ब्रिटिश संसदीय व्यवस्था की मुख्य विशेषताएं क्या है? - british sansadeey vyavastha kee mukhy visheshataen kya hai?

संविधान की प्रमुख विशेषताएँ

  • संविधान की प्रमुख विशेषताएँ
  • 2. एकात्मक सरकार
  • 3. सरकार की संसदीय प्रणाली
  • 4. शक्तियों का पृथक्करण
  • 5. संसद की सर्वोच्चता
  • 6. सिद्धान्त तथा व्यवहार में अन्तर
  • 7. संविधान के अभिसमय

1. विकसित, अलिखित तथा लचीला संविधान जैसा पहले स्पष्ट किया गया है कि ब्रिटिश संविधान के निर्माण की कोई एक निश्चित तिथि नहीं है, क्योंकि इसे किसी संविधान निर्मात्री सभा ने नहीं बनाया है। इसे संयोग तथा विवेक का शिशु कहा जाता है। संविधान का एक भाग तो विवेक तथा उच्चकोटि की योजना का परिणाम है और वह इसका लिखित भाग भी कहलाता है। इसके उदाहरण है: चार्टर, मैग्नाकार्टा तथा अनेक संविधियाँ जिन्हें समय-समय पर संसद ने पारित किया है तथा कानून की शक्ति दी है। सुधार अधिनियम (1832, 1867, 1884) या 1911 तथा 1949 के संसदीय अधिनियम जिनका उद्देश्य लार्डसदन की शक्तियों को कम करना था, इन्हीं के अन्तर्गत आते हैं। 1958 के अधिनियम के द्वारा आजीवन लार्ड नियुक्त करने की व्यवस्था की गई। 1963 के विधायन के परिणामस्वरूप, लॉर्ड सदन की सदस्यता को त्यागा भी जा सकता है संविधान का दूसरा भाग परम्पराओं, प्रथाओं या संयोग के परिणामों पर आधारित है। ब्रिटिश संसदीय प्रणाली अभिसमयों पर ही आधारित है। ब्रिटेन की द्विसदनात्मक प्रणाली, मन्त्रिमण्डल की उत्पत्ति तथा प्रधानमन्त्री का पद पूर्णतया संयोग का परिणाम या आकस्मिक घटना का परिणाम है, किसी लिखित प्रलेख का नहीं। संविधान का यह सब भाग विकास की प्रक्रिया का परिणाम है।

ब्रिटिश संविधान एक लचीले संविधान का भी एक अद्वितीय उदाहरण हैं। वहाँ पर संवैधानिक कानून तथा साधारण कानून में कोई अन्तर नहीं किया जाता। दोनों के निर्माण तथा संशोधन की एक ही प्रक्रिया है। न ही वहाँ पर न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह संसदीय कानूनों को रद्द कर सके। वहाँ पर संसद सर्वोच्च है, वह हर प्रकार का कानून पारित कर सकती है तथा उसे संशोधित भी कर सकती है।

2. एकात्मक सरकार

ब्रिटेन में एकात्मक प्रणाली है, क्योंकि सारी शक्तियों का प्रयोग अकेले केन्द्रीय सरकार करती है। संघीय व्यवस्था में तो शक्तियों का विभाजन किया जाता है परन्तु एकात्मक में ऐसा कुछ ऐसा नहीं होता। स्थानीय इकाइयों के पास केवल प्रदत्त शक्तियाँ होती है, वास्तविक नहीं केन्द्रीय सरकार उनका निर्माण करती हैं, उनमें परिवर्तन करती है तथा समाप्त भी कर सकती हैं। स्थानीय इकाइयाँ एक तरह से केन्द्रीय सरकार का कार्यभार हल्का करने के उद्देश्य से बनायी जाती है। यह संघात्मक राज्यों की इकाइयों की तरह स्वायत्त तथा स्वतन्त्र नहीं होती वरन् केन्द्रीय सरकार की प्रतिनिधि मात्र होती है और उसी के निर्देशों पर काम करती हैं।

3. सरकार की संसदीय प्रणाली

इंग्लैण्ड में संसदीय शासन प्रणाली है। इसमें कार्यपालिका तथा विधायिका साथ-साथ कार्य करते हैं जिसमें वैधानिक दृष्टि से तो सारी शक्तियाँ राजा के पास होती है परन्तु व्यवहार में वह नाममात्र का शासक होता है। वास्तविक शक्तियों का प्रयोग मन्त्रिपरिषद् करती है। यही वास्तविक कार्यपालिका होती है और इसके सदस्य (मन्त्रिगण ) संसद के भी सदस्य होते हैं। प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद् का अध्यक्ष होता है और देश में यही सबसे शक्तिशाली व्यक्ति होता है। सिद्धान्त रूप में प्रधानमन्त्री को राजा नियुक्त करता है परन्तु व्यवहार में प्रधानमन्त्री का पद उसी को सौंपा जाता है जो संसद में बहुमत प्राप्त दल का नेता हो। उसी की सिफारिश पर अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति की जाती है। इस प्रणाली को उत्तरदायी प्रणाली भी कहते हैं, क्योंकि इसमें मन्त्रियों का कॉमन सदन के प्रति व्यक्तिगत संयुक्त उत्तरदायित्व होता है।

