कन्यादान कविता में स्त्री-जीवन के प्रति संवेदना कैसे व्यक्त की गई है?

कवि-परिचय-ऋतुराज का जन्म सन् 1940 में भरतपुर में हुआ। राजस्थात विश्वविद्यालय, जयपुर से इन्होंने अंग्रेजी में एम.ए. किया चालीस वर्षों तक अंग्रेजी साहित्य के अध्यापन के उपरान्त अब सेवानिवृत्त होकर जयपुर में रहते हैं इसके अब तक आठ कविता -संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें ‘एक मरणच्मा और अन्य’, ‘पुल पर पानी’, ‘सुरत निरत और लीला मुखारविन्द’ प्रमुख हैं। इन्हने सामाजिक उपेक्षा एवं शोषण-उत्पीड़न से ग्रस्त लोगों की चिन्ताओं और विडम्बनाओं को अपने लेखन का विषय बनाया है। इसी कारण इनकी भाषा अपने परिवेश और लोक-जीवन से जुड़ी हुई है। इन्हें अब तक ‘सोमदत्त’, ‘परिमल सम्मान’, ‘मीरा पुरस्कार’, ‘पहल सम्मान’ तथा बिहारी पुरस्कार’ मिल चुके हैं।
पाठ-परिचय- इस कविता में कवि ने माँ के द्वारा बेटी को विवाह के समय दी गई सीख का वर्णन किया है। माँ की यह सीख परम्परागत सीख से हटकर है। वह बेटी को जीवन के वास्तविक संघर्ष से अवगत कराती है और कहती है कि लड़की होना, परन्तु लड़की जैसी मत दिखाई देना। दुर्बलता और कोमलता के कारण अपनी शक्ति एवं स्वाभिमान को ठेस मत लगने देना।

प्रश्न 3. कवि ने स्त्री-जीवन का बन्धन किसे बताया है?
उत्तर-कवि ने वस्त्रों एवं आभूषणों को स्त्री-जीवन का बन्धन बताया है ।

प्रश्न 4. माँ ने लड़की को कैसा नहीं दिखने के लिए कहा है?
उत्तर-माँ ने लड़की को दुर्बल, पराश्रित, दमन चक्र से दबी हुई अर्थात् एकदम कमजोर लड़की नहीं दिखने के लिए कहा है ।

प्रश्न 5. ‘अपने चेहरे पर मत रीझना’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-ससुराल में जाकर बहुएँ स्वयं को सुन्दरी मानने का भ्रम न रखें, क्योंकि इससे दूसरे लोग उनकी कमजोरी का फायदा उठाते हैं।

प्रश्न 6. माँ को अपनी बेटी अन्तिम पूँजी क्यों लग रही थी?
उत्तर-कन्यादान के बाद बेटी अपने ससुराल चली जायेगी, पराई हो जायेगी और माँ को अपना सुख-दु:ख अकेले भोगना पड़ेगा।

लघूत्तरात्मक प्रश्न –
प्रश्न 7. आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?
उत्तर-माँ चाहती थी कि उसकी लड़की स्वभाव से सरल, भोली और कोमल बनी रहे, क्योंकि ये गुण लड़की में स्वाभाविक रूप से होने चाहिए । इसके साथ ही आज के इस स्वार्थी समाज को देखकर वह उसे शोषण से भी बचाना चाहती थी, ताकि उसकी पुत्री अपने वैवाहिक जीवन में दुर्बलता, कायरता एवं हीनता से ग्रस्त न हो, वह ससुराल में अन्याय व शोषण का सामना कर सके। इसीलिए उसने कहा कि लड़की लड़की तो बने, किन्तु लड़की जैसी न दिखाई दे।

प्रश्न 8. माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?
उत्तर-माँ ने बेटी को यह सीख दी कि (1) अपने रूप-सौन्दर्य पर कभी गर्व मत करना, अर्थात् उसकी प्रशंसा पर न रीझकर धोखे से बचना।
(2) आग का सदुपयोग करना, अत्याचार एवं अन्याय का दृढ़ता से सामना करना। (3) वस्त्रों एवं आभूषणों से भ्रमित न होना और अपना व्यक्तित्व न खोना। (4) अपनी सरलता, कोमलता और भोलेपन को इस तरह प्रकट न करना कि संसुराल वाले उसका गलत ढंग से फायदा उठायें ।

