भाषायी विविधता का क्या अभिप्राय है? - bhaashaayee vividhata ka kya abhipraay hai?

हमारे देश की ________ विविधता हमारा एक भाषायी _______ है I

This question was previously asked in

CTET Paper 1 - 21st Dec 2021 (English-Hindi-Sanskrit)

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  1. साहित्यिक, चुनौती
  2. भाषिक, संबल
  3. भौगोलिक, विस्तार
  4. भाषिक, हथियार

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : भाषिक, संबल

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10 Questions 10 Marks 10 Mins

जब किसी देश या समाज में अलग-अलग भाषा प्रयोग में ली जाती है तो उसे भाषा भाषाई विविधता कहा जाता है। भाषा में भाषायी विविधता का उदाहरण इसी तरह से देखा जा सकता है कि हमारे संविधान में 22 भाषाओ को शामिल किया गया है। इसके अतिरिक्त देश में कई अन्य भाषाओ का भी प्रयोग किया जाता है। 

भाषायी विविधता का क्या अभिप्राय है? - bhaashaayee vividhata ka kya abhipraay hai?
Key Points

  • बहु-भाषिकता  पर हुए अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि बहु-भाषिकता समाज में संप्रेषण को बाधित करने के बजाय सहायता प्रदान करती है।
  • बच्चों की गृहभाषा के प्रयोग को सम्मान देती है।
  • बच्चों को उनकी गृहभाषा में कहने सुनने की आजादी देती है।
  • बहु-भाषिक बच्चों की वैचारिक क्षमता अन्य बच्चों की तुलना में अच्छी होती है।
  • भाषाएँ आपस में सम्पर्क-संवाद करती हैं।
  • कक्षा में विभिन्न भाषाों का प्रयोग करना सांस्कृति आदान प्रदान का भी माध्यम है।
  • कक्षा में बच्चें अलग-अलग भाषायी- सांस्कृतिक पृष्ठभूमी से आते हैं।
  • कक्षा में सभी बच्चों की भाषा को उचित स्थान देना हिबहु-भाषिकता है। 
  • बहु-भाषिकता, बच्चे की अस्मिता का निर्माण करती है।
  • बहु-भाषिकता पर हुए अध्ययनों से पता चलता है, कि बहुभाषिकता बच्चों की संज्ञानात्मक विकास, सामाजिक सहिष्णुता, विस्तृत चिंतन एवं बौद्धिक उपलब्धियों के स्तर को बढ़ाती है।
  • बहु-भाषिकता (भाषागत विविधता) भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग है। भारत एक बहुभाषी देश है। भारत की भाषिक विविधता एक जटिल चुनौती है किन्तु भाषागत विविधता एक समस्या नहीं है, यह संसाधन है तथा बहुभाषिकता भाषा विकास में एक संबल का काम करती है।

भाषायी विविधता का क्या अभिप्राय है? - bhaashaayee vividhata ka kya abhipraay hai?
Important Points 

  • भाषा शिक्षक को भारतीय भाषाओं की विविधता की चुनौती को संसाधन के रूप में स्वीकार करना चाहिए।
  • एक शिक्षक को भाषाई विविधता को अवसर की तरह देखना चाहिए।
  • भारत की भाषाई विविधता और समृद्ध साहित्य देश की विरासत है और ये हमारी विविधतापूर्ण संस्कृति की परिचायक है।
  • भाषा शिक्षक को इन समृध्द साहित्य को सरहाना की दृष्टि से देखना चाहिए।

अतः हम कह सकते हैं कि हमारे देश की भाषिक विविधता हमारा एक भाषायी संबल है I

Last updated on Oct 25, 2022

Detailed Notification for  CTET (Central Teacher Eligibility Test) December 2022 cycle released. The last date to apply is 24th November 2022. The CTET exam will be held between December 2022 and January 2023. The written exam will consist of Paper 1 (for Teachers of class 1-5) and Paper 2 (for Teachers of classes 6-8). Check out the CTET Selection Process here. Candidates willing to apply for Government Teaching Jobs must appear for this examination.

