भीम ने जरासंध को क्यों मारा? - bheem ne jaraasandh ko kyon maara?

महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक जरासंध भी था। मगध का राजा जरासंध कंस का ससुर था। श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर दिया था। इसके बाद जरासंध ने श्रीकृष्ण से बदला लेने के लिए कई बार मथुरा पर आक्रमण किया था। श्रीकृष्ण और बलराम उसे हर बार पराजित कर देते थे। लेकिन, उसे मारते नहीं थे।

बलराम ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हम जरासंध को मार क्यों नहीं रहे हैं। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि जरासंध खुद के जैसे अधर्मी राजा को लेकर युद्ध करने के लिए हमारे सामने आ जाता है। इससे हमें अधर्मी राजाओं को मारने के लिए कहीं और जाने की जरूरत नहीं होती। अगर हम जरासंध को ही मार देंगे तो ऐसे अधर्मियों को मारने के लिए हमें खुद पृथ्वी के कोने-कोने तक जाना पड़ेगा। जरासंध हमारा ही काम आसान कर रहा है। जब दुनिया के सारे अधर्मी राजा मारे जाएंगे, हम जरासंध को भी खत्म कर देंगे।

ये है जरासंध के जन्म की कथा

मगध के राजा बृहद्रथ की दो रानियां थी। एक ऋषि ने राजा बृहद्रथ को एक आम दिया और कहा कि ये रानी को खिला देना, इससे तुम्हें घर संतान का जन्म होगा। राजा ने अपनी दोनों रानियों को आम के दो टुकड़े करके खिला दिए। कुछ समय पर दोनों रानियों ने आधे-आधे बच्चे को जन्म दिया। अधूरे बच्चों को राजा ने वन में फिंकवा दिया। उस समय वहां जरा नाम की राक्षसी ने इन दोनों अधूरे बच्चों को जोड़ दिया। बच्चा जीवित हो गया। जरा ने राजा बृहद्रथ को बच्चे को सौंप दिया था। जरा ने दोनों टुकड़ों का संधान किया था। इसीलिए बच्चे का नाम जरासंध रखा गया।

भीम ने किया था जरासंध का वध

श्रीकृष्ण ने जरासंध का वध करने के लिए योजना बनाई थी। योजना अनुसार भीम और जरासंध का मल्लयुद्ध आयोजित किया गया। ये युद्ध कई दिनों तक चला था। भीम जब भी जरासंध के शरीर के दो टुकड़े करते तो दोनों ही हिस्से फिर से जुड़े जाते थे। बार-बार ऐसा ही हो रहा था। तब श्रीकृष्ण ने भीम को संकेत दिया की जरासंध के शरीर के दोनों हिस्सों को अलग-अलग दिशाओं में फेंके। श्रीकृष्ण का संकेत समझकर भीम ने वैसा ही किया और जरासंध मारा गया।

जरासंध का वध महाबली भीम ने किया था । अभी तक हमने पड़ा कि किस तरह मयासुर ने इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया । हमने पड़ा कि किस तरह इंद्रप्रस्थ में आये देवर्षि नारद ने महाराज युधिष्ठिर को यह बताया था कि उनके पिता स्वर्ग में हैं और उन्होंने युधिष्ठिर के लिए एक राजसूय यज्ञ करने की आज्ञा दी है । इस पोस्ट में हम आगे की कहानी पड़ेंगे, अगर आपने पिछले पोस्ट नहीं पढ़ा है तो यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं – इंद्रप्रस्थ का निर्माण किसने किया ।

तब महाराज युधिष्ठिर ने अपने मंत्रियों से इस बारे में विचार विमर्श किया और बाद में यह निर्णय निकाला गया कि महाराज युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ करना चाहिए क्यूंकि वे इस पृथ्वी एक छात्र राजा बनने के सर्वथा योग्य हैं । आपको बता दें कि जो व्यक्ति राजसूय यज्ञ संपन्न करना चाहता है उसे पृथ्वी का एक छत्र सम्राट होना अनिवार्य हो जाता है ।

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जरासंध की कहानी

मंत्रियों से सलाह लेने के बाद महाराज युधिष्ठिर ने सोचा कि भगवान श्री कृष्ण ही इस समस्या का समाधान कर सकते हैं । भगवान श्री कृष्ण के पास महाराज युधिष्ठिर के एक दूत पहुंचे जिन्होंने सारी बा उन्हें वतायी और भगवान स्वयं ही इंद्रप्रस्थ चले आये । भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा था कि वे राजसूय यज्ञ करने के योग्य हैं और उन्हें यह यज्ञ करना चाहिए ।

भगवान श्री कृष्ण ने आगे बताया कि इस समय पृथ्वी पर जरासंध नाम का राजा सबसे शक्तिशाली है और राजसूय यज्ञ करने के लिए पहले उसे हराना होगा । शिव जी की तपस्या करके वह राजा इतना अधिक शक्तिशाली हो गया है कि अगर उससे 300 वर्षों तक युद्ध किया जाए तब भी उसे जीता नहीं जा सकता ।

