These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 भूमि संसाधन (अनुभाग – तीन). Show विस्तृत उत्तरीय प्रत प्रश्न 1. भारतीय मिट्टियाँ, उनके क्षेत्र एवं आर्थिक महत्त्व भारत में निम्नलिखित प्रकार की मिट्टियाँ पायी जाती हैं— 1. पर्वतीय मिट्टी, 1. पर्वतीय मिट्टियाँ- हिमालय पर्वतीय प्रदेश में नवीन, पथरीली, उथली तथा सरन्ध्र मिट्टियाँ पायी जाती हैं। इन मिट्टियों का विस्तार भारत में लगभग 2 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्रफल में है। हिमालय पर्वत के दक्षिणी भागों में कंकड़-पत्थर तथा मोटे कणों वाली बालूयुक्त मिट्टी पायी जाती है। नैनीताल, मसूरी तथा चकरौता क्षेत्र में चूने के अंशों की प्रधानता वाली मिट्टी पायी जाती है। हिमालय के कुछ क्षेत्रों में आग्नेय (UPBoardSolutions.com) शैलों के विखण्डन से निर्मित मिट्टियाँ पायी जाती हैं। हिमाचल प्रदेश में काँगड़ा, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग तथा असम के पहाड़ी ढालों पर इसी मिट्टी की अधिकता मिलती है। चाय उत्पादन के लिए यह मिट्टी सर्वश्रेष्ठ है। इसी कारण इसे ‘चाय की मिट्टी’ के नाम से पुकारा जाता है। 2. जलोढ़ मिट्टी- भारत के विशाल उत्तरी मैदान में नदियों द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों से बहाकर लाई गयी जीवांशों से युक्त उपजाऊ मिट्टी मिलती है, जिसे ‘काँप’ या ‘कछारी’ मिट्टी भी कहते हैं। इस मिट्टी का विस्तार देश के 40% क्षेत्रफल में है। यह मिट्टी हिमालय पर्वत से निकलने वाली तीन बड़ी नदियों सतलुज, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र तथा उनकी सहायक नदियों द्वारा बहाकर लाई गयी है। जलोढ़ मिट्टी पूर्वी तटीय मैदानों, विशेष रूप से महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टा प्रदेश में भी सामान्य रूप से मिलती है। जिन क्षेत्रों में बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता, वहाँ पुरानी जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है, जिसे ‘बाँगर’ कहा जाता है। वास्तव में यह मिट्टी भी नदियों द्वारा बहाकर लाई गयी प्राचीन काँप मिट्टी ही होती है। जिन क्षेत्रों में नदियों ने नवीन काँप मिट्टी का जमाव किया है, उसे ‘खादर’ के नाम से पुकारा जाता है। नवीन जलोढ़ मिट्टियाँ प्राचीन जलोढ़ मिट्टियों की अपेक्षा अधिक उपजाऊ होती हैं। सामान्यतः जलोढ़ मिट्टियाँ सर्वाधिक उपजाऊ होती हैं। इनमें पोटाश, चूना तथा फॉस्फोरिक अम्ल पर्याप्त मात्रा में होता है, परन्तु नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है। शुष्क प्रदेशों की मिट्टियों में क्षारीय तत्त्व अधिक होते हैं। भारत की लगभग 50% जनसंख्या का भरण-पोषण इन्हीं मिट्टियों द्वारा होता है। इन मिट्टियों में गेहूँ, गन्ना, चावल, तिलहन, तम्बाकू, जूट आदि फसलों का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। इन्हीं कारणों से यहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक है। 3. काली अथवा रेगुर मिट्टी- इस मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित लावा की शैलों के विखण्डन के फलस्वरूप हुआ है। इस मिट्टी का रंग काला होता है, जिस कारण इसे ‘काली मिट्टी’ अथवा ‘रेगुर मिट्टी’ भी कहा जाता है। इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है।
