लखनऊ: भारतीय संविधान के अनुसार, जघन्य अपराध की सजा भी बड़ी होती है. देश में सबसे बड़ी सजा फांसी है. किसी भी इंसान को मौत की सजा सुनाना आसान नहीं है. लेकिन उनके अपराध इतने बड़े हैं कि कोई और सजा उनके लिए कम पड़ जाती है. ऐसा ही कुछ हो रहा है अमरोहा के शबनम केस में. राष्ट्रपति द्वारा उसकी दया याचिका खारिज किए जाने के बाद शबनम की फांसी का मुद्दा फिर चर्चा में आ गया है. अगर ऐसा होता है, तो शबनम आजाद भारत की पहली महिला होगी, जो फांसी के फंदे पर लटकेगी. Show ये भी पढ़ें: फांसी से पहले जल्लाद मुजरिम के कान के पास आकर क्या कहता है? शबनम का डेथ वॉरंट जारी होने में लग सकता है समय ये भी पढ़ें: पवन जल्लाद से भी खतरनाक था नाटा मल्लिक, फांसी की रस्सियों के ताबीज़ बना कर बेचता था इन लोगों को नहीं दी जा सकती फांसी 1. उस इंसान को फांसी के फंदे पर नहीं लटकाया जा सकता, जो किसी लाइलाज बीमारी से पीड़ित हो, या जिसका इलाज ताउम्र चलना है. साथ ही, अगर बीमारी दुर्लभ है तो, अपराधी को फांसी नहीं हो सकती. 2. दूसरा, संविधान कभी भी गर्भवती महिला को फांसी के फंदे पर लटकाने की इजाजत नहीं देगा. किसी भी अपराधी महिला की सजा उसके बच्चे को नहीं दी जा सकती. ये भी पढ़ें: शबनम के बेटे ताज ने पीएम और राष्ट्रपति से कहा- मेरी मां को मत दीजिए फांसी, मैं अकेला रह जाऊंगा 3. तीसरा,
मानसिक रूप से बीमार लोगों को भी फांसी नहीं दी जा सकती. अगर उनकी मेडिकल रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हो गई है कि अपराधी की दिमागी हालत ठीक नहीं है, तो 4. इसके अलावा, नाबालिग अपराधी को भी फांसी की सजा नहीं होगी. उसे जेल की जगह सुधार गृह में रखा जाता है और ज्यादा से ज्याद आजीवन कारावास की सजा हो सकती है. उसके बालिग होने के बाद भी उस अपराध की सजा नहीं दी जा सकती, जो उसने नाबालिग होने के दौरान किया था. संविधान के नियमों के अनुसार, फांसी की सजा रोकने का एक और तरीका यह है कि देश के राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजी जाए. अगर मामले पर विचार कर राष्ट्रपति याचिका स्वीकार कर लेते है, तो अपराधी को फांसी नहीं होगी. यह होता है फांसी देने का समय
21वीं सदी में इनको हुई फांसी इससे पहले भी सुनाई जा चुकी है महिला को फांसी की सजा यहां देखें शबनम ने ऐसा क्या किया, जो उसे मिली फांसी की सजा Video: इश्क में अंधी शबनम ने अपने मां-बाप, भाई-भतीजे को ही कुल्हाड़ी से काट दिया WATCH LIVE TV राष्ट्रपति द्वारा मृत्यु दंड को माफ़ करने की क्या प्रक्रिया है?भारतीय संविधान ने लोगों को कुछ अधिकार दिए हैं तो उनके लिए कुछ कर्तव्य भी बनाये हैं. जब कुछ लोग अन्य लोगों के अधिकारों को छीनने का प्रयास करते हैं तो उनके लिए संविधान में दंड का प्रावधान भी किया गया है. ये दंड; मृत्यु दंड से लेकर आजीवन कारावास या कुछ वर्षों की सजा के रूप में हो सकते हैं. इस लेख में हम भारत के राष्ट्रपति द्वारा फांसी या मृत्यु दंड की सजा को माफ़ करने की प्रक्रिया के बारे में बताएँगे.
