अवलोकन के प्रकारavlokan ke prakar;वैज्ञानिक अनुसंधान में कई प्रकार से अवलोकन पद्धति का उपयोग किया जाता है अवलोकन को प्रमुख रूप से निम्न प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है-- Show
1. सहभागी अवलोकन किसी भी घटना का निर्वाचन शुद्ध स्वरूप में करना हो तो उस घटना के बाहरी एवं आंतरिक स्वरूप का पूर्ण ज्ञान होना बहुत जरूरी है। घटना का अध्ययन करते हुए अनुसंधानकर्ता उस घटना के क्रियाकलापों में सहभागी होता है। जिससे अनुसंधानकर्ता उस समूह का अंग बन जाता है। अनुसंधानकर्ता समूह की समस्त क्रियाओं में सक्रिय सदस्य बनकर भाग लेता है और बारीकी से उसकी आदतों, व्यवहार और रीति-रिवाजों का निरीक्षण करता है। इस प्रकार के निरीक्षण द्वारा अनुसंधानकर्ता वास्तविक तथा निष्पक्ष तथ्यों का संकलन करता है। यह भी पढ़ें; अवलोकन पद्धति अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं यह भी पढ़ें; अवलोकन पद्धति के गुण/लाभ, सीमाएं/दोष पीटर एच. मान के शब्दों मे," सहभागी अवलोकन का अभिप्राय सामान्यता ऐसी परिस्थिति से है, जिसमें अवलोकनकर्ता अपने अध्ययन समूह के उतने ही निकट होता है जितना कि उसका कोई अन्य सदस्य होता है।" सहभागी अवलोकन को परिभाषित करते हुए श्रीमती पी. व्ही. यंग ने लिखा है," सहभागी मे अवलोकनकर्ता अध्ययन के लिए समूह में रहकर अथवा अन्य प्रकार से उसके जीवन में सहभागी होता है। 2. असहभागी अवलोकन सहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्ता समूह का सदस्य बनकर रहता है तथा उसके अन्य सदस्यों के समान ही समूह के क्रियाकलापों, त्योहारों, उत्सवों आदि ने भाग भी लेता है। इस प्रकार समूह के साथ घुल-मिल जाता है। इसके विपरीत असहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्ता समूह में अध्ययन करने के लिए तो जाता है परंतु उसका सदस्य बनकर घटनाओं, क्रियाकलापों, त्योहारों, उत्सव आदि में स्वयं भाग नहीं लेता। वह दूर से घटनाओं को घटते हुए देखता रहता है। एक वैषयिक अध्ययनकर्ता के रूप में वह समूह के क्रियाकलापों को दूर से ही तटस्थ होकर अवलोकन करता रहता है। वह समूह में इतना घुलता-मिलता नहीं है कि वह समूह के सदस्यों की धड़कने उसकी धड़कने बन जाएं। इस प्रकार असहभागी अवलोकन मे अवलोकनकर्ता समूह के जीवन मे भाग लिए बिना दूर से ही उस समूह की क्रियाओं का अवलोकन करता है। 3. अर्द्ध-सहभागी अवलोकन अर्द्ध-सहभागी अवलोकन पद्धति सहभागी और असहभागी अवलोकन पद्धति का बीच का मार्ग है। इसके अंतर्गत अवलोकनकर्ता कुछ साधारण कार्यों में भाग लेता है और बाकी एक तटस्थ दृष्टा के रूप मे निरीक्षण करता है। विलियम ह्राइट का कहना है कि," समाज की जड़ जटिलता के कारण पूर्ण एकीकरण अव्यवहारिक है। अतः अर्द्ध तटस्थ नीति ही उत्तम है। 4. अनियंत्रित अवलोकन अनियंत्रित अवलोकन में घटना तथा अवलोकनकर्ता पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं रहता है। प्रारंभ में इस प्रणाली का उपयोग किया जाता था और इसी के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते थे। सामाजिक अनुसंधान की प्रकृति भी कुछ इस प्रकार की है की सदैव नियंत्रण अवलोकन संभव नहीं हो सकता। प्रो. जे. बर्नार्ड्स के अनुसार,'' आंकड़े इतने वास्तविक और सजीव होते है और उनके बारे में हमारी भावना इतनी दृढ़ होती हैं कि कभी-कभी उनके विस्तार के लिए अपने भावों की पुष्टि से गलत करने लगते है। 