इसमें लोहांश, मैग्नीशियम, चूना, ऐलुमिनियम तथा जीवांशों की मात्रा अधिक पायी जाती है। वर्षा होने पर यह चिपचिपी-सी हो जाती है तथा सूखने पर इसमें दरारें पड़ जाती हैं। इस मिट्टी का विस्तार दकन ट्रैप के उत्तर-पश्चिमी भागों में लगभग 5.18 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल पर है। महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा तथा दक्षिणी मध्य प्रदेश के पठारी भागों (UPBoardSolutions.com) में यह मिट्टी विस्तृत है। इस मिट्टी का विस्तार दक्षिण में गोदावरी तथा कृष्णा नदियों की घाटियों में भी है। इस मिट्टी में कपास का पर्याप्त मात्रा में उत्पादन होने के कारण इसे ‘कपास की काली मिट्टी के नाम से भी पुकारा जाता है। इसमें पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। कैल्सियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम कार्बोनेट, पोटाश और चूना इसके प्रमुख पोषक तत्त्व हैं। इस मिट्टी में फॉस्फोरिक तत्त्वों की कमी होती है। ग्रीष्म ऋतु में इस मिट्टी में गहरी दरारें पड़ जाती हैं। इस मिट्टी में कपास, गन्ना, मूंगफली, तिलहन, गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा, तम्बाकू, सोयाबीन आदि फसलों का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में किया जाता है। 4. लाल मिट्टी- यह मिट्टी लाल, पीले या भूरे रंग की होती है। इसमें लोहांश की मात्रा अधिक होने के कारण उनके ऑक्साइड में बदलने से इस मिट्टी का रंग ईंट के समाने लाल होता है। प्रायद्वीपीय पठार के दक्षिण-पूर्वी भागों पर लगभग 6 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल में इस मिट्टी का विस्तार पाया जाता है। लाल मिट्टी ने काली मिट्टी के क्षेत्र को चारों ओर से घेर रखा है। भारत में इस मिट्टी का विस्तार कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र के दक्षिण-पूर्वी भाग, तमिलनाडु, ओडिशा, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, मेघालय तथा छोटा नागपुर के पठार पर है। लाल मिट्टी में फॉस्फोरिक अम्ल, जैविक तथा नाइट्रोजन पदार्थों की कमी पायी जाती है। इस मिट्टी में मोटे अनाज; जैसे-ज्वार, बाजरा, गेहूँ, दलहन, तिलहन आदि फसलें उगायी जाती हैं। 5. लैटेराइट मिट्टी- उष्ण कटिबन्धीय भारी वर्षा के कारण होने वाली तीव्र निक्षालन की क्रिया के फलस्वरूप इस मिट्टी का निर्माण हुए है। इस मिट्टी का रंग गहरा पीला होता है, जिसमें सिलिका तथा लवणों की मात्रा अधिक होती है। इसमें मोटे कण, कंकड़-पत्थर की अधिकता तथा जीवांशों का अभाव पाया जाता है। भारत में यह मिट्टी 1.26 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल पर विस्तृत है। यह मिट्टी केरल, कर्नाटक, राजमहल की पहाड़ियों, ओडिशी, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पूर्वी बिहार, उत्तर-पूर्व में मेघालय तथा दक्षिण महाराष्ट्र में पायी जाती है। लैटेराइट मिट्टी कम उपजाऊ होती है। यह केवल घास तथा झाड़ियों को पैदा करने के लिए ही उपयुक्त है, परन्तु उर्वरकों की सहायता से इस मिट्टी में चावल, गन्ना, काजू, चाय, कहवा तथा रबड़ की कृषि की जाने लगी है। 