अपरिग्रह शब्द का क्या अर्थ है * 1 Point जिद ना करना संग्रह न करना दूसरे ग्रह की जानकारी रखना? - aparigrah shabd ka kya arth hai * 1 point jid na karana sangrah na karana doosare grah kee jaanakaaree rakhana?

जैन धर्म
अपरिग्रह शब्द का क्या अर्थ है * 1 Point जिद ना करना संग्रह न करना दूसरे ग्रह की जानकारी रखना? - aparigrah shabd ka kya arth hai * 1 point jid na karana sangrah na karana doosare grah kee jaanakaaree rakhana?

जैन प्रतीक चिन्ह

प्रार्थना

  • णमोकार मंत्र
  • भक्तामर स्तोत्र

दर्शन

जैन दर्शन

  • जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान
  • मोक्ष
  • केवल ज्ञान
  • तत्त्व
  • अनेकांतवाद
  • अहिंसा
  • अस्तेय
  • ब्रह्मचर्य
  • अपरिग्रह
  • सत्य
  • कर्म

भगवान

जैन धर्म में भगवान- २४ तीर्थंकर, केवली, अरिहन्त

  • ऋषभदेव
  • नेमिनाथ
  • पार्श्वनाथ
  • महावीर

मुख्य व्यक्तित्व

गणधर

  • इंद्रभूति गौतम
  • कुन्दकुन्द स्वामी
  • आचार्य उमास्वामी
  • आचार्य समन्तभद्र

मत

  • दिगम्बर
  • श्वेतांबर

ग्रन्थ

  • आगम
  • षट्खण्डागम
  • समयसार
  • तत्त्वार्थ सूत्र
  • रत्नकरण्ड श्रावकाचार

त्यौहार

  • जैन धर्म में दीपावली
  • महावीर जयंती
  • पर्यूषण पर्व

अन्य

  • इतिहास
  • जैन मंदिर
  • प्रमुख जैन तीर्थ
  • जैन ध्वज
  • जय जिनेंद्र

अपरिग्रह शब्द का क्या अर्थ है * 1 Point जिद ना करना संग्रह न करना दूसरे ग्रह की जानकारी रखना? - aparigrah shabd ka kya arth hai * 1 point jid na karana sangrah na karana doosare grah kee jaanakaaree rakhana?
जैन धर्म प्रवेशद्वार

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अपरिग्रह गैर-अधिकार की भावना, गैर लोभी या गैर लोभ की अवधारणा है, जिसमें अधिकारात्मकता से मुक्ति पाई जाती है।। यह विचार मुख्य रूप से जैन धर्म तथा हिन्दू धर्म के राज योग का हिस्सा है। जैन धर्म के अनुसार "अहिंसा और अपरिग्रह जीवन के आधार हैं"।[1] अपरिग्रह का अर्थ है कोई भी वस्तु संचित ना करना होता है।

जैन धर्म[संपादित करें]

अहिंसा के बाद, अपरिग्रह जैन धर्म में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण गुण है। अपरिग्रह एक जैन श्रावक के पांच मूल व्रतों में से एक है| जैन मुनि के २८ मूल गुणों में से यह एक है| यह जैन व्रत एक श्रावक की इच्छाओं और संपत्ति को सिमित करने के सिद्धांत है। जैन धर्म में सांसारिक धन संचय को लालच, ईर्ष्या, स्वार्थ और बढ़ती वासना के एक संभावित स्रोत के रूप में माना जाता है। जीवित रहने के लिए पर्याप्त भोजन करना, दिखावे या अहंकार के लिए खाने से ज्यादा महान माना जाता है|[2]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • जैन धर्म
  • अहिंसा

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. आचार्य तुलसी (19 अक्टूबर 2009). "अहिंसा और अपरिग्रह जीवन के आधार हैं". नवभारत टाइम्स.
  2. Aparigraha - non-acquisition Archived 2015-03-01 at the Wayback Machine, Jainism, BBC Religions

अपरिग्रह शब्द का अर्थ क्या है?

अपरिग्रह गैर-अधिकार की भावना, गैर लोभी या गैर लोभ की अवधारणा है, जिसमें अधिकारात्मकता से मुक्ति पाई जाती है।। यह विचार मुख्य रूप से जैन धर्म तथा हिन्दू धर्म के राज योग का हिस्सा है। जैन धर्म के अनुसार "अहिंसा और अपरिग्रह जीवन के आधार हैं"। अपरिग्रह का अर्थ है कोई भी वस्तु संचित ना करना होता है।

अपरिग्रह शब्द का क्या अर्थ है * किसी से कुछ ग्रहण न करना जिद्द न करना दूसरे ग्रह का प्राणी?

अस्तेय का अर्थ है- चोरी न करना और अपरिग्रह का मतलब है जरूरत से ज्यादा संग्रह न करना

अपरिