इतिहास लेखन की यूनानी परंपरा को समझाइए - itihaas lekhan kee yoonaanee parampara ko samajhaie

इतिहास-लेखन का श्रीगणेश जहाँ तक उस समय देश में इतिहास-लेखन के क्षेत्र का सम्बन्ध था, उसमें भी अन्य क्षेत्रों की भाँति ही नए ढंग से अनुसंधान और लेखन के प्रयास शुरू किए गए। इस दृष्टि से यद्यपि सर विलियम जोन्स, कोलब्रुक, जॉर्ज टर्नर, जेम्स प्रिंसेप, पार्जिटर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं तथापि इस दिशा में सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य कलकत्ता उच्च न्यायालय में कार्यरत तत्कालीन न्यायाधीश सर विलियम जोन्स ने किया। उन्होंने भारत के इतिहास को आधुनिक रूप में लिखने के लिए पाश्चात्य विद्वानों द्वारा जो सघन प्रयास किए गए, वे इसलिए तो प्रशंसनीय रहे कि विगत एक हजार वर्ष से अधिक के कालखण्ड में इस दिशा में स्वयं भारतवासियों द्वारा ‘राजतरंगिणी‘ की रचना को छोड़कर कोई भी उल्लेखनीय कार्य नहीं किया गया था किन्तु इतने परिश्रम के बाद भारत का जो इतिहास उन्होंने तैयार किया, उसमें भारत के ऐतिहासिक घटनाक्रम और तिथिक्रम को इस ढंग से प्रस्तुत किया गया कि आज अनेक भारतीय विद्वानों के लिए उसकी वास्तविकता सन्देहास्पद बन गई। फिर यही नहीं, इस क्षेत्र में जो धींगामुस्ती अंग्रेज 200 वर्षों में नहीं कर पाए, वह पाश्चात्योन्मुखी भारतीय इतिहासकारों ने स्वाधीन भारत के 50 वर्षों में कर दिखाई। वस्तुतः इतिहास किसी भी देश अथवा जाति की विभिन्न परम्पराओं, मान्यताओं तथा महापुरुषों की गौरव गाथाओं और संघर्षों के उस सामूहिक लेखे-जोखे को कहा जाता है जिससे उस देश अथवा जाति की भावी पीढ़ी प्रेरणा ले सके। जबकि भारत का इतिहास आज जिस रूप में सुलभ है उस पर इस दृष्टि से विचार करने पर निराशा ही हाथ लगती है क्योंकि उससे वह प्रेरणा मिलती ही नहीं जिससे भावी पीढ़ी का कोई मार्गदर्शन हो सके। उससे तो मात्र यही जानकारी मिल पाती है कि इस देश में किसी का कभी भी अपना कुछ रहा ही नहीं। यहाँ तो एक के बाद एक आक्रान्ताआते रहे और पिछले आक्रान्ताओं को पददलित करके अपना वर्चस्व स्थापित करते रहे। यह देश, देश नहीं, मात्र एक धर्मशाला रही है, जिसमें जिसका भी और जब भी जी चाहा, घुस आया और कब्जा जमाकर मालिक बनकर बैठ गया।

यूनानी इतिहासलेखन (या यूनानी इतिहासलेखन ) में यूनानियों द्वारा ऐतिहासिक घटनाओं को ट्रैक और रिकॉर्ड करने के प्रयास शामिल हैं । 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक, यह प्राचीन ग्रीक साहित्य का एक अभिन्न अंग बन गया और बाद के रोमन इतिहासलेखन और बीजान्टिन साहित्य में एक प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त किया ।

अवलोकन

प्राचीन ग्रीस की ऐतिहासिक अवधि विश्व इतिहास में अनन्य है क्योंकि पहली अवधि सीधे उचित इतिहासलेखन में प्रमाणित है , जबकि पहले के प्राचीन इतिहास या प्रोटो-इतिहास को अधिक परिस्थितिजन्य साक्ष्य, जैसे कि इतिहास , इतिहास , राजा सूची , और व्यावहारिक एपिग्राफी द्वारा जाना जाता है ।

हेरोडोटस को व्यापक रूप से "इतिहास के पिता" के रूप में जाना जाता है, उनका इतिहास पूरे क्षेत्र का उपनाम है। ४५० और ४२० ईसा पूर्व के बीच लिखा गया, हेरोडोटस के काम का दायरा अतीत में लगभग एक सदी तक पहुँच जाता है, जिसमें ६ वीं शताब्दी ईसा पूर्व के ऐतिहासिक आंकड़े जैसे फारस के डेरियस I , कैंबिस II , और सामटिक III के बारे में चर्चा की गई है और कुछ ८ वीं शताब्दी ईसा पूर्व के लोगों की ओर इशारा किया गया है जैसे कि कैंडौल्स ।

