जल संभर का क्या अर्थ है? - jal sambhar ka kya arth hai?

जल संभर का क्या अर्थ है? - jal sambhar ka kya arth hai?

जलसंभर का उदहारण - लाल रंग की लकीर जलविभाजक क्षेत्र को दर्शा रही है

जलसंभर या द्रोणी उस भौगोलिक क्षेत्र को कहते हैं जहाँ वर्षा अथवा पिघलती बर्फ़ का पानी नदियों, नहरों और नालों से बह कर एक ही स्थान पर एकत्रित हो जाता है।[1] उस स्थान से या तो एक ही बड़ी नदी में पानी जलसंभर क्षेत्र से निकास कर के आगे बह जाता है, या फिर किसी सरोवर, सागर, महासागर या दलदली इलाक़े में जा के मिल जाता है। इस सन्दर्भ में कभी-कभी जलविभाजक शब्द का भी प्रयोग होता है क्योंकि भिन्न-भिन्न जलसंभर किसी भी विस्तृत क्षेत्र को अलग-अलग जल मंडलों में विभाजित करते हैं।[2] जलसंभर खुले या बंद हो सकते हैं। बंद जलसंभारों में पानी किसी सरोवर या सूखे सरोवर में जा कर रुक जाता है। जो बंद जलसंभर शुष्क स्थानों पर होते हैं उनमें अक्सर जल आ कर गर्मी से भाप बनकर हवा में वाष्पित (इवैपोरेट) हो जाता है या उसे धरती सोख लेती है। पड़ौसी जलसंभर अक्सर पहाड़ों, पर्वतों या धरती की भिन्न ढलानों के कारण एक-दुसरे से विभाजित होते हैं। भौगोलिक दृष्टि से जलसंभर एक कीप (यानि फनल) का काम करते हैं क्योंकि वे एक विस्तृत क्षेत्र के पानी को इक्कठा कर के एक ही नदी, जलाशय, दलदल या धरती के भीतर पानी सोखने वाले स्थान पर ले जाते हैं।

अन्य भाषाओं में[संपादित करें]

अंग्रेज़ी में "जलसंभर" को "वॉटरशॅड" (watershed) या "कैचमेंट" (catchment), "जलविभाजक" को "ड्रेनेज डिवाइड" (drainage divide) और "द्रोणी" को "बेसिन" (basin) कहा जाता है।

जलाविभाजकों की श्रेणियां[संपादित करें]

जलविभाजक तीन मुख्य प्रकार के होते हैं -

  • महाद्वीपीय विभाजक - इस विभाजन में किसी महाद्वीप के एक जलसंभर का जल एक ओर के महासागर की तरफ़ बहता है और उसके पड़ौसी जलसंभर का जल दूसरी ओर के महासागर की तरफ़ बहता है। मिसाल के लिए अफ़्रीका के महाद्वीप पर नील नदी के जलसंभर का पानी उत्तर की ओर बहकर भूमध्य सागर में विलय हो जाता है लेकिन उसके पड़ौसी कांगो नदी के जलसंभर का पानी पश्चिम की ओर बहकर अन्ध महासागर में विलय हो जाता है।
  • बृहद् विभाजक - यह वो बड़े विभाजक हैं जिनमें जल दो भिन्न और एक-दुसरे से कभी न मिलने वाली नदियों में अलग-अलग तो बहता हैं, लेकिन दोनों नदियाँ अंत में जाकर एक ही सागर या महासागर में विलय हो जाती हैं। चीन की ह्वांगहो और यांग्त्सीक्यांग नदियों के जलविभाजक इसका उदहारण हैं - दोनों नदिया अलग-अलग बहतीं हैं लेकिन अंत में जाकर दोनों प्रशांत महासागर में ही मिल जाती हैं।
  • लघु विभाजक - यह वो छोटे पैमाने के विभाजक होते हैं जिनमें जल अलग-अलग नदियों में एकत्रित तो होता है लेकिन वे नदियाँ स्वयं ही आगे चलकर मिल जाती हैं। इसकी मिसाल गंगा और यमुना के जलविभाजक हैं।

