These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार. You can also read the Latest NCERT Solutions for Class 9
Hindi Sparsh to help you to revise the complete Syllabus and score more marks in your examinations. प्रश्न-अभ्यास मौखिक लिखित प्रश्न (क) 1. मनुष्य की पहचान उसकी पोशाक से होती है। यह पोशाक ही मनुष्य को समाज में अधिकार दिलाती है।
उसका दर्जा निश्चित करता है। जीवन के बंद दरवाजे खोल देता है। यदि हम समाज की निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझना चाहते हैं तो ऐसी स्थिति में हमारी पोशाक हमारे लिए बंधन और अड़चन बन जाती है। जिस प्रकार वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने में रोके रखती है। 2. जब भी ऐसी परिस्थिति आती है कि किसी दु:खी व्यक्ति को देखकर व्यथा और दुःख का भाव उत्पन्न होता है। हमें उसके दु:ख का कारण जानने के लिए उसके समीप बैठने में हमारी
पोशाक बंधन और अड़चन बन जाती है। उत्तम पोशाक हमें नीचे झुकने नहीं देती। यह हमें अमीरी का बोध कराती है। मानव-मानव के बीच दूरियाँ बढ़ाने का काम पोशाक करती है। ये पोशाक ही नियमों का उल्लंघन करती है। यदि हम निचली श्रेणियों के दुःख को कम करके उन्हें दिलासा देना चाहते हैं तो ये पोशाक उसके लिए अड़चन बन जाती है। 3. लेखक उस स्त्री के रोने का कारण इसलिए नहीं जान पाया क्योंकि उसकी पोशाक रुकावट बन गई। जब उसने उस खरबूजे बेचनेवाली स्त्री को घुटनों पर सिर रखकर रोते देखा और बाजार में खड़े लोगों का उस स्त्री के संबंध में बातें करते देखा तो लेखक का मन दुःखी हो उठा। कारण जानना चाहते हुए भी वह ऐसा नहीं कर पाया। यद्यपि व्यक्ति का मन दूसरों के दुःख में दुःखी होता है, परंतु पोशाक परिस्थितिवश उसे झुकने नहीं देती। 4. भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा जमीन पर खेती करके परिवार का निर्वाह करता था। खरबूजों की डलिया बाज़ार में बेचने के लिए कभी-कभी वह चला जाया करता था। वह घर का एकमात्र सहारा था। उसके घर में खानेवाले अधिक और कमानेवाला एक ही था। उनके घर की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई थी। घर के बेटे पर सभी की
आशाएँ टिकी होती हैं। भगवाना ही था जिस पर घर के सभी सदस्यों की आशाएँ टिकी हुई थीं। परिवार का निर्वाह 5. लड़के की मृत्यु के दूसरे दिन, बुढिया खरबूजे बेचने इसलिए चली गई क्योंकि उसके पास जो कुछ था भगवाना की मृत्यु के बाद दान-दक्षिणा में खत्म हो चुका था। बच्चे भूख के मारे बिलबिला रहे थे। बहू बीमार थी। मजबूरी के कारण बुढ़िया को खरबूजे बेचने के लिए लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन जाना पड़ा था। भूख अच्छे-अच्छे लोगों को भी हिलाकर रख देती है। मृत्यु का दु:ख हो, या खुशी का आभास हो लेकिन पेट की आग घर से बाहर निकलने के लिए विवश कर देती है। 