हेरोडोटस को थ्यूसीडाइड्स , ज़ेनोफोन , डेमोस्थनीज , प्लेटो और अरस्तू जैसे लेखकों ने सफल बनाया । इन लेखकों में से अधिकांश या तो एथेनियन थे या एथेनियन समर्थक थे , जो बताता है कि अधिकांश अन्य समकालीन शहरों की तुलना में एथेंस के इतिहास और राजनीति के बारे में अधिक जानकारी क्यों है। उनका दायरा राजनीतिक, सैन्य और राजनयिक इतिहास पर ध्यान केंद्रित करके सीमित है, आम तौर पर आर्थिक और सामाजिक इतिहास की अनदेखी करता है। [१] हालांकि, आधुनिक नृवंशविज्ञान के करीब आने वाले काम मुख्य रूप से रोमनों के बीच उत्पन्न हुए, कुछ यूनानियों ने विभिन्न लोगों के रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों का वर्णन करने वाली सहायक सामग्री को शामिल किया, हेरोडोटस खुद मिस्रियों , सीथियन और अन्य लोगों के वर्णन में एक प्रमुख उदाहरण है ।

यह सभी देखें

  • चीनी इतिहासलेखन
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  • इतिहासकारों की सूची
  • आधुनिक यूनानी साहित्य
  • रोमन इतिहासलेखन

संदर्भ

  1. ^ ग्रांट, माइकल (1995)। ग्रीक और रोमन इतिहासकार: सूचना और गलत सूचना । लंदन और न्यूयॉर्क: रूटलेज। पी 74. आईएसबीएन 978-0-415-11770-8.

    यूनान के इतिहास से आशय आधुनिक यूनान के अन्दर आने वाले क्षेत्रों का इतिहास से होने के अलावा इसका आशय यूनानी लोगों तथा उनके द्वारा शासित प्रदेशों के इतिहास से है। यूनानी लोगों के वास का क्षेत्र अलग-अलग काल में भिन्न-भिन्न रहा है, इस कारण यूनान का इतिहास भी इस मामले में परिवर्ती है कि किस युग में किस क्षेत्र क्षेत्र को 'यूनान' कहा जाय।

    लगभग १६०० ईसापूर्व का जग जिस पर पक्षी का चित्र है। (राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय, एथेंस)

    यूनान की मुख्य भूमि और उसके द्वीप लगभग 4000 वर्ष ईसा पूर्व बस चुके थे। ई.पू. दूसरी सहस्त्राब्दी तक ईजियाई सभ्यता थी जहाँ से लोगों के मिस्र और एशिया माइनर से संबंध सुगम थे। लगभग 17वीं शताब्दी ई.पू. में बाल्कन क्षेत्र की ओर से ग्रीस और पेलोपोनसस्‌ पर आक्रमण हुए। सभी आक्रमणकारी जातियाँ- एकियाई, आर्केडी, इपोलियन, अपोली और आयोनी- ग्रीक भाषाओं से परिचित थीं। ई.पू. 1500 वर्ष तक मिनोई प्रभाव में एकियाई जाति ने ग्रीस से सभ्यता का विकास किया। माइसीनी युग, हीरो युग और होमर युग भी इस काल के नाम हैं। कहा जाता है कि ट्रोजन युद्ध, जिसकी कथा को लेकर होमर ने अपने विश्वप्रसिद्ध काव्य 'इलियड और ओडिसी' लिखे, एकियाई तथा अन्य ग्रीसवासियों के बीच ई.पू. 12वीं शती में लड़ा गया था। ई.पू. 1100 में डोरियाई जाति ने ग्रीस पर आक्रमण कर पुरानी सभ्यता नष्ट कर दी और अपना केंद्र पेलोपोनेसस्‌ बनाया। एकियाई लोगों में से कुछ उत्तरी पश्चिमी यूरोप की ओर भागे, कुछ ने दासवृत्ति अपना ली। आयोनी और अपोली, ईजियाई द्वीपसमूह और एशिया माइनर की ओर चले गए। ई.पू. 1000 तक संपूर्ण ईजियाई क्षेत्र में ग्रीक भाषी लोग बस चुके थे।

