होली रंगों, आपसी मेल-मिलाप और उल्लास का त्योहार है। लेकिन हर साल धुलन्डी यानि रंग वाली होली से एक दिन पहले फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन का पर्व भी मनाने की परंपरा रही है। इस साल यह पर्व 17 मार्च को मनाया जाएगा। धर्म में होलिका दहन का भी अपना एक विशेष महत्व होता है और इसके पीछे एक कथा भी प्रचलित है। होलिका दहन से पहले होलिका की पूजा करना और कथा को पढ़ना काफी शुभ माना जाता है। कहते हैं कि इससे ग्रह दोषों का निवारण होने के साथ ही घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। तो आइए जानते हैं होलिका दहन से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में...
होलिका दहन, हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें होली के एक दिन पहले यानी पूर्व सन्ध्या को होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है।[1][2]
हिरण्यकशिपु का ज्येष्ठ पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था। पिता के लाख कहने के बावजूद प्रह्लाद विष्णु की भक्ति करता रहा। दैत्य पुत्र होने के बावजूद नारद मुनि की शिक्षा के परिणामस्वरूप प्रह्लाद महान नारायण भक्त बना। असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की भी कई बार कोशिश की परन्तु भगवान नारायण स्वयं उसकी रक्षा करते रहे और उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। असुर राजा की बहन होलिका को भगवान शंकर से ऐसी चादर मिली थी जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। होलिका उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई। ।[3]दैवयोग से वह चादर उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गई, जिससे प्रह्लाद की जान बच गई और होलिका जल गई। इस प्रकार हिन्दुओं के कई अन्य पर्वों की भाँति होलिका-दहन भी बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है।[4]
भगवान् सर्वव्यापक है, यह बोध करने के लिए होली मनाई जाती हैं। लेकिन हम लोग क्या करते है? हम लोग बहिरंग(बाहरी) विनोद करते हैं, इसके बारे में लिखना व्यर्थ हैं, क्योंकि आप लोग जानते है आप क्या-क्या करते हैं होली के पर्व पर। होली किस लिए है? क्यों मनाते हैं हम होली?
यह बात तब की हैं जब प्रह्लाद(प्रहलाद) हिरण्यकशिपु के पुत्र थे, और हिरण्यकशिपु ब्रह्माजी की तपस्या करने गया था। तब नारद जी ने हिरण्यकशिपु की स्त्री को इंद्र से बचाया था और नारदजी ने हिरण्यकशिपु की स्त्री अपने आश्रम लेकर गए। उस वक्त प्रह्लाद पेट में थे और उसी वक्त नारदजी ने भक्ति का उपदेश दिया था। वैसे तो प्रह्लाद अनंत जन्म का महापुरुष था, लेकिन लीला करने के लिए नारदजी ने उपदेश दिया और वो भक्त हो गया। और पैदा होते ही भक्ति करने लगा क्योंकि पेट में भक्त था। ये सब बातें सतयुग की हैं उस वक्त लोगों की स्मरण(याददाश्त) बहुत अधिक थी आज के मुकाबले।
हिरण्यकशिपु भगवान् का दुश्मन था, क्योंकि उसके भाई (हिरण्याक्ष) को भगवान् ने मार था। हिरण्यकशिपु भगवान् को मारने के लिए ब्रह्मा का घोर तप किया और बड़ा लंबा-चौड़ा वरदान मांग: "न दिन में मरू, न रात में, न जमीन पर मरु, न आकाश में...." पर फिर भी भगवान् ने मार दिया, और भगवान् बताते गए देख "न तो दिन है, न तो रात, न में नर हूँ, न मैं पशु...." भला मनुष्य कितनी बुद्धि लगायेगा की भगवान् के आगे।
अस्तु! हिरण्यकशिपु वध होने से पहले। हिरण्यकशिपु ने कहाँ प्रह्लाद से "तू क्या बोलता रहता है, भगवान् सर्वव्यापक हैं, हमारे राक्षस के महल में है।" तो प्रह्लाद बोलते है, "हाँ हैं! एक-एक कण में हैं।" तो हिरण्यकशिपु बोलता है, "इस खम्भे में है", प्रह्लाद के "हाँ" बोलने पर मार गदा खम्बे पर, और खंभा टूट गया। और खंभा टूट की नरसिंह भगवान् आये। और बोले, "मैं हर जगह रहता हूँ, मेरे लिए कोई जगह गन्दी नहीं होती, मैं तुझ जैसे राक्षस में महल में रहता हूँ , और तुझमे भी रहता हूँ। मैं अपवित्र को पवित्र करता हूँ, अपवित्र मुझको अपवित्र नहीं कर सकती।" इस बात को इस तरह समझिये गंगाजी में कोई नदी जायेगी, तो वो गंगा जी बन जायेगी, गंगा नहीं अशुद्ध हो जायेगी। तो जब हिरण्यकशिपु ने प्रतक्ष देखलिया तो मानलिया लेकिन अब मानने से क्या फायदा, भगवन तो मारने आये थे।
