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इजरायल में उजड़ती ज़िंदगियों का सच‘नेगव डेज़र्ट’ इजरायल का वह रेगिस्तानी इलाका, जहां अरब मूल के लोग रहते हैं। इन्हें बेदुइन कहा जाता है, जो तभी से वहां हैं, जब इजरायल में यहूदियों का बढ़ना शुरू हुआ था। ये वह लोग हैं, जिन्होंने कभी उस धरती में पशुओं को चराने, उन्हें पालने की शुरुआत की थी। दशकों से उनके घर वहां मौजूद हैं। उन्हें इजरायली कहा जाता है, लेकिन बेदुइन समुदाय अब खुद को इजरायली कहलाने पर ही शर्म महसूस करता है। ऐसा ही है आसिफ, जिसने रेगिस्तान को हरा-भरा करने के प्रयास किए, लेकिन उसके ही घर को बेरहमी से ढहा दिया गया। आज उसके पास रहने के लिए घर नहीं है। देश के दक्षिणी हिस्से में बसे बेदुइन समुदाय को नए पेड़ लगाने के नाम पर बेदखल किया जा रहा है। ये वही पेड़ हैं, जो अमेरिका में रहने वाले यहूदी लोग इजरायल में भेजते हैं। इन पेड़ों को देश की उन जगहों पर लगाया जाता है, जहां हरियाली नहीं के बराबर है। निश्चित तौर पर नेगव डेज़र्ट में। अमेरिकी यहूदी कई पीढ़ियों से पेड़ दान कर रहे हैं, ताकि उन्हें इजरायल भेजा जा सके। वहां इन पेड़ों को लगाने के लिए 18 डॉलर भुगतान करना होता है, जिससे हरियाली बढ़ती है। यदि आप इजरायल में रहते हैं और पेड़ों की देखभाल करते हैं, तो समझा जाता है कि आप समझदार और देख-रेख करने वाले हैं। ये ऐसे पेड़ होते हैं जो कम पानी में भी बढ़ जाते हैं। पेड़ लगाने का उद्देश्य कुछ और है। अमेरिका से पेड़ लाने का काम ‘जीव्स नेशनल फंड’ के बैनर तले होता है। यह समूह हरियाली बढ़ाने के लिए पेड़ों को इजरायल पहुंचाता है। वहां इससे जुड़े अन्य लोगों की जिम्मेदारी होती है कि पेड़ लगाने की। यह समूह अब तक 25 करोड़ से ज्यादा पेड़ लगा चुका है। पिछले कुछ समय से ज्यादातर पेड़ नेगव के रेगिस्तान में लगाए जा रहे हैं। पेड़ लगाने के नाम पर बेदुइन समुदाय को उनकी उस जमीन से बेदखल किया जा रहा है, जहां वे दशकों से रह रहे हैं। विरोध करने पर उनके घरों पर बुल्डोजर चला दिए जाते हैं। इस समुदाय के लीडर शेख सायख अल तुरी कहते हैं- पेड़ लगाना अच्छी बात है। हम भी हरियाली चाहते हैं, लेकिन हमारी जिंदगी उजाड़ने की कीमत पर नहीं। हमारे लिए एक-एक पेड़ उस सैनिक की तरह है, जो हमारे समुदाय परिवार को खत्म कर रहा है। हमारी जिंदगियां ले रहा है। अल-तुरी के बेटे अजीज कहते हैं- हजारों लोगों को बेदखल किया जा चुका है। जीव्स नेशनल फंड समूह फलों और बादाम के हजारों पेड़ों की जान ले चुका है। उनकी जगह वह नए पेड़ लगा रहा है। उनका उद्देश्य हमारे समुदाय को बेदखल करना है। वे यहां से हमारा इतिहास मिटाकर यहूदियों का इतिहास लिखना चाहते हैं। इजरायल में मानवाधिकार के लिए काम करने वाले रब्बियों के प्रेसीडेंट रब्बी एरिक एचरमैन इस समुदाय का समर्थन करते हैं। वे कहते हैं- जीव्स नेशनल फंड में कई अच्छाईयां हैं। बाहरी लोग यही जानते हैं, लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है। आप इजराजल में कहीं भी चले जाइए, आपको जीव्स नेशनल फंड के द्वारा स्थापित वन नजर आएंगे। उनके बीच बड़ी जगह ऐसी है, जहां से बेदुइन समुदाय के लोगों को उजाड़ा गया है। आरोपों और दावों के विपरीत जीव्स नेशनल फंड के इजरायल में चीफ एग्जीक्यूटिव रशेल रॉबिन्सन ने बताया- समस्या बेदुइन समुदाय नहीं, उनकी गरीबी है। हम उनकी गरीबी मिटाना चाहते हैं। उनके कल्याण के लिए हमारे पास कई