6. मरुस्थलीय मिट्टी- मरुस्थलीय क्षेत्रों में वर्षा बहुत कम होने के कारण यहाँ ऊसर, धूर, राँकड़ तथा कल्लर जैसी मिट्टियाँ पायी जाती हैं। यह मिट्टी लवण एवं क्षारीय गुणों से युक्त होती है। इस मिट्टी में सोडियम, कैल्सियम व मैग्नीशियम तत्त्वों की प्रधानता होती है, जिससे यह अनुपजाऊ हो गयी है। इसमें नमी एवं वनस्पति के अंश नहीं पाये जाते हैं। इसमें सिंचाई करके केवल मोटे अनाज ही उगाये जाते हैं। यह मिट्टी सरन्ध्र होती है तथा इसमें बालू के पर्याप्त कण दिखलायी पड़ते हैं। भारत में इस मिट्टी का विस्तार 1.5 लाख वर्ग हेक्टेयर क्षेत्रफल पर मिलता है। मरुस्थलीय मिट्टी पश्चिमी राजस्थान, उत्तरी गुजरात, (UPBoardSolutions.com) पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी पंजाब एवं हरियाणा राज्यों में पायी जाती है। बालू के मोटे कणों की प्रधानता होने के कारण इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता बहुत कम होने के साथ-साथ जीवांश तथा नाइट्रोजन की मात्रा भी कम होती है। आर्थिक दृष्टि से मरुस्थलीय मिट्टियाँ उपयोगी नहीं होतीं, परन्तु इनमें सिंचाई करके मोटे अनाज (ज्वार, बाजरा, मूंग तथा उड़द) उगाये जा सकते हैं। प्रश्न 2. भू-क्षरण या मृदा-अपरदन भू-क्षरण या मृदा-अपरदन से अभिप्राय प्राकृतिक साधनों (जल या वर्षा, पवन आदि) के द्वारा भूमि की ऊपरी परत या आवरण के नष्ट होने से है। भूमि-अपरदन से भौतिक हानि के अलावा आर्थिक हानि भी होती है, क्योंकि इससे भूमि की ऊपरी परत में मौजूद उर्वर (UPBoardSolutions.com) पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं तथा भूमि अनुर्वर हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि भू-क्षरण वास्तव में मिट्टी के विनाश के लिए रेंगती हुई मृत्यु के समान है। भू-क्षरण के कारण
संक्षेप में कहा जा सकता है कि भारत में भू-क्षरण के लिए तीव्र एवं मूसलाधार वर्षा का होना, नदियों में प्रतिवर्ष बाढ़ों का आना, वनों का अधिकाधिक विनाश, खेतों को खाली एवं परती छोड़ देना, तीव्र पवनप्रवाह का होना, कृषि-भूमि पर पशुओं की अनियमित एवं अनियन्त्रित चराई, खेतों की उचित मेड़बन्दी न किया जाना, भूमि का अधिक ढालूपन, जल निकास की उचित व्यवस्था का न होना आदि कारक उत्तरदायी हैं। निवारण (मृदा संरक्षण) के उपाय 5. ढाल के विपरीत दिशा में जुताई करना- भू-क्षरण रोकने के लिए भूमि के ढाल की विपरीत दिशा में जुताई करनी चाहिए। इससे निर्मित नालियाँ जल की गति को कम कर भू-क्षरण को रोकने में कारगर सिद्ध हो सकती हैं। 6. जल के निकास की उचित व्यवस्था- ढालू खेतों में वर्षा के जल के निकास की उचित व्यवस्था कर भू-क्षरण को कुछ सीमा तक रोका जा सकता है। पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेतों का ही निर्माण किया जाना चाहिए, अन्यथा भू-क्षरण अत्यधिक होगा। 7. खेतों में हरी खाद वाली फसलें उगाना- वर्षा ऋतु में खेतों को खुला नहीं छोड़ना चाहिए, वरन् उनमें हरी खाद वाली फसलें—लैंचा, सनई, मूंग नं० 1 आदि बोनी चाहिए। ऐसा करने से मिट्टी को पोषक तत्त्वों की प्राप्ति होगी तथा भू-क्षरण भी रुक सकेगा। 8: नाली एवं गड्ढों को एक सम बनाना- वर्षा के आधिक्य के कारण जल-प्रवाह द्वारा निर्मित गड्ढों एवं नालियों को मिट्टी से भरकर भूमि को समतल बना देना चाहिए। इससे भूमि का कटाव स्वत: ही रुक जाएगा। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार का ध्यान भू-क्षरण की ओर गया है तथा इस समस्या के निवारण हेतु सन् 1953 ई० में केन्द्रीय भू-क्षरण बोर्ड की स्थापना की गयी है, जिसका