4. शक्तियों का पृथक्करण

ब्रेट ब्रिटेन में शक्तियों के पृथक्करण की जगह शक्तियों का मिश्रण है। शासन की शाखाओं का एक स्रोत है जो कि क्राउन है। पहले और वैधानिक रूप से अब भी राजा सर्वशक्तिमान है, उसकी जगह अब व्यवहार में क्राउन है। पहले और वैधानिक व्यवहार में क्राउन ने ली है। संसद के निचले सदन में मन्त्रिपरिषद्, जो कि वास्तविक कार्यपालिका है, का निर्माण होता है और लॉर्ड सभा जो कि ऊपरी सदन है देश का सर्वोच्च न्यायालय भी है।

5. संसद की सर्वोच्चता

प्रो० डायसी के शब्दों में, “कानूनी दृष्टि से संसद की प्रभुसत्ता हमारी राजनीतिक संस्थाओं की एक प्रमुख विशेषता है। संसद की प्रभुसत्ता के सिद्धान्त का अर्थ यह है कि ब्रिटिश संविधान के अनुसार संसद को हर प्रकार के कानून बनाने या परिवर्तित करने का अधिकार है। इसके अतिरिक्त इंग्लैण्ड के कानून द्वारा मान्य ऐसा कोई व्यक्ति या संस्था नहीं है जिसे संसद के कानूनों को तोड़ने या निष्फल करने का अधिकार हो।” सर एडवर्ड कोक के अनुसार, “संसद की शक्ति और क्षेत्राधिकार इतना सर्वव्यापी और निरंकुश है कि उसे किसी कारण या व्यक्ति के लिए किसी प्रकार की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। संक्षेप में, वह ऐसे सब काम कर सकती है जो प्राकृतिक दृष्टि से असम्भव न हो।

इंग्लैण्ड के संविधान की एक विशेषता, सिद्धान्त तथा व्यवहार में अन्तर है। इसलिए व्यापारिक सच्चाई यह है कि संसद के ऊपर भी कई प्रतिबन्ध लगे हैं। कुछ तो इसने स्वयं अपने ऊपर लगाये हैं। जैसे कॉमन सभा की अवधि से सम्बन्धित इसने अधिनियम पास करके अपना कार्यकाल पाँच वर्ष को निश्चित किया। 1911 से यह अवधि पाँच वर्ष की है। इसे केवल संकटकालीन परिस्थितियों में ही बढ़ाया जाता है। 1931 के स्टैट्यूट ऑफ वेस्टमिनिस्टर में इसने लिखा है कि ब्रिटेन की पार्लियामेन्ट के द्वारा पास किया गया कोई भी कानून उपनिवेशों पर उनकी अपनी इच्छा के विरुद्ध लागू नहीं किया जायेगा। यह अधिनियम संसद की सर्वोच्चता के ऊपर सीमायें लगाते हैं।

इसके अतिरिक्त देश के स्थापित रीति-रिवाज तथा नैतिकता के नियमों का भी यह उल्लंघन नहीं करती। यदि ऐसा करे भी तो लोग उनका पालन नहीं करेंगे। इंग्लैण्ड के लोग तो वैसे भी स्वभाव के रूढ़िवादी है और ये परम्पराओं को ही उतना महत्व व आदर देते हैं जितना देश के कानूनों को लोगों की इच्छा के विरुद्ध संसद कोई भी काम सफलतापूर्वक नहीं कर सकती। इस पर जनमत ही सबसे बड़ा प्रतिबन्ध है।

यह सब संसद की सर्वोच्चता पर व्यापारिक प्रतिबन्ध लगाते हैं। इसके अतिरिक्त यह भी सत्य है कि संसद को प्रभुसत्ता का प्रयोग मन्त्रिमण्डल के निर्देश से होता है। इंग्लैण्ड में द्विदलीय प्रणाली ने कार्यपालिका के हाथ मजबूत कर दिये हैं और यह विधायिका को अपने इशारों पर नचा सकती है, क्योंकि कॉमन सदन में इनका बहुमत होता है फिर मन्त्रिमण्डल के पास कॉमन सदन को भंग करने की शक्ति भी है, जिसके कारण संसद मन्त्रिमण्डल का विरोध नहीं करती। व्यवहार में, जैसा कि रैम्जे म्योर का विचार है कि ब्रिटेन में मन्त्रिमण्डल की तानाशाही है। आधुनिक परिस्थितियों के कारण भी कार्यपालिका शक्तिशाली बन गई, यहाँ तक कि संसद की सर्वोच्चता के सिद्धान्त के विरुद्ध यह कानून निर्माण का काम भी करने लगी है। इसके परिणामस्वरूप संसद की सर्वोच्चता को क्षति पहुँची है परन्तु कानूनी दृष्टि से संसद आज भी सर्वोच्च तथा सर्वशक्तिशाली है।