    1000-499 ई.पू. में मुख्य रूप से ग्रीक नगर-राज्यों की स्थापना हुई और जातिभेद चेतना का प्रादुर्भाव हुआ। प्रांरभिक हेलेनिक राज्यों का शासन राजाओं द्वारा होता था। शनै: शनै: राजतंत्र में परिवर्तित हुआ। कुलीनतंत्र में राजनीतिक समानता प्राय: नहीं थी। लगभग 650 ई.पू. में सामाजिक और राजनतिक संघर्षों ने इस कुलीन तंत्र को उखाड़ फेंका और अधिनायकवादी शासन की स्थापना हुई। केवल स्पार्टी में ही कुलीन तंत्र बन सका। कुछ अधिनायकवादी शासकों ने अवश्य ही कला, साहित्य, व्यापार और उद्योग की उन्नति की, किंतु जब अधिनायकवाद जनपीड़न की स्थिति में पहुँचा तो उसका भी अस्तित्व ई.पू. 500 तक मिट गया। ई.पू. 750-500 तक व्यापारिक और राजनीतिक कारणों से इटली तथा सिसली के कई भागों में ग्रीकों ने उपनिवेश बसाए। इनके उपनिवेश व्यापार के प्रसार की दृष्टि से स्पेन और फ्रांस तक भी फैले। कुछ दिन तक ग्रीकों का प्रसार मिस्त्र की ओर रुका रहकर, किन्तु लगभग 7वीं शताब्दी ई.पू. में व्यापार की समस्य से सुगम हो गया। वहाँ ग्रीकों ने 'नाक्रेतिस' नगर बसाया। इसके बाद थ्रोस आदि अनेक स्थानों पर उपनिवेश बसे। ये उपनिवेश अपने मुख्य राज्य से केवल भावात्मक संबंध रखते हुए, राजनीतिक रूप से स्वतंत्र थे। केवल कुछ, जैसे एपिडाम्नस, पेलोपोनिया, अंब्रासिय आदि कोरिंथ के उपनिवेश, राजनीतिक रूप से स्वतंत्र नहीं थे। सिराक्यूज़ और बैजंटियम अत्यंत संपन्न उपनिवेशों में थे। समान्य धार्मिक भावना के कारण इन सारे उपनिवेशों में एकता कायम रही। डेल्फी में अपोलो ग्रीकों का मुख्य धार्मिक केंद्र था। वस्तुत: 7वीं और 6ठी शती ई.पू. का काल सांस्कृतिक विकास और बौद्धिक जागरण का काल था।

    500 ई.पू. तक स्पार्टा और एथेंस ग्रीस के दो बड़े नगरराज्य बने। स्पार्टा का शासन प्राचीन परिपाटीवाले कुलीनों के हाथ में था। एथेंस के शासक मध्यवर्गीय और प्रजातांत्रिक थे। ई.पू. 7वीं शताब्दी तक स्पार्टा में संस्कृति, काव्य और कला की प्रचुर उन्नति हुई, किंतु वहाँ की शासनपद्धति अत्यंत कठोर थी। शिशु के उत्पन्न होते ही, राज्य उसे अपने संरक्षण में ले लेता था और उसे युद्ध की शिक्षा दी जाती थी। लाइकर्गस स्पार्टा का संविधान निर्माता था। शासनसूत्र के संचालन के लिये दो सदन होते थे, जिनके अध्यक्ष दो राजा होते थे। अंतिम निर्णय का अधिकार निम्न सदन को था। पाँच न्यायाधीशों (एफर)द्वारा कार्यकारिणी समिति, न्याय और अनुशासन का संचालन होता था। वे राजाओं की गतिविधि पर भी नियंत्रण रखते थे। सैनिक शक्ति द्वारा स्पार्टा ने पेलीपोनेसस्‌ के संपूर्ण नगर अपने अधिकार में कर लिए और पेलोपोनेशियाई संघ के नेता के रूप में इस नगर ने अधिकृत नगरराज्यों को भी कुलीन तंत्र स्वीकार करने को बाध्य किया।

    ई.पू. 683 में एथेंस से राजतंत्र का समूलोच्छेदन हुआ। 'सोलन पिसिस्ट्राटस' ने कुछ सीमा तक जनमत का सम्मान किया, इसके बाद इसागोरस (अभिजाततंत्रवादी) और क्लेइस्थेनीज (जनतंत्रवादी) के नेतृत्व में संघर्ष के बाद जनतांत्रिक पद्धति की विजय हुई। स्पार्टा ने एथेंस के प्रजातंत्र को उखाड़ फेंकने के अनेक प्रयत्न किए, किंतु एथेंस ज्यों का त्यों रहा। (दे.एथेंस)

