बाल्यावस्था में शिक्षा क्यों महत्वपूर्ण है? - baalyaavastha mein shiksha kyon mahatvapoorn hai?

प्रारंभिक बाल विकास

शुरूआती क्षण महत्त्वपूर्ण हैं, और हर बच्चे को उसकी क्षमता को पूर्ण विकसित करने के लिए इनका सही उपयोग करना ज़रूरी है।

  • में उपलब्ध:
  • English
  • हिंदी

चुनौती

बचपन के शुरूआती क्षण महत्त्वपूर्ण होते हैं - और उनका असर जीवन भर रहता है। शिशु के मस्तिष्क का विकास गर्भावस्था के समय ही शुरू हो जाता है, और गर्भवती माता के स्वास्थ्य, खान-पान, और वातावरण का उस पर प्रभाव पड़ता है। जन्म के बाद, शिशु का मस्तिष्क तेज़ी से विकसित होता है, और उसका शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक स्वास्थ्य, सीखने की क्षमता, और व्यस्क होने पर उसकी कमाने की क्षमता और सफलता को भी प्रभावित करता है।

सबसे शुरूआती वर्ष (0 से 8 वर्ष) बच्चे के विकास के सबसे असाधारण वर्ष होते हैं। जीवन में सब कुछ सीखने की क्षमता इन्ही वर्षों पर निर्भर करती है। इस नींव को ठीक से तैयार करने के कई फायदे हैं: स्कूल में बेहतर शिक्षा प्राप्त करना और उच्च शिक्षा की प्राप्ति, जिससे समाज को महत्त्वपूर्ण सामाजिक तथा आर्थिक लाभ मिलते हैं। शोध बताते हैं कि अच्छी गुणवत्ता की प्रारंभिक बाल शिक्षा और प्रारंभिक बाल विकास कार्यक्रम (ECD), कक्षा में फेल होने और स्कूल से निकल जाने की दर को कम करते है, और हर स्तर पर शिक्षा के परिणाम बेहतर बनाते हैं।

ई सी डी का उद्देश्य है कि सभी छोटे बच्चे, विशेष रूप से सबसे ज्यादा संवेदनशील, को मानवीय परिवेश सहित, गर्भाधान के समय से स्कूल में प्रवेश के समय तक उनकी पूरी क्षमता को प्राप्त करें |

प्रारंभिक बचपन के कई अलग-अलग चरण हैं: गर्भधारण से जन्म, जन्म से 3 वर्ष, जिसमें शुरूआती 1000 दिनों (गर्भधारण से 24 महीने) पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जिसके बाद आते हैं प्री-स्कूल और प्री-प्राइमरी वर्ष (3 वर्ष से 5-6 वर्ष, या स्कूल में दाखिले की उम्र)। हालांकि प्रारंभिक बचपन की व्याख्या में 6 से 8 वर्ष भी आते हैं, इस कार्यक्रम का मुख्य केंद्र शुरुआती वर्ष से स्कूल में दाखिले तक की उम्र है। यह चरण स्पष्ट रूप से अलग नहीं हैं, फिर भी बाल विकास के प्रक्षेपपथ पर विशेष संवेदनशील समय के लिए नीतियां बनाने और कार्यक्रम पर प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने में सहायक श्रेणियां हैं।

भारत ने बाल अधिकारों पर कन्वेंशन को स्वीकार किया है, जो सदस्य देशों को "बच्चों के अस्तित्व और विकास को अधिकतम संभावित सीमा तक सुनिश्चित करने" के लिए कहता है। यह कन्वेंशन बचपन को गर्भाधारण से आठ साल की उम्र तक की अवधि तक के रूप में परिभाषित करता है।

पांच वर्ष से कम उम्र के 43 प्रतिशत से ज़्यादा बच्चे अपनी क्षमता न परिपूर्ण करने के खतरे में हैं।

प्रारंभिक बाल विकास (Early Childhood Development (ई सी डी)), जिसे भारत में प्रारंभिक बाल देख-रेख एवं शिक्षा के रूप में जाना जाता है, का तात्पर्य निम्नलिखित है:

