कस्तूरी मृग का अपने पर चिढ़ने का क्या कारण है - kastooree mrg ka apane par chidhane ka kya kaaran hai

Exercise 1 ( Page No. : 166 )

  • Q1 इस कविता में बादलों के सौंदर्य चित्रण के अतिरिक्त और किन दृश्यों का चित्रण किया गया है?
    Ans:

    1. ओस की बूदो को कमलो पर गिरने द्रश्य का चित्रण किया गया था I
    2. हिमालय में विधमान झीलों पर हंसो के तेरने के द्रश्य का चित्रण किया गया था I
    3. वसंत ऋतु के सुंदर सुबह के द्रश्य का चित्रण किया गया था I

    Q2 प्रणय-कलह से कवि का क्या तात्पर्य है?
    Ans:

    प्रणय – कहल से कवि का तात्पर्य प्रेम रुपी झगड़ो से थे इस झगड़े में कडवाहट की जगह केवल प्रेम था यह केवल दो प्यार करने वाले जोड़ो के बीच में प्यार की लड़ाई थी कवि चकवा चकवी के बीच इस प्रेम विवाद को दिखाते थे I

    Q3 कस्तूरी मृग के अपने पर ही चिढ़ने के क्या कारण हैं?
    Ans:

    कस्तूरी अपने पूरे जीवन में केवल कस्तूरी गंध की खोज में रहता था उसे इस बात का ज्ञान नही था की कस्तूरी उसकी नाभि में था जब वह उसे खोजते खोजते थक जाता था तो वह चिढने लगता था वह अपनी असमर्थता की वजह से परेशान हो जाता था I

    Q4 बादलों का वर्णन करते हुए कवि को कालिदास की याद क्यों आती है?
    Ans:

    कालिदास एक ऐसे कवि थे जिन्होंने बादल को अपने रचना मेघदूत में एक दूत के रूप में दर्शाया है धनपति कुबेर के द्वारा एक यक्ष को भगा दिया गया है उस यक्ष ने मेघ को अपना दूत बनाकर अपने अपने प्रिय को सदेश भेजा था कालिदास ने जिन स्थानों का वर्णन किया है उन्हें खोजने के लिए कवि ने बहुत प्रयास किया था I

    Q5 कवि ने 'महामेघ को इंझानिल से गरज-गरज भिड़ते देखा है' क्यों कहा है?
    Ans:

    पर्वतीय इलाको में कैलाश के शिखर पर कवि में बादलों के एक समूह को तूफानों से लड़ते देखा था बहुत बार बादलो के समूह तेज़ हवाओ के साथ टकराते थे जिस वजह में आसमान में बहुत भयकर गर्जना होने लगती थी उन्हें देखकर प्रतीत होता था की वे लड़ते थे इसलिए कवि ने कहा था कि महामेघ को झ्झानिल से गरज गरज भिड़ते देखा था I

    Q6 'बादल को घिरते देखा है' पंक्ति को बार-बार दोहराए जाने से कविता में क्या सौंदर्य आया है? अपने शब्दों में लिखिए।
    Ans:

    इस पक्ति का प्रयोग कवि ने टेक के रूप में किया था इसलिए इस पक्ति का उपयोग हर अंतरा के बाद किया जाता था कविता इस तरह से कविता प्रभावशाली हो जाती थी और उसका मूलभाव स्पष्ट हो जाता था इसके प्रयोग के कारण काव्य सोदर्य में भी आश्र्यजनक बदलाव देखने को मिलता था I

    Q7 (क) निशा काल से चिर-अभिशापित/बेबस उस चकवा-चकई का बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें/उस महान सरवर के तीरे शैवालों की हरी दरी पर/प्रणय-कलह छिड़ते देखा है। (ख) अलग नाभि से उठने वाले/निज के ही उन्मादक परिमल- के पीछे धावित हो-होकर/तरल तरुण कस्तूरी मृग को अपने पर चिढ़ते देखा है।
    Ans:

    इसका उत्तर आप स्वय दे

    Q8 (क) छोटे-छोटे मोती जैसे ............... कमलों पर गिरते देखा है। (ख) समतल देशों में आ-आकर ........... हंसों को तिरते देखा है। (ग) ऋतु वसंत का सुप्रभात था ............. अगल-बगल स्वर्णिम शिखर थे। (घ) ढूँढ़ा बहुत परंतु लगा क्या ............. जाने दो, वह कवि-कल्पित था।
    Ans:

    इसका उत्तर आप अध्यापक से सलाह करके स्वय दे I

कस्तूरी मृग के अपने पर ही चिढ़ने के क्या कारण हैंकस्तूरी

| कस्तूरी मृग के अपने पर ही चिढ़ने के क्या कारण हैं?