कार्यक्रम हैं। वे पेड़ लगाने को अलग ढंग से लेते हैं, जबकि उन्हें इसके लाभ जानना चाहिए। ©The New York Times अल तुरी भी मानते हैं, पेड़ लगाना जरूरी हैं, लेकिन हमारी जिंदगी की कीमत पर यह ठीक नहीं है। मुस्लिम देशों की आंखों में क्यों चुभता है इसराइल4 जुलाई 2017 इमेज स्रोत, Getty Images प्रधानमंत्री मोदी की इसराइल यात्रा को भारत की विदेश नीति में अहम बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत का खाड़ी के मुस्लिम देशों से अच्छा संबंध रहा है. दूसरी तरफ़ इसराइल से खाड़ी के मुस्लिम देशों के संबंध काफ़ी कड़वे हैं. दुनिया भर के मुसलमानों के मन में इसराइल की नकारात्मक छवि है. आख़िर इसराइल से खाड़ी के मुस्लिम देश क्यों चिढ़े रहते हैं. इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको इसराइल के उदय को समझना होगा. इसराइल दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां की बहुसंख्यक आबादी यहूदी है. इसराइल एक छोटा देश है पर उसकी सैन्य ताक़त का दुनिया लोहा मानती है. अनौपचारिक रूप से कहा जाता है कि इसराइल परमाणु शक्ति संपन्न देश है और अपनी ताक़त के दम पर ही अस्तित्व में है. अरब देशों का इसराइल पर हमला50 साल पहले इसराइल और उसके पड़ोसियों के बीच युद्ध भड़क गया था जिसे 1967 के अरब-इसराइल युद्ध के नाम से जाना जाता है. यह संघर्ष महज छह दिन ही चला, लेकिन इसका असर आज तक नज़र आता है. 1948 के आख़िर में इसराइल के अरब पड़ोसियों ने हमला कर दिया था. इनकी कोशिश इसराइल को नष्ट करने की थी, लेकिन वे नाकाम रहे. अरब और इसराइल के संघर्ष की छाया मोरोक्को से लेकर पूरे खाड़ी क्षेत्र पर है. इस संघर्ष का इतिहास काफ़ी पुराना है. 14 मई 1948 को पहला यहूदी देश इसराइल अस्तित्व में आया. यहूदियों और अरबों ने एक-दूसरे पर हमले शुरू कर दिए. लेकिन यहूदियों के हमलों से फ़लस्तीनियों के पाँव उखड़ गए और हज़ारों लोग जान बचाने के लिए लेबनान और मिस्र भाग खड़े हुए. 1948 में इसराइल के गठन के बाद से ही अरब देश इसराइल को जवाब देना चाहते थे. जनवरी 1964 में अरब देशों ने फ़लस्तीनी लिबरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन, पीएलओ नामक संगठन की स्थापना की. 1969 में यासिर अराफ़ात ने इस संगठन की बागडोर संभाल ली. इसके पहले अराफ़ात ने 'फ़तह' नामक संगठन बनाया था जो इसराइल के विरुद्ध हमले कर काफी चर्चा में आ चुका था. 1967 का युद्धइसराइल और इसके पड़ोसियों के बीच बढ़ते तनाव का अंत युद्ध के रूप में हुआ. यह युद्ध 5 जून से 11 जून 1967 तक चला और इस दौरान मध्य पूर्व संघर्ष का स्वरूप बदल गया. इसराइल ने मिस्र को ग़ज़ा से, सीरिया को गोलन पहाड़ियों से और जॉर्डन को पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम से धकेल दिया. इसके कारण पाँच लाख और फ़लस्तीनी बेघरबार हो गए. 1973 का संघर्षजब कूटनीतिक तरीकों से मिस्र और सीरिया को अपनी ज़मीन वापस नहीं मिली तो 1973 में उन्होंने इसराइल पर चढ़ाई कर दी. अमरीका, सोवियत संघ और संयुक्त राष्ट्र संघ ने संघर्ष को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस युद्ध के बाद इसराइल अमरीका पर और अधिक आश्रित हो गया. इधर सऊदी अरब ने इसराइल को समर्थन देने वाले देशों को पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया जो मार्च 1974 तक जारी रहा. शांति समझौतामिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात 19 नवंबर 1977 को यरुशलम पहुँचे और उन्होंने इसराइली संसद में भाषण दिया. सादात इसराइल को मान्यता देने वाले पहले अरब नेता बने. अरब देशों ने मिस्र का बहिष्कार किया लेकिन अलग से इसराइल से संधि की. 