एक परिणाम जो किसी बच्चे की स्तिथि बताता है - उचित पोषण, शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक सतर्कता, भावनात्मक मजबूती, सामाजिक योग्यता, और सीखने के लिए तैयारी, तथा

एक प्रक्रिया - एक व्यापक प्रक्रिया जो उचित परिणाम प्राप्त करने हेतु विभिन्न क्षेत्रों के हस्तक्षेपों को साथ लाती है । किसी बच्चे के उत्तम विकास के लिए ज़रूरी तत्त्व हैं: पोषण एवं स्वास्थ्य, स्वच्छता, सुरक्षा, प्रेरणा, जो एक साथ मिल कर 'भरपूर देख भाल' कहलाते हैं। स्वस्थ प्रारंभिक बाल विकास हर बच्चे के लिए महत्त्वपूर्ण है।

विगत वर्षों में, बाल स्वास्थ्य और पोषण के परिणामों में अच्छी बढ़ोतरी हुई है। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में 1990 से 2015 तक वैश्विक स्तर पर 53 प्रतिशत की गिरावट की तुलना में 62 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है । अधिक बच्चों को जल्दी स्तनपान शुरू करवाया जा रहा है और उन्हें केवल स्तनपान ही कराया जा रहा है। फिर भी, दुनिया भर के पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौतों का पांचवा हिस्सा और नवजात शिशुओं की मौतों का चौथा हिस्सा, भारत के पलड़े में आता है। भारत के तकरीबन 38 प्रतिशत बच्चों में बौनापन है। बौनेपन का स्तर ई सी डी का प्रतिनिधि संकेतक माना जाता है। भारत में यह स्तर दर्शाता है कि एक तिहाई से ज़्यादा बच्चे अपनी क्षमता के अनुसार विकसित नहीं हो रहे हैं। हालांकि अधिकतर, 70 प्रतिशत से कुछ अधिक, बच्चे प्री -प्राइमरी शिक्षा प्राप्त करते हैं, प्रारंभिक बाल शिक्षा कार्यक्रमों की गुणवत्ता में बड़ी कमियां हैं। इसका यह मतलब भी है कि सबसे वंचित वर्ग के तकरीबन 2 करोड़ बच्चे प्रीस्कूल नहीं जाते, जिससे उनके जीवित रहने, बढ़ने और विकास पर सबसे ख़राब असर पड़ता है।

समाधान

माता-पिता को अलग-अलग विषयों, जैसे भरपूर देख-भाल, अनुकूल खान-पान, प्रोत्साहन, और बच्चों को घर पर शुरुआती शिक्षा देने जैसी गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने और इससे सम्बंधित परामर्श देने के लिए अग्रणी कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण का यूनिसेफ समर्थन करता है। यह विशेष नवजात देखभाल इकाइयों से निकले छोटे और बीमार बच्चों के आगे की देखभाल के लिए सामुदायिक और स्वास्थ्य सुविधाओं को भी सहयोग प्रदान करता है, उन्हें स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता उपलब्ध कराता है और प्रारंभिक बाल विकास निगरानी और आंकलन तंत्र को सुदृढ़ करने में सहयोग करता है |

ई सी डी कार्यक्रमों में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए यूनिसेफ एक व्यापक संरचना द्वारा भारत सरकार का सहयोग कर रहा है। इस संरचना का क्रियान्वयन एक सुचारु तंत्र से होगा, भली-भाँती निगरानी होगी, और संपन्न जवाबदेही और निवारण तंत्र इसका हिस्सा होंगे। यूनिसेफ बच्चों के लिए आवश्यक सेवाओं, जैसे अच्छा स्वास्थ्य, पोषण, प्रारंभिक शिक्षा, शुरूआती हस्तक्षेप का समर्थन करने पर ध्यान केंद्रित करता है और माता-पिता / परिवार के सहयोग को प्रोत्साहित करता है।