Mercy Petition भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 में राष्ट्रपति को उन व्यक्तियों को क्षमा करने के शक्ति प्रदान की गयी है जो कि निम्नलिखित मामलों में किसी अपराध के लिए दोषी पाए गये हैं; 1. किसी जघन्य अपराध के लिए मृत्यु दंड 2. सैन्य न्यायालय द्वारा दिया गया दंड 3. किसी अपराध के लिए दिया गया दंड सांसद निधि योजना में सांसद को कितना फंड मिलता है? राष्ट्रपति के पास निम्नलिखित क्षमादान शक्तियां हैं; 1. सजा को क्षमा करना: इस प्रावधान के द्वारा राष्ट्रपति, आरोपी को आरोपों से मुक्त कर देता है. 2. सजा को कम करना: इसमें राष्ट्रपति सजा को कम कर देता है जैसे;मृत्यु दंड की सजा को आजीवन कारावास में बदल देता है. 3. दंड की अवधि का परिहार (Remission) करना: इसमें राष्ट्रपति दंड की प्रकृति में परिवर्तन किये बिना उसकी अवधि को कम कर देता है. जैसे 5 वर्ष के कठोर कारावास को 2 वर्ष का कर देना. 4. सजा पर विराम लगाना: राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह मूल सजा को किन्हीं विशेष परिस्तिथियों में जैसे, शारीरिक अपंगता, गर्भावस्था की अवस्था इत्यादि में रोक सकता है. 5. राष्ट्रपति, किसी दंड (विशेषकर मृत्यु दंड) का प्रतिलंबन (Suspension) कर सकता है ताकि व्यक्ति क्षमा याचना के लिए अपील कर सके. भारत में मृत्युदंड देने की क्या प्रक्रिया है. भारत में दुर्लभतम मामलों (जैसे छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार और हत्या, किसी महिला या पुरुष की अमानवीय तरीके से हत्या) में मौत की सज़ा दी जाती है. सेशन कोर्ट (सत्र न्यायालय) में जब मुक़दमे की सुनवाई होती है तो सेशन जज को फ़ैसले में यह लिखना पड़ता है कि मामले को दुर्लभतम (रेयरेस्ट ऑफ़ द रेयर) क्यों माना जा रहा है. Image source:google सेशन जज द्वारा दी गयी मृत्युदंड की सज़ा तब तक वैध नहीं है जब तक कि इसे हाई कोर्ट की मंजूरी ना मिल जाये. भारतीय संविधान के अंतर्गत यह व्यवस्था है कि किसी भी अपराधी के साथ भी किसी दशा में अन्याय नहीं होना चाहिए. इसी कारण यदि किसी व्यक्ति को निचली अदालत ने सजा सुनाई है तो उसे यह अधिकार दिया गया है कि वह व्यक्ति ऊपरी कोर्ट में जा सकता है अर्थात वह राज्य के हाईकोर्ट में अपील कर सकता है और अगर वंहा भी उसे लगता है कि उसके साथ न्याय नहीं हुआ है तो वह सर्वोच्च न्यायालय यानि कि सुप्रीम कोर्ट में भी शरण ले सकता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जो सजा सुनाई है वह फाइनल ही रहेगी. यदि सुप्रीम कोर्ट ने किसी को मृत्यु दंड की सजा दी है या निचली अदालत की सजा को बरक़रार रखा है तो फिर सजा में सिर्फ राष्ट्रपति ही परिवर्तन कर सकता है. आइये अब जानते हैं कि राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करने की प्रक्रिया क्या है; जब किसी भी मामले में किसी अपराधी को सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत नहीं मिलती है और उसकी फांसी की सजा बरक़रार रहती है या ऐसे कोई मामले जिसमें खुद सुप्रीम कोर्ट ने दोषी को फांसी की सजा दी हो तो वह व्यक्ति सीधे राष्ट्रपति के दफ्तर में अपनी याचिका लिखित में भेज सकता है. राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल करने का प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 में है. अपराधी अपने राज्य के राज्यपाल को भी दया याचिका भेजी जा सकता है. हालाँकि राज्यपाल को प्राप्त होने वाली याचिकाएं सीधे गृह मंत्रालय को भेज दी जाती है. यहाँ पर यह ध्यान रहे कि राज्यपाल, किसी व्यक्ति की मृत्युदंड की सजा को माफ़ नहीं कर सकता है जबकि राष्ट्रपति ऐसा कर सकता है. अपराधी अपनी याचिकाएं अपने वकील या परिवारजन के जरिये भी भेज सकते है. उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का विभिन्न मामलों में अध्ययन कर निम्न सिद्धांत बनाये हैं; 1. दया की याचिका करने वाले व्यक्ति को राष्ट्रपति से मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है. 