भारत में भाषा विविधता का संरक्षण

भारत दुनिया के उन अनूठे देशों में से एक है जहां भाषाओं में विविधता की विरासत है। भारत के संविधान ने 22 आधिकारिक भाषाओं को मान्यता दी है। बहुभाषावाद भारत में जीवन का मार्ग है क्योंकि देश के विभिन्न भागों में लोग अपने जन्म से ही एक से अधिक भाषा बोलते हैं और अपने जीवनकाल के दौरान अतिरिक्त भाषाओं को सीखते हैं।  - हालांकि आधिकारिक तौर पर यहाँ 122 भाषाएं हैं, भारत के लोगों के भाषाई सर्वेक्षण में 780 भाषाओं की पहचान की गई है, जिनमें से 50 पिछले पांच दशकों में विलुप्त हो चुकी हैं।

संविधान की अनुसूची में शामिल भाषाएँ          

 संविधान के द्वारा मान्यता प्राप्त बाईस भाषाओं में असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कश्मीरी, कन्नड़, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगू और उर्दू को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है।                         

विशेष दर्जा प्राप्त भाषाएँ

इनमें से तीनों भाषाओं संस्कृत, तमिल और कन्नड़ को भारत सरकार द्वारा विशेष दर्जा और श्रेष्ठ प्राचीन भाषा के रूप में मान्यता दी गई है। इन श्रेष्ठ प्राचीन भाषाओं का 1000 वर्ष से अधिक का लिखित और मौखिक इतिहास है। इन की तुलना में, अंग्रेजी काफी नवोदित है क्योंकि इसका मात्र 300 साल का इतिहास है।                     

अन्य भाषाएँ

इन अधिसूचित और प्राचीन भाषाओं के अलावा, भारत के संविधान में अल्पसंख्यक भाषाओं के संरक्षण के लिए मौलिक अधिकार के रूप में एक अनुच्छेद को शामिल किया गया है। इसमें कहा गया है कि "भारत के किसी भी क्षेत्र और किसी भी भाग में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग की विशिष्ट भाषा, लिपि या अपनी स्वयं की संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार होगा।".     

 भारत की भाषा नीति और इतिहास

  • औपनिवेशिक शासन के दौरान, पहली बार जॉर्ज ए ग्रियरसन द्वारा 1894 से 1928 के दौरान भाषाई सर्वेक्षण कराया गया था जिसमें 179 भाषाओं और 544 बोलियों की पहचान की गई थी। प्रशिक्षित भाषाविदों कर्मियों की कमी के कारण इस सर्वेक्षण में कई खामियां भी थीं।                                                   
  • भारत की भाषा नीति भाषाई अल्पसंख्यकों की रक्षा की गारंटी प्रदान करती है। संविधान के प्रावधान के तहत अल्पसंख्यक समूहों द्वारा बोली जाने वाली भाषा के हितों की रक्षा की एकमात्र जिम्मेदारियों के लिए भाषाई अल्पसंख्यक समुदाय हेतु विशेष अधिकारी की नियुक्ति की जाती है।
  •  स्वतंत्रता के बाद, मैसूर स्थित केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल) को सूक्षमता के साथ भाषाओं के सर्वेक्षण का कार्य सौंपा गया था। हालांकि यह कार्य अभी भी अधूरा है।
  • 1991 में भारत की जनगणना में 'अलग व्याकरण की संरचना के साथ 1576 सूचीबद्ध मातृभाषाएँ और 1796 भाषिक विविधता को अन्य मातृभाषाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • भारत की एक और अनूठी विशेषता अपनी मातृभाषा में ही बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के लिए बच्चों के हितों की रक्षा करने की अवधारणा है। इसके लिए संविधान में भाषाई अल्पसंख्यक समूहों के बच्चों के लिए प्राथमिक स्तर पर शिक्षा प्रदान करने के लिए मातृभाषा में शिक्षण की पर्याप्त सुविधाएं प्रदान करने के लिए हर राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी अधिकारी के द्वारा इसका प्रयास किये जाने का प्रावधान किया गया है।                           -
  • इस प्रकार, संयुक्त राष्ट्र के द्वारा (21 फरवरी) को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित करने से पूर्व ही भारतीय संविधान के संस्थापकों ने मातृभाषाओं में शिक्षण से बच्चे को अपनी पूरी क्षमता के साथ सक्षम बनाने और विकसित करने को शीर्ष प्राथमिकता दी हैं।
  • यह अवधारणा संयुक्त राष्ट्र के विश्व  मातृभाषा दिवस 2017 के विषय के साथ पूरी तरह से साम्यता रखती है जिसके अंतर्गत शिक्षा, प्रशासनिक व्यवस्था, सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और साइबर स्पेस में स्वीकार किये जाने के लिए बहुभाषी शिक्षा की क्षमता विकसित करना आवश्यक है।
  • 1956 में भारत में राज्यों के पुनर्गठन में भाषाई सीमाओं का अपना महत्व था। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भाषायी विशेषताओं के आधार पर राज्यों के गठन और एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • भारत की भाषा नीति बहुलवादी रही है जिसमें प्रशासन, शिक्षा और जन संचार के अन्य क्षेत्रों में मातृभाषा के उपयोग को प्राथमिकता दी गई है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के भाषा ब्यूरो का गठन भाषा नीति को लागू करने और इसपर नजर रखने के लिए किया गया है।
  • भारत सरकार ने डिजिटल भारत की अभिकल्पना के तहत जुलाई 2017 से बेचे जाने वाले सभी मोबाइल फोनों में भारतीय भाषाओं की सुविधा को अनिवार्य कर दिया है। इससे न सिर्फ डिजिटल अंतर को समाप्त किया जा सकेगा बल्कि भारत के ऐसे एक अरब लोग, जो अपनी भाषाओं में संपर्क करने में अंग्रेजी नहीं बोलते, को सशक्त बनाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त होगा। इससे बड़ी संख्या में लोगों के ई-गवर्नेंस और ई-कॉमर्स का हिस्सा बनने से क्षमता में वृद्धि भी होगी।
  •  केंद्र सरकार के इन प्रयासों के बावजूद, अल्पसंख्यक भाषाएं बहुत से कारणों से अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं। अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में 7000 साल के इतिहास के साथ बो भाषा के अंतिम वक्ता की मृत्यु होने पर यह विलुप्त हो गई।
  • हाल के वर्षों में भाषा विविधता खतरे में है क्योंकि विविध भाषाओं के वक्ता दुर्लभ होते जा रहे हैं और अपनी मातृभाषाओं को छोड़ने के बाद वे प्रमुख भाषाओं को अपना रहे हैं। इस समस्या का समाधान सामाजिक स्तर पर किए जाने की आवश्यकता है जिसमें समुदायों को भाषा विविधता के संरक्षण में शामिल होना होगा जो हमारी सांस्कृतिक संपदा का एक अंग हैं।

