राजा दशरथ की तीन रानियों में कैकेयी उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय थी. उन्होंने ही राजा दशरथ से भगवान राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांगा था. यही कारण है लोगों ने कैकेयी को नकारात्मक रूप में देखा है. लेकिन कैकेयी द्वारा राजा दशरथ से भगवान राम के वनवास का वरदान मांगने के पीछे कारण क्या था. क्या वह मंथरा के बहकावे में आई थीं या फिर वे अपने पुत्र भरत को राजगद्दी सौंपना चाहती थीं. इस सवाल का जवाब हम आपको बताते हैं. Show
एक बार देवों और असुरों के संग्राम में देवराज इंद्र ने राजा दशरथ से मदद मांगी थी. उस वक्त राजा दशरथ के साथ रानी कैकेयी भी उनकी सारथी बनकर गई थी. युद्ध भूमि में रानी कैकेयी ने राजा दशरथ की प्राणों की रक्षा की थी जिससे खुश होकर राजा दशरथ ने कैकेयी से दो वरदान मांगने को कहा था लेकिन कैकेयी ने कहा कि वह समय आने पर वरदान मांगेगी. आगे चलकर कैकेयी ने अपने दोनों वरदान दशरथ से मांगे जिनमें एक श्री राम के वनवास से जुड़ा था और दूसरा कि उनके पुत्र भरत को गद्दी पर बिठाने से. लेकिन ऐसे वरदान कैकेयी न मांगे क्यों? दरअसल राजा दशरथ की रानी कैकेयी राजा अश्वपति की बेटी थी. राजा अश्वपति के राजपुरोहित श्रवण कुमार के पिता रत्नऋषि थे. कैकेयी को वेद-शास्त्रों की शिक्षा रत्नऋषि ने ही दी थी. उन्होंने कैकेयी को बताया था कि राजा दशरथ की कोई संतान राज गद्दी पर नहीं बैठ पाएगी. इसके साथ ही ज्योतिष गणना के आधार पर उन्होंने यह भी बताया था कि दशरथ की मृत्यु के बाद यदि चौदह वर्ष के दौरान कोई संतान गद्दी पर बैठी भी तो रघुवंश का नाश हो जाएगा. News Reels श्रवण कुमार की मृत्यु राजा दशरथ के हाथों बाण लगने से हुई थी जिसके बाद श्रवण कुमार के माता-पिता ने राजा दशरथ को श्राप दिया था कि जिस तरह से वे पुत्र के वियोग में मर रहें हैं उसी तरह राजा दशरथ की मृत्यु भी पुत्र वियोग में होगी. कैकेयी को इसके बारे में पता था. राम दशरथ के सबसे बड़े बेटे थे. राजा दशरथ की मृत्यु पुत्र वियोग में होने का मतलब था, कि राम की मृत्यु. कैकेयी राम से बहुत प्रेम करती थी और उन्हें खोना नहीं चाहती थी इसलिए उन्होंने राम के लिए चौदह वर्षों का वनवास मांग लिया. कैकेयी यह भी नहीं चाहती थी कि राम रघुवंश के नाश का कारण बने और उन्होंने यह वरदान मांगा कि भरत को राज्य दिया जाए. प्रभु श्री राम ने कभी माता कैकेयी को गलत नहीं कहा साथ ही जब भरत ने अपनी माता को कटु वचन कहे तो प्रभु श्री राम ने उन्हें रोका भी. यह भी पढ़ें: राम मंदिर भूमि पूजन: PMO ने बताया पीएम मोदी के अयोध्या दौरे का पूरा कार्यक्रम युद्ध समाप्त होने के बाद जब राजा दशरथ को इस बारे में पता चला तो उन्होंने खुश होकर कैकेयी से दो वर मांगने को कहा। मंथरा नामक दासी के बहकावे में आकर कैकेयी ने राम के लिए 14 साल का वनवास और भरत के लिए राज्य की मांग की। अब सवाल यह आता है कि कैकेयी ने राम के लिए 14 साल का ही क्यों वनवास मांगा, 15 या 13 साल का क्यों नहीं? आइए जानते हैं।
बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अयोध्याखंड में इस किस्से का वर्णन किया गया है। दरअसल, कैकेयी ने ऐसा प्रशासनिक कारणों के चलते किया। उस दौर में ऐसा नियम था कि यदि कोई राजा 14 वर्ष के लिए अपना सिंहासन छोड़ देता है तो वह राजा बनने का अधिकार खो देता है। इस वजह से कैकेयी ने राम के लिए ठीक 14 साल का ही वनवास मांगा।
