हिजड़ा शारीरिक संरचना के बारे में - hijada shaareerik sanrachana ke baare mein

हिजड़ों के रहस्य क्या हैं?

अमृतम पत्रिका के संपादक श्री अशोक गुप्ता ने किन्नरों के बारे में जानने के लिए अनेकों किन्नर गुरुओं से मिले और उनसे साक्षात्कार लिया।

किन्नर केसे बनते हैं?

किन्नर कितने तरह के होते हैं।

किन्नरों का संप्रदाय कोनसा है?

किन्नरों के गुरु कोन होते हैं।

किन्नर स्त्री या पुरुष इनमें से क्या होते हैं?

किन्नरों की देश में कितनी जनसंख्या है?

क्या मरने के बाद किन्नरों को जूते चप्पल से मारा जाता है।

हिजड़ों का मुख्यालय कहां पर है?

नारद संहिता में हिजड़ा को हीराजड़ा पवित्र इंसान बताया है। महाभारत में इन्हे बृहनलला कहा गया है। किन्नर होने के कारण इन पर बाण नहीं चलाया था। किन्नर यानि हिजड़ों के तिलिस्म किसी रहस्य से कम नही होते।

किन्नरों के गुरु ही सब कुछ होते हैं

हिजड़ों के गुरुओं की संपन्नता किन्नरों के कारण ही बढ़ती है क्योंकि कमाई का आधा हिस्सा गुरु के पास जाता है और आधा हिस्सा बाकी किन्नरों में बंट जाता है।

किसी-किसी किन्नर गुरु का इलाका इतना बड़ा होता है कि एक दिन में तीन-तीन दल बनाकर उन्हें इलाके में भेजा जाता है। जिन्हें किन्नरों की भाषा में ढोलक भेजना कहते हैं।

कभी-कभी तो एक-एक दिन में दस-दस हजार रुपये तक की कमाई होती है।

शुक्रवार का विशेष महत्व शुक्रवार को किन्नर अपना अवकाश रखते हैं। इस दिन वे ढोलक लेकर नहीं निकलते हैं। इस समय देशभर में 1860 से अधिक किन्नरों के धाम हैं जहां पर गुरु, गद्दी पर बैठे हुए हैं।

किन्नर होते हैं बेहतरीन ज्योतिषाचार्य

किन्नर ज्योतिष, तंत्र-मंत्र और पूजा-पाठ में निपुण होते हैं। पूजा-पाठ के लिए इसलिए कुछ लोग इन्हें अपने घर भी बुलाते हैं। ये लोग झाड़-फूंक और गंडा-तबीज देते हैं। amrutam, Gwalior

तिहाड़ जेल में बंद नीलिमा किन्नर दूसरी महिला कैदियों को ताबीज बनाकर दिया करती थी। इसी तरह गीता किन्नर भी जेल में किसी को ताबीज, किसी को धागा बनाकर उनके कष्ट निवारण का विश्वास दिलाती है। वह हिंदू धर्म के अनुसार काली माता की पूजा करती है। साथ ही इस्लाम धर्म के पीर पैगंबरों को भी मानती है और उनकी मजार पर चादर चढ़ाती है।

बिना बुलाए मेहमान होते हैं हिजड़े

भारतीय संस्कृति में !!अतिथि देवो भवः!! अर्थात अतिथि ईश्वर का ही रूप है यह कहकर या मानकर सम्मान दिया जाता है। लेकिन किन्नरों के मामले में ये सूक्ति बिलकुल उलट होती है। किसी के यहां मंगल कार्य विवाह, पुत्र प्राप्ति आदि शुभ कर्मों में इनकी आगवानी कोई नहीं रोक सकता।

किन्नर ढोलक बजाकर अंतरात्मा से आशीर्वाद प्रदान करते हैं। किन्नर शायद ही ये खाली हाथ लौटते हों क्योंकि इन्हें खाली हाथ लौटाया नहीं जाता है। इनकी दुआएं बेशकीमती मानी जाती हैं।

