जीवन के लिए प्राकृतिक संतुलन आवश्यक क्यों है निबंध? - jeevan ke lie praakrtik santulan aavashyak kyon hai nibandh?

लगातार बिगड़ते जा रहे पर्यावरण संतुलन पर पर्यावरणविदों ने चिंता व्यक्त की है। इनका कहना है कि यदि पृथ्वी पर जीवन के आस्तित्व को बनाए रखना है तो प्रकृति का संतुलन बना रहना आवश्यक है। इसके लिए सभी को इस ओर गम्भीर होना होगा और अपने देश की पुरानी संस्कृति वन और जीव को बचाए रखना होगा।

शिक्षा, पर्यावरण एवं महिला मुद्दों पर काम कर रही राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका आसिया फारुकी कहती हैं कि पर्यावरण हमारे आस-पास पाए जाने वाली परिस्थितियां, परिवेश है जो जीवन को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। ये दो घटकों से मिलकर बना है। जैविक घटक जैसे पेड़-पौधे, जानवर और अजैविक घटक जैसे पहाड़, नदियां, सभी निर्जीव वस्तुएं। आज मनुष्य की स्वार्थी गतिवधियों के करण हमारा परिवेश प्रभावित हो रहा है। मनुष्य ने अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिए प्रकृति का अंधाधुंध शोषण किया है। जंगल काट डाले, पहाड़ों को धरती का सीना चीर कर सैकड़ों फीट नीचे तक खोद डाला। पृथ्वी के संतुलन को साधने वाले जैवमंडल को तहस नहस किया। जीव-जंतुओं की तमाम प्रजातियां नष्ट कर दी। हम भूल गए कि यह धरती केवल मानव के लिए नहीं बल्कि सभी चराचर के जीवन यापन लिए हैं। इसे सुंदर स्वस्थ बनाए रखने में सभी की अपनी एक निश्चित भूमिका होती है जो बिना कुछ कहे, बिना अपने श्रम का मूल्य लिए धरती को सुदर बनाए रखने के अपने काम में दिनरात जुटे रहते हैं। एक चींटी, तितली, मेंढक, केंचुवा, चिड़िया, मधुमक्खी का उतना ही महत्व है जितना कि एक हाथी, सिंह, मकर, गिद्ध और सियार का। वसुंधरा के उत्तम स्वास्थ्य के लिए पेड़, नदी, ताल, घाटी, मरुथल, पहाड़, सागर आदि सबका स्वस्थ रहना आवश्यक है।

पर्यावरण संतुलन नितांत आवश्यक

पर्यावरण विद कहती हैं कि यदि हम पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को जारी रखना चाहते हैं तो प्रकृति का संतुलन सुनिश्चित करना होगा। आज हमारा संतुलन बिगड़ रहा है। हवा जो हम सांस लेते है, पानी जो हम इस्तेमाल करते हैं। पौधे जानवर और अन्य जीवित चीजें सब पर्यावरण के तहत आती हैं। आज हमारा पर्यावरण क्यों बिगड़ रहा है? हमने अपने जीवन के साथ-साथ ही ग्रहों पर भी भविष्य में जीवन के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। पर्यावरण विनाश एवं विश्व्यापी समस्या बन चुकी है। मनुष्य विज्ञान और विकास के नाम पर प्रकृति का लगातार विनाश करता जा रहा है। वनों की कटाई, उधोग धंधो की भरमार, व्यापार आदि। बिना पर्यावरण शिक्षा के पर्यावरण संरक्षण की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

बच्चों को देनी होगी सीख

पर्यावरण को साफ सुथरा रखने के लिए लोगों में इसके प्रति स्वभाविक लगाव पैदा करना होगा। अन्यथा पर्यावरण संरक्षण एक सपना ही रहेगा। और यह तभी संभव है जब स्कूली शिक्षा में ही हम बच्चों को पर्यावरण शिक्षा के प्रति गंभीरता से जोड़ें। पाठ्यक्रम बना भर देने से काम नहीं चलेगा, उन पाठों को हमें जीवन में उतारकर बच्चों के सम्मुख उदाहरण रखना होगा।

इन बातों को अपनाएं

-अनावश्यक विद्युत उपकरण बन्द करें।

-कूड़े का उचित निपटान करने के लिए छंटाई के बाद ही गड्ढों में भर निस्तारण करें।

-कारखानों से निकलने वाले दूषित जल का शोधन करके ही नदी नालों में छोड़ा जाए।

-फ्रिज का दरवाजा देर तक न खुला छोड़ें, आवश्यकतानुसार ही पानी का प्रयोग करें।

-ईंधन बचाने के लिए अपने वाहनों के टायरों में हवा का दबाव उचित रखें।

-बाजार जाने पर घर से कपड़े का बैग लेकर चलें।

-पूरे घर के बल्ब हटाकर सीएफएल लगाएं।

-वर्षा का जल संरक्षित कर प्रयोग करें, कचरा ठीक नियत जगह पर फेंकें।

-घर-पड़ोस में गमलों में पौधे लगाएं एवं खाली जगहों पर वृक्षारोपण करें।

-पुरानी टूटी चीजों को कूड़े के रूप में घर से बाहर फेंकने से बेहतर उनकी मरमत करा कर पुन: प्रयोग करें।

क्या बोली पर्यावरणविद

कोरोना संकट ऐसी सभी बातों के लिए एक अवसर के रूप में भी है। हम सब को मिलकर प्रकृति को सहेज सम्भाल कर हरी भरी सुंदर धरती नई पीढ़ी को सौंपे। जिससे वह हम पर गर्व करें।

-आसिया फारुकी

प्रकृति में संतुलन बनाए रखना क्यों आवश्यक है?

भोजन की थाली में दाल, चावल, अचार, सलाद, सब्जी आदि व्यंजन होने से वह शरीर के लिए पौष्टिक माना जाता है। ठीक इसी तरह प्रकृति में जीव-जंतुओं व वनस्पति का संतुलन बना रहने से वह मनुष्य के लिए न केवल जीवन दायनी बन जाती है, बल्कि उनकी आर्थिक उन्नति में भी सहायक है।

प्राकृतिक संतुलन का अर्थ क्या है?

किसी पारितंत्र में विभिन्न जीवों के समुदाय में परस्पर गतिक सभ्यता की अवस्था ही पारिस्थितिक संतुलन है, अर्थात् पर्यावरण में विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु, पौधों एवं मनुष्यों के मध्य संबंध को ही पारिस्थितिक संतुलन कहते हैं। इसे पारितंत्र में हर प्रजाति की संख्या के एक स्थायी संतुलन के रूप में वर्णित किया जा सकता है।

पर्यावरण संतुलन के लिए क्यों आवश्यक है?

पर्यावरण विद कहती हैं कि यदि हम पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को जारी रखना चाहते हैं तो प्रकृति का संतुलन सुनिश्चित करना होगा। आज हमारा संतुलन बिगड़ रहा है। हवा जो हम सांस लेते है, पानी जो हम इस्तेमाल करते हैं। पौधे जानवर और अन्य जीवित चीजें सब पर्यावरण के तहत आती हैं।

प्रकृति का संतुलन कैसे बनाए रख सकते हैं?

अनपरा (सोनभद्र) : पेड़-पौधे प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में सहायक है। वर्तमान समय में वनों के कटान से पर्यावरण में असंतुलन पैदा हो गया है। इस असंतुलन को संतुलन में लाने के लिए हर व्यक्ति को पेड़-पौधे लगाने चाहिए।