6. सिद्धान्त तथा व्यवहार में अन्तर

मुनरो के अनुसार, संविधान के रूप तथा उसकी वास्तविकता के बीच आश्चर्यजनक अन्तर है, यहीं वहाँ के संविधान की प्रमुख विशेषता है। ‘न कि उसका अलिखित होना या लचीला होगा। जो कुछ वहाँ दिखाई देता है, वह वास्तविकता नहीं है। वैधानिक दृष्टि से राजा सर्वशक्तिमान है। वह सेना का सर्वोच्च सेनापति है, प्रधानमन्त्री अन्य मन्त्रियों तथा अधिकारियों की नियुक्ति भी करता है तथा उन्हें हटा भी सकता है। युद्ध और शान्ति की घोषण करता है। वास्तव में वह इनमें से किसी एक का भी प्रयोग नहीं करता। यहाँ तक कि वह अपनी पसन्द का जीवन साथी भी नहीं चुन सकता। सिद्धान्त में मन्त्री राजा के मन्त्री है, परन्तु वास्तव में वे जनता के प्रतिनिधि, जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। सिद्धान्त तथा व्यवहार में यह अन्तर अन्य संविधानों में भी दिखाई देता है। आँग ने ठीक ही कहा है कि “सिद्धान्त और प्रयोग के बीच सभी शासनों में पर्याप्त अन्तर रहता है लेकिन जिस मात्रा में वह इंग्लैण्ड में है, और कहीं नहीं दिखाई देता।”

पालों के राजनैतिक इतिहास का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

7. संविधान के अभिसमय

इंग्लैण्ड अभिसमयों पर आधरित देश है। इस देश का शासन केवल विधियों पर आधारित न होकर अभिसमयों (परम्पराओं) पर इतना आधारित है कि अभिसमयों को समझे बिना हम इसे समझ ही नहीं सकते। ब्रिटिश संविधान के मुख्य दो भाग है, एक अभिसमयों पर आधारित, दूसरा विधियों पर डायसी ने सर्वप्रथम इसे संविधान के अभिसमय कहकर प्रचलित किया। प्रधानमन्त्री एस्क्विथ ने 1610 में कॉमन सभा में कहा था। “हमारी वैधानिक पद्धति, प्रथाओं, परम्पराओं और अभिसमयों पर निर्भर है।”

ब्रिटिश संसदीय प्रणाली की मुख्य विशेषता क्या है?

ब्रिटिश राजव्यवस्था का आधार है- संसदीय सर्वोच्चता का सिद्धांत । (i) संसद को कोई भी कानून बनाने, संशोधित करने या निरस्त करने का अंतिम अधिकार है । डे लोल्मे कहते हैं- ”ब्रिटिश संसद किसी औरत को आदमी और आदमी को औरत से बदलने के सिवा कुछ भी कर सकती है ।”

ब्रिटिश संविधान की प्रमुख विशेषताएं क्या है?

संसदात्मक शासन के तीनों ही लक्षण (दोहरी कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और कार्यपालिका में घनिष्ठ सम्बन्ध तथा कार्यपालिका के कार्यकाल की अनिश्चितता) ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत पूर्ण अंशों में विद्यमान हैं। कार्यकारिणी का संसद के प्रति उत्तरदायी होना इसकी मूल विशेषता है, इसलिये इसको उत्तरदायी सरकार कहा जाता है।

ब्रिटेन की संसदीय शासन व्यवस्था का प्रमुख कौन है?

ब्रिटिश संसदीय प्रणाली के अन्तर्गत राजमुकुट को राज्य का अध्यक्ष माना जाता है । पर चूँकि राजमुकुट की शक्तियाँ और कृत्य संविधान के द्वारा निर्धारित कर दिए गए हैं, इसलिए ब्रिटिश राजनीतिक प्रणाली को सांविधानिक [117] Page 9 कार्यपालिका व्यवस्था राजतंत्र या सीमित राजतंत्र की संज्ञा दी जाती है ।

ब्रिटिश शासन प्रणाली क्या है?

ब्रिटेन की इस शासन प्रणाली को अक्सर संसदीय प्रणाली या वेस्टमिंस्टर प्रणाली कहा जाता है। इस प्रणाली किसी संविधान या संसदीय विधान द्वारा एक ही दिन में स्थापित नहीं की गयी है, बल्कि सैकड़ों वर्षों की अवधि पर, क्रमशः विकसित हुई है। अतः, ब्रिटिश संसद को अक्साह "सांसदों की जननी" भी कहा जाता है।