कोई भी समाज या संप्रदाय में अमीर से लेकर गरीब तक शायद ही ऐसा कोई घर हो जहां किसी मंगलकार्य के दौरान किन्नर 'बिन बुलाए मेहमान' की तरह पहुंच न जाते हों।

अनोखी सज-धज, चाल-ढाल और उंगलियां फैलाकर हथेलियों से ताली बजाना, वो ढोलक की थाप, वो नाच-गाना, 'सज रही मेरी गली मां सुनहर गोटे में' या 'तैयब अली प्यार का दुश्मन हाय-हाय आदि ऐसी अनेक अनोखी आदतों के कारण 'किन्नर' हमारे-जैसे इनसान होते हुए भी हमसे अलग माने जाते हैं।

किन्नर की दुनिया किसी तिलिस्म से कम नहीं।


क्या हमने कभी किसी के यहां इन्हें कुछ खाते-पीते देखा है? क्या कभी किसी के यहां गमी या शोक के माहौल के दौरान इन्हें सांत्वना व्यक्त करते हुए देखा है? शायद कभी नहीं।

आखिर यह उनके नियमों के खिलाफ है। क्या हमने कभी इन 'चलती-फिरती पहेलियों को बुझाने की कोशिश की है, इनके मन के भीतर जो तिलस्म है उसमें घुसकर कुछ खोज निकालने की पहल की है?
अगर वो मांगने आये तो थोड़ा बहुत कुछ देकर न देकर उनकी ओर से मुंह फेरकर या उन्हें चलता कर देते हैं या फिर मे खुद ही खिसक लेते हैं। शायद ही ऐसा कोई आम आदमी हो जो इनकी बद्दुआ डरता न हो । एक भय है लोगों के मन में कि किन्नरों की बद्दुआ बहुत बुरी होती है।
किन्नरों की दुनिया के बारे में अमृतम पत्रिका में एक बहुत मार्मिक और रोचक जानकारी दी जा रही है।

जानकारी दे रहे हैं।

हमारी ग्वालियर में वृष में एक बार किन्नरों का सम्मेलन या समागम होता है, जिसमें देश दुनिया के लगभग 1500 हिजड़े आते हैं।

बुध की शांति हेतु उपाय

किन्नरों के गुरु से हम हर साल दान दक्षिणा भी देकर उनसे आशीर्वाद लेते हैं। न्यता है कि बुध ग्रह की शांति के लिए किन्नरों की कृपा बहुत लाभकारी होती है।

किन्नरों की दुनिया का रहस्य किन्नर हमारे जैसे ही इनसान हैं लेकिन क्या हमने कभी उन्हें अपने जैसा समझा है ? वो भी हममें शामिल होना चाहते हैं लेकिन क्या समाज ने कभी उन्हें अपने में शामिल होने दिया है?

हिजड़ों के भी हमारी तरह अनेक नाम हैं लेकिन क्या हमने कभी उन्हें उनके 'असली' नाम से जाना या बुलाया है? हम तो बस उन्हें एक ही नाम से बुलाते हैं किन्नर, हिजड़ा और उन्हें देखते ही हम तुरंत उन्हें पहचान भी लेते हैं।

किन्नरों का मुख्यालय या 'हेड आफिस'

मप्र के शाजापुर (म.प्र.) में किन्नरों के एक समुदाय का 'हेड आफिस' है। किन्नर के घर कम दरगाह - जैसा पवित्र स्थल जैसा प्रतीत होता है। इसे घराना' कहते हैं।

मंगलमुखी' कहते हैं हिजड़ों को

किन्नर समुदाय लक्ष्मीबाई के अनुसार, “उनका किन्नर समुदाय 'मंगलमुखी' के 'शुभ नाम' से जाना जाए, तो अच्छा है क्योंकि वे समाज के केवल शुभ या मंगल कार्यों में ही शामिल होते हैं। मृत्यु व किसी भी अन्य प्रकार के शोक, अशुभ या अमंगल के समय वे कदापि किसी के भी यहां नहीं जाते, भले ही उन्हें आगे रहकर क्यों न बुलाया गया हो और भले इसके बदले उन्हें लाखों रुपये ही क्यों मिल रहे हों लेकिन वे ऐसी जगहों पर और ऐसे कार्यों में बिल्कुल नहीं जाते क्योंकि यह उनके 'कानून' के खिलाफ है।