5. नियंत्रित अवलोकन नियंत्रित अवलोकन में दोहरे नियंत्रण की प्रक्रिया कार्यरत रहती है। एक तो अवलोकनकर्ता पर नियंत्रण रखा जाता है। दूसरे अवलोकित की जाने वाली घटनाओं एवं परिस्थितियों पर भी नियंत्रण रखा जाता है। नियंत्रित अवलोकन पूर्व व्यवस्थित योजनाओं के अनुसार किया जाता है। जिसके अंतर्गत पर्याप्त प्रयोगात्मक कार्यप्रणाली सम्मिलित होती है। संपूर्ण अवलोकन एक पूर्व निर्धारित आयोजन के अनुसार किया जाता है, जिसमें अवलोकनकर्ता पूर्व नियोजित प्रक्रिया एवं साधनों का प्रयोग करते हुए एक स्वचालित यंत्र की भांति कार्य करता रहता है। इसलिए इसे पूर्व नियोजित पूर्व संरचित एवं व्यवस्थित अवलोकन की संज्ञा भी दी जाती है। वास्तविकता में अनियंत्रित अवलोकन की कमियों को दूर करने के लिए नियंत्रित अवलोकन का विकास हुआ है। नियंत्रित अवलोकन में अवलोकित की जाने वाली इकाइयों को स्पष्ट परिभाषित कर दिया जाता है, तथा यह भी सुनिश्चित कर दिया जाता है कि किस प्रकार की जानकारी एवं सूचनाएं एकत्रित की जानी है। 6. व्यक्तिगत अवलोकन जब किसी घटना या विशिष्ट सामूहिक व्यवहार का अनुसंधानकर्ता व्यक्तिगत स्तर पर अध्ययन करता है। तो उसे व्यक्तिगत अवलोकन कहते हैं जैसे किसी भिखारी समूह का कोई अनुसंधानकर्ता स्वयं ही अध्ययन करता है। तो वह व्यक्तिगत अवलोकन कहलाता है। 7. सामूहिक अवलोकन जब अवलोकन का कार्य अवलोकनकर्ता के एक समूह द्वारा किया गया हो तो उसे सामूहिक अवलोकन कहा जाता है। इसमें अवलोकनकर्ता का समूह अलग-अलग रूप से किसी घटनाक्रम या सामूहिक व्यवहार का निरीक्षण करता है। सामूहिक अवलोकन नियंत्रित एवं अनियंत्रित अवलोकन का मिश्रित रूप है। सामूहिक अवलोकन में अवलोकनकर्ता का समूह अलग-अलग रूप से किसी घटनाक्रम या सामूहिक व्यवहार का अवलोकन कर सूचनाएं एकत्रित करता है। इन समस्त सूचनाओं के आधार पर एक प्रधान देखती व्यक्ति अध्ययन के निष्कर्ष निकालता है। संबंधित पोस्ट प्रो0 गडे एवं हॅाट के अनुसार विज्ञान निरीक्षण से प्रारम्भ होता है और फिर सत्यापन के लिए अन्तिम रूप से निरीक्षण पर ही लौटकर आता है। और वास्तव में को वैज्ञानिक किसी भी घटना को तब तक स्वीकार नहीं करता जब तक कि वह स्वयं उसका अपनी इन्द्रियों से निरीक्षण नहीं करता। अवलोकन के प्रकारअध्ययन की सुविधा के लिए निरीक्षण को कई भागों में बाँटा जाता है। प्रमुख रूप से निरीक्षण का वर्गीकरण इस प्रकार है।
1. अनियन्त्रित अवलोकनअनियन्त्रित निरीक्षण ऐसे निरीक्षण को कहा जा सकता है जबकि उन लोगों पर किसी प्रकार का को नियंत्रण न रहे जिन का अनुसंधानकर्ता निरीक्षण कर रहा है। दूसरे शब्दों में जब प्राकृतिक पर्यावरण एव अवस्था में किन्ही क्रियाओं का निरीक्षण किया जाता है। साथ ही क्रियाये किसी भी बाहय शक्ति द्वारा संचालित एंव प्रभावित नही की जाती है तो ऐसे निरीक्षण का अनियंत्रित निरीक्षण कहा जाता है। इस प्रकार के अवलोकन में अवलोकन की जाने वाली घटना को बिना प्रभावित किये हुये, उसे उसके स्वाभाविक रूप में देखने का प्रयास किया जाता है। इसलिए गुड एवं हाट इसे साधारण अवलोकन (Simple observation) कहते हैं। 