    499-638 ई.पू. में फारस से युद्ध और नगरराज्यों में परस्पर संघर्ष आदि प्रमुख घटनाएँ हुईं। ग्रीस के कई नगरराज्यों ने इस स्थिति में अपना स्थान बहुत प्रभावशाली बना लिया।

    एशिया माइनर और कुछ द्वीपों के नगर लीडिया के सम्राट् क्रिसस के प्रभाव में आ गए थे। वह हेलेनिक संस्कृति का पोषक और एक उदार शासक था। उसने नगरवासियों की आर्थिक और बौद्धिक उन्नति में योग दिया। 546 ई.पू. में फारस के तत्कालीन भ्रासट साइरस ने क्रिसस के अधिकार से सारे ग्रीक नगर छीन लिए। 512 ई.पू. में उसका उत्तराधिकारी दारायुश (Darius) एशिया माइनर के अन्य नगरों को जीतता हुआ ग्रीस के निकट तक चढ़ आया। लेकिन एरिट्रीया और एटिका (अत्तिका) को जीतने के पश्चात्‌ एथेंस की सेना से मराथन के युद्ध में पराजित हुआ।

    लगभग 480 ई.पू. में पारसी सम्राट् जरक्सीज ने पुन: ग्रीस पर आक्रमण किया। (देखिये, 'ईरान का इतिहास') एथंस, स्पार्टा और पेलोपोनेशियाई संघ के संयुक्त प्रतिरोध के बावजूद भी ग्रीस हार गया। किंतु ग्रीस की जलसेना से फारस की सेनाओं को पीछे लौटने को बाध्य किया। एक वर्ष पश्चात्‌ 479 ई.पू. में ग्रीकों ने प्रत्याक्रमणकर फारस की सारी सेनाओं को पीछ्र खदेड़ दिया। यह युद्ध दीर्घकाल तक चलता रहा। इसकी समाप्ति चतुर्थ शती ई.पू. में सिकंदर की फारस पर विजय के साथ हुई।

    इस समय तक एथेंस नगर ग्रीक सभ्यता का केंद्र बन चुका था। आयोनी ग्रीकों ने स्पार्टा के अधिकार से मुक्त होकर एथेंस का नेतृत्व स्वीकार किया। 461 ई.पू. में पेरिक्लीज ने जनतंत्र को बढ़ावा दिया। किंतु यह जनतंत्र भी मूल यूनानी जनता के लिये सीमित था। शेष लोग दासों की कोटि में रखे जाते थे। पेरिक्लीज के नेतृत्वकाल में एथेंस की राजनतिक और आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो गई।

    स्पार्टा और एथेंस के विचारों में बहुत भेद था। एथेंस मूलत: व्यापारिक शक्तिसंचय की प्रवृत्तिवाला उपनिवेशवादीसाम्राज्यवादी राज्य था और स्पार्टा ग्रीस के सभी नगरराज्यों का राजनीतिक नेतृत्व चाहता था। फलत: नेतृत्व के लिये इन दोनों तथा इनसे सबंधित नगरराज्यों में युद्ध छिड़ गया। युद्ध 10 वर्ष से भी अधिक समय तक चला। दोनों ओर धन जन की अपार हानि हुई। 421 ई.पू. में कुछ काल के लिये शांतिसंधि हुई, किंतु तीन वर्ष बाद दोनों पक्षों में पुन: युद्ध हुआ। इस बार एथेंस की भंयकर पराजय हुई, यहाँ तक कि उसका अस्तित्व भी महत्वहीन हो गया। कोरिंथ और थीबीज जैसे नगरराज्य स्पार्टा से मिल गए। कुछ समय बाद स्पार्टा की नीति से क्षुब्ध होकर कोरिंथ, थीबीज और अर्गसि ने एथेंस से मिलकर स्पार्टा के विरुद्ध संधि की। किंतु स्पार्टा के फारस से संधि करने के फलस्वरूप एथेंस की संधि भंग हो गई और एशिया माइनर के ग्रीक नगर फारस के अधिकार में चले गए। 371 ई.पू. में स्पार्टा ने थीबीज के विरुद्ध युद्ध छेड़ा, किंतु उसमें स्पार्टा की हार हुई और उसका नेतृत्व ग्रीक इतिहास से मिट गया। अब थीबीज की शक्ति बढ़ने लगी थी। उसने भी अन्य नगरों के प्रति कठोर नीति से काम लिया। इस बार स्पार्टा और एथेंस के बीच संधि हुई। 362 ई.पू. के बाद थीबीज का महत्व समाप्त सा हो गया।

