जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं प्रेम गली अति सांकरी तामे दो न समाय - jab main tha tab hari nahin, ab hari hain main naahin prem galee ati saankaree taame do na samaay

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं प्रेम गली अति सांकरी तामे दो न समाय - jab main tha tab hari nahin, ab hari hain main naahin prem galee ati saankaree taame do na samaay

जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं ।प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहीं ॥

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं, जब तक मन में अहंकार था तब तक ईश्वर का साक्षात्कार न हुआ, जब अहंकार (अहम) समाप्त हुआ तभी प्रभु मिले | जब ईश्वर का साक्षात्कार हुआ, तब अहंकार स्वत: ही नष्ट हो गया | ईश्वर की सत्ता का बोध तभी हुआ | प्रेम में द्वैत भाव नहीं हो सकता, प्रेम की संकरी (पतली) गली में केवल एक ही समा सकता है - अहम् या परम ! परम की प्राप्ति के लिए अहम् का विसर्जन आवश्यक है|

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं प्रेम गली अति सांकरी तामे दो न समाय - jab main tha tab hari nahin, ab hari hain main naahin prem galee ati saankaree taame do na samaay

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जब मैं था तब हरि नहीं से क्या तात्पर्य है?

'जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाहि' का भाव स्पष्ट कीजिए। Solution : इस पंक्ति द्वारा कबीर का कहना है कि जब तक मनुष्य में अज्ञान रूपी अन्धकार छाया है वह ईश्वर को नहीं पा सकता अर्थात् अहंकार और ईश्वर का साथ-साथ रहना असम्भव हैजब ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है तब अहंकार दूर हो जाता है

प्रेम गली अति सांकरी यहाँ सांकरी से क्या तात्पर्य है?

'प्रेम गली अति सांकरी' इस पंक्ति से कबीरदास जी का कहने का तात्पर्य यह है कि प्रेम रूपी गली तथा प्रेम रूपी मन बड़ा ही संकीर्ण होता है, इसमें दो लोग नहीं रह सकते। इसमें ईश्वर और अहंकार दोनों साथ नहीं रह सकते। अगर ईश्वर को अपने हृदय में, अपने मन में बसाना है तो अहंकार का त्याग करना होगा।

जब मैं था

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।

जब मैं था में मैं कौन है 1 Point छोटा बच्चा रहीम अहम भाव कबीर?

जब मैं था तब हरि नहीं दोहे की भावना कबीर की यह साखी अद्वैतवाद की मूल भावना के अनुरूप है। अद्वैतवाद में कहा गया है कि ब्रह्म और जीव के बीच जो अंतर दिखाई देता है वह माया के आवरण के कारण है अन्यथा दोनों एक हैं। ज्ञान के आगमन के साथ यह आवरण हट जाता है तथा ब्रह्म और जीव में कोई भेद नहीं रह जाता।