2. नियन्त्रित अवलोकनअनियन्त्रित अवलोकन में पायी जाने वाली कमियों जैसे- विश्वसीनयता एवं तटस्थता का अभाव-ने ही नियन्त्रित अवलोकन का सूत्रपात किया है। नियन्त्रित अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता पर तो नियन्त्रण होता ही है, साथ ही साथ अवलोकन की जाने वाली घटना अथवा परिस्थिति पर भी नियन्त्रण किया जाता है। अवलोकन सम्बन्धी पूर्व योजना तैयार की जाती है, जिसके अन्तर्गत निर्धारित प्रक्रिया एवं साधनों की सहायता से तथ्यों का संकलन किया जाता है। इस प्रकार के अवलोकन में निम्न दो प्रकार से नियन्त्रण लागू किया जाता है - 1. सामाजिक घटना पर नियन्त्रण- इस प्रविधि में अवलोकित घटनाओं को नियन्त्रित किया जाता है जिस प्रकार प्राकृतिक विज्ञानों में प्रयोगशाला में परिस्थितियों को नियन्त्रित करके अध्ययन किया जाता है, उसी प्रकार
समाज वैज्ञानिक भी सामाजिक घटनाओं अथवा परिस्थितियों को नियन्त्रित कर के, उनका अध्ययन करता है। तथापि, सामाजिक घटनाओं एवं मानवीय व्यवहारों को नियन्त्रित करना अत्यन्त कठिन कार्य होता है। इस प्रविधि का प्रयोग बालकों के व्यवहारों, श्रमिकों की कार्य-दषाओं, आदि, के अध्ययनों में प्रयुक्त किया जाता है। 2. अवलोकनकर्त्ता पर नियन्त्रण- इसमें घटना पर नियन्त्रण न रखकर, अवलोकनकर्त्ता पर नियन्त्रण लगाया जाता है। यह नियन्त्रण कुछ साधनों द्वारा संचालित किया जाता है। जैसे- 51 अवलोकन की विस्तृत पूर्व योजना, अवलोकन अनुसूची, मानचित्रों, विस्तृत क्षेत्रीय नोट्स व डायरी, कैमरा, टेप रिकार्डर आदि प्रयुक्त किया जाना। नियन्त्रण के सम्बन्ध में गुडे एवं हाट का कहना है ‘‘सामाजिक अनुसंधान में अध्ययन-विषय पर नियन्त्रण रख सकना तुलनात्मक दृष्टि से कठिन होता है, अत: अवलोकनकर्त्ता पर नियन्त्रण अधिक व्यावहारिक एवं प्रभावी प्रतीत होता है।’’ स्पष्ट है कि नियन्त्रित अवलोकन सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिकता, विश्वसनीयता एवं तटस्थता की दृष्टि से अनियन्त्रित अवलोकन की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण हैय और यही इसकी लोकप्रियता का आधार है। नियन्त्रित एवं अनियन्त्रित अवलोकनों में अन्तर- उपरोक्त दोनों पद्धतियों में अन्तर स्पष्ट किये जा सकते हैं : -
3. सहभागी अवलोकनसहभागी निरीक्षण की अवधारणा का प्रयोग सर्वप्रथम एण्डवर्ड लिण्डमैंट ने अपनी पुस्तक में किया था इसके बाद ही सहभागी निरीक्षण एक महत्वपूर्ण प्रविधि के रूप में लोगों के सामने आया, इस प्रविधि को स्पष्ट करते हुए पी0एच0मान से लिखा है ‘‘ सहभागी अवलोकन की तात्पर्य एक ऐसी दषा है जिसमें अवलोकनकर्ता अध्ययन किये जाने वाले समूह को अत्यधिक घनिष्ठ सदस्य बन जाता है। पूर्ण-सहभागी अवलोकन से तात्पर्य उस अवलोकन से है जिसमें अवलोकनकर्त्ता अध्ययन किये जाने वाले समूह में जा कर रहने लगता है। उस समूह की सभी क्रियाओं में एक सदस्य की तरह भाग लेता है। समूह के सदस्य भी उसे स्वीकार कर लेते हैं, और उसे अपने समूह का सदस्य मान लेते हैं। सहभागी अवलोकन के गुण - तथ्य संकलन की एक महत्वपूर्ण प्रविधि के रूप में पूर्ण-सहभागी अवलोकन के निम्न गुणों को रेखांकित किया जा सकता है। 1. गहन एवं सूक्ष्म अध्ययन- अवलोकनकर्त्ता अध्ययन परिस्थिति अथवा समूह में स्वयं प्रत्यक्ष रूप से लम्बे समय तक भागीदारी निभाता है। अत:, उसे समूह की जितनी सूक्ष्म