प्रश्न 9. “वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बन्धन हैं स्त्री-जीवन के।” उपरोक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-जिस प्रकार चतुर व्यक्ति अपनी लच्छेदार भाषा और मोहक शब्दावली से भाल इन्सान को अपना गुलाम बना देता है, वैसे ही पुरुष से प्राप्त वस्त्र ओर आभूषणों के लालच में अथवा उन्हें लेकर आसक्त होने से स्त्री भ्रमित हो जाती है और वह पुरुष की दासी बन जाती है। ससुराल में अच्छे वस्ताभूषणों के मोह में स्त्री प्राय दास्तामय बन्धन में पड़ जाती है।

प्रश्न 10. ‘कन्यादान’ कविता में माँ की मूल चिन्ता क्या है?
उत्तर-कन्यादान’ कविता में माँ की मूल चिन्ता यह बताई गई है कि उसकी लड़को भोली और सरल स्वभाव की है। वह वैवाहिक जीवन के कष्टों और कठिनाइयें। को अच्छी तरह नहीं जानती है। वह दुनियादारी से अपरिचित तथा स्वार्थी लोगे व्यवहार से अनजान है। अत: माँ की मूल चिन्ता अपनी लड़की को स्वार्थी लोगों कुदृष्टि से बचाने की है। साथ ही विवाहित जीवन के कष्टों के बारे में सोच-सोज वह घुली जा रही है।

प्रश्न 11. आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है? समझाइये |।
उत्तर-प्राचीन काल. में हिन्दू समाज में धन-दान, अन्न-दान, विद्यादान के साथ ही कन्यादान की सांस्कृतिक परम्परा थी। उस समय अपनी कन्या को नवयुवक या पति रूपी वर को दान रूप में समर्पित करना अतीव पुण्यदायी माना जाता था। उस समय यह समाज की श्रेष्ठ धार्मिक परम्परा थी। परन्तु वर्तमान काल में कन्या के साथ दान की बात करना हमारी. दृष्टि में उचित नहीं है। क्योंकि कन्या अन्न, धन या वस्त्र आदि की तरह कोई बेजान वस्तु नहीं है, जिसका दान किया जावे। कन्या का अपना पृथक् व्यक्तित्व होता है, उसकी अपनी भावनाएँ एवं आकांक्षाएँ होती हैं। इसके साथ ही यह भी विचारणीय है कि जो वस्तु दान में दी जाती है, वह न तो वापिस ली जाती है और न उससे कोई आत्मीय सम्बन्ध रखा जाता है। कन्या विवाह के बाद अपने माता-पिता के पास आती है और उनके साथ रहती भी है। इस आधार पर भी उसके साथ दान की बात करना उचित नहीं है। इसी विचारधारा के आधार पर कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी पुत्री के विवाह के समय उसका कन्यादान नहीं किया था। अतएव आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार कन्यादान का पहले जैसा स्वरूप नकारा जा रहा है और कन्या को पुत्र क समान हो घर का अभिन्न सदस्य माना जा रहा है।

प्रश्न 12. निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(क) माँ ने कहा पानी में झाँककर–जलने के लिए नहीं।
(ख) वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह पर लड़की—जैसी दिखाई मत देना।
उत्तर-व्याख्या पूर्व में दी गई है, उसे देखकर लिखिए ।

प्रश्न 1. ‘पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की’-इसमें ‘धुँधले प्रकाश’ का क्या आशय है?
उत्तर-इसमें ‘धुँधले प्रकाश’ का आशय भावी जीवन में मिलने वाले सुखों की अस्पष्ट कल्पना है।

प्रश्न 2. माँ ने अपनी बेटी को आग का क्या उपयोग बताया?
उत्तर-माँ ने अपनी बेटी को बताया कि आग का उपयोग खाना पकाने एवं रोटियाँ सेंकने के लिए होता है।

प्रश्न 3. माँ के अनुसार उसकी कन्या कैसी थी?
उत्तर-माँ के अनुसार उसकी कन्या एकदम भोली तथा भविष्य में मिलने वाले कष्टों से अपरिचित थी।

प्रश्न 4. ‘कन्यादान’ कविता में किसका दु:ख प्रामाणिक बताया गया है?
उत्तर-प्रस्तुत कविता में कन्या की माँ का दुःख प्रामाणिक अर्थात् बहुत सच्च और वास्तविक बताया गया है।

प्रश्न 5. ‘कन्यादान’ कविता में कवि ने किसके प्रति संवेदना व्यक्त की है?
उत्तर-‘कन्यादान’ कविता में कवि ने स्क्री-जीवन के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की है।