    युद्ध और अशांति के वातावरण में भी ई.पू. 5वीं शताब्दी में एथेंस के नेतृत्व में ग्रीस में कला और साहित्य की प्रशंसनीय उन्नति हुई। पाथेंनान, प्रोलिया और हेफिस्टस के मंदिर आदि समृद्ध वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने उसी युग में प्रस्तुत हुए। (दे. ललित कला, 'यूनानी वास्तुकला') फिदियस, मिरन और पॉलीक्ट्सि आदि प्रसिद्ध वास्तुकलाकार थे। चिकित्साजगत्‌ में हिपाक्रिटस के अन्वेषणों ने अनेक चिकित्साशास्त्रियों का मार्गदर्शन कराया। हिरैक्लिट्स, एंपिडाक्लीज और डिमाक्रिट्स (दिमोक्रितस) आदि दार्शनिकों ने तत्वचिंतन में महत्वपूर्ण योग दिया। शताब्दी के अंत में विश्व के महान्‌ दार्शनिक सुकरात का जन्म हुआ। क्रांतिकारी विचारों के कारण एथेंसवालों ने उन्हें 399 ई.पू. में विष दे दिया (दे. 'सुकरात')। हिरोडोटस को इतिहास का पिता कहा जाता है। थ्यूसीदाइदीज़ दूसरा महान्‌ इतिहासकार था, उसने पेलोपोनेशियन युद्ध का विस्तृत वृत्तांत प्रामाणिक रूप से लिखा। एक्लिज, सोफोक्लीज, यूरीपिदीज और अरिस्ताफेनीज के दु:खांत और सुखांत नाटक इसी समय लिखे गए (दे. 'ग्रीक भाषा और साहित्य')। पिंडार और बकाइलिदीज ने राष्ट्रनायकों की प्रशस्ति में काव्यग्रंथ लिखे। इस युग में एथेंस नि:संदेह ग्रीस में कला और साहित्य का नेता था।

    प्राचीन ग्रीस के इतिहास में, मुख्यत: एथेंस के इतिहास में दासप्रथा उल्लेखनीय है। इस संदर्भ में प्रजातांत्रिक पद्धति और दूसरी शासनपद्धतियों में विशेष भेद नहीं था। वर्तमान राजनीतिक सिद्धांत में 'श्रम के महत्व' को मुख्य स्थान प्राप्त हैं। प्राचीन सिद्धान्तों में 'श्रम' राजनीतिक अधिकारों की अयोग्यता का परिचायक था। कृछ काल तक तो हस्तकलाविदों की भी दासों की कोटि में रखा गया था। फिर भी अन्यराज्यों की अपेक्षा एथेंस में दासों की स्थिति अच्छी थी। एथेंस में इनके प्रति कुछ न्याय भी था (दे. 'दास और दासप्रथा था')

    इसी समय उत्तर ग्रीस में मकदूनिया नाम का एक शक्तिशाली राज्य उभर रहा था। ई.पू. 359 में फिलिप वहाँ का सम्राट् हुआ (दे. फिलिप द्वितीय)। अन्य ग्रीकी नगरराज्यों से मकदूनिया विजयी हुआ। कोरिंथ और थीबीज सैनिक अड्डे बन गए। फिलिपकी हत्या के बाद उसका पुत्र सिकंदर महान्‌ मकदूनिया का सम्राट् हुआ।

    सिकंदर और हेलेनी राज्यों का अभ्युदय (338-145 ई.पू.)[संपादित करें]

    सिकंदर ने सारे बिखरे हुए ग्रीस को अपने झंडे के नीचे एकत्र कर लिया (दे. 'सिकंदर।') यह अन्य राज्यों की जीतता हुआ पंजाब (भारत) आकर लौट गया। 323 ई.पू. में बैबिलोन (काबुल) में उसी मृत्यु हुई। वह संपूर्ण विश्व में एक राज्य और एक संस्कृति देखने का इच्छुक था। पर सिकंदर की मृत्यु पर उसका विस्तृत साम्राज्य छिन्न भिन्न हो गया। संघर्षो की लंबी श्रृखंला में तीन शक्तिशाली हेलेनी राज्य- ऐंटोगोनस्‌ के नेतृत्व में मकदूनिया, सेल्यूकिदों के नेतृत्व में एशिया माइनर तथा सीरिया और तोल्मियों के नेतृत्व में मिस्त्र उदित हुए। ई.पू. दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में एपिसर के सम्राट् पाइसर ने रोमनों के विरुद्ध इटली पर आक्रमण किया। मकदूनिया के सम्राट् फिलिप ने इस युद्ध में हस्तक्षेप किया था। इस घटना को प्रथम मकदूनियाई युद्ध कहा जाता है। द्वितीय मकदूनियाई युद्ध (201-197 ई.पू.) में फिलिप की पराजय हुई। ग्रीस के अन्य राज्य रोमनों ने फिलिप के अधिकार से मुक्त करवा दिए। ई.पू. 192 से 189 तक स्थिति बदल गई। इतालियों और रोमनों के बीच युद्ध में फिलिप ने रोमनों का साथ दिया। किंतु परिस्थितियाँ इस प्रकार उत्पन्न होती गईं कि मकदूनियाँ ने दो युद्ध और लड़े। ई.पू. 146 में यह रोम से भी पराजित हुआ। रोम से सारे ग्रीस को केंद्रित कर मकदूनिया में शासक नियुक्त किया।