निष्पक्ष और सतत विकास प्राप्त करने के लिए ई सी डी सबसे शक्तिशाली और किफायती रणनीतियों में से एक है।

प्रारंभिक बाल विकास को वैश्विक विकास एजेंडा में जगह मिलने से इससे सम्बंधित प्रयासों को सबल बनाने का उपयुक्त अवसर मिला है। तंत्रिका विज्ञान (न्यूरोसाइंस) में हुई अभूतपूर्व प्रगति ने अमूल्य प्रमाण दिए हैं कि बच्चे के शुरुआती वर्षों में मिलने वाला वातावरण ही उसके विकास (मष्तिष्क विकास सहित) की नींव बनता है।

बच्चे के मष्तिष्क का विकास प्रेरणादायक वातावरण पर निर्भर करता है, विशेष रूप से बच्चे को मिलने वाली देख-भाल और इंटरेक्शन की गुणवत्ता पर। हम 'खाने, खिलाने और स्नेह' शब्दों का प्रयोग करते हैं। एक बच्चा जिसे गले लगाया जाता है, प्यार-भरी बातें की जाती है, आराम दिया जाता है, और रुचिकर चीज़ें दिखाई जाती हैं, उसे उसका निश्चित फायदा मिलता है। जिन बच्चों को अच्छी देख-रेख और पोषण दिया जाता है, उनके संज्ञानात्मक, भाषा, भावनात्मक और सामाजिक कौशल बेहतर होने की, स्वस्थ बड़े होने की, और आत्म-विश्वास से पूर्ण होने की सम्भावना अधिक होती है। एक व्यस्क के रूप में हमारे हित के लिए यह सभी चीज़ें ज़रूरी हैं। प्रारंभिक बचपन के अनुभव ही हमारे भविष्य को बनाते हैं।

संसाधनों

बाल्यावस्था में शिक्षा का क्या महत्व है?

शिक्षा के क्षेत्र में मानवीय गुणों को ही सामाजिक एवं नैतिक गुणों की संज्ञा दी जाती है। अत: बाल्यावस्था में प्रत्येक समाज, विद्यालय या प्रशासन बालकों में अच्छे नागरिक के गुणों का विकास करने के लिये शिक्षा देते है। बालक समाज और नैतिकता के भाव समझने में असफल रहता है, फिर भी वह इनको धारण करना अपना परम कर्त्तव्य मानता है।

प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा का क्या महत्व है?

व्यापक प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा का उद्देश्य जन्म से छह वर्ष की आयु तक के बच्चों की समग्र रूप से वृद्धि, विकास और उनके शिक्षण को प्रोत्साहित करना है। “देखभाल” का अर्थ है बच्चों के लिए एक देखरेख पूर्ण और सुरक्षित परिवेश उपलब्ध कराते हुए उसके स्वास्थय, साफ – सफाई और पोषण पर ध्यान देना।

बाल्यावस्था की मुख्य विशेषता क्या है?

बाल्यावस्था की एक मुख्य विशेषता बालक में प्रबल जिज्ञासा की प्रकृति का होना है। वह जिन वस्तुओं के संपर्क में आता है, उनके बारे में प्रश्न पूछकर हर प्रकार की जानकारी प्राप्त करना चाहता है। वह अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए माता-पिता व घर के अन्य सदस्यों से प्रश्न पूछता है।

प्रारंभिक बाल्यावस्था क्या है in Hindi?

जन्म से लेकर आठ वर्ष की आयु तक की अवस्था को प्रारंभिक बाल्यावस्था माना जाता है । ( a ) जन्म से लेकर 1 वर्ष तक ( b ) 3 से लेकर 8 वर्ष तक । शैशवास्था जन्म से लेकर एक वर्ष की आयु तक की अवधि को शैशवास्था कहते है, हालांकि कुछ विशेषज्ञ शैशवावस्था को 2 वर्ष तक मानते है ।

संबंधित पोस्ट

Toplist

नवीनतम लेख

टैग