विश्व के महत्वपूर्ण जलसंभर[संपादित करें]

पृथ्वी के इस नक्शे में विश्व के बड़े जलसंभर क्षेत्र दिखाए गएँ हैं। भिन्न महासागरों और सागरों में ख़ाली होने वाले जलसंभर भिन्न रंगों में दर्शाए गएँ हैं। स्लेटी रंग का प्रयोग बंद जलसंभरों के लिए हुआ है जो किसी सागर या महासागर में पानी नहीं बहाते।

जल संभर का क्या अर्थ है? - jal sambhar ka kya arth hai?

इन्हें भी देखिये[संपादित करें]

  • नदी
  • बंद जलसंभर

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Hydrologic Unit Geography". Virginia Department of Conservation & Recreation. मूल से 10 नवंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 नवम्बर 2010.
  2. "drainage basin". www.uwsp.edu. मूल से 21 मार्च 2004 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2008-02-21.

जल संभर प्रबंधन क्या है?

वह भूमि जिसका जल प्रवाहित एक ही झील या नदी में आता है, वह एक जल संभर कहलाती है। जल संभर का अभिप्राय एक ऐसे क्षेत्र से है जिसका जल एक बिन्दु की ओर प्रवाहित होता है। इस जल का योजनाबद्ध तरीके से उपयोग अच्छे परिणाम देने वाला बन सकता है। संबंधित क्षेत्र एक इकाई के रूप में एक गांव हो सकता है अथवा गाँवों का समूह भी। इस क्षेत्र में कृषि, बंजर, वन आदि सभी प्रकार की भूमियाँ शामिल हो सकती हैं। जल संभर कार्यक्रमों से भूमि का अधिकतम उपयोग संभव है। इस प्रकार किसी क्षेत्र विशेष में जल के हर संभव उपयोग को ही जल संभर प्रबंधन कहते हैं।

जल संभर प्रबंधन से लाभ 

जल संभर प्रबंधन के द्वारा लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं-

  1. पीने और सिंचाई के लिए जल की आपूर्ति,
  2. जैव विविधता में वृद्धि,
  3. जलाक्रान्त तथा लवणता का ह्रास,
  4. कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि,
  5. वनों के कटाव में कमी,
  6. जीवन स्तर उठना,
  7.  रोजगार में वृद्धि,
  8. स्थानीय लोगों की सहभागिता से आपसी मेल-जोल बढ़ना।

जल संभर प्रबंधन से अपेक्षित परिणाम

 

जल संभर प्रबंधन परियोजना से अभी तक इच्छित परिणाम नहीं मिल सके हैं। जबकि भारत सरकार 2000 तक विभिन्न मंत्रालयों के माध्यमों से जल संभर प्रबंधन कार्यक्रमों में 2 अरब डालर खर्च कर चुकी है। इसके लिए निम्नकारक उत्तरदाई हैं-

  1. वैज्ञानिक सोच का अभाव,
  2. तकनीकी कमियाँ,
  3. स्थानीय लोगों के सहयोग की कमी,
  4. विभिन्न विभागों के बीच आपसी सहयोग का अभाव तथा
  5. पृथक मंत्रालय का न होना।

नदी संयोजन

देश के विस्तृत क्षेत्र सूखा तथा बाढ़ से पीड़ित रहते हैं। सूखा और बाढ़ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस समस्या के हल के लिए 1982 में ‘राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण’ का गठन किया गया। इसके गठन का मुख्य उद्देश्य ‘राष्ट्रीय जल के जाल’ की पहचान करना मात्रा था। अंतत: राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण ने 30 नदी जुड़ावों की पहचान की है। इस कार्यक्रम में बड़ी नदियों को प्रमुखता से शामिल किया गया है। अभिकरण ने 6 जुड़ाव स्थलों पर काम करने की संस्तुति की है तथा तीन चरणों में उन्हें पूरा करने की बात कही है।