अस्तु! तो भगवान् सर्वव्यापक है, यह बोध करने केलिए होली मनाई जाती हैं। जानने के लिए नहीं मनाई जाती हैं, की भगवान् सर्वव्यापक है। यह मानने के लिए होली मनाई जाती है, की भगवान् सर्वव्यापक हैं। जानते तो अनंत जन्मो से आये है, सुना है! "घाट-घाट व्यापक राम" पढ़ा भी है, लेकिन अनभव नहीं किया माना कभी नहीं। तो भगवान् ने अवतार लेकर सर्वव्यापकता का प्रमाण दिया, उसी के उपलक्ष में ये होली का त्यौहार मनाया जाता है। और उसी प्रकरण में ये होलिका-दहन हुआ, भगवान् की जितनी शक्तियाँ हैं, ये भगवान् के कारण आग, वायु, और अन्य देवता मनुष्य में हैं। ये बात गीता १०.४१ भी कहती हैं, जितनी बड़ी-बड़ी शक्तियाँ हैं, देवताओं आदि की, इसमें भगवान् की ही वो शक्ति है जिससे वो शक्तिमान हो गयें हैं। जितने भी ये अग्नि, वरुण, कुबेर, वायु आदि देवता हैं, ये सब भगवान् की शक्ति पाकर बलवान हुये हैं। यहाँ तक एक बार देवताओं को अपनी शक्तियों पर अभिमान हो गया था, ये कथा केनोपनिषद ३. १ से ४. १ में हैं, आप चाहें तो पढ़ सकते हैं।
अस्तु, तो भगवान् की शक्ति है, वो भगवान् के ख़िलाफ़ बगावत नहीं कर सकती। और भगवान् का भक्त है प्रह्लाद, तो भगवान् भक्त की रक्षा करते हैं, जो भगवान् ने किया। जब प्रह्लाद को लेकर होलिका अग्नि पर जलाने के उद्देश्य से बैठी, तो भगवान् ने प्रह्लाद को बचा लिया।
अस्तु, निष्कर्ष:- भगवान् सर्वव्यापक है, यह बोध करने के लिए होली मनाई जाती हैं और होलिका-दहन इस लिए किया जाता हैं की भगवान् अपने भक्त की रक्षा करते हैं जो उनकी शरण में जाता हैं और प्रत्येक व्यक्ति, देवता और कण-कण को शक्ति प्रदान करते हैं ये लोगों को बोध हो जाये।
होली भारत के लोकप्रिय त्योहारों में से एक है. भारत में होली का मतलब रंगों का त्योहार. प्यार भरे रंगों से सजा यह पर्व हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन खोलकर भाई-चारे का संदेश देता है. इस दिन सारे लोग अपने पुराने गिले-शिकवे तथा अन्य पुरानी बातो को भूलकर एक दूसरे के गले मिलते हैं और गुलाल लगाते हैं. हिन्दू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन करने की परंपरा है. इस वर्ष होलाष्टक 10 मार्च से शुरू हो गया है ,जो 17 मार्च को समाप्त हो जाएगा अर्थात् फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से पूर्णिमा तक होलाष्टक दोष रहेगा. यह 8 दिनों का होता है. इसके बाद 18 मार्च को होली खेली जाएगी.
क्या है होलिका दहन
होली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, होलिका दहन. इसे फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इसके अगले दिन रंग-गुलाल से होली खेली जाती है. इसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि भी कहा जाता है. कई अन्य हिंदू त्योहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. होलिका दहन की तैयारी त्योहार से 40 दिन पहले शुरू हो जाती हैं. लोग सूखी टहनियां, पत्ते जुटाने लगते हैं. इसके बाद फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को इन्हें अग्नि दी जाती है और मंत्रों का उच्चारण किया जाता है.
होलिका दहन के पीछे की कथाएं
होलिका दहन आज से नहीं बल्कि पौराणिक काल से चला आ रहा है. द्वापर युग में भी इसका चलन था लेकिन इसके पीछे की वजह दूसरी थी. द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था तब उनके मामा कंस ने कृष्ण को मारने के लिए पूतना राक्षसी को भेजा था. लेकिन कंस के द्वारा रचाई चाल उन्ही पर भारी पड़ गई और भांजे श्रीकृष्ण के हाथों पूतना मारी गई. मान्यता अनुसार श्री कृष्ण ने पूतना का वध फाल्गुन पूर्णिमा के दिन ही किया था और इसी खुशी में नंदगांव की गोपियों ने बाल श्रीकृष्ण के साथ होली खेली थी.
वहीं दूसरी कहानी भगवान शिव और कामदेव से जुड़ी हुई है. एक कथा यह भी है कि भगवान शिव ने अपने क्रोध से कामदेव को भस्म कर दिया था. हालांकि बाद में उनको प्राणदान दे दिया. लेकिन जिस दिन कामदेव भस्म हुए थे वो दिन भी होलिका दहन था. इस कहानी के बाद सबसे प्रचलित कथा भक्त प्रह्लाद और उनकी बुआ होलिका से जुड़ी है. जिसके बारे में हर कोई जानता है. कथा है कि होलिका अपने भतीजे प्रह्लाद को लेकर आग में जाकर बैठ गई. लेकिन इस आग में बुराई रूपी होलिका का दहन हुआ और सच्चाई की जीत हुई. विष्णु जी की असीम कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई. उस दिन भी फाल्गुन पूर्णिमा थी, इसलिए हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन होता है.
क्यों मनाई जाती है होली?
यह त्यौहार वसंत ऋतु के आगमन और आने वाले पर्वों और बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए मनाया जाता है. होली पारंपरिक रूप से एक हिंदू त्योहार है जिसे अलग-अलग शहर और राज्य में अपने तरीके से मनाया जाता है. कही पर गुलाल से होली खेली जाती है तो कहीं पर फूलों वाली होली या लट्ठमार होली मनाई जाती है.