6. अमीर और गरीब में जन्मजात अंतर होता है। अमीर को दुःख मनाने का अधिकार है गरीब को नहीं। बुढ़िया के दु:ख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद इसलिए आई क्योंकि वह महिला अपने जवान बेटे की मृत्यु के कारण अढ़ाई-मास तक पलंग से उठ न सकी। पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद मूर्छित हो जाती थी। शहर भर के लोगों के हृदय उसके पुत्र शोक को देखकर द्रवित हो उठे थे। दूसरी ओर लोग बुढ़िया पर ताने कस रहे थे। वे उसकी मजबूरी से कोसों दूर थे। उसके दु:ख को वे समझ नहीं पा रहे थे। क्योंकि वह उस संभ्रांत महिला की भाँति बीमार न पड़कर अपना दुःख भुलाकर बाज़ार में खरबूजे बेचकर अपने परिवार के लिए भोजन का प्रबंध करने आई थी जो कि लोगों के मन में खटक रहा था। दु:ख का अधिकार अमीर-गरीब में भेदभाव उत्पन्न करता है। थोड़ा-सा दु:ख जहाँ अमीरी को हिला देता है वहाँ बड़े-से-बड़ा दुःख भी गरीब को सहज बने रहने पर मजबूर कर देता है। बुढ़िया के दुःख और संभ्रांत महिला के दु:ख में यही अंतर था। प्रश्न (ख) 1. बाज़ार के लोग खरबूजे बेचनेवाली स्त्री के बारे में तरह-तरह की बातें कर रहे थे। एक आदमी घृणा से थूकते हुए कह रहा था कि बेटे की मृत्यु को अभी पूरे दिन नहीं हुए और यह दुकान लगाकर बैठी है। पेट की रोटी ही इनके लिए सब कुछ है। जैसी नीयत होती है; वैसी ही बरकत भगवान देता है। जवान लड़के की मौत हुई है, बेहया दुकान लगाकर बैठी है। सभी अपने व्यंग्य वाणों से उस स्त्री पर ताने कसे जा रहे थे। वह बेबसी से सिर झुकाए बैठी थी। 2. पास-पड़ोसवालों से लेखक को पता चला कि बुढ़िया का 23 बरस का जवान लड़का था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती हैं। लड़का शहर के बाहर डेढ़ बीघा जमीन में खेती कर अपने परिवार को निर्वाह करता था। कभी-कभी वह खरबूजे भी बेचता था। मुँह अंधेरे बेलों में से पके खरबूजे चुनते हुए गीली मेड़े की तरावट पर आराम कर रहे साँप पर उसका पैर पड़ गया। साँप के डसने से उसकी मृत्यु हो गई। 3. लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने ओझा को बुलाकर झाड़-फेंक करवाया। नागदेव की पूजा हुई। पूजा के लिए दान-दक्षिणा दी गई। घर में जो कुछ आटा या अनाज था, दान-दक्षिणा में उठ गया। माँ, बहू और बच्चे, भगवाना से लिपट-लिपटकर रोए, पर सर्प के विष से उसका सारा बदन काला पड़ गया था और लडका मर गया। 4. लेखक को जब आस-पड़ोसवालों ने वास्तविकता बताई तो वे बुढ़िया की विवशता को समझ गए। घर में जब कमानेवाला कोई न रहे तो मौत की परवाह न करके घर से बाहर निकलना ही पड़ता है। परंतु दूसरे लोग किसी भी परिस्थिति में चैन नहीं लेने देते। वैसे भी उन्हें गरीबों के दुःख का अंदाजा नहीं होता। लेखक इसी सोच में डूबे हुए बुढिया के दुःख का अंदाजा लगा रहे थे कि अमीर लोग अपने दुःख को बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन करते हैं। वह बेहोश होने का नाटक करते हैं। और कई दिनों तक बिस्तर पर पड़े रहते हैं। परंतु लेखक जानता था कि बुढ़िया अपने मन में दु:खे को दबाए हुए है। अपनी बेबसी के अनुसार अपना दुःख दर्शा रही है। 