मुख्य कार्य सरकार को इस प्रश्न 3. भूमि-उपयोग किसी भी देश के आर्थिक विकास में संसाधनों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। संसाधन दो प्रकार के होते हैं–प्राकृतिक तथा मानव द्वारा निर्मित। प्राकृतिक संसाधनों में भूमि तथा खनिज, जल, वन तथा पशुधन आदि प्रमुख हैं। पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं, जब कि जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। घने बसे देशों; जैसे-भारत में भूमि संसाधन दुर्लभ होते जा रहे हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए आवास, अन्न तथा वनों की लकड़ी उपलब्ध कराने के लिए भूमि संसाधन का विवेकपूर्ण उपयोग अति आवश्यक हो गया है। अतः यह जरूरी है कि बंजर तथा बेकार भूमि का पुनरुद्धार, राष्ट्रीय उद्यानों तथा अभयारण्यों की स्थापना, वनारोपण उपायों द्वारा भूमि संसाधने का संरक्षण किया जाए जिससे भावी पीढ़ियों के लिए यह सुरक्षित रह सके। भूमि उपयोग से यही अभिप्राय है कि हम भूमि संसाधन का विवेकपूर्ण दोहन करें, क्योंकि भूमि संसाधन की उपयोगिता पर ही किसी देश की आर्थिक समृद्धि निर्भर करती है। अफगानिस्तान की आर्थिक दुर्दशा का कारण भूमि-संसाधन का प्रयोग में न आना ही है। इसके विपरीत भारत 108 करोड़ से भी अधिक देशवासियों को अन्न देकर भी अन्न बचा रहा है। भूमि-उपयोग के ज्ञान की आवश्यकता भूमि किसी भी देश का सबसे महत्त्वपूर्ण संसाधन है, क्योंकि भूमि पर ही कृषि, पशुपालन, खनन, उद्योग आदि व्यवसाय आधारित हैं। भूमि से ही किसी भी देश की जनसंख्या का पोषण होता है। मानव-मात्र की समस्त प्राथमिक आवश्यकताएँ (भोजन, वस्त्र, आवास) (UPBoardSolutions.com) भूमि से ही पूरी होती हैं। प्रत्येक देश में उपलब्ध भूमि संसाधनों की प्रकृति तथा स्वरूप भिन्न-भिन्न होते हैं। तदनुसार वहाँ भूमि का उपयोग किया जाता है। किसी भी देश के भूमि-उपयोग के बारे में जानना निम्नलिखित कारणों से आवश्यक होता है
भारत में भूमि का उपयोग भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र 3287.3 लाख हेक्टेयर में से 92.2% भूमि का
उपयोग होता है। इसमें 19.3% भाग वनों से आच्छादित है। भारतीय सांख्यिकीय रूपरेखा में देश की भूमि के उपयोग को निम्नवत् प्रदर्शित किया गया है– लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. खादर और बाँगर में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2011, 12, 16] उत्तर : बाँगर मिट्टी तथा खादर मिट्टी में निम्नलिखित प्रमुख अन्तर हैं प्रश्न 4. जलोढ़ मिट्टी व लैटेराइट मिट्टी में अन्तर लिखिए। उत्तर : जलोढ़ मिट्टी व लैटेराइट मिट्टी में निम्नलिखित प्रमुख अन्तर हैं प्रश्न 5. बंजर भूमि किसे कहते हैं ? मनुष्य बंजर भूमि का क्षेत्र बढ़ाने में किस प्रकार सहायक है ? दो बिन्दु दीजिए। उत्तर : वह भूमि जिस पर कोई उपज पैदा नहीं होती, ‘बंजर भूमि’ कहलाती है। प्रायः उच्च पहाड़ी. चट्टानी, रेतीली तथा दलदली भूमियाँ बंजर होती हैं। बंजर भूमि के क्षेत्रफल की वृद्धि में मनुष्य की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसके दो बिन्दु अग्रलिखित हैं
प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5.