जानकारी प्राप्त हो जाती है, उतनी अन्य प्रविधियों से सम्भव नहीं है। 2. स्वाभाविक व्यवहार का अध्ययन- अवलोकनकर्त्ता समूह में इतना घुलमिल जाता है कि उसकी उपस्थिति समूह के व्यवहार को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करती है। अत:, उसे समूह के वास्तविक व्यवहार को नजदीकी से देखने व अध्ययन करने का अवसर मिलता है। 3. अधिक विश्वसनीयता- अवलोकनकर्त्ता सम्बन्धित समूह में रहकर स्वयं अपने नेत्रों से घटनाओं को स्वाभाविक तथा क्रमबद्ध रूप से घटते हुये
देखता है। अत:, संकलित सूचनायें अधिक विश्वसनीय एवं भरोसा योग्य होती है। 4. संग्रहित सूचनाओं का परीक्षण सम्भव- अवलोकनकर्त्ता, व्यक्तिगत रूप में समूह की विभिन्न गतिविधियों में भाग लेता रहता है। अत:, शंका होने पर पुन: वैसी ही परिस्थिति में सूचनाओं की शुद्धता एवं विश्वसनीयता की जाँच सम्भव है। 5. सरल अध्ययन- सम्बन्धित समूह का सदस्य बन जाने के कारण अवलोकनकर्त्ता घटनाओं एवं परिस्थितियों का सरलता से अवलोकन कर सकता है। यही कारण है कि अनेक मानवशास्त्रियों एवं समाजशास्त्रियों ने छोटे समुदायों, जन - जातियों एवं साँस्कृतिक समूहों के किसी भी पक्ष का अध्ययन करने में इस विधि का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है। सहभागी अवलोकन के दोष/सीमायें- 1. पूर्ण सहभागिता सम्भव नहीं- रेडिन एवं हरस्कोविट्स ने इस विधि को पूर्णतया अव्यवहारिक कहा है। यह सत्य भी है। उदाहरण के लिए, जनजातियों के साथ सहभागिता के दौरान उनके रीति-रिवाजों, आदतों, मनोवृत्तियों के अनुसार अवलोकनकर्त्ता का रहना सम्भव नहीं हो सकता है। इसी प्रकार, पागलों के अध्ययन के दौरान भी सहभागिता सम्भव नहीं है। अत:, एम.एम. बसु ने उचित ही लिखा है- ‘‘एक क्षेत्रीय कार्यकर्त्ता कुछ व्यावहारिक कारणों से अध्ययन किये जाने वाले समुदाय के जीवन में कभी भी पूर्णतया भाग नहीं ले सकता है।’’ 2. व्यक्तिगत प्रभाव- अवलोकनकर्त्ता अध्ययन समूह में इतना घुलमिल जाता है कि कभी-कभी अवलोकनकर्त्ता के व्यवहार एवं स्वभाव का प्रभाव, समूह के व्यक्तियों के व्यवहार में भी परिवर्तन ला देता है। ऐसी स्थिति में, समूह के
स्वाभाविक एवं वास्तविक व्यवहार का अवलोकन सम्भव नहीं हो पाता है। 3. साधारण तथ्यों का छूट जाना- कभी-कभी अवलोकनकर्त्ता अध्ययन समूह से सहभागिता के चलते क महत्वपूर्ण तथ्यों को सामान्य समझ कर छोड़ देता है, जबकि वे तथ्य अध्ययन की दृष्टि महत्वपूर्ण होते हैं। 4. वस्तु-निष्ठता का अभाव- अवलोकनकर्त्ता की समूह में अत्याधिक सहभागिता उसमें समूह के प्रति लगाव व आत्मीयता पैदा कर देती है। परिणामस्वरूप, वह समूह के अवगुणों को छिपा कर अच्छाइयों को