प्रश्न 1. ‘कन्यादान’ कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए। (माध्य. शिक्षा बोर्ड, 2018 )
उत्तर-‘कन्यादान’ कविता का मूल भाव एक माँ की ममता, चिन्ता लोकानुभव की सहज व्यंजना करना है। उसमें नवविवाहिता बनकर ससुराल जाने वाली कन्या के लिए यह सीख दी गई है कि वह लड़की जैसी न दिखाई देना, अपितु संघर्ष एवं समझदारी से ससुराल में जीवनयापन करना। इस तरह ससुराल में आदर्शीकरणा का प्रतिरोध करने की तथा कोरी भावुकता न रखकर समयानुसार सुख दुःख को की शिक्षा देना इसका मूल भाव है।

प्रश्न 2. ‘कन्यादान’ कविता में बेटी को अन्तिम पूँजी क्यों कहा गए
उत्तर- ‘कन्यादान’ कविता में बेटी को अन्तितिम पूँजी इसलिए कहा गया है वह माता-पिता की लाड़ली होती है। कन्यादान के समय वह संचित पालित पैं की तरह दूसरों को सौंप दी जाती है। बेटी अपनी माँ से सबसे अधिक पनिष्ठता । और उसके सुख-दुःख की सहयोगिनी होती है। उसके ससुराल चले जाने पर स्वयं को अकेली मानने लगती है। इसी से माँ उसे अपनी अन्तिम पूँजी मानक अत्यन्त भावुक हो जाती है।

प्रश्न 3. ‘कन्यादान’ कविता के आधार पर बताइये कि कविता में की
भावुकता नहीं बल्कि एक माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है।
उत्तर-माँ अपनी बेटी के सुख-दुःख की साथी व सहेली होती है। वह बे
के स्वभाव की सरलता, भोलापन, कोमलता एवं दुनियादारी से अपरिचय आदि कमजोरियों को जानती है । सामाजिक व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के लिए आचरण सम्बन्धी जो नियम एवं प्रतिमान गढ़े गये हैं, इससे स्त्रियाँ आदर्श के मुखौटों से बँधी रहती हैं। एक स्त्री होने के नाते माँ अपने अनुभव द्वारा बेटी को उपयुक्त सलाह देती है। इस कारण उसके कथन में अनुभूत पीड़ा की भावुकता स्पष्ट दिखाई देती है।

प्रश्न 4. ‘कन्यादान’ कविता में कवि ने माँ के दुःख को प्रामाणिक क्यों बताया है?
उत्तर-प्रस्तुत कविता में कवि ने माँ के दु:ख को वास्तविक अथवा प्रामाणिक इसलिए बताया है कि उसे अपने वैवाहिक जीवन के कष्टों का यथार्थ और पूरा अनुभव प्राप्त है। वह अच्छी तरह जानती है कि ससुराल में उसकी अत्यन्त भोली एवं सरल स्वभाव की कन्या को कितने कष्ट झेलने पड़ेंगे। वह इस बात से अत्यन्त व्यथित एवं भावुक हो जाती है कि ससुराल में बेटी को किस तरह अपने सुख-दुःख को बॉँटना पडेगा और कैसे सम्भावित कठिन स्थितियों का सामना करना पड़ेगा।

प्रश्न 5. ‘कन्यादान’ कविता में माँ अपनी पुत्री के बारे में क्या कामना करती है? बताइये।
उत्तर-‘कन्यादान’ कविता में बताया गया है कि माँ अपनी बेटी के वैवाहिक जीवन को लेकर चिन्तित रहती है। इसलिए वह कामना करती है कि उसकी बेटी ससुराल में जाकर समझदारी से काम ले। वह अपनी सरलता, सुन्दरता और भोलेपन के कारण बन्धनों में नहीं पड़े । वह अपने ऊपर होने वाले अन्याय और अत्याचार से बचे, अबला न होकर वह सबला बने तथा अपने भविष्य को सँवारने का पूरा प्रयास करें।

प्रश्न 6, एक कन्या विवाह से पूर्व अपने वैवाहिक जीवन की कैसी कैसा कल्पनाएँ करती है? बताइये।
उत्तर-एक कन्या विवाह से पूर्व अपने वैवाहिक जीवन को लेकर बडी रंगीन कल्पनाएँ करती है। वह आशा करती है कि उसका पति उससे अतिशय प्रेम करेगा. ससुराल के सभी लोग उसके रूप- सौन्दर्य को देखकर रीझेंगे। उसे वहाँ पर सुन्दर वस्त्र एवं आभूषण पहनने का मिलेंगे तथा वह उनसे सज-धजकर सबका मन अपनी ओर आकर्षित कर लेगी । ससुराल का जीवन कष्टमय नहीं रहेगा और वहाँ पर सुख के सभी साधन उपलब्ध रहेंगे।

प्रश्न 7. “आग रोटियाँ सेंकने के लिए है।
जलने के लिए नहीं। ” इन पंक्तियों से क्या व्यंजना की गई है? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-इन पंक्तियों से यह व्यंजना की गई है कि यदि ससुराल वाले कम
दहेज मिलने से नवविवाहिता को प्रताडित करते हैं एवं आत्महत्या के लिए विवश कर देते हैं तो नवविवाहिता आग में जलकर मर जाती है अथवा निरद्दयी ससुराल वाले उसे जलाकर मार देते हैं। इस प्रकार आग का गलत प्रयोग किया जाता है। इसी आशय से माँ द्वारा बेटी को आग से जलकर आत्महत्या करने की कुचेष्टा करने से सावचेत किया गया है।

प्रश्न 8. ‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को जो सीख दी है क्या बह
आज के युग के अनुकूल है? सतर्क उत्तर दीजिए ।
उत्तर-‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को जो सीख दी के सर्वथा अनुकूल है। वर्तमान में ससुराल पक्ष के लोग नववधू की सरलता का अनुचित लाभ उठाते हैं। वे उस पर काम करने का दबाव डालते हैं, पीहर से पर्याप्त धनादि लाने का प्रयास करते हैं और बात-बात पर उसे धमकाते – सताते रहते हैं। अतः माँ चाहती है कि उसकी बेटी ससुराल में साहस से ऐसी बातों का विरोध करे और स्वाभिमान से जीवन-यापन करे।

प्रश्न 1. ‘कन्यादान’ कविता के आधार पर कन्यादान की प्राचीन एवं
आधुनिक अवधारणा स्पष्ट कीजिए ।
(माध्य. शिक्षा बोर्ड, मॉडल पेपर, 2017-18)
उत्तर-प्राचीन काल में हिन्दू समाज में धन-दान, गाय-दान, अन्न-दान, विद्या दान, भूमि दान के साथ ही कन्या दान की सांस्कृतिक परम्परा थी। उस समय माता- पिता अपनी कन्या को योग्य नवयुवक या पति रूपी वर को दान रूप में समर्पित करना अतीव पुण्य का कार्य मानते थे । कन्यादान प्राचीन कालीन समाज की आदर्श परम्परा था। कन्यादान के समय परिवार के बड़े-बुजुर्ग तथा माता-पिता कन्या को ससुराल में आचरणीय कर्त्तव्य की शिक्षा भी देते थे और उसे पतिकुल के साथ पिताकुल के गौरव का रक्षा का महत्त्व बतलाते थे उस समय धार्मिक दृष्टि से भी कन्यादान का विशेष व था। परन्तु वर्तमाम काल में कन्यादान की परम्परा में अनेक दोष आ गये हैं। मल ही कन्या के माता-पिता आदि उसे सुशिक्षित करते हैं तथा उसके सुखा गृहस्थ जीवन की कामना करते हैं, परन्तु आधुनिक काल में कन्यादान धन एवं प्रतिष्ठा विषय बन गया है। कन्या कोई बेजान वस्तु नहीं है, जिसका दान किया जावे. पर उसके साथ दहेज-प्रथा जुड़ गई है इस कारण कन्यादान के साथ पर्याप्त या मुँहमौ दहेज दिया जाने लगा है। अब उसे आभूषणों से लादा जाता है और वह ससुराल मे जाकर दमन-चक्र से पीडित एवं पराश्रित-उपेक्षित-सी रहती है। इस प्रकार आधुनि काल में कन्यादान की अवधारणा में काफी अन्तर आ गया है।

प्रश्न 2. ‘कन्यादान’ कविता में व्यक्त सन्देश एवं मूल कीजिए।
उत्तर-सन्देश-‘कन्यादान’ कविता में समकालीन सामाजिक जीवन की स्थितियों को लेकर कवि ने नारी-जागरण का सन्देश व्यक्त किया है। प्राय: पुरुषों के द्वारा नारी- सौन्दर्य की प्रशंसा की जाती है, उसे वस्त्राभूषणों का लालच दिया जाता है तथा इससे उसे गुलाम या दासी जैसी बनाये जाने का प्रयास किया जाता है। नारी-समाज को ऐसे बन्धनों से मुक्त रहने का प्रयास करना चाहिए तथा अपनी दुर्बलताओं से सचेत रहकर सबला बनने की कोशिश करनी चाहिए। साथ ही दहेज की विकृतियों से बचने का प्रयास करना चाहिए। मूल संवेदना-प्रस्तुत कविता में व्यंजित किया गया है कि पुरुष-वर्ग द्वारा नारी-समाज के लिए अनेक बन्धन परम्परा रूप में गढ़े गये हैं। नववधू सुन्दर व सुशील हो, घर का सारा काम करे, वह काफी दहेज भी लावे और सभी से दबी-सहमी रहे। इस तरह उसके आचरण को लेकर अनेक प्रतिबन्ध आरोपित किये जाते हैं, परन्तु उसके कष्टों की अनदेखी की जाती है । वैवाहिक जीवन को लेकर उसकी भावनाओं का उपहास किया जाता है । नववधू की इस व्यरथा को उसकी माँ अथवा अनुभवों से गुजरी महिला ही समझती है । प्रस्तुत कविता में स्त्री-जीवन की ऐसी पीड़ादायक स्थितियों एवं अनुभवों का यथार्थ निरूपण करना इसकी मूल संवेदना है।

प्रश्न 3. ऋतुराज के काव्य-सौन्दर्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए ।
उत्तर-राजस्थान के मूर्धन्य कवियों में ऋतुराज का विशेष स्थान है । इनके काव्य-सौन्दर्य को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है– भावपक्ष-ऋतुराज की कविताओं में सामाजिक चेतना की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है। उन्होंने अपनी कविताओं में मानवतावादी भावना प्रकट करते हुए समाज में प्रचलित भ्रष्टाचार एवं स्वार्थपरता का विरोध किया है । नारी-समाज के कष्टों को लेकर उन्होंने यथार्थ स्थितियों का पक्ष लिया है तथा मानव-जीवन में मूल्यों के निर्वाह के प्रति आस्था व्यक्त की है। सामान्य व्यक्ति की जिजीविषा को लेकर ऋतुराज ने अनेक कविताओं में गहरी संवेदना व्यक्त की है । इस तरह इनका भाव-सौन्दर्य काफी सशक्त दिखाई देता है।
कला-पक्ष-ऋतुराज ने अपनी कविताओं में सरल – सुबोध भाषा का प्रयोग किया है। इनकी भाषा तत्सम प्रधान है, जिसमें तद्भव व देशज शब्दों का यथास्थान प्रयोग किया है। इन्होंने सपाटबयानी के स्थान पर प्रतीकों एवं बिम्बों को अपनाया है।

कन्यादान कविता में स्त्री जीवन के प्रति संवेदना व्यक्त की गई है कैसे?

Expert-verified answer 'कन्यादान' कविता स्त्री के प्रति संवेदना को व्यक्त करती है और यह बताती है कि इस समाज में स्त्रियों को कमजोर बना कर सजावट की वस्तु की तरह पेश किया जाता है। उन्हें केवल घर के कामकाज, रूप-सौंदर्य, वस्त्र-आभूषण आदि तक ही सीमित सीमित कर दिया जाता है।

कन्यादान कविता में मां नारी को क्या संदेश देना चाहती है?

समाज उनको कमजोर समझता है और अत्याचार करता है। इसलिए अत्याचार के कारण अपने जीवन के प्रति सचेत रहना चाहिए अपने संचित अनुभव के आधार पर माँ कन्यादान के समय अपनी बेटी को शिक्षित कर रही है ताकि समाज में वह एक उच्च सुखी जीवन जी सके और समाज की मानसिकता से वह परिचित हो सके।

कन्यादान कविता में कवि वस्त्राभूषणों को नारी जीवन का बंधन क्यों मानता है?

इसलिए वस्त्राभूषणों को शाब्दिक भ्रम कहा गया है। सामाजिक व्यवस्था के तहत स्त्रियों के प्रति जो आचरण किया जा रहा है | उसके चलते अन्याय न सहन करने के लिए सचेत किया गया है क्योंकि समाज में लड़कियों के साथ में इतना अन्याय होता है कि वह उनको चुपचाप चारदीवारी के अंदर ही सहकर घुट घुट कर अपना जीवन जीती हैं।

कन्यादान कविता का मूल उद्देश्य क्या है?

'कन्यादान' कविता में माँ द्वारा बेटी को स्त्री के परंपरागत 'आदर्श' रूप से हटकर सीख दी गई है। कवि का मानना है। कि सामाजिक-व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के आचरण संबंधी जो प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं वे आदर्श होकर भी बंधन होते हैं। कोमलता' में कमजोरी का उपहास, लड़की जैसा न दिखाई देने में आदर्श का प्रतिकार है।