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SOLUTION

कस्तूरी मृग की नाभि में कस्तूरी होती है| उसकी सुगंध उसे आती रहती है| यह सुगंध उसे मस्त कर देती है| अत: वह उस खुशबू से उन्मादित होकर जंगल में यहाँ-वहाँ घूमता-फिरता है| बहुत कोशिश करने के बाद जब वह इस सुगंध के स्रोत को नहीं ढूँढ पाता तो वह अपने आप पर चिढ़ने लगता है|

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Page No 166:

Question 1:

इस कविता में बादलों के सौंदर्य चित्रण के अतिरिक्त और किन दृश्यों का चित्रण किया गया है?

Answer:

इस कविता में निम्नलिखित द़ृश्यों का चित्रण हुआ है-
• ओस की बूंदों को कमलों पर गिरने के दृश्य का चित्रण
• हिमालय में विद्यमान झीलों पर हंसों के तैरने का दृश्य
• वसंत ऋतु के सुंदर सुबह के दृश्य का चित्रण
• चकवा-चकवी का सुबह मिलने का दृश्य का चित्रण
• कस्तूरी हिरण के भगाने के दृश्य का चित्रण
• किन्नर तथा किन्नरियों के दृश्य का चित्रण

Page No 166:

Question 2:

प्रणय-कलह से कवि का क्या तात्पर्य है?

Answer:

इसका तात्पर्य है कि प्रेम से युक्त तकरार। इस तकरार में कड़वाहट के स्थान पर प्रेम शामिल होता है। यह दो प्रेमी जोड़ों के मध्यम प्रेम से भरी लड़ाई होती है। कविता में चकवा-चकवी के मध्य यह प्रणय-कलह दर्शाया गया है।

Page No 166:

Question 3:

कस्तूरी मृग के अपने पर ही चिढ़ने के क्या कारण हैं?

Answer:

कस्तूरी मृग पूरा जीवन कस्तूरी गंध के पीछे भागता रहता है। उसे इस सत्य का भान ही नहीं होता है कि वह गंध तो उसकी नाभि में व्याप्त कस्तूरी से आती है। जब वह ढूँढ़-ढूँढ़कर थक जाता है, तो उसे अपने पर ही चिढ़ हो जाती है। वह अपनी असमर्थता के कारण परेशान हो उठता है।

Page No 166:

Question 4:

बादलों का वर्णन करते हुए कवि को कालिदास की याद क्यों आती है?

Answer:

कालिदास ऐसे कवि हैं, जिन्होंने अपनी रचना 'मेघदूत' में बादल को दूत के रूप में चित्रित किया था। एक यक्ष को धनपति कुबेर ने अपने यहाँ से निर्वासित कर दिया था। निर्वासित यक्ष मेघ को दूत बनाकर अपनी प्रेमिका को संदेश भेजा करता था। कवि ने बहुत प्रयास किया कि वे उन स्थानों को खोज निकाले जिनका उल्लेख कालिदास ने किया था। उसे वे स्थान बहुत खोजने पर भी नहीं मिले। अतः बादलों का वर्णन करते हुए कवि को कालिदास की याद हो आई।

Page No 166:

Question 5:

कवि ने 'महामेघ को इंझानिल से गरज-गरज भिड़ते देखा है' क्यों कहा है?

Answer:

पर्वतीय प्रदेशों में भयंकर ठंड के समय कैलाश के शिखर पर कवि ने बादलों के समूह को तूफानों से लड़ते देखा है। प्रायः पर्वतों में बादल समूह तेज़ हवाओं से टकरा जाते हैं। जिनके कारण आकाश में भयंकर गर्जना होने लगती है। उन्हें देखकर आभास होता है कि वे लड़ रहे हैं। इसी कारण कवि ने कहा है कि महामेघ को झंझानिल से गरज-गरज भिड़ते देखा है।

Page No 166:

Question 6:

'बादल को घिरते देखा है' पंक्ति को बार-बार दोहराए जाने से कविता में क्या सौंदर्य आया है? अपने शब्दों में लिखिए।

Answer:

इस पंक्ति को कवि ने टेक के रूप में प्रयोग किया है। अतः इसे प्रत्येक अंतरा के बाद प्रयोग किया गया है। इस तरह कविता प्रभावी बन जाती है और उसका मूलभाव स्पष्ट हो जाता है। इसके प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में भी अद्धुत वृद्धि हो जाती है।

Page No 166:

Question 7:

निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) निशा काल से चिर-अभिशापित/बेबस उस चकवा-चकई का

बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें/उस महान सरवर के तीरे

शैवालों की हरी दरी पर/प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।

(ख) अलग नाभि से उठने वाले/निज के ही उन्मादक परिमल-

के पीछे धावित हो-होकर/तरल तरुण कस्तूरी मृग को

अपने पर चिढ़ते देखा है।

Answer:

(क) प्रस्तुत पंक्ति में चकवा और चकई का दर्द दर्शाया गया है। कहा जाता है कि चकवा और चकवी को श्राप है कि वे रात को अलग हो जाएँगे। यहाँ पर उसी श्राप का उल्लेख करते हुए कवि कहता है कि अभिशापित चकवा और चकई रात को अलग हो जाते हैं। वे दोनों एक-दूसरे के लिए पूरी रात रोते हैं। सुबह होने पर उनका क्रंदन (रोना) बंद हो जाता है। वे दोबारा से तालाब के किनारे में व्याप्त हरी शैवालों पर प्रेम की मीठी लड़ाई लड़ने लगते हैं। मानो चकई बोल रही हो कि तुम रात मुझे छोड़कर क्यों चले गए थे। यह प्रणय-कलह कवि स्वयं देखता है।

(ख) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कस्तूरी हिरण की परेशानी को दर्शाता है। वह कहता है कि कस्तूरी मृग पूरा जीवन कस्तूरी गंध के पीछे भागता रहता है। उसे इस सत्य का भान ही नहीं होता है कि वह गंध तो उसकी नाभि में व्याप्त कस्तूरी से आती है। जब वह ढूँढ़-ढूँढ़कर थक जाता है, तो उसे अपने पर ही चिढ़ हो जाती है। वह अपनी असमर्थता के कारण परेशान हो उठता है।

Page No 167:

Question 8:

संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
(क) छोटे-छोटे मोती जैसे ............... कमलों पर गिरते देखा है।
(ख) समतल देशों में आ-आकर ........... हंसों को तिरते देखा है।
(ग) ऋतु वसंत का सुप्रभात था ............. अगल-बगल स्वर्णिम शिखर थे।
(घ) ढूँढ़ा बहुत परंतु लगा क्या ............. जाने दो, वह कवि-कल्पित था।

Answer:

(क) संदर्भ- प्रस्तुत पंक्ति 'नागर्जुन' द्वारा रचित कविता 'बादल को घिरते देखा है' से ली गई हैं। इसमें कवि वर्षा ऋतु में तालाब के सौंदर्य का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या- कवि कहता है कि वर्षा का सौंदर्य अद्भुत है। हिमालय स्थल में तो इस सौंदर्य की बात ही अलग है।  ओस के छोटे-छोटे कण मोती के समान लग रहे हैं। उसके शीतल और बर्फ के समान कणों को कवि ने मानसरोवर में सुनहरे खिले कमलों के ऊपर गिरते देखा है। भाव यह है कि ओस के कणों को उसने कमल पर गिरते देखा है। यह सौंदर्य अद्भुत था।

(ख) संदर्भ- प्रस्तुत पंक्ति 'नागर्जुन' द्वारा रचित' कविता 'बादल को घिरते देखा है' से ली गई हैं। इसमें कवि वर्षा ऋतु में हिमालय स्थल में बनी झीलों के सौंदर्य का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या- कवि कहता है कि हिमालय पर्वत श्रृंखला में बहुत-सी छोटी-बड़ी प्राकृतिक झीलें विद्यमान हैं। इन झीलों में मैदानी स्थानों के ऊमस भरे मौसम से तंग आकर हंसों के समूह को आते देखा है। वे झीलों के नीले जल में तीखे-मीठे स्वाद से युक्त वाले कमल नालों को खोजते हुए तैरते हैं। वे इस झील में बहुत सुंदर लगते हैं। भाव यह है कि वर्षा ऋतु में हिमालय की झीलें इन हंसों का निवास स्थान बन जाती है।

(ग) संदर्भ- प्रस्तुत पंक्ति 'नागर्जुन' द्वारा रचित कविता 'बादल को घिरते देखा है' से ली गई हैं। इसमें कवि वसंत ऋतु की सुबह के सौंदर्य का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या- कवि कहता है कि वसंत ऋतु का सुंदर प्रभात (सुबह) हो रहा है। इस समय मंद तथा शीतल हवा चल रही है। सूर्यास्त की सुनहरी किरणें अपने आस-पास व्याप्त शिखरों को सोने के समान रंग में रंग रही हैं। भाव यह है कि वसंत ऋतु की सुबह का सौंदर्य बहुत सुंदर होता है।