2. राष्ट्रपति साक्ष्य का पुनः अध्ययन कर सकता है और उसका विचार न्यायालय से भिन्न हो सकता है 3. राष्ट्रपति इस शक्ति का प्रयोग मंत्रिमंडल के परामर्श से ही करेगा. 4. यदि राष्ट्रपति को लगता है कि अपराधी की सामाजिक परिस्थिति इस प्रकार की है कि उसके परिवार को उसकी बहुत जरूरत है या किसी अन्य मानवीय ग्राउंड पर राष्ट्रपति सजा को कम कर सकता है, फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल सकता है या सजा के रूप को बदल सकता है. 5. राष्ट्रपति को अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के किसी भी निर्देश का पालन करना जरूरी नहीं है और राष्ट्रपति के इस निर्णय की कोई भी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है. 6. जब क्षमा दान की पूर्व याचिका राष्ट्रपति ने रद्द कर दी हो तो दूसरी याचिका दायर नहीं की जा सकती है. भारत में अब तक 14 राष्ट्रपति चुने गये हैं और सबने अपने अपने हिसाब से याचिकाओं का निपटारा किया है. भारत की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने सबसे अधिक दया याचिकाएं स्वीकार की थी. उन्होंने कुल 30 फांसियां माफ़ करने का रिकॉर्ड बनाया था. देश में सबसे अधिक 44 दया याचिकाएं ख़ारिज करने का रिकॉर्ड पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकटरमण (1987 से 1992) के नाम है. आर वेंकटरमण के बाद सबसे ज्यादा दया याचिकाएं खारिज करने वाले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी हैं जिन्होंने 28 दया याचिकाएं ख़ारिज की थीं. उम्मीद है कि ऊपर दिए गए लेख के आधार पर आप यह समझ गए होंगे कि किसी व्यक्ति को सजा किस प्रकार सुनाई जाती है और वह सजा के खिलाफ किस प्रकार राष्ट्रपति के समक्ष अपील कर सकता है और राष्ट्रपति उस अपराधी की अपील पर किस तरह फैसला लेता है. भारत में देशद्रोह के अंतर्गत कौन कौन से काम आते हैं जानें फांसी सूर्योदय से पहले क्यों दी जाती है? फांसी कौन रोक सकता है?भारत में संविधान के तहत भारत का राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायिक शक्तियों का मालिक होता है। इस लिए वह ही उच्चतम न्यायालय से फांसी दिए गए अपराधी की सजा भी रोक सकता है। राष्ट्रपति कैसे माफ करते है फांसी की सजा?
राष्ट्रपति को सजा क्यों नहीं होती?संविधान का 72वाँ अनुच्छेद राष्ट्रपति को न्यायिक शक्तियाँ देता है कि वह दंड का उन्मूलन, क्षमा, आहरण, परिहरण, परिवर्तन कर सकता है। क्षमादान – किसी व्यक्ति को मिली संपूर्ण सजा तथा दोष सिद्धि और उत्पन्न हुई निर्योज्ञताओं को समाप्त कर देना तथा उसे उस स्थिति में रख देना मानो उसने कोई अपराध किया ही नहीं था।
भारत में अब तक कितने लोगों को फांसी दी जा चुकी है?भारत में १९४७ में स्वतंत्रता के बाद मौत की सजा प्राप्त लोगों की संख्या विवादित है; अधिकारिक सरकारी आँकड़ों के अनुसार स्वतंत्रता के बाद अब तक केवल ५२ लोगों को फाँसी की सजा दी गयी है।
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