प्रश्न 6.
प्रश्न 7.
प्रश्न 8.
प्रश्न 9.
प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13.
प्रश्न 14. प्रश्न 15.
प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18.
प्रश्न 19. ‘बहुविकल्पीय प्रश्न प्रश्न 1. कौन-सी मिट्टी वर्षा से चिपचिपी हो जाती है? ‘ 2. काली मिट्टी कौन-सी फसल के लिए
उपयुक्त है? [2013] 3. लैटेराइट मिट्टी किस राज्य में अधिक मिलती है? 4. जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है [2012] 5. लैटेराइट मिट्टी का रंग होता है 6. निम्नलिखित में से कौन-सी मिट्टी कपास उत्पादन के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है? [2010] 7. जलोढ़ मिट्टी का निर्माण मुख्यतः किसके द्वारा होता है? [2014, 16] 8. भारत के किस राज्य में काली मिट्टी का विस्तार सर्वाधिक है? 9. वन हमारी सहायता करते हैं 10.
जलोढ़ मिट्टी किस फसल की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है? [2011] 11. भारत की सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी है [2016] 12. निम्न में से कौन-सी मिट्टी चाय की खेती के लिए उपयुक्त है?
[2017] 13. काली मिट्टी का निर्माण होता है [2017] उत्तरमाला 1. (ख), 2. (ग), 3. (ग), 4. (ख), 5. (ख), 6. (ग), 7. (घ), 8. (क), 9. (घ), 10. (घ), 11. (क), 12. (क), 13. (ग)। We hope the UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 भूमि संसाधन (अनुभाग – तीन) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 भूमि संसाधन (अनुभाग – तीन), drop a comment below and we will get back to you at the earliest काली मिट्टी का विशेषता क्या है?– काली मिट्टी की प्रमुख विशेषता यह है कि उसमें जल धारण करने की सर्वाधिक क्षमता होती है काली मिट्टी बहुत जल्दी चिपचिपी हो जाती है तथा सूखने पर इस में दरारें पड़ जाती हैं इसी गुण के कारण काली मिट्टी को स्वत जुताई वाली मिट्टी कहा जाता है।
काली मिट्टी का दूसरा नाम क्या है?काली मिट्टी का रंग काला होता है और इसे 'रेगुर मिट्टी' के नाम से भी जाना जाता है। चूंकि यह कपास उगाने के लिए उपयुक्त है, इसलिए इसे 'कपास मिट्टी' भी कहा जाता है।
काली मिट्टी में कौन सा तत्व है?काली मिट्टी
इसमें लाइम, आयरन, मैग्नेशियम और पोटाश होते हैं लेकिन फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थ इसमें कम होते हैं। इस मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइट और जीवांश (ह्यूमस) के कारण होता है।
मिट्टी की विशेषता क्या है?मिट्टी यानी वो सतह जो धरती पर सबसे ऊपर होती है। मिट्टी कई तरह के खनिज पदार्थ, बैक्टीरिया, टूटे पत्थर व चट्टानों के छोटे टुकड़ों आदि का मिश्रण होती है। यह पूरी धरती मिट्टी से ढकी हुई है और इसकी भी कई परते होती हैं। हमारे देश में कई तरह की मिट्टी पायी जाती है जैसे काली, चिकनी और जलोढ़ मिट्टी आदि।
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