5. ‘दुःख का अधिकार’ शीर्षक अत्यंत सटीक है। संपूर्ण कथावस्तु दो वर्गों का प्रतिनिधित्व करती है पहला शोषित वर्ग प्रश्न (ग) 2. आशय-आशय यह है कि समाज में रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति को नियमों, कानूनों व परंपराओं का पालन करना पड़ता है तभी वह सामाजिक प्राणी कहलाता है क्योंकि समाज में अपनी दैनिक आवश्यकताओं से अधिक महत्व जीवन मूल्यों को दिया जाता है। इस कहानी में बुढिया को घर की मज़बूरी फुटपाथ पर खरबूजे बेचने के लिए विवशकर देती है। वह दिल पर पत्थर रखकर लोगों के ताने सहन करती है। लोग ताना देते हुए कहते हैं कि इनके लिए बेटा-बेटी, पति-पत्नी और धर्म-ईमान सभी कुछ रोटी ही होती है। लोग किसी की विवशता पर हँस तो सकते है, परंतु उसका सहारा नहीं बन सकते। पेट की आग उन्हें दर-दर भटकने के लिए मजबूर कर देती है। दूसरों से सहानुभूति के स्थान पर ताने सुनने पड़े तो मन फूट-फूटकर रोने को चाहता है। ऐसा ही कहानी में उस बुढ़िया के साथ हुआ था। 3. आशय-इस पंक्ति का आशय यह है कि आज के इस समाज में दु:ख मनाने का अधिकार भी केवल धनी वर्ग को होता है। यह सत्य है कि दुःख सभी को तोड़कर रख देता है। दु:ख में मातम सभी मनाना चाहते हैं चाहे वह अमीर हो या गरीब। दुःख का सामना होने पर सभी विवश हो जाते हैं। गरीब व्यक्ति के पास न तो दु:ख मनाने की सुविधा है न समय है वह तो रोजी-रोटी के चक्कर में ही उलझा रहता है। संपन्न वर्ग शोक का दिखावा अवश्य करता है। परंतु वे अभागे लोग जिन्हें न दुःख मनाने का अधिकार है और न अवकाश। जो परिस्थितियों के सामने घुटने टेक देते हैं, उन्हें पेट की ज्वाला को शांत करने के लिए दु:खी होते हुए भी काम करना पड़ता है। इस प्रकार निचली श्रेणी के लोगों को रोटी की चिंता दु:ख मनाने के अधिकार से वंचित कर देती है। भाषा-अध्ययन प्रश्न 1. प्रश्न 2. उत्तर प्रश्न 3. प्रश्न 4. यदि आदमी की पोशाक अच्छी होती है तो लोग उसका आदर-सत्कार करते हैं। उसे कहीं भी आने-जाने से रोका नहीं जाता/उसके लिए सभी रास्ते खुले होते हैं। निर्वाह करना-पेट भरना/घर का खर्च चलाना/कमाकर परिवार का पालन-पोषण करना। भगवाना सब्ज़ी-तरकारी बोकर परिवार का निर्वाह करता था। भूख से बिलबिलाना-भूख के कारण तड़पना, भूख से रोना। खाने-पीने की सामग्री न होने के कारण बुढ़िया के पोते-पोतियाँ भूख से व्याकुल हो रहे थे। घर का आर्थिक स्थिति डगमगाने लगती है तो बच्चे भूख से बिलबिलाने लगते हैं। शोक से द्रवित हो जाना-दुःख से हृदय पिघल जाना। लेखक खरबूजे बेचनेवाली बुढ़िया के रोने से दु:खी था। किसी के दु:ख को देखकर स्वयं भी दुःखी होने का भाव प्रकट होता है। प्रतिष्ठित लोगों के दुःख को देखकर लोगों के हृदय पिघलने लगते हैं। उन लोगों के दुःख को प्रकट करने का तरीका अत्यंत मार्मिक होता है। प्रश्न 5. उत्तर (क)
(ख)
प्रश्न 6.
(ख)
योग्यता विस्तार प्रश्न 2. प्रश्न 3. Hope given NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 2 are helpful to complete your homework. If you have any doubts, please comment below. NCERT-Solutions.com try to provide online tutoring for you. |