हैं-परंपरावादी या घरानेदार किन्नर, जिनके अपने नियम और कायदे-कानून हैं और गैर परंपरावादी या गैर घरानेदार किन्नर जो किसी मजबूरी के कारण ही किन्नर बनने को विवश हुए हैं। घरानेदार किन्नरों की सबसे बड़ी विशेषता उनमें चलती रहनेवाली 'गुरु-शिष्य परंपरा' है जिसका पालन पूरी कठोरता और निष्ठा से किया जाता है। एक बार जो किन्नर किसी गुरु का चेला बन गया तो फिर वह गुरु ही उसके लिए सबसे बड़ा होता है और उसका हुक्म उसके लिए 'अल्लाह का फरमान' की तरह होता है।

किन्नरों की आराध्य 'बुचरादेवी

हालांकि किन्नर सभी धर्मों का सम्मान करते हैं लेकिन इनकी आराध्य है 'बुचरादेवी' जिनका गुजरात में है। सभी मंदिर वर्गों, धर्मों, जातियों और संप्रदायों के मुख्य देवीकिन्नर इन्हें बहुत मानते हैं और इनकी आराधना करते हैं। ये उनकी एक प्रकार की 'कुल देवी' हैं। कुछ किन्नर 'पावागढ़ की माताजी' के भी भक्त हैं। ये 'पवैया' कहलाते हैं।

इनके समाज में किसी भी प्रकार की विवाद की स्थिति का निपटारा इनकी पंचायत में होता है जो सालभर में देश के

- अलग-अलग हिस्सों में आयोजित होते रहनेवाले हिजड़ों के सम्मेलनों में लगाई जाती है। इसमें चारों संप्रदायों के किन्नर आते हैं और आपस में मिल-बैठकर अपनी कार्य योजनाएं बनाते हैं और विवादों का निपटारा करते हैं। कभी-कभी ऐसे भी सम्मेलन होते हैं जिनमें केवल 'घराना विशेष' से संबंधित किन्नर ही आते हैं। सम्मेलनों का आयोजन चूंकि खर्चीला होता है इसलिए इसे सभी समुदायों के किन्नर मिलकर उठाते हैं ।

मंगल कलश यात्रा

सम्मेलन के पहले दिन जिस शहर में सम्मेलन हो रहा होता है वहां 'मंगल कलश यात्रा' निकाली जाती है। यह सारे शहर के और कल्याण आयोजन में शांतिपूर्वक पूरा हो जाने के लिए भगवान से एक प्रकार की 'मंगलकामना' है।

किन्नरों के इन सम्मेलनों में किन्नर एक-दूसरे के लिए नजराने लाते हैं जिनकी कीमत कई बार लाखों में होती है। कई किन्नर आपस में ब्याह रचाते हैं और पति-पत्नी के रूप में रहते हैं। इस बात की इजाजत दोनों किन्नरों के गुरुओं की आपसी सहमति से दी जाती है। इस प्रकार के ब्याहों का आयोजन या इजाजत की सहमति सम्मेलनों के दौरान ही प्रदान की जाती है। किन्नरों के रूप में संस्कारित हो जाने पर वरिष्ठ हिजड़ों में से कोई एक उस नये किन्नर की 'धर्म की मां' और 'धर्म की बहन' बनते हैं। विशिष्ट आयोजनों में ये धर्म की मां या बहन दहेज, मामेरा, नजराना आदि लेकर आते हैं।

कई किन्नर अपने मूल परिवारों से भी संबंध बनाये रखते हैं लेकिन गुरु की इजाजत से लेकिन वो इसकी जानकारी किसी को ज्यादा देते नहीं क्योंकि इससे समाज के लोग उनके परिवार को परेशान करते हैं और अच्छी नजर से नहीं देखते हैं।

