लक्ष्मी बाई को कौन सी कहानियाँ मुंह जबानी याद थीं? - lakshmee baee ko kaun see kahaaniyaan munh jabaanee yaad theen?

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, 
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, 
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। 

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी, 
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी, 
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी, 
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

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1 year ago

लक्ष्मीबाई को कौन सी कहानियाँ जुबानी याद थी?

वीर शिवाजी की गाथाएँ उसको याद ज़बानी थीं। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली रानी थी।।

रानी लक्ष्मीबाई की मुंह बोली बहन कौन थी?

बिठूर के नाना की, मुंहबोली बहन छबीली थी, लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी। नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी, बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी। वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी कौन सा रस है?

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। ' इन पंक्तियों में वीर रस है, इसमें कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने 1857 में झाँसी की रानी द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में झाँसी की रानी द्वारा किए गए प्रथम आगाज़ को वर्णित किया है। वीर रस का स्थायी भाव उत्साह हैं।

रानी लक्ष्मी बाई का नारा क्या था?

साल 1858 में जून का 17वां दिन था जब खूब लड़ी मर्दानी, अपनी मातृभूमि के लिए जान देने से भी पीछे नहीं हटी. 'मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी' अदम्य साहस के साथ बोला गया यह वाक्य बचपन से लेकर अब तक हमारे साथ है.