आपको बता दें कि जिन पांडवों ने महाभारत का महाविशाल युद्ध केवल 18 दिनों में जीत लिया था उनके लिए भगवान कह रहे हैं कि वे जरासंध को 300 वर्षों में भी नहीं जीत पाएंगे । भगवान श्री कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से कहा था कि जरासंध ने अभी तक कुल 86 राजाओं को अपनी कैद में रखा हुआ है और अगर युधिष्ठिर ऐसी अवस्था में राजसूय यज्ञ करवाएंगे तो उनका यज्ञ सफल नहीं होगा ।

भगवान ने कहा कि पहले महाराज युधिष्ठिर को जरासंध का वध करके उसकी कैद से उन 86 राजाओं को मुक्त करना होगा और फिर पृथ्वी के बाकी बचे हुए राजाओं को जीतकर चक्रवर्ती सम्राट बनना होगा तब उनका राजसूय यज्ञ सफल होगा । महाराज युधिष्ठिर ने तब कहा कि सबसे पहले उस क्रूर और अधर्मी राजा जरासंध को मारना उचित होगा लेकिन उसे मरेगा कौन?

भीम ने कहा कि वे अर्जुन और भगवान श्री कृष्ण के साथ जाकर जरासंध को मार ुद्ध में मार देंगे । युधष्ठिर ने कहा कि वे अपने स्वार्थ के लिए अपने प्रिय भाइयों को मौत के मुँह में नहीं भेज सकते । तब अर्जुन ने कहा कि क्षत्रिय का कर्तव्य है धर्म के लिए युद्ध करना और अगर वे उन राजाओं को बचा लेते हैं तो उन्हें उनके क्षत्रिय होने पर गर्व होगा ।

इसी तरह भगवान श्री कृष्ण ने भी कहा कि अगर धर्म के लिए लड़ने का मौका मिले तो तुरंत ही आगे आकर अपने पूरे प्रयास से जीतने की कोशिस करनी चाहिए । भगवान ने कहा कि अगर ऐसे युद्ध में जीत गए तो इस लोक की प्राप्ति होती है और अगर हार गए तो परलोक की प्राप्ति होती है ।

युधिष्ठिर मान गए और फिर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि जरासंध को इतनी शक्ति कहाँ से प्राप्त हुयी । भगवान ने कहा कि कुछ समय पहले मगध देश में बृहद्रथ नाम के एक राजा थे । बहुत से यज्ञ करवाने के बाद भी उनके यहाँ कोई संतान नहीं हो रही थी ।

एक दिन राजा ब्रहद्रथ को खबर मिली कि उनके राज्य में महात्मा चण्ड कौशिक आये हुए हैं । राजा तुरंत ही महात्मा के पास पहुंचे और एक पुत्र की कामना की । महात्मा ने उन्हें एक फल दिया और कहा कि इसे अपनी पत्नी को खिला देना और तुम्हे पुत्र प्राप्त हो जायेगा ।

राजा ने ऐसा ही किया और आधा आधा फल अपनी दोनों पत्नियों को दे दिया । दरअसल राजा ने शादी के वक्त अपनी दोनों पत्निओं से वादा किया था कि वे दोनों को सामान प्रेम करेंगे और इस वक्त उन्हें अपना वादा निभाने के लिए फल के दो हिस्से करने पड़ गए । महात्मा ने यह तो कहा नहीं था कि आधा फल ही अपनी पत्नी को खिलाना परन्तु राजा ने ऐसा ही किया और इस वजह से राजा बृहद्रथ की दोनों पत्नियों को पुत्र प्राप्त तो हुए लेकिन आधे आधे ।

एक पुत्र का आधा सर था और आधा शरीर । इसी तरह दूसरे पुत्र का भी आधा ही सर था और आधा शरीर । दोनों राणियां इस तरह के पुत्र देख कर दंग रह गयीं और उन्होंने दोनों पुत्रों को फेक दिया । उस राज्य में एक जरा नाम की राक्षसी रहती थी और जब जरा राक्षसी ने इन दोनों आधे आधे शरीर वाले पुत्रों को खाने के लिए उठाया तो वे आपस में जुड़ गए और उस बालक में जान आ गयी ।

वह इतने जोर से रोने लगा कि उसकी आवाज राजा के महल तक पहुंची । जरा ने सोचा कि यह तो छोटा सा बालक है इसको मुझे राजा को लौटा देना चाहिए । राक्षसों के पास मायावी विद्या होती है और उस विद्या के इस्तेमाल से जरा समझ गयी थी कि यह राजा बृहद्रथ का ही पुत्र है ।

जरा ने एक अपनी मायावी विद्या से एक सुंदर सा रूप धारण किया और राजा बृहद्रथ को वह पुत्र लौटा दिया । उस बालक को जरा नाम की राक्षसी ने जोड़ा था इसलिए उनका नाम जरासंध रखा गया । एक दिन महात्मा चण्ड कौशिक मगध देश आये और उन्होंने राजा बृहद्रथ को बताय कि तुम्हारा पुत्र बहुत अधिक शक्तिशाली होगा । इसको देवता तक नहीं हरा पाएंगे और इसकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी इसको दर्शन देंगे ।

