Book Store Download books and chapters from book store. Show
Previous Year Papers Download the PDF Question Papers Free for off line practice and view the Solutions online. महंत गोवर्धनदास की जान बचाने में सफल कैसे हो गए ? जब गोवर्धनदास को फाँसी पर चढ़ाया जानेवाला था, तभी उसके गुरु महंतजी वंहा पहुच गए | गुरु ने शिष्य के कान में कुछ कहा और फिर गुरु-शिष्य फाँसी पर चढ़ने के लिए आपस मे हुज्जत करने लगे | इससे सिपाही चकित हो गए | राजा, मंत्री और कोतवाल भी वंहा पहूच गए | पुछने पर महंत ने बताया की उस मुर्हुत में फाँसी पर चढ़नेवाला सीधा स्वर्ग जाएगा | स्वर्ग के लालच में चौपट राजा खुद फाँसी पर चढ़ गया | इस प्रकार महंत गोवर्धनदास की जान बचाने में सफल हो गए | कोतवाल फाँसी से कैसे बच गया ? कोतवाल दुबला-पतला आदमी था | फाँसी देते समय फाँसी का फंडा उसकी गरदन से बड़ा निकाला | इसलिए वह फाँसी से बच गया | नगर और राजा का नाम सुनकर महंत ने क्या कहा ? नगर और राजा का नाम सुनकर महंत ने कहा की ऐसी नगरी में रहना उचित नही है जहा टके सेर भाजी और टके सेर खाजा बिकता है | में तो इस नगर में अब एक क्षण भी नही रहुगा | गोवर्धनदास ने अँधेरी नगरी न छोड़ने का क्या कारण बताया ? गोवर्धनदास ने अँधेरी नगरी न छोड़ने का कारण बताते हुए कहा की और जगह दिनभर मांगे तो भी पेट नही भरता ! यंहा कम पैसो में भी मजे से गुजारा हो सकता है | गड़रिए ने कसाई को बड़ी भेड़ देने का क्या कारण बताया ? गड़रिए ने बताया की जब मै कसाई को भेड़ दे रहा था, उसी समय कोतवाल साहब की सवारी आ गई |भीड़ के कारण मै छोटी-बड़ी भेड़ का ख्याल नही कर सका | इसीलिए मैंने बड़ी-बड़ी भेड़ दे दी | गोवर्धनदास को अँधेरी नगरी में अँधेर कब दिखाई दिया ? राजा के सिपाही गोवर्धनदास को मोटा-ताजा देखकर फाँसी पर चढ़ाने के लिए ले गए | तब निर्दोष होने पर भी अपने साथ अन्याय होता देखकर गोवर्धनदास के अँधेरी नगरी में अँधेर दिखाई दिया | Switchअँधेर नगरी नाटक के रचयिता भारतेन्दु जी अँधेर नगरी प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक है। ६अंकों के इस नाटक में विवेकहीन और निरंकुश शासन व्यवस्था पर करारा व्यंग्य करते हुए उसे अपने ही कर्मों द्वारा नष्ट होते दिखाया गया है। भारतेंदु ने इसकी रचना बनारस के हिंदू नेशनल थियेटर के लिए एक ही दिन में की थी।[1] कथानक[संपादित करें]यह नाटक ६ अंकों में विभक्त है। इसमें अंक के बजाय दृश्य शब्द का प्रयोग किया गया है। पहले दृश्य में महंत अपने दो चेलों के साथ दिखाई पड़ते हैं जो अपने शिष्यों गोवर्धन दास और नारायण दास को पास के शहर में भिक्षा माँगने भेजते हैं। वे गोवर्धन दास को लोभ के बुरे परिणाम के प्रति सचेत करते हैं और दिखाते है की लालच कैसा होता है | दूसरे दृश्य में शहर के बाजार का दृश्य है जहाँ सबकुछ टके सेर बिक रहा है। गोवर्धन दास बाजार की यह कफैयत देखकर आनन्दित होता है और सात पैसे में ढाई सेर मिठाई लेकर अपने गुरु के पास लौट जाता है। तीसरे दृश्य में महंत के पास दोनों शिष्य लौटते हैं। नारायण दास कुछ नहीं लाता है जबकि गोबर्धन दास ढाई सेर मिठाई लेकर आता है। महंत शहर में गुणी और अवगुणी को एक ही भाव मिलने की खबर सुनकर सचेत हो जाते हैं और अपने शिष्यों को तुरंत ही शहर छोड़ने को कहते हैं। वे कहते हैं- "सेत सेत सब एक से, जहाँ कपूर कपास। ऐसे देश कुदेस में, कबहूँ न कीजै बास।।" नारायण दास उनकी बात मान लेता है जबकि गोवर्धन दास सस्ते स्वादिष्ट भोजन के लालच में वहीं रह जाने का फैसला करता है। चौथे दृश्य में अँधेर नगरी के चौपट राजा के दरबार और न्याय का चित्रण है। शराब में डूबा राजा फरियादी के बकरी दबने की शिकायत पर बनिया से शुरु होकर कारीगर, चूनेवाले, भिश्ती, कसाई और गड़रिया से होते हुए कोतवाल तक जा पहुँचता है और उसे फाँसी की सजा सुना देता है। पाँचवें दृश्य में मिठाई खाते और प्रसन्न होते मोटे हो गए गोवर्धन दास को चार सिपाही पकड़कर फांसी देने के लिए ले जाते हैं। वे उसे बताते हैं कि बकरी मरी इसलिए न्याय की खातिर किसी को तो फाँसी पर जरूर चढ़ाया जाना चाहिए। जब दुबले कोतवाल के गले से फाँसी का फँदा बड़ा निकला तो राजा ने किसी मोटे को फाँसी देने का हुक्म दे दिया। छठे दृश्य में शमशान में गोवर्धन दास को फाँसी देने की तैयारी पूरी हो गई है। तभी उसके गुरु महंत जी आकर उसके कान में कुछ मंत्र देते हैं। इसके बाद गुरु शिष्य दोनों फाँसी पर चढ़ने की उतावली दिखाते हैं। राजा यह सुनकर कि इस शुभ सइयत में फाँसी चढ़ने वाला सीधा बैकुंठ जाएगा स्वयं को ही फाँसी पर चढ़ाने की आज्ञा देता है। इस तरह अन्यायी और मूर्ख राजा स्वतः ही नष्ट हो जाता है। पात्र[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
|