लुटा गया है कौन जौहरी अपने घर का भरा खजाना पत्तों पर फूलों पर पग पग बिखरे हुए रतन हैं नाना? - luta gaya hai kaun jauharee apane ghar ka bhara khajaana patton par phoolon par pag pag bikhare hue ratan hain naana?

ओस

सोहनलाल द्विवेदी

हरी घास पर बिखेर दी हैं
ये किसने मोती की लड़ियाँ?
कौन रात में गूँथ गया है
ये उज्जवल हीरों की कड़ियाँ?

जाड़े के मौसम में सुबह सुबह ओस की बूँदें ऐसे लग रही हैं जैसे किसी ने हरी-हरी घास पर मोती की लड़ियाँ बिखेर दी है। या ऐसा लगता है जैसे किसी ने चमकते हीरों की कड़ी बना दी हो।


Chapter List

गुड़िया दो गौरैया चिट्ठियों में यूरोप ओस नाटक में नाटक सागर यात्रा उठ किसान ओ सस्ते का चक्कर एक खिलाड़ी की यादें बस की सैर हिंदी ने जिंदगी आषाढ़ का पहला दिन अन्याय के खिलाफ केशव पिल्लै फर्श पर बूढ़ी अम्मा की बात वह सुबह आएगी

जुगनू से जगमग जगमग ये
कौन चमकते हैं यों चमचम?
नभ के नन्हे तारों से ये
कौन दमकते हैं यों दमदम?

जब सूरज की किरणें ओस की बूँदों पर पड़ती हैं तो वे असंख्य जुगनुओं की भांति चमकते हैं। आप उनमें आसमान के तारों की दमक भी देख सकते हैं।

लुटा गया है कौन जौहरी
अपने घर का भरा खजाना?
पत्तों पर, फूलों पर, पगपग
बिखरे हुए रतन हैं नाना।

पत्तों, फूलों और कदम-कदम पर इस तरह के नाना प्रकार के रतन बिखरे हुए हैं जैसे किसी जौहरी ने अपना पूरा खजाना लुटा दिया हो।

बड़े सबेरे मना रहा है
कौन खुशी में ये दिवाली?
वन उपवन में जला दी है
किसने दीपावली निराली?

कवि को ऐसा लगता जैसे बाग बगीचों में कोई सैंकड़ों दीप जलाकर सबेरे सबेरे दिवाली मना रहा है।

जी होता इन ओस कणों को
अंजलि में भर, घर ले जाऊँ
इनकी शोभा निरख निरख कर
इन पर कविता एक बनाऊँ।

आखिर में कवि ओस की नैसर्गिक सुंदरता से इतना अभिभूत हो गया है कि उसकी इक्षा हो रही है कि उन्हें अपनी अंजलि में भर कर घर ले जाए। घर में वह उनकी शोभा को बारीकी से देखकर उनपर एक सुंदर सी कविता लिखना चाहता है।



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लुट गया है कौन जौहरी अपने घर का भरा खजाना पत्तों पर फूलों पर पग पग बिखरे हुए रतन हैं नाना?

नभ के नन्हें तारों से ये कौन दमकते हैं यों दमदम ? लुटा गया है कौन जौहरी अपने घर का भरा खज़ाना ? पत्तों पर, फूलों पर, पग पग बिखरे हुए रतन हैं नाना। बड़े सबेरे मना रहा है कौन खुशी में यह दीवाली ?

लुटा गया है कौन जौहरी अपने घर का भरा खजाना यहाँ कौन का अर्थ है?

कवि को ऐसा लगता जैसे बाग बगीचों में कोई सैंकड़ों दीप जलाकर सबेरे सबेरे दिवाली मना रहा है। इन पर कविता एक बनाऊँ। आखिर में कवि ओस की नैसर्गिक सुंदरता से इतना अभिभूत हो गया है कि उसकी इक्षा हो रही है कि उन्हें अपनी अंजलि में भर कर घर ले जाए। घर में वह उनकी शोभा को बारीकी से देखकर उनपर एक सुंदर सी कविता लिखना चाहता है।

ओस कविता के कवि कौन है?

ओस / सोहनलाल द्विवेदी - कविता कोश

जुगनू से जगमग जगमग ये कौन चमकते हैं यों चमचम नभ के नन्हें तारों से ये कौन दमकते हैं यों दमदम?

जुगनू से जगमग जगमग ये कौन चमकते हैं यों चमचम? नभ के नन्हें तारों से ये कौन दमकते हैं यों दमदम? लुटा गया है कौन जौहरी अथवा Page 7 अपने घर का भरा खजाना ? पत्तों पर, फूलों पर, पगपग बिखरे हुए रतन हैं नाना ।