ही चिन्हित करने लग जाता है, जिससे कि अध्ययन की वस्तुनिष्ठता में कमी आती है। 5. अत्यधिक खर्चीली- अवलोकनकर्त्ता को अध्ययन समूह से सहभागिता प्राप्त करने एवं उनका विश्वास जीतने में काफी समय के साथ-साथ अधिक धन भी व्यय करना पड़ता है। 6. सीमित क्षेत्र का अध्ययन- इस प्रविधि से बड़े समुदाय के सभी लोगों का अध्ययन सम्भव नहीं है। अत:, इस प्रविधि का प्रयोग लघु समुदाय में ही संभव है। 7. भूमिका सामन्जस्य में कठिना- अवलोकनकर्त्ता को दो भूमिकाओं का निर्वहन करना होता है। एक भूमिका अवलोकनकर्त्ता की एवं दूसरी समूह के सदस्य की। दोनों भूमिकाओं के उचित निर्वहन से ही वह निष्पक्ष सूचनायें एकत्रित कर सकता है। अन्यथा ‘भूमिका संघर्ष’ अवलोकनकर्त्ता की मेहनत पर पानी फेर सकता है। मोजर ने लिखा है- ‘‘सहभागिक अवलोकन एक व्यक्ति प्रधान क्रिया है, अत: इसकी सफलता बहुत कुछ अवलोकनकर्त्ता के व्यक्तिगत गुणों पर निर्भर करती है।’’ 4. असहभागिक अवलोकनयह विधि सहभागी अवलोकन के विपरीत है। इस प्रकार की क्रिया में निरीक्षणकर्ता समुदाय का न तो अस्था सदान्य बनता है और न उनकी क्रियाओं में भागीदार ही होता है इस से ही निरीक्षण कर उसकी गहरा में जाने का प्रयत्न करता है। वह सामूहिक जीवन में स्वंय प्रवेश करने के बजाए उसके बाहय पहलुओं का ही निरीक्षण करता है। इस प्रकार से निष्पादन एव स्वत्रंतापूर्वक अध्ययन इस प्रकार की प्रवधि की विशेषता है इसमें अवलोकनकर्त्ता अध्ययन समूह के बीच उपस्थिति रहते हुये भी, उनके क्रियाकलापों में भागीदारी नहीं निभाता है वरन् तटस्थ तथा पृथक रहते हुए वह एक मूक दर्शक की तरह घटनाओं को घटते हुए देखता है, सुनता है एवं उनका आलेखन करता है। जैसे किसी महाविद्यालय के वार्षिकोत्सव में अतिथियों के साथ बैठकर घटनाओं का निरीक्षण करना। तथापि, यह आवश्यक है कि असहभागी अवलोकनकर्त्ता को अपनी उपस्थिति से समूह के घटनाक्रम को प्रभावित नहीं होना देना चाहिये। असहभागी अवलोकन की विशेषतायें- उपरोक्त विवेचन से असहभागी अवलोकन की निम्न विशेषताओं को रेखांकित कर सकते हैं : -
असहभागी अवलोकन के दोष-
उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर, आप सहभागी व असहभागी अवलोकन में निम्न अन्तर स्पष्ट कर सकते हैं : - 1. अध्ययन की प्रकृति- सहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता सामुदायिक जीवन की गहरा तक पहुँच कर समूह का गहन, आन्तरिक एवं सूक्ष्म अध्ययन कर सकता है। इसके विपरीत असहभागी अवलोकन से समूह के केवल बाहरी व्यवहार का अध्ययन सम्भव हो सकता है। गोपनीय सूचनायें प्राप्त नहीं की जा सकती हैं। 2. सहभागिता का
स्तर- सहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता स्वयं अध्ययन समूदाय में जा कर रच बस जाता है एवं उसके क्रिया कलापों में सक्रियता से भाग लेता है। असहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता की स्थिति एक अपरिचित की रहती हैय अर्थात् वह अध्ययन समूह से पृथक व तटस्थ रह कर अध्ययन करता है। 3. सूचनाओं की पुर्नपरीक्षा- सहभागी अवलोकन में सहभागिता के कारण अवलोकनकर्त्ता प्राप्त सूचनाओं की शुद्धता की जाँच कर सकता है, जबकि अहसभागी अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता कभी-कभी या घटनाओं के घटने की सूचना