हालांकि भरत ने कैकेयी के इस सपने पर पानी फेर दिया। भरत ने सिंहासन पर बैठने से इंकार कर दिया। वनवास समाप्त कर जब प्रभु श्रीराम राज्य लौटे तो वही सिंहासन पर बैठे।
राजा दशरथ की तीसरी पत्नी कैकेयी भगवान राम से अपने बेटे भरत से भी ज्यादा प्रेम करती थीं। उन्हें राम से बहुत आशाएं थीं। जब कैकेयी ने भगवान राम से 14 वर्षों का वनवास मांगा था तब सबसे ज्यादा भरत हैरान हुए थे क्योंकि वह जानते थे कि माता राम से कितना प्रेम करती हैं। लेकिन आपको जानाकर हैरानी होगी कि देवताओं ने कैकेयी से यह काम करवाया था। इसके पीछे एक रोचक कथा है। भगवान राम के बारे में ये 10 खास बातें जानते हैं आप? युद्ध में घायल हो गए थे दशरथविवाह से पहले कैकेयी महर्षि दुर्वासा की सेवा किया करती थीं। कैकेयी की सेवा से प्रसन्न होकर महर्षि दुर्वास ने कैकेयी का एक हाथ बज्र का बना दिया और आशीर्वाद दिया कि भविष्य में भगवान तुम्हारी गोद में खेलेंगे। समय का पहिया चलता रहा और कैकेयी का विवाह राजा दशरथ से हो गया। एक समय स्वर्ग में देवासुर संग्राम आरंभ हो गया। देवराज इंद्र ने राजा दशरथ को सहायता के लिए बुलाया। रानी कैकेयी भी महाराज की रक्षा के लिए सारथी बनकर देवासुर संग्राम में पहुंच गईं। युद्ध के दौरान दशरथजी के रथ के पहिये से कील निकल गया और रथ लड़खड़ाने लगा। ऐसे में कैकेयी ने कील की जगह अपनी उंगली लगा दी और महाराज की जान बचा ली। कैकेयी की वीरता और साहस का इनामराजा दशरथ को जब पता चला कि कैकेयी ने युद्ध भूमि में किस साहस का परिचय दिया है तो वह वह बहुत प्रसन्न हुए और तीन वरदान मांगने के लिए कहा। कैकेयी ने उस समय प्रेमवश यह कह दिया कि इसकी जरूरत नहीं है अगर कभी जरूरत होगी तो मांग लूंगी। कैकेयी ने राजा दशरथ को इसी वरदान के जाल में फांस लिया और राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लिया। लेकिन 14 वर्ष के लिए वनवास क्यों मांगा इसके पीछे कई राज हैं। इस पर्वत पर जाने से डरता था रामायण का बाली, वजह है बेहद रोचक रावण को मारने की यह शर्तकैकेयी ने चौहद वर्ष का वनवास मांगकर यह समझाया कि अगर व्यक्ति युवावस्था में चौदह यानी पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (कान, नाक, आंख, जीभ, त्वचा) पांच कर्मेन्द्रियां (वाक्, पाणी, पाद, पायु, उपस्थ) तथा मन, बुद्धि, चित और अहंकार को वनवास (एकान्त आत्मा के वश) में रखेगा तभी अपने अंदर के घमंड और रावण को मार पाएगा। रावण के करीब आते ही क्यों घास का तिनका उठा लेती थीं माता सीता कैकेयी को था राम पर भरोसादूसरी बात यह था कि रावण की आयु में केवल 14 ही वर्ष शेष थे। प्रश्न उठता है कि यह बात कैकयी कैसे जानती थी? ये घटना घट तो रही थी अयोध्या में लेकिन योजना देवलोक की थी। कोप भवन में कोप का नाटक हुआ था। कैकेयी को राम पर भरोसा था लेकिन दशरथ को नहीं था। इसलिए उन्होंने पुत्र मोह में अपने प्राण गंवा दिए और कैकेयी हर जगह बदनाम हो गईं। श्रीराम ने की थी योजना तैयारीअजसु पिटारी तासु सिर, गई गिरा मति फेरि। सरस्वती ने मंथरा की मति में अपनी योजना डाल दी, उसने कैकयी को वही सब सुनाया, समझाया और कहने को उकसाया जो सरस्वती को करवाना