पैसे कमा रहे हैं! BloggingCity.in पर आने के लिए आपका दिल से धन्यवाद!

महाभारत महाकाव्य के रचयिता कौन है?

हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं।

रामायण और महाभारत के रचयिता कौन थे?

रामायण को आदिकाव्य कहा जाता है, क्योंकि इसने वैदिक संस्कृत से भिन्न लौकिक संस्कृत में काव्यधारा का प्रवर्तन किया। इसके रचयिता वाल्मीकि आदिकवि कहे जाते हैं। दूसरी ओर महाभारत को इतिहास कहते हैं, जिसके रचयिता व्यास हैं।

महाभारत के रचयिता कौन है * 1 Point?

Answer. महर्षि वेदव्यास ने समस्त विवरणों के साथ महाभारत ग्रन्थ की रचना की थी।

महाभारत कितने साल पहले हुआ था?

आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ईसा पूर्व में हुआ और कलियुग का आरम्भ कृष्ण के निधन के 35 वर्ष पश्चात हुआ। एक नवीनतम अध्ययन अनुसार राम का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था। शल्य जो महाभारत में कौरवों की तरफ से लड़ा था उसे रामायण में वर्णित लव और कुश के बाद की 50वीं पीढ़ी का माना जाता है।