गुरु को नजराना देना पड़ता है

किन्नर 'वसूली' के रूप में जो पैसा कमाते हैं उसमें से उन्हें उनके गुरु को नजराना भी देना पड़ता है। छोटे शहरों के किन्नर में कई बार इसलिए आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है क्योंकि वहां कई-कई दिनों तक शुभ आयोजनों का इंतजार करना पड़ता है। ऐसे में कई बार उस घराने के हेड आफिस से आर्थिक मदद भी की जाती है।

किन्नर भी अब समय के साथ-साथ बदल रहे हैं और आधुनिकता को अपना रहे

हैं। इसी के परिणामस्वरूप आज मुंबई में किन्नरों के लिए एक बैंक खोली जा रही है जिसमें देशभर के किन्नर अपनी संपत्तियां सुरक्षित रख सकेंगे।

सभी धर्मों को माननेवाले

किन्नर सभी धर्मों को माननेवाले होते हैं। ये हज यात्रा भी करते हैं और चारों धाम की यात्रा भी, कुरानखानी भी करवाते हैं और गंगा उद्यापन भी। ये उर्स और मेले, सभी में जाते हैं और वहां वसूली करते हैं।

एक खास बात किन्नर गुरु ने यह बताई कि जब कोई नया किन्नर 'चेला' बनाया जाता है, तो उसके सिर पर 'लुगड़ी' (चुनरी) डाली जाती है इसीलिए दफनाने के बाद ये मृतक किन्नर की मजार य समाधी पर चादर नहीं चढ़ाते।

यहां तक कि ऐसी कोई वस्तु जिसमें सूत या धागा हो (जैसे हार आदि) उसे भी ये मजार पर नहीं चढ़ाते । ये उन मजारों पर केवल फूल ही चढ़ाते हैं लेकिन अगर किसी बाहरी आदमी ने वहां पर कोई मन्नत मांगी हो और वो पूरी हो जाए, तो वह वहां जाकर मजार पर माला या चादर चढ़ा सकता है लेकिन हम खुद आगे रहकर ये सब चीजें मजार पर नहीं चढ़ाते।

सभी धर्मों सम्मान करते लेकिन इनकी आराध्य 'बुचरादेवी' है मंदिर में है।

इतिहास और मिथक में

महाभारत में शिखंडी का चरित्र सर्वविदित है । अंबा जब भीष्म पितामह से बदला नहीं ले सकी तो उसने आत्मदाह कर लिया । अगले जन्म में वह शिखंडी के रूप में पैदा हुई।

किन्नरों के संबंध में उल्लेख मुगलकाल में भी मिलते हैं, जब महिलाओं हरमों की देखभाल के लिए किन्नरों को नियुक्त किया जाता था। कई किन्नरों ने युद्ध के मैदान में अभूतपूर्व शौर्य का प्रदर्शन भी किया था।

इस्तांबूल के सुल्तान ने तो अपने शिखंडी सेनापति काईदली आगा के नेतृत्व में शिखंडियों की फौज ही गठित कर ली थी ।

किन्नरों में कई पहुंचे हुए सिद्ध-साधक और पीर - पैगंबर भी हुए हैं। इनमें सबसे उल्लेखनीय नाम पीर यतीमशाह का है। कहते हैं कि यतीमशाह के यहां बादशाह अकबर खुद हाजिर हुए और उन्होंने प्रार्थना की कि मुल्क को सूखे के संकट से उबारने के लिए वे खुदा की इबादत करें।

यतीमशाह ने बादशाह अकबर की बात सुनकर खुदा की इबादत की और बारिश की दुआ मांगी। उनकी दुआ कबूल हुई और झमाझम बारिश हुई। मुल्क अकाल से बच गया।

अकबर ने यतीमशाह के सम्मान में एक शानदार मस्जिद बनवाई जो आज भी अपनी शानोशौकत के साथ आगरा के लोहामंडी की बस्ती में खड़ी हुई है जिसे किन्नरों की मस्जिद कहा जाता है।