साभार : विशनाराम माली  

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भाषायी विविधता का क्या अभिप्राय है? - bhaashaayee vividhata ka kya abhipraay hai?

भाषायी विविधता का क्या अभिप्राय?

भाषायी विविधता (Language Diversities) भारत एक बहुभाषी देश है। भारत में जनसंख्या, प्रजाति, धर्म तथा संस्कृति के आधार पर ही विभिन्नता नहीं पाई जाती बल्कि भाषा की दृष्टि से भी अनेक भिन्नतायें विद्यमान हैं। भाषायी सर्वेक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि यहाँ लगभग 179 भाषायें एवं 544 बोलियाँ (dilects) प्रचलित हैं।

भारत में भाषाई विविधता क्या है उल्लेख कीजिए?

इनमें असमिया, बांग्ला, गुजराजी, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी,मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु, उर्दू सिंधी, नेपाली, मणिपुरी, कोंकणी, बोडो, मैथिली, डोगरी और संथाली शामिल हैं। यहाँ की भाषाओं को विभिन्‍न लिपियों में लिखा जाता है जो भारत की विविधता का द्योतक है। लिपि से आशय शब्द या वर्ण लिखने के तरीके से है।

विविधता में भाषा की क्या भूमिका है?

वस्तुतः मनुष्य भाषा का व्यवहार स्वयं से ही बातचीत करने के लिए नहीं करता, भाषा एक से अधिक मनुष्यों के बातचीत करने का माध्यम है। इसीलिए एक व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों में अपनी बोली में चाहे जितना परिवर्तन कर ले, वह जिस समाज में रहता है उसमें उसकी बोली अवश्य समझी जायेगी और इसी ढंग से वह दूसरों की बोली को भी समझेगा।

सांस्कृतिक विविधता का अर्थ क्या है?

सांस्कृतिक विविधता का क्या अर्थ है? जब हम यह कहते हैं कि भारत एक महान सांस्कृतिक विविधता वाला राष्ट्र है तो हमारा तात्पर्य यह होता है कि यहाँ अनेक प्रकार के सामाजिक समूह एवं समुदाय निवास करते हैं। यह समुदाय सांस्कृतिक चिह्नों जैसे, भाषा, धर्म, पंथ, प्रजाति या जाति द्वारा परिभाषित किए जाते हैं।