प्रथम चरण में प्रमुख प्रायद्वीपीय नदियों-महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी को शामिल किया गया है।

द्वितीय चरण के अंतर्गत प्रायद्वीपीय भारत की छोटी-छोटी नदी द्रोणियों को एक दूसरे से जोड़ने की बात रखी गई है, जिसमें केन-बेतवा तथा पार-तापी नदियाँ शामिल हैं।

तृतीय चरण में गंगा और ब्रह्मपुत्रा की सहायक नदियों को एक दूसरे से जोड़ने का प्रावधान रखा है।

नदी संयोजन से लाभ

नदी द्रोणियों को आपस में जोड़ने से बहुमुखी विकास संभव है। इस कार्यक्रम की सफलता से पृष्ठीय जल द्वारा 250 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त कृषि क्षेत्र पर सिंचाई संभव हो सकेगी। 100 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त कृषि क्षेत्र को सिंचाई के लिए भूमिगत जल उपलब्ध हो सकेगा। अंतत: सिंचित क्षेत्र 1130 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 1500 लाख हेक्टेयर हो जाएगा। 340 लाख कि.वा. अतिरिक्त जल विद्युत का निर्माण हो सकेगा। इन लाभों के अतिरिक्त कई और भी लाभ मिल सकेंगे जैसे बाढ़ नियंत्राण, जल परिवहन, जलापूर्ति, मत्स्यन, क्षारीयपन का दूर होना तथा जल प्रदूषण नियंत्रण शामिल हैं। परन्तु इन सभी लाभों को सहज प्राप्त नहीं किया जा सकता। ये परियोजनाएं बहुत ही व्यय साध्य एवं समय साध्य हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए 560 हजार करोड़ रुपये की विशाल धन राशि की आवश्यकता होगी।

जल संभर का मतलब क्या होता है?

जलसंभर या द्रोणी उस भौगोलिक क्षेत्र को कहते हैं जहाँ वर्षा अथवा पिघलती बर्फ़ का पानी नदियों, नहरों और नालों से बह कर एक ही स्थान पर एकत्रित हो जाता है। उस स्थान से या तो एक ही बड़ी नदी में पानी जलसंभर क्षेत्र से निकास कर के आगे बह जाता है, या फिर किसी सरोवर, सागर, महासागर या दलदली इलाक़े में जा के मिल जाता है।

जल संभर प्रबंधन का क्या अर्थ है?

जल-संभर प्रबंधन: जल संभर प्रबंधन से तात्पर्य, मुख्य रूप से, धरातलीय और भौम जल संसाधनों के दक्ष प्रबंधन से है। इसके अंतर्गत बहते जल को रोकना और विभिन्न विधियों, जैसे- अंत:स्रवण तालाब, पुनर्भरण, कुओं आदि के द्वारा भौम जल का संचयन और पुनर्भरण शामिल हैं।

जलसंभर कितने प्रकार के होते है?

जलसंभर खुले या बंद हो सकते हैं। बंद जलसंभारों में पानी किसी सरोवर या सूखे सरोवर में जा कर रुक जाता है। जो बंद जलसंभर शुष्क स्थानों पर होते हैं उनमें अक्सर जल आ कर गर्मी से भाप बनकर हवा में वाष्पित (इवैपोरेट) हो जाता है या उसे धरती सोख लेती है।

नदी द्रोणी और जल संभर में क्या अंतर है?

बड़ी नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र को नदी द्रोणी कहा जाता है। छोटी नदियों या नालों द्वारा अपवाहित क्षेत्र को जलसंभर कहा जाता है। नदी द्रोणी का आकार बड़ा होता है। जल संभर का आकार छोटा होता है।