(घ) संदर्भ- प्रस्तुत पंक्ति 'नागर्जुन' द्वारा रचित कविता 'बादल को घिरते देखा है' से ली गई हैं। इसमें कवि कालिदास द्वारा मेघदूत में वर्णित स्थानों को ढूँढ़ रहा है।
व्याख्या- कवि कहता है कि कालिदास ने मेघदूत रचना में व्याप्त अलकापुरी का उल्लेख किया है। उसने उसे ढूँढ़ने का बहुत प्रयास किया लेकिन उसे नहीं मिली। कवि कहता है कि वह कौन-सा स्थान होगा, जहाँ मेघ रूपी दूत बरस पड़ा होगा। कवि कहता है कि मैंने बहुत ढूँढ़ा पर असफलता हाथ लगी है। अतः इसे जाने देते हैं शायद यह कवि की कल्पना मात्र थी।

Page No 167:

Question 1:

अन्य कवियों की ऋतु संबंधी कविताओं का संग्रह कीजिए।

Answer:

विद्यार्थी यह कार्य स्वयं कीजिए।

Page No 167:

Question 2:

कालिदास के 'मेघदूत' का संक्षिप्त परिचय प्राप्त कीजिए।

Answer:

'मेघदूत' संस्कृति के प्रसिद्ध कवि तथा नाटककार कालिदास  द्वारा रचित है। जैसा कि नाम से पता चलता है कि इसमें मेघ ने दूत का कार्य किया है। यह एक प्रेम कहानी है। इसमें धनपति कुबेर द्वारा अपने एक यक्ष को एक वर्ष के लिए अपनी नगर अलकापुरी से निष्काषित कर दिया जाता है। यक्ष दक्षिण दिशा में स्थित रामगिरि में बने आश्रम में रहने लगता है। वह किसी प्रकार आठ महीने व्यतीत कर लेता है लेकिन जब वर्षा ऋतु आती है, तो अपनी पत्नी यक्षी के विरह में व्याकुल हो उठता है। ऐसे में वह अपनी पत्नी के पास अपना संदेश पहुँचाना चाहता है। वह मेघ से प्रार्थना करता है और उसे विभिन्न स्थानों की जानकारी देता है, जहाँ से गुजरकर वह निश्चित स्थान पर पहुँच सकता है।

Page No 167:

Question 3:

बादल से संबंधित अन्य कवियों की कविताएँ यादकर अपनी कक्षा में सुनाइए।

Answer:

यह कार्य विद्यार्थी स्वयं करें।

Page No 167:

Question 4:

एन.सी.ई.आर.टी. ने कई साहित्यकारों, कवियों पर फ़िल्में तैयार की हैं। नागार्जुन पर भी फ़िल्म बनी है। उसे देखिए और चर्चा कीजिए।

Answer:

यह कार्य विद्यार्थी स्वयं करें।

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कस्तूरी मृग के अपने पर चिढ़ने का क्या कारण है?

कस्तूरी मृग पूरा जीवन कस्तूरी गंध के पीछे भागता रहता है। उसे इस सत्य का भान ही नहीं होता है कि वह गंध तो उसकी नाभि में व्याप्त कस्तूरी से आती है। जब वह ढूँढ़-ढूँढ़कर थक जाता है, तो उसे अपने पर ही चिढ़ हो जाती है।

कबीर ने कस्तूरी मृग का उदाहरण देकर क्या स्पष्ट करने का प्रयास किया है?

मित्र कबीर कस्तूरी मृग के उदाहरण से यह समझाना चाहते हैं कि हिरण कस्तूरी की महक से मुग्ध होकर उसे वन में चारों तरफ़ ढूंढ़ता रहता है। परन्तु वह इस बात से अन्जान होता है कि कस्तूरी और कहीं नहीं उसकी पेट में स्थित कुंडली में है।

कस्तूरी मृग क्यों भागता रहता है?

कस्तूरी मृग देखने में हिरण जैसे दिखते हैं और लोक-मान्यता में इन्हें हिरण ही समझा जाता है, लेकिन जीववैज्ञानिक दृष्टि से यह हिरणों के वंश (जो सर्विडाए‎ कहलाता है) का भाग नहीं हैं। कस्तूरी मृगों में असली हिरणों की भांति सींग नहीं होते और इनमें कस्तूरी ग्रंथी होती है, जो हिरणों में नहीं होती।

मृग कस्तूरी को कहाँ ढूँढ़ता रहता है?

मृग कस्तूरी को वन में इसलिए ढूंढता फिरता है, क्योंकि वह कस्तूरी की तेज सुगंध से भरमा जाता है और उस सुगंध की खोज में वन में भटकता फिरता है, जबकि वास्तव में कस्तूरी उसकी नाभि में ही छुपी होती है, लेकिन उसे इस बात का ज्ञान नहीं होता और वह कस्तूरी कहीं और होने की आशा में उसकी खोज में वन में भटकता फिरता है।

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