किन्नरों के संप्रदाय

किन्नरों का मानना है कि उनकी इष्ट देवी बुचरा माता की तीन बहनें और थीं । बुचरा सबसे बड़ी थी । वह किन्नर बन गई। बाकी तीन बहनें भी बड़ी बहन के प्यार में किन्नर बन गईं। 'बुचरा माता संप्रदाय' में पैदाइशीं किन्नर आते हैं। दूसरी बहन के 'निलिका संप्रदाय' में वह किन्नर आते हैं जिन्हें किन्नर बनाया जाता है। तीसरी बहन के 'मनसा संप्रदाय' में वे किन्नर आते हैं जो स्वेच्छा से किन्नर बन जाते हैं। चौथी बहन के 'हंसा संप्रदाय' में वे लोग आते हैं जो शारीरिक विकृति के चलते आगे चल कर किन्नर बन जाते हैं।

इन चारों संप्रदाय में भी ऊंच-नीच का भेदभाव है। बुचरा किन्नर ब्राह्मणों की तरह माने जाते हैं और हंसा किन्नर शूद्र, जो जबरन किन्नर बनाये जाते समय गंदगी की सफाई करते हैं। कब्र खोदने का काम भी यही हंसा किन्नर करते हैं जबकि लाश पर मिट्टी की पहली मुट्ठी बुचरा शाखा का किन्नर डालता है।

कब्र को जूते-चप्पलों से पीटते हैं किन्नर

'हंसा संप्रदाय' के किन्नर ही कब्र को जूते-चप्पलों से पीटते हैं। मरनेवाले को गालियां देते हैं, कब्र पर थूकते हैं ताकि वह दूसरे जन्म में किन्नर न बने। वैसे अब किन्नरों में जो हिंदू होते हैं अगर उनके गुरु भी हिंदू होते हैं तो उन्हें जलाने का चलन भी चल गया है।

निलिका किन्नर केवल गाना, ढोलक बजाना एवं नाचने का काम करते हैं। मनसा किन्नर जबरन किन्नर बनाने को काम में मदद करते हैं।

भारत के महारजिस्ट्रार और जनगणना भारत की जनगणना-2001 में कन्नरों को 'पुरुष वर्ग' के अंतर्गत गिना गया है।

आयुक्त का कार्यालय, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली - 2000 द्वारा प्रकाशित जनगणना प्रगणकों के लिए अनुदेश पुस्तिका में पृष्ठ क्रमांक-49 पर यही स्पष्ट किया गया है कि किन्नरों और खुसरों के लिए पुरुष का कोड अंकित करें। चूंकि शब्दकोश के अनुसार भी किन्नरों के लिए प्रचलित विभिन्न समानार्थी संबोधक शब्द 'पुरुषवाचक' ही हैं, संभवतः इसी वजह से जनगणना में इनकी गिनती 'पुरुष वर्ग' के अंतर्गत की गई है।

किन्नरों के समुदाय

जनसांख्यिकी विशेषज्ञ आशीष घोष ने एक जगह लिखा है कि भारत की लेबर फोर्स की अधिकता को दर्शाने के लिए ही सरकार ने जनगणना में किन्नरों की गिनती 'पुरुष वर्ग' में करने के निर्देश दिये हैं। वैसे यह एक रोचक तथ्य है कि सरकार द्वारा पुरुष वर्ग में गिने जाने के बावजूद ज्यादातर किन्नरों के नाम 'स्त्री वाचक' ही सुनने को मिलते हैं, फिर चाहे वह बदरूबाई, लक्ष्मीबाई, रानी हो या कमला जान और शबनम मौसी।

किन्नरों के अपने समुदाय हैं जिसे उनकी भाषा में 'घराना' कहते हैं। अलग-अलग घरानों की अपनीअपनी विशेषताएं हैं और इसी आधार पर बड़े और छोटे घरानों का विभाजन किया गया है। मोटे तौर पर ये दो भागों में बंटे हुए हैं।