    रोम ने ग्रीस और मकदूनिया पर आधिपत्य के साथ सिकंदर द्वारा विजित पूर्वी प्रदेशों पर भी अधिकार जमा लिया। एथेंस में कला और संस्कृति की उन्नति रोमनों के काल में ज्यों की त्यों रही। जस्तिनियन ने एथेंस के बौद्धिक उन्नयन में हस्तक्षेप कर सिकंदरिया को दार्शनिक शिक्षाओं का केंद्र बनाया। इससे रोम ने भी ग्रीस कला और संस्कृति से बहुत कुछ लिया। कुस्तुंतुनिया राजधानी बनी। थिडोसियस की मृत्यु के पश्चात्‌ पूरा साम्राज्य दो भागों में बँटा। पश्चिमी ग्रीस के पतन (176) के पश्चात्‌ पूर्वार्ध भाग बैजंटाइन साम्राज्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ। किंतु जब मुसलमानों ने कुस्तुंतुनिया पर अधिकार किया तो यह राज्य भी समाप्त हो गया।

    यह राज्य नौकरशाही से आरंभ हुआ। इस साम्राज्य का पूरा इतिहास, अपनी रक्षा के लिये बाल्कन, दक्षिणी इटली और एशिया माइनर से हुए युद्धों का इतिहास है। विजीगोथिक, गोथिक (दे. गोथ) और बल्गोरियन जातियों के भी आक्रमण हुए। सम्राट् जस्तिनियन ने उस भूमि को पुन: प्राप्त करने का प्रयत्न किया। आगे चलकर धार्मिक मतभेदों के कारण सन्‌ 800 में, जबकि चार्लमैन रोम का सम्राट् हुआ, कुस्तुंतुनिया और रोम अलग अलग हो गए (दे. रोम का इतिहास)। नवीं शताब्दी के अंत में सम्राट निकेफोरस फोकास द्वितीय और जोन जिमिसेस ने राज्य को किसी प्रकार बचाने की चेष्टा की (दे. 'बैजंटाइन साम्राज्य)।' इसके बाद सेलजुक तुर्को के आक्रमणों ने राज्य को अतिशय शक्तिहीन बना दिया। 13वीं शताब्दी से लेकर 15वीं शताब्दी के आरंभ तक इस साम्राज्य में बड़ी उथल पुथल हुई। अंत में आटोमन (उस्मानी) तुर्कों ने 1453 में कुस्तुंतुनिया पर अधिकार कर लिया। शनै: शनै: संपूर्ण ग्रीस पर उनका अधिकार हो गया (दे. 'तुर्क)।'