1981 में इसराइल के साथ समझौते के कारण इस्लामी चरमपंथियों ने सादात की हत्या कर दी. फ़लस्तीनी इंतिफ़ादाइसराइल के कब्ज़े के विरोध में 1987 में फ़लस्तीनियों ने इंतिफ़ादा यानी जनआंदोलन छेड़ा जो ज़ल्दी ही पूरे क्षेत्र में फैल गया. इसमें नागरिक अवज्ञा, हड़ताल और बहिष्कार शामिल था. लेकिन इसका अंत इसराइली सैनिकों पर पत्थर फेंकने से होता. जवाब में इसराइली सुरक्षाबल गोली चलाते और फ़लस्तीनी इसमें मारे जाते. शांति प्रयासखाड़ी युद्ध के बाद मध्य पूर्व में शांति स्थापना के लिए अमरीका की पहल पर 1991 में मैड्रिड में शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ. 1993 में नोर्व के शहर ओस्लो में भी शांति के लिए वार्ता आयोजित की गई. इसमें इसराइल की ओर से वहाँ के तत्कालीन प्रधानमंत्री रॉबिन और फ़लस्तीनी नेता यासिर अराफ़ात ने हिस्सा लिया. इसके बाद तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पहल पर व्हाइट हाउस में शांति के घोषणा पत्रों पर हस्ताक्षर हुए. पहली बार इलराइली प्रधानमंत्री यित्ज़ाक राबिन और फ़लस्तीनी नेता अराफ़ात को लोगों ने हाथ मिलाते देखा. 4 मई 1994 को इसराइल और पीएलओ के बीच काहिरा में सहमति हुई कि इसराइल कब्ज़े वाले क्षेत्रों को खाली कर देगा. इसके साथ ही फ़लस्तीनी प्राधिकारण का उदय हुआ. लेकिन ग़ज़ा पर फ़लस्तीनी प्राधिकरण के शासन में अनेक मुश्किलें पेश आईं. इन समस्याओं के बावजूद मिस्र के शहर ताबा में ओस्लो द्वितीय समझौता हुआ. इस पर पुन: हस्ताक्षर हुए. लेकिन इन समझौतों से भी शांति स्थापित नहीं हो पाई और हत्याओं और आत्मघाती हमलों का दौर जारी है. इसराइल की मजबूती से स्थापित करने में खुफिया एजेंसी मोसाद की अहम भूमिका रही है. मोसाद की अहम बातें
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.) दुनिया में एकमात्र यहूदी राष्ट्र कौन है?इसराइल दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां की बहुसंख्यक आबादी यहूदी है.
इजरायल में कितने प्रतिशत यहूदी है?कुछ 74.5% सभी पृष्ठभूमि (लगभग 6,556,000 व्यक्तियों) के यहूदी हैं, 20.9% यहूदी (लगभग 1,837,000 व्यक्तियों) के अलावा किसी भी धर्म के अरब हैं, जबकि शेष 4.6% (लगभग 400,000 व्यक्तियों) को "अन्य" के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनमें शामिल हैं यहूदी वंश ने धार्मिक कानून और गैर-यहूदी वंशावली के गैर-यहूदी समझा जो यहूदी ...
यहूदियों का देश कौन सा है?याकूब का दूसरा नाम था इजरायल, इस कारण 'इब्रानी' और 'यहूदी' के अतिरक्ति उन्हें 'इजरायली' भी कहा जाता है। यहूदी धर्म को मानने वालों को यहूदी (en:Jew) कहा जाता है। यहूदियों का निवास स्थान पारंपरिक रूप से पश्चिम एशिया में आज के इसरायल को माना जाता है जिसका जन्म १९४७ के बाद हुआ।
इजरायल में यहूदियों का क्या है?यहूदी एकेश्वरवाद में विश्वास करते हैं. मूर्ति पूजा को इस धर्म में पाप समझा जाता है. आज से करीब 4000 साल पुराना यहूदी धर्म वर्तमान में इजराइल का राजधर्म है. अब्राहम: यहूदी धर्म की शुरुआत पैगंबर अब्राहम (अबराहम या इब्राहिम) से मानी जाती है, जो ईसा से 2000 वर्ष पूर्व हुए थे.
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