किन्नर कहते हैं साहस दो मुख

शोक मनाने के लिए नैतिक साहस चाहिए और आनंद मनाने के लिए धार्मिक शुभ की आशा करना भी साहस । अनिष्ट की आशंका करना भी साहस का काम है, साहस का काम परंतु दोनों में आकाश-पाताल का अंतर है। पहला गर्वीला साहस है, दूसरा विनीत साहस।

किन्नर का ज्ञान

सर्वस्य हि परीक्ष्यंते स्वभावा नेतेरे गुणाः। अतीत्य हि गुणान्सर्वान्स्वभावो मूर्ध्नि वर्तते॥

अर्थात सब लोगों के स्वभाव की ही परीक्षा की जाती है, गुणों की नहीं। सब गुणों की अपेक्षा स्वभाव ही सिर पर चढ़ा रहता है क्योंकि वही सर्वोपरि है।

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पाकिस्तान में विरोध करते हुए कुछ हिजड़े

ऐसे मानव हिजड़ा कहलाते हैं जो लैंगिक रूप से न नर होते हैं न मादा। जन्म के समय लैंगिक विकृति के कारण ऐसा होता है। 'हिजड़ा' शब्द दक्षिण एशिया में प्रचलित है। अधिकांश हिजड़े शारीरिक रूप से 'नर' होते हैं या अन्त:लिंगी (intersex) किन्तु कुछ मादा (स्त्री) भी होते हैं। वे अपने-आप के लिये प्राय: स्त्रीलिंग भाषा का प्रयोग करते हैं (जैसे, मैं सुन्दर लग रही हूँ?)।

आजकल हिजड़ों के लिए किन्नर शब्द का प्रयोग भी किया जाता है।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • Human Rights Violations against the Transgender Community, summary of a 2003 report by the Peoples' Union for Civil Liberties, Karnataka
  • India's eunuchs demand rights, BBC News, 4 सितंबर 2003
  • Hijras on glbtq.com
  • Collected Information About the Eunuchs of India Known as the Hijra
  • The Works on Hijra in Indian Sub-Continent – Photographs (Link to most recent archived version at Archive.org.)
  • In From the Outside, Timeasia.com, 18 सितंबर 2000.
  • The Hijras of India Research Guide
  • Why are Indian eunuchs warned about unsafe sex?
  • Columbia University: Magical Stories of the Hijras
  • Islamic Hijras[मृत कड़ियाँ]
  • Sangama – Leading Hijra Human Rights Organisation in India
  • Eunuch MP takes seat – BBC world news- News on Shabnam Mausi, Hijra MP

हिजड़ा और हिजड़े में क्या अंतर होता है?

हिजड़ा या हिजड़ी दोनों नपुंसक लिंग हैं और इन दोनो में कोई अन्तर नहीं है परन्तु प्रचलित शब्द हिजड़ा ही है ।

हिजड़े की पहचान क्या है?

ऐसे मानव हिजड़ा कहलाते हैं जो लैंगिक रूप से न नर होते हैं न मादा। जन्म के समय लैंगिक विकृति के कारण ऐसा होता है। 'हिजड़ा' शब्द दक्षिण एशिया में प्रचलित है। अधिकांश हिजड़े शारीरिक रूप से 'नर' होते हैं या अन्त:लिंगी (intersex) किन्तु कुछ मादा (स्त्री) भी होते हैं।

हिजड़ा का जन्म कैसे होता है?

तो किन्नरों के पैदा होने पर ज्योतिष शास्त्र का मानना है कि चंद्रमा, मंगल, सूर्य और लग्न से गर्भधारण होता है। जिसमें वीर्य की अधिकता होने के कारण लड़का और रक्त की अधिकता होने के कारण लड़की का जन्म होता है। लेकिन जब गर्भधारण के दौरान रक्त और विर्य दोनों की मात्रा एक समान होती है तो बच्चा हिजड़ा पैदा होता है।