    फ्रांस की क्रांति और तुर्क शासन के क्रमिक पतन आदि की घटनाओं से और अन्य देशों में बसे ग्रीकी लोगों की समृद्धि से ग्रीस के नेताओं में तुर्कों से अपने देश को मुक्त कराने की इच्छा जगी। रूस, ब्रिटेन और फ्रांस के उत्साहित करने पर वहाँ की जनता ने तुर्को के विरुद्ध सन्‌ 1821 से 1829 तक संघर्ष कर ग्रीस को एक स्वतंत्र राष्ट्र बना लिया। बवारिया का राजकुमार आथो सन्‌ 1832 में ओटो प्रथम के नाम से सम्राट् बनाया गया। दो वर्ष पश्चात्‌ एथेंस नगर देश की राजधानी बना। सम्राट् ओटो की व्यक्तिगत नीतियों से क्षुब्ध होकर वहाँ की जनता ने सन्‌ 1843 में उसके विरुद्ध आंदोलन करके संसदीय परंपरा कायम की। 20 मार्च 1844 को जनतंत्रवादी ग्रीस का पहला संविधान बना। इसमें सम्राट् पद की पूर्णतया समाप्ति नहीं थी। डेनमार्क का राजकुमार विलियम जार्ज 1863 में ओटो का उत्तराधिकारी हुआ। दूसरी बार के बने संविधान में सारी राजनीतिक शक्ति सम्राट् के हाथ से निकलकर जन प्रतिनिधियों के हाथ में केंद्रित हो गई। 1869 में ब्रिटिश सरकार ने आयोनी द्वीपों को भी ग्रीस राज्य में मान लिया। 1897 में ग्रीस, क्रीट पर आधिपत्य जमाने के लोभ में टर्की से पराजित हुआ। कुछ बड़ी शक्तियों के हस्तक्षेप से क्रीट स्वायत्त शासन की इकाई बना और टर्की का आधिपत्य समाप्त हो गया। कुछ सैन्य अधिकारियों के ग्रीस की साम्राज्यवृद्धि की नीति के विरुद्ध विद्रोह को तत्कालीन प्रधान मंत्री एलूथीरिथस बेनीजेलास ने कुशलता से दबा दिया।

    प्रथम विश्वयुद्ध में ग्रीस तटस्थ रहा। सम्राट् अलेक्जंडर की मृत्यु (1920) के बाद संसदीय निर्वाचन में बेनीजेलास दल की हार हुई। 1922 में सम्राट् कांस्टैंटिन ने एशिया माइनर के अल्पसंख्यक ग्रीक नगरों को मुक्त कराने के लिये टर्की के विरुद्ध युद्ध किया, किंतु पराजित हुआ। बाद में परस्पर नगरों की अदला बदली हो गई। बेनीजेलास दल के आंदोलन ने 1924 से 1935 तक जनतंत्र कायम रखा किंतु 1935 में पुन: राजशाही की विजय हुई। 1936 में जनतांत्रिक पद्धति का समूलोच्छेदन हुआ और वाक्स्वातंत््रय, जनसभाओं और राजनीतिक संगठनों पर रोक लगा दी।

    द्वितीय विश्वयुद्ध के समय यहाँ भी राष्ट्रीय समाजवादी जर्मनी की तरह अधिनायकवाद था। दोनों विश्वयुद्धों के बीच ग्रीस बाल्कन राष्ट्रों में सहयोग के लिये सक्रिय था। 1930 में पहला बाल्कन सम्मेलन एथेंस में हुआ। 1940 में इटली को युद्धसंबंधी सुविधा न प्रदान करने पर इटली ने ग्रीस पर आक्रमण कर दिया। प्रारंभिक असफलताओं के बाद ग्रीस ने इटालियन सेनाओं को अल्बानिया में खदेड़ दिया और लगभग 20,000 सैनिक बंदी बना लिए। ग्रेट ब्रिटेन ने उसे अल्बानिया छोड़कर हट जाने के लिये बाध्य किया। जर्मनी ने ब्रिटेन और ग्रीस का संबंध देखकर ग्रीस को रौंद डाला और दो सप्ताह में क्रीट पर भी जर्मनी का झंडा फहरा गया।

    सन्‌ 1941 ओर उसके बाद ग्रीस में अनेक छोटे बड़े राजनीतिक संगठन हुए। इनमें बहुतों के पास कोई निश्चय कार्यक्रम नहीं था ब्रिटिश प्रतिनिधियों के साथ 1943 में राजनीतिक दलों के नेताओं ने तय किया कि स्वस्थ जनमत तैयार होने के पूर्व तक सत्ता के अधिकार के लिये सम्राट् की नियुक्ति होनी चाहिए। राजनीतिक संगठनों ने सम्राट् को अपना सहयोग दिया। किंतु आगे चलकर इन दोनों में सत्ता के लिये संघर्ष हुआ। संघर्ष के लंबे काल में ब्रिटिश सेनाओं को हस्तक्षेप करना पड़ा। शक्तिशाली दल 'नेशनल लिबरेशन फ्रंट' का भी प्रभाव बहुत क्षीण हो गया। फिर भी संघर्ष कम नहीं हुए। एथेंस में रक्तरंजित क्रांति हुई। अंततोगत्वा सोफोलिस के निर्देशन में सारे केंद्रीय गुटों की सम्मिलित सरकार बनी। मार्च, 1946 में आम चुनाव हुए, संसद् में अनदार दल का बहुमत हुआ। सम्राट् जार्ज द्वितीय की मृत्यु पर उसका भाई पाल प्रथम शासनाध्यक्ष हुआ। वह बहुत अंशों तक प्रभावशाली सिद्ध हुआ, यहाँ तक कि कुछ उदारदलीय भी उसके पक्ष में सम्मिलित हो गए। तत्कालीन ग्रीक सरकार के विरुद्ध 1947 में गृहयुद्ध छिड़ा। विद्रोही जनता सरकार का संगठन जनरल मारकास वाफिया दीस की अध्यक्षता में चाहती थी। इनकी अल्बानिया, यूनोस्लाविया और बल्गेरिया से सहायता मिलती थी। मार्च, 1948 में यह विद्रोह दबाया जा सका, किंतु इससे धन जन की अपार क्षति हुई।

