Show Jaishankar Prasad Krit Kamayani-Chinta Sarg in Hindi : दोस्तों ! हमने पिछले नोट्स में जयशंकर प्रसाद कृत Kamayani-Chinta Sarg | कामायनी महाकाव्य के प्रथम सर्ग के पांच पदों का अध्ययन कर लिया था। आज हम इसके अगले पदों 06 से 12 तक का विस्तृत अर्थ समझने जा रहे है। इस रचना का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण के आठवें अध्याय में मिलता है। अब तक हमने जाना कि जल प्लावन की घटना से सृष्टि पर प्रलय होती है और नई सृष्टि का प्रारंभ होता है। मनु ही केवल बचे हुए हैं और वे हिमालय की चोटी पर एक साधक की भांति शांत अवस्था में बैठे हैं। उनकी इसी स्थिति का वर्णन हमें चिंता सर्ग में देखने को मिलता है। कामायनी में कुल 15 सर्ग हैं । हम इसके प्रथम सर्ग का अध्ययन कर रहे है, जिसका नाम है : चिंता सर्ग। अब हम आगे के पदों का अध्ययन करेंगे, जो परीक्षा की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। आप जयशंकर प्रसाद कृत “कामायनी महाकाव्य” का विस्तृत अध्ययन करने के लिए नीचे दी गयी पुस्तकों को खरीद सकते है। ये आपके लिए उपयोगी पुस्तके है। तो अभी Shop Now कीजिये : Kamayani-Chinta Sarg | कामायनी के चिंता सर्ग के पदों की व्याख्याKamayani Ke Chinta Sarg Ke Pado Ka Arth Vyakhya in HIndi : अच्छा दोस्तों ! अब हम कामायनी के प्रथम सर्ग – चिंता सर्ग के कुछ महत्वपूर्ण पदों को समझते है : पद : 6.Jaishankar Prasad Krit Kamayani Chinta Sarg in Hindi
अर्थ :प्रसाद जी कह रहे हैं कि मनु के शरीर का प्रत्येक अंग सुदृढ़ था। बदन की कांति भी अपूर्व ओजमयी थी। वह स्वस्थ रक्त के संचार से परिपूर्ण नसों के कारण अत्यंत आकर्षक भी प्रतीत हो रहा था। इन पंक्तियों में मनु के शरीर के तेज का वर्णन किया गया है। अवयव की दृढ़ मांसपेशियों से, शरीर की दृढ़ता से, शरीर की स्वस्थता की ओर संकेत किया गया है। पद : 7.Kamayani ke 06 to 12 Pado ka Arth Bhaav in Hindi
अर्थ :प्रसाद जी लिखते हैं कि यद्यपि वे एक परिपुष्ट और पराक्रमी युवक ही था। और उसके शरीर से अनुपम पौरुष भी झलक रहा था। पर साथ ही वह चिंता के कारण कुछ-कुछ व्याकुल भी लग रहा था। इसी प्रकार उसी युवक के ह्रदय में यौवनकालीन मधुर भावनाएं भी विद्यमान थी। परंतु वर्तमान परिस्थितियों में वह उस ओर ध्यान नहीं दे पा रहा था। वस्तुतः उपेक्षामयी यौवन से तात्पर्य यह है कि मनु युवा जीवन की मारक स्थितियों से विरक्त थे। क्योंकि शोक के सामने प्रेम भावनायें टिक नहीं पाती है। चिंताग्रस्त मनु का अपने यौवन के प्रति उपेक्षाग्रस्त रहना स्वाभाविक ही है। प्रसाद जी विरोधी परिस्थितियों में भी कथानक का सफल चित्रण किया है। पद : 8.Kamayani Ke Pratham Chinta Sarg Ke 06 to 12 Pado Ki Vyakhya
अर्थ :प्रसाद जी कह रहे हैं कि जिस नाव का सहारा लेकर मनु ने इस घोर जल प्रलय में अपने प्राण बचाये थे। वहीँ नाव पास में ही सूखी जमीन पर, एक विशाल बरगद वृक्ष से बंधी थी। साथ ही क्षण-प्रतिक्षण जल की बाढ़ भी कम होती जा रही थी और पृथ्वी भी दिखाई देने लगी थी। पद : 9.Kamayani Mahakavya ka Pahla Sarg Kaunsa Hai in Hindi
अर्थ :प्रसाद जी लिखते हैं कि उस व्यक्ति का ह्रदय वेदना पूर्ण था । वह अपनी करुण कहानी का वर्णन कर रहा था। उसकी इस दर्दभरी कहानी को सुनने वाली और व्यथाओं की अनुभूति करने वाली केवल मात्र प्रकृति ही थी। क्योंकि वह व्यक्ति तो उसी स्थान पर अकेला ही था। प्रकृति भी उस कहानी को मुस्कुराती हुई सुन रही थी । ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह पहले से ही इस कहानी से परिचित थी।उसे इस कहानी में कोई नवीनता नहीं दिखाई दे रही थी। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कुछ इंगित करना चाह रहे है। मनु की कारुणिक कहानी को सुनकर भी प्रकृति को हंसता सा बतलाया है। प्रकृति यह जानती थी कि अहंकार के कारण देवताओं का विनाश अवश्य संभावित था। और मनु से सहानुभूति न करके हंस रही थी। पद : 10.Kamayani-Chinta Sarg Pad 06 to 12 Bhavarth in Hindi
अर्थ :मनु चिंता को संबोधित करके कहते हैं कि आज पहली बार उनके हृदय में चिंता प्रवेश कर सकी है। जिस प्रकार संसार रूपी उपवन में स्वच्छंद विचरण करने वाले प्राणियों को सर्पिणी पग-पग पर शंकित कर देती है, उसी प्रकार मनुष्य का हृदय चिंताग्रस्त हो जाता है। और हृदय कुछ भी नहीं कर पाता एवं अवांछनीय विभीषिका से व्याकुल हो जाता है। जिस प्रकार ज्वालामुखी का प्रथम विस्फोट ही भीषण प्रभावकारी होता है तथा वह अपने सभी पदार्थों को प्रभावित कर नष्ट कर देता है, उसी प्रकार चिंता का आगमन होते ही मनु का समस्त क्रिया व्यापार नष्ट हो जाता है। इन पंक्तियों में कवि ने चिंता की कटुता और उसके घातक प्रभाव का ही चित्रण किया है। पद : 11.Jai Shankar Prasad Rachit Kamayani-Chinta Sarg Pad Arth in Hindi
अर्थ :प्रसाद जी कह रहे हैं कि वस्तुतः चिंता “अभाव की चंचल बालिका” है। क्योंकि मनुष्य को किसी वस्तु की कमी लगती है, तभी चिंता उत्पन्न होती है। जब मनुष्य के हृदय में चिंता उत्पन्न होती है तो वह विक्षिप्त सा हो जाता है। उसका मन स्थिर नहीं रह पाता। जिस प्रकार जल में अनेक लहरें उठती है, उसी प्रकार चिंता भी इस माया जगत में उठने वाली हलचल के समान ही है। यह मानव को अस्थिर बना देती है और मानव भी संसार में भटकने लगता है। पद : 12.Jai Shankar Prasad Krit Mahakavya Kamayani-Chinta Sarg in Hindi
अर्थ :प्रसाद जी कह रहे हैं कि चिंता समस्त संसार में हलचल उत्पन्न करने वाली है। जिस प्रकार विष की हल्की लहर मनुष्य के शरीर में व्याप्त होते ही उसे व्याकुल कर देती है, लेकिन उसके जीवन का पूर्ण रूप से अंत नहीं करती। ठीक उसी प्रकार चिंता भी मनुष्य मात्र को केवल व्यथा ही पहुंचाती है। कहने का तात्पर्य यह है कि चिंता साधारण मनुष्य को तो परेशान करती ही है, परंतु वह अपने जीवन को अमर समझने वाले देवताओं को भी वृद्ध बना देती है। कहते हैं कि चिंताग्रस्त मनुष्य अपनी आयु से ज्यादा वृद्ध दिखाई पड़ता है। और वह यौवनावस्था में भी वृद्ध जान पड़ता है। यहां कवि ने स्वभाविक ही चिंता के कारण वृद्ध हो जाने के विषय में कहा है। साथ ही चिंता स्वच्छंद और निष्ठुर है। जब वह किसी मानव मन में प्रविष्ट होती है तो वह किसी प्रकार का रुदन नहीं सुन सकती। और बहरी बनकर स्वच्छंदता के साथ, उस पर अपना अधिकार स्थापित कर लेती है। इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने Kamayani-Chinta Sarg | कामायनी का चिंता सर्ग के 12 पदों का विस्तार से अध्ययन कर लिया है। उम्मीद है कि आपको अच्छे से समझ में आ गया होगा। हम अगले नोट्स में भी इसके कुछ महत्वपूर्ण पदों को विस्तार से समझेंगे। तो जुड़े रहिये हमारे साथ ! यह भी जरूर पढ़े :
एक गुजारिश :दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “Kamayani-Chinta Sarg | कामायनी का चिंता सर्ग“ के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I नोट्स अच्छे लगे हो तो अपने दोस्तों को सोशल मीडिया पर शेयर करना न भूले I नोट्स पढ़ने और HindiShri पर बने रहने के लिए आपका धन्यवाद..! कामायनी में कुल कितने सरग है?'चिंता' से प्रारंभ कर 'आनंद' तक 15 सर्गों के इस महाकाव्य में मानव मन की विविध अंतर्वृत्तियों का क्रमिक उन्मीलन इस कौशल से किया गया है कि मानव सृष्टि के आदि से अब तक के जीवन के मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक विकास का इतिहास भी स्पष्ट हो जाता है।
कामायनी के प्रथम सर्ग कौन सा है?उनकी इसी स्थिति का वर्णन हमें चिंता सर्ग में देखने को मिलता है। कामायनी में कुल 15 सर्ग हैं । हम इसके प्रथम सर्ग का अध्ययन कर रहे है, जिसका नाम है : चिंता सर्ग।
कामायनी के 15 सर्ग कौन कौन से हैं?कामायनी में चिन्ता‚ आशा‚ श्रद्धा‚ काम‚ वासना‚ लज्जा‚ कर्म‚ इर्ष्या‚ इड़ा‚ स्वप्न‚ संघर्ष‚ निर्वेद‚ दर्शन‚ रहस्य‚ आनन्द नामक पन्द्रह सर्ग हैं।
कामायनी के अंतिम सर्ग का क्या नाम है?'कमायनी' हिंदी का महाकाव्य है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद है। यह वर्ष 1936 ई में पूर्ण हुआ था। कामायनी के अंतिम सर्ग का शीर्षक 'आनंद' है।
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