भगवान श्री कृष्ण ने जरासंध के जन्म की कहानी बताकर कहा कि आमने सामने लड़ने की जगह जरासंध को कुस्ती में हराना चाहिए । इसके बाद महाराज युधिष्ठिर की आज्ञा लेकर भगवान श्री कृष्ण, अर्जुन और भीम जरासंध के यहाँ गए और जाने से पहले सब ने साधू भेष धारण कर लिया । जरासंध ने उनका बहुत ही अच्छे से स्वागत किया था लेकिन वह बहुत बुद्धिमान था और एक ही दृष्टि में समझ गया था कि ये ब्राह्मण तो नहीं हैं ।

जरासंध के मन की बात जानकार भगवान श्री कृष्ण ने उसे युद्ध के लिए चुनौती दे दी । भगवान ने कहा कि वे तीनो क्षत्रिय हैं और जरासंध की कैद से उन समस्त राजाओं को छुड़ाने के लिए आये हैं । भगवान ने आगे कहा कि या तो जरासंध उन राजाओं को छोड़ दे या फिर उनसे युद्ध करने के लिए तैयार हो जाए ।

तब जरासंध ने कहा कि वह युद्ध करना पसंद करेगा । जरासंध ने कहा कि अर्जुन और कृष्ण उसे शरीर से काम बलवान लगते हैं इसलिए वह भीम सेन के साथ कुस्ती लड़ना पसंद करेगा । इसके बाद भीम सेन और जरासंध का युद्ध पूरे 13 दिन तक चलता रहा और चौदवें दिन जरासंध थक गया तब भीम ने उसके दो टुकड़े करके दायां हिस्सा दाएं तरफ और बायां हिस्सा बाएं तरफ फेक दिया । कुछ ही समय में जरासंध के दोनों टुकड़े फिर से जुड़ गए ।

भीम ने फिर से दो टुकड़े कर दिए लेकिन वे फिर से जुड़ गए । अब भीम ने आशा भरी नजरों से भगवान कृष्ण की और देखा और भगवान ने एक लकड़ी की तीली उठाकर उनको इशारा किया । भगवान ने उस तीली को बीच में से फाड़ दिया और उसका दायां हिस्सा बाएं तरफ फेका और बायां हिस्सा दाएं तरफ।

भीम ने भी जरासंध के दो टुकड़े करके विपरीत दिशाओं में फेक दिए और जरासंध मारा गया । इस प्रकार तीनों जरासंध की कैद से सभी 86 राजाओं को छुड़ाकर वापिस इंद्रप्रस्थ आ गए थे और वापिस आते आते पांडवों ने जरासंध के पुत्र सहदेव को मगध का राजा बना दिया था ।

राजसूय यज्ञ करने के लिए महाराज युधिष्ठिर का चक्रवर्ती सम्राट बनना अनिवार्य था जिसके लिए अनिवार्य था पृथ्वी के सभी राजाओं के द्वारा महाराज युधिष्ठिर का अधिपत्य स्वीकार किया जाए । अर्जुन और बाकी पांडवों ने यह जिम्मेमदारी अपने ऊपर ली और महाराज युधिष्ठिर की आज्ञा लेकर विश्व विजयी बनने के लिए निकल पड़े ।

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भगवान श्री कृष्ण ने जरासंध को क्यों नहीं मारा?

ऐसे क्यों?" तब हंसते हुए श्री कृष्ण ने बलराम को समझाया, "हे भ्राता श्री, मैं जरासंध को बार-बार जानबूझकर इसलिए छोड़ दे रहा हूं ताकि वह जरासन्ध पूरी पृथ्वी से दुष्टों को अपने साथ जोड़े और मेरे पास लाता रहे और मैं आसानी से एक ही जगह रहकर धरती के सभी दुष्टों को मार दे रहा हूं।

जरासंध कैसा शासक था वह क्यों मारा गया?

जरासंध मगध (वर्तमान बिहार) का राजा थावह अन्य राजाओं को हराकर अपने पहाड़ी किले में बंदी बना लेता थाजरासंध बहुत ही क्रूर था, वह बंदी राजाओं का वध कर चक्रवर्ती राजा बनना चाहता था। भीम ने 13 दिन तक कुश्ती लड़ने के बाद जरासंध को पराजित कर उसका वध किया था

जरासंध कौन सी जाति के थे?

जरासंध शैव था और असुर उसकी जाति थी।

पांडवों ने जरासंध का वध क्यों किया?

भीमसेन ने जरासंध का वध किया था। क्योंकि वह राजसूय यज्ञ में सम्मिलित होने पर सहमत नहीं हो रहा था। वह भीम द्वारा मारा गया था। चूंकि वह दुष्ट था इसलिए यह निश्चित था कि उसे मार दिया जाएगा लेकिन उसे मारना आसान नहीं था क्योंकि वह बहुत शक्तिशाली था।

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