भारत की खोज फुल बुक पीडीएफ - bhaarat kee khoj phul buk peedeeeph

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भारत की खोज हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Bharat ki Khoj Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : भारत की खोज | इस पुस्तक के लेखक हैं : पंडित जवाहरलाल नेहरु | पुस्तक का प्रकाशन किया है : राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 14 MB हैं | पुस्तक में कुल 399 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Bharat ki Khoj. This book is written by : Pt. Jawaharlal Nehru. The book is published by : Rashtriya Shaikshik Anusandhan Aur Prashikshan Parishad. Approximate size of the PDF file of this book is 14 MB. This book has a total of 399 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
पं. जवाहरलाल नेहरू इतिहास,भारत 14 MB 399

पुस्तक से : 

उस सुदूर अतीत के भारतीय कैसे थे? हमारे लिए इतने पुराने और हमसे इतने भिन्न समय के बारे में कोई धारणा बनाना बड़ा ही कठिन है। फिर भी हमें जो विविध जानकारियाँ उपलब्ध हैं उसके आधार पर एक धुँधली-सी तस्वीर उभर कर सामने आ ही जाती है। वे खुले दिल के आत्मविश्वासी और अपनी परंपराओं पर गर्व करने वाले महान लोग थे। वें प्रकृति और मानव जीवन के बारे में बहुत से प्रश्नों से भरे हुए तथा अपनी बनाई हुई मर्यादा और मूल्यों को महत्त्व देने वाले लोग थे।
वैशेषिक दर्शन अनेक रूपों में बिलकुल न्याय के समान है। वह जीव और पदार्थ की भिन्नता पर जोड़ देता है और सृष्टि के बारे में परमाणु-सिद्धांत का विकास करता है। इसमें सृष्टि को धर्म सिद्धांत के अधीन बताया गया है, और पूरा दर्शन इसी पर केंद्रित है। ईश्वर के अनुमान को स्पष्ट रूप से स्वीकार नहीं किया गया है। न्याय और वैशेषिक दर्शनों और आरंभिक बौद्ध दर्शन में समानता के बहुत से बिंदु हैं।
श्री शंकराचार्य ने वर्णाश्रम पर आधारित सामाजिक जीवन की ब्राहमण-व्यवस्था को यह मानकर स्वीकार कर लिया कि वह संपूर्ण जाति के सामूहिक अनुभव और समझ का प्रतिनिधित्व करती है। पर उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि किसी भी जाति का कोई भी व्यक्ति उच्चतम ज्ञान को प्राप्त कर सकता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)

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भारत के अतीत की झाँकी

चिंतन और सक्रियता से भरे इन सालों में मेरे मन में भारत ही भारत रहा है। इस बीच मैं बराबर उसे समझने और उसके प्रति अपनी प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करने का प्रयास करता रहा हूँ।

मैं अपने बचपन की ओर लौटा और यह याद करने की कोशिश की कि मैं तब कैसा महसूस करता था। मेरे विकासशील मन में इस अवधारणा ने कैसा अस्पष्ट रूप ले लिया था, और मेरे ताज़ा अनुभव ने उसे कैसे संवारा था।

अपने भौतिक और भौगोलिक पक्षों के अलावा आखिर यह भारत है क्या? अतीत में यह किस विशेषता का प्रतिनिधित्व करता था? उस समय उसे शक्ति देने वाला तत्त्व क्या था?

उसने अपनी उस प्राचीन शक्ति को कैसे खो दिया ? क्या उसने इस शक्ति को पूरी तरह खो दिया है? विशाल जनसंख्या का बसेरा होने के अलावा क्या आज उसके पास कुछ बचा है जिसे जानदार कहा जा सके ?

आधुनिक विश्व से उसका तालमेल किस रूप में बैठता है? भारत मेरे खून में रचा-बसा था और उसमें बहुत कुछ ऐसा था जो मुझे सहन रोमांचित करता था।

इसके बावजूद मैंने उसे एक बाहरी आलोचक की नज़र से देखना शुरू किया। ऐसा आलोचक जो वर्तमान के साथ-साथ अतीत के बहुत से अवशेषों को, जिन्हें उसने देखा था-नापसंद करता था।

एक हद तक मैं उस तक पश्चिम के रास्ते से होकर पहुँचा था। मैंने उसे उसी भाव से देखा जैसे संभवतः किसी पश्चिमी मित्र ने देखा होता।

मैं उसके दृष्टिकोण और रूप रंग को बदलकर उसे आधुनिकता का जामा पहनाने के लिए उत्सुक भी था और चिंतित भी। किन्तु मेरे भीतर शंकाएँ सिर उठा रहीं थीं।

क्या मैंने भारत को जान लिया था? मैं, जो उसके अतीत की विरासत के बड़े हिस्से को खारिज करने का साहस कर रहा था।

उसमें बहुत कुछ ऐसा था जिसे खारिज किया जाना चाहिए था, बल्कि जिसे खारिज करना ज़रूरी था, लेकिन अगर भारत के पास वह कुछ नहीं होता जो बहुत जीवंत और टिकाऊ रहा है,

वह बहुत कुछ जो सार्थक है, तो भारत का वह वजूद नहीं होता जो असंदिग्ध रूप से आज है, और वह हजारों वर्ष तक अपने सभ्य अस्तित्व की पहचान इस रूप में कदापि बनाए नहीं रख सकता था। वह ‘विशेष’ तत्त्व आखिर क्या था?

लेखक पंडित जवाहरलाल नेहरू -Pt. Javaharlal Neharu
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 399
Pdf साइज़ 14 MB
Category इतिहास(History)

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