चाहती थीं। इसके सूत्रधार स्वयं श्रीराम थे, उन्होंने ही यह योजना तैयार की थी। भगवान राम के अलावा इन चार योद्धाओं से भी हार चुका था रावण राम के लिए कैकेयी के अंदर यह थी मंशामाता कैकयी यथार्थ जानती हैं। जो नारी युद्ध भूमि में दशरथ के प्राण बचाने के लिए अपना हाथ रथ के धुरे में लगा सकती है, रथ संचालन की कला में दक्ष है, वह राजनैतिक परिस्थितियों से अनजान कैसे रह सकती है? कैकेयी चाहती थी कि मेरे राम का पावन यश चौदहों भुवनों में फैल जाए और यह बिना तप और विन रावण वध के संभव नहीं था। राम से यह चाहती थीं कैकेयीकैकेयी जानती थीं कि अगर राम अयोध्या के राजा बन जाते तो रावण का वध नहीं कर पाएंगे, इसके लिए वन में तप जरूरी थी। कैकयी चाहती थीं कि राम केवल अयोध्या के ही सम्राट न बनकर रह जाएं, वह विश्व के समस्त प्राणियों के हृदयों के सम्राट भी बनें। उसके लिए राम को अपनी साधित शोधित इन्द्रियों तथा अन्तःकरण को तप के द्वारा तदर्थ सिद्ध करना होगा। रावण को पत्नी मंदोदरी ने मारी एक लात, तब हुआ यह करामात भगवान राम ने किया रावण वधदेवलोक में बनाई गई इस योजना का केंद्र राक्षस का वध था। महाराज अनरण्य के उस शाप का समय पूर्ण होने में 14 ही वर्ष शेष थे, जो शाप उन्होंने रावण को दिया था कि मेरे वंश का राजकुमार तेरा वध करेगा। जिससे भगवान राम ने रावण का वध किया और देवलोक की योजना पूरी की। शनि की चाल से 14 सालरामायण और महाभारत दोनों में ही 14 वर्ष वनवास की बात हुई है। रामायण में भगवान को 14 वर्ष का वनवास भोगना पड़ा था। जबकि महाभारत में पांडवों को 13 वर्ष वनवास और 1 वर्ष अज्ञातवास में गुजारना पड़ा था। दरअसल इसके पीछे ग्रह गोचर भी मानते हैं। उन दिनों मनुष्य की आयु आज के जमाने से काफी ज्यादा होती थी। इसलिए ग्रहों की दशावधि भी ज्यादा होती थी। शनि चालीसा में लिखा है ‘राज मिलत बन रामहि दीन्हा। कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।’ यानी शनि की दशा के कारण कैकेयी की मति मारी गई और भगवान राम को शनि के समयावधि में वन-वन भटकना पड़ा और उसी समय रावण पर भी शनि की दशा आई और वह राम के हाथों मारा गया। यानी शनि ने अपनी दशा में एक को कीर्ति दिलाई तो दूसरे को मुक्ति। Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें कैकई ने राम को 14 वर्ष का hi वनवास क्यों दिया?कैकयी ने राम के लिए 10, 12 या 13 नहीं बल्कि 14 साल के वनवास पर भेजा था क्योंकि वह इससे जुड़े प्रशासनिक नियम जानती थीं. त्रेतायुग में उस समय यह नियम था कि यदि कोई राजा अपनी गद्दी को 14 साल तक छोड़ देता है तो वह राजा बनने का अधिकार खो देता है. यही वजह रही कि कैकयी ने राम के लिए पूरे 14 वर्ष का वनवास मांगा.
कैकेयी ने राम के लिए कितने वर्षों का वनवास मांगा?रामायण के अनुसार, माता कैकेयी ने महाराज दशरथ से भगवान राम के लिए 14 वर्षों के लिए वनवास मांगा था, जिसकी वजह से रावण का अंत हो सका।
14 वर्ष के लिए वनवास जाते समय श्रीराम की आयु कितनी थी?शादी के बाद दोनों 12 वर्षों तक अयोध्या में रहे, इसके बाद उन्हें वनवास भोगने के लिए वन जाना पड़ा. इस समय तक सीताजी 18, राम जी 26 साल के हो गए थे. जब वे वनवास से लौटे तो सीता की आयु 32 और रामजी की उम्र 40 हो गई थी.
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