    इस समय ग्रीस में औद्योगिक प्रगति कुछ अंशों में हुई, किंतु राजनीतिक और सामाजिक स्थिति निराशापूर्ण रही। सितंबर, 1947 से नवंबर, 1949 तक दस सरकारें बदलीं। पैपागस के नेतृत्व में रैली दल के बहुमत में आने पर कुछ जन अधिकारों में वृद्धि हुई और राजनीति में स्थिरता आई। संयुक्त राज्य अमरीका की सहायता में न्यूनता की गई। फिर भी देश की अच्छी हुई। रूसी गुट से निकलने के बाद यूगोस्लाविया से उसके संबंध अच्छे हुए। 1952 में टर्की के साथ ग्रीस नाटो (नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन) का सदस्य हुआ। फरवरी, 1953 में यूगोस्लाविया टर्की और ग्रीस में पारस्परिक सहयोग और सुरक्षा की संधि हुई। 1952 में ग्रीस और बल्गेरिया के बीच सीमाविवाद हुआ, किंतु ग्रीस ने अपनी आंतरिक राजनीति में साम्यवाद को कभी पनपने नहीं दिया। 1954 में एथेंस और साइप्रस में ब्रिटिश हस्तक्षेप के विरुद्ध विद्रोह भड़का। अंत में, ब्रिटिश हस्तक्षेप का मामला संयुक्त राष्ट्रसंघ में विचारार्थ पेश किया गया। 1959 में लंदन-ज्यूरिख समझौते के अनुसार साइप्रस समस्या के प्रस्ताव द्वारा तुर्की और ग्रीस के संबंधों में स्थिरता आई। नवंबर, 1962 में ग्रीस यूरोपीय सम्मिलित बाजार में शामिल हुआ।

    इतिहास लेखन क्या है समझाइए?

    इतिहास-लेख या इतिहास-शास्त्र (Historiography) से दो चीजों का बोध होता है- (१) इतिहास के विकास एवं क्रियापद्धति का अध्यन तथा (२) किसी विषय के इतिहास से सम्बन्धित एकत्रित सामग्री। इतिहासकार इतिहासशास्त्र का अध्ययन विषयवार करते हैं, जैसे- भारत का इतिहास, जापानी साम्राज्य का इतिहास आदि।

    यूनानी इतिहास लेखन का जनक कौन था?

    इतिहास के पहले महान कथा को लिखने के लिए हेरोडोटस को "इतिहास का पिता" के रूप में जाना जाता है, जो 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में ग्रीस और फारस के बीच घटनाओं और युद्धों का दस्तावेज करता था। उन्होंने लेखन की अपनी शैली में एक उदाहरण निर्धारित किया है, और उनके काम अभी भी उस अवधि से सूचना का एक मूल्यवान स्रोत है।

    यूनानी कौन थे in Hindi?

    यूनानी कौन थे, या कौन हैं? यूनान या ग्रीस देश के नागरिक यूनानी या ग्रीक कहलाते हैं। यूनानी सभ्यता एक प्राचीन सभ्यता थी, जिसने ज्ञान-विज्ञान-कला-संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की थी, जिनका संपूर्ण विश्व पर व्यापक प्रभाव पड़ा। भारत का लिखित इतिहास भी सिकंदर के आक्रमण से उपलब्ध है।

    यूनानी रोमन इतिहास की अवधारणा का मुख्य आधार क्या था?

    यूनानीरोमन इतिहासकार पूरी तरह से एक - दूसरे से कोसों दूर थे। यूनानियों का दृष्टिकोण सत्य पर केन्द्रित था और उनके इतिहास लेखन का क्षेत्रा भी अत्यन्त विकसित था जबकि रोम के विद्वानों ने गुण को महत्त्व न देकर मात्रा की ओर ध्यान दिया और मानव की सामाजिक , आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को पूरी तरह नकार दिया।