मिलने पर ही अध्ययन समूह में जाता है। अत:, अवलोकित घटनाओं की पुर्नपरीक्षा सम्भव नहीं हो पाती है। 4. सामूहिक व्यवहार की प्रकृति- सहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता सामूदायिक जीवन में घुलमिल जाता है। अत:, घटनाओं का अवलोकन उनके सरल एवं स्वाभाविक रूप में सम्भव होता है जबकि असहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता के एक अपरिचित व्यक्ति के रूप में होने के कारण लोग उसे शंका एवं संदेह की दृष्टि से देखते हैं। अत:, स्वाभाविक मानवीय व्यवहार का अध्ययन सम्भव नहीं होता है। 5. समय व धन- सहभागी अवलोकन समय व धन दोनों की दृष्टि से खचÊला है, क्योंकि अवलोकनकर्त्ता को लम्बे समय तक अध्ययन समूह में रहना पड़ता है। इसकी तुलना में असहभागी अवलोकन में समय व धन तुलनात्मक रूप से कम खर्च होता हैं। 5. अर्द्धसहभागी अवलोकनपूर्ण सहभागिता एवं पूर्ण असहभागिता दोनों ही स्थितियाँ व्यावहारिक दृष्टि से असम्भव होती है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुये, गुडे एवं हॉट ने मध्यम मार्ग को अपनाने का सुझाव दिया है। अर्थात्, अर्द्धसहभागी अवलोकन, सहभागी एवं असहभागी अवलोकन दोनों का समन्वय है। इस प्रकार के अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता परिस्थिति, आवश्यकता और घटनाओं की प्रकृति के 56 अनुसार कभी अध्ययन समूह में सहभागिता निभाते हुए सूचनायें एकत्रित करता है, और कभी उससे पूर्णतया पृथक रह कर एक मूक दर्शक के रूप में सूचनायें एकत्रित करता है। विलियन व्हाइट का मानना है कि ‘‘हमारे समाज की जटिलता को देखते हुये पूर्ण एकीकरण का दृष्टिकोण अव्यावहारिक रहा है। एक वर्ग के साथ एकीकरण से उसका सम्बन्ध अन्य वर्गों से समाप्त हो जाता है। अत: अर्द्ध-सहभागिता अधिक संभव होने के साथ ही उपयुक्त भी प्रतीत होती है।’’ 6. सामूहिक अवलोकनसामूहिक अवलोकन में अध्ययन की जाने वाली घटना के विभिन्न पक्षों का एकाधिक विषय-विशेषज्ञों द्वारा अवलोकन किया जाता है, स्पष्ट है कि सामूहिक अवलोकन में अवलोकन का कार्य क व्यक्तियों के माध्यम से किया जाता है। इन सभी अवलोकनकर्त्ताओं में कार्य को बाँट दिया जाता है, और उनके कार्यों का समन्वय एक केन्द्रीय संगठन द्वारा किया जाता है। सामूहिक अवलोकन का प्रयोग 1984 में इंग्लैण्ड में वहाँ के निवासियों के जीवन, स्वभाव व विचारों के अध्ययन हेतु किया गया था। 1944 में जमैका में स्थानीय दशाओं के अध्ययन हेतु भी इस विधि का प्रयोग किया गया था। यह प्रविधि खर्चीली होने के साथ-साथ कुशल प्रशासन भी चाहती है। इसी वजह से इस विधि का प्रयोग व्यक्ति के बजाय सरकारी या अर्द्ध सरकारी संस्थानों द्वारा अधिक किया जाता है। सामूहिक अवलोकन के गुण-
सामूहिक अवलोकन की सीमाएँ -
अवलोकन की उपयोगिताअवलोकन पद्धति की उपयोगिता को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट कर सकते हैं- 1. सरलता : यह विधि अपेक्षाकृत सरल है। अवलोकन करने के लिये अवलोकनकर्त्ता को को विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। 2. स्वाभाविक पद्धति :
मानव आदि काल से ही स्वाभावत: अवलोकन करता आया है। 3. वैषयिकता : चूँकि इस विधि में अवलोकनकर्त्ता घटनाओं को अपनी आँखों से देख कर उनका हूबहू विवरण प्रस्तुत करता है। अत: वैषयिकता बनी रहती है। 4. विश्वसनीयता : अध्ययन निष्पक्ष होने के कारण विश्वसनीयता बनी रहती है। 5. सत्यापन शीलता : संकलित सूचनाओं पर संशय होने पर पुन: परीक्षण सम्भव होता है। 6. उपकल्पना का स्त्रोत :
अवलोकन के दौरान अवलोकनकर्त्ता द्वारा घटना के प्रत्यक्ष निरीक्षण के कारण घटनाओं के प्रति नवीन विचारों एवं उपकल्पनाओं की उत्पत्ति होती है, जो भावी अनुसन्धान का आधार बनती है। 7. सर्वाधिक प्रचलित पद्धति : अपनी सरलता, सार्थकता एवं वस्तुनिष्ठता के कारण अवलोकन सर्वाधिक लोकप्रिय पद्धति है। अवलोकन पद्धति सीमायेंइस विधि की कुछ सीमायें भी है- 1. सभी घटनाओं का अध्ययन सम्भव नहीं - कुछ घटनाओं का अध्ययन सम्भव नहीं हो पाता। जैसे-
2. व्यवहार में कृत्रिमता - कभी-कभी अवलोकन के दौरान लोग अपने स्वाभाविक व्यवहार से हटकर नाटकीय व्यवहार करते हैं। परिणामस्वरूप सही निष्कर्ष नहीं निकल पाते हैं। 3.
सीमित क्षेत्र - समय, धन एवं परिश्रम की सीमितता के चलते यह विधि सीमित क्षेत्र का ही अध्ययन कर पाती है। 4. पक्षपात- अवलोकित समूह के व्यवहार में कृत्रिमता एवं अवलोकनकर्त्ता के मिथ्या-झुकाव के कारण अध्ययन में पक्षपात आने की सम्भावना रहती है। 5. ज्ञानेन्द्रियों में दोष - कभी-कभी ज्ञानेन्द्रियाँ वास्तविक व्यवहार को समझने में समर्थ नहीं होती हैं जबकि अवलोकन में ज्ञानेन्द्रियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। ऐसी स्थिति में अध्ययन प्रभावित होता है। अवलोकन की विशेषताएँ1. प्रत्यक्ष पद्धति- सामाजिक अनुसंधान की दो पद्धितियॉ हैं- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष। अवलोकन सामाजिक अनुसंधान की प्रत्यक्ष पद्धति है, जिसमें अनुसंधानकर्ता सीधे अध्ययन वस्तु को देखता है और निष्कर्ष निकालता है। 2. प्राथमिक सामग्री- का सामाजिक अनुसंधान में जो सामग्री संग्रहित की जाती है, उसे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-प्राथमिक और द्वितीयक। अवलोकन के द्वारा प्रत्यक्षत: सीधे सम्पर्क और सामाजिक तथ्यों का संग्रहण किया जाता है। 3. वैज्ञानिक पद्धति- सामाजिक अनुसंधान अन्य पद्धतियों की तूलना में अवलोकन पद्धति अधिक वैज्ञानिक है, क्योंकि इस पद्धति के द्वारा अपनी ऑखों से देखकर सामग्री का संग्रहण किया जाता है। इसलिए उसमें विश्वसनीयता और वैज्ञानिकता रहती है। 4. मानव इन्द्रियों का पूर्ण उपयोग- अन्य पद्धतियों की तूलना में इनमें मानव इन्द्रियों का पूर्ण रूप से प्रयोग किया जाता है। इससे सामाजिक
घटनाओं को ऑखों से देखकर जॉच-पड़ताल की जा सकती है। 5. विचारपूर्वक एवं सूक्ष्म अध्ययन- अवलोकन एक प्रकार से उद्देश्यपर्ण होता है। को भी अवलोकन क्यों न हो, उसका निश्चित उद्देश्य होता है। 6. विश्वसनीयता- अवलोकन पद्धति अधिक विश्वसनीय भी होती है, क्योंकि इसमें किसी समस्या या घटना का उसके स्वाभाविक रूप से अध्ययन किया जाता है। इसलिए इसके द्वारा प्राप्त निष्कर्ष अधिक विश्वसनीय होते हैं। 7. सामूहिक व्यवहार
का अध्ययन- अवलोकन प्रणाली का प्रयोग सामूहिक व्यवहार के अध्ययन के लिए किया जाता है। 8. पारस्परिक एवं कार्यकाकरण सम्बन्धों का ज्ञान- इसकी अन्तिम विशेषता यह है कि इसके द्वारा कार्य-कारण सम्बन्धों या पास्परिक सम्बन्धों का पता लगाया जाता है। अवलोकन की प्रक्रियाअवलोकन सोच समझ कर की जाने वाली क्रमबद्ध प्रक्रिया है। अत: अवलोकन प्रारम्भ करने से पूर्व, अवलोकनकर्त्ता अवलोकन के प्रत्येक चरण को सुनिश्चित कर लेता है। 1. प्रारम्भिक आवश्यकतायें -अवलोकनकर्त्ता को सर्व प्रथम अवलोकन की रूपरेखा बनाने के लिये यह निश्चित करना पड़ता है कि (1) उसे किसका अवलोकन करना है? (2) तथ्यों का आलेखन कैसे करना है? (3) अवलोकन का कौनसा प्रकार उपयुक्त होगा? (4) अवलोकनकर्त्ता व अवलोकित के मध्य सम्बन्ध किस प्रकार स्थापित किया जाना है? 2. पूर्व जानकारी प्राप्त करना -इस चरण में अवलोकनकर्त्ता निम्न जानकारी पूर्व में प्राप्त कर लेता है। (1) अध्ययन क्षेत्र की इकायों के सम्बन्ध में जानकारी। (2) अध्ययन
समूह की सामान्य विशेषताओं की जानकारीय जैसे स्वभाव, व्यवसाय, रहन-सहन, इत्यादि। (3) अध्ययन क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति की जानकारी, घटना स्थलों का ज्ञान एवं मानचित्र, आदि। 3. विस्तृत अवलोकन रूपरेखा तैयार करना -रूपरेखा तैयार करने के लिये निम्न बातों को निश्चित करना होता है। (1) उपकल्पना के अनुसार अवलोकन हेतु तथ्यों का निर्धारण, (2) आवश्यकतानुसार नियंत्रण की विधियों एवं परिस्थितियों का निर्धारण, (3) सहयोगी कार्यकर्त्ताओं की भूमिका का निर्धारण। 4.
अवलोकन यंत्र -अवलोकन कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व, उपयुक्त अवलोकन यंत्रों का निर्माण करना आवश्यक होता है:-जैसे:- (1) अवलोकन निर्देशिका या डायरी (2) अवलोकित तथ्यों के लेखन के लिये उचित आकार के अवलोकन कार्ड (3) अवलोकन-अनुसूची एवं चार्ट-सूचनाओं को व्यवस्थित रूप से संकलित करने के लिये इनका प्रयोग किया जाता है। 5. अन्य आवश्यकतायें -इसमें कैमरा, टेप रिकार्डर, मोबाइल आदि को शामिल किया जा सकता है। इनकी सहायता से भी सूचनायें संकलित की जाती है। संदर्भ -
अवलोकन क्या है इसके प्रकारों को विस्तार से समझाइए?इस प्रकार वह अपने सामाजिक अध्ययन के उद्देश्यों को ध्यान मे रखते हुए अपने निष्कर्षों की परस्पर जाँच कर सकता है । अवलोकन पद्धति शोध की सबसे साधारण तथा आधुनिक तकनीक है। इसके अन्तर्गत सबसे साधारण तथा अनियन्त्रित अनुभवों से लेकर परिष्कृत प्रयोगशाला अनुसंधान के परिणामों को सम्मिलित किया जाता है।
अवलोकन क्या है अवलोकन के प्रकारों का वर्णन करें What is observation describe the types of Observation?यंग- “अनियंत्रित अवलोकन में हम वास्तविक जीवन की परिस्थितियों का सावधानी से अध्ययन करते हैं तथा इसमें हम किसी शुद्ध यंत्र का प्रयोग नहीं करते हैं और उस घटना की शुद्धता की जांच का प्रयत्न भी नहीं करते हैं।" इस प्रकार के अवलोकन में अवलोकन की जाने वाली घटना पर बिना प्रभाव डाले, उसे स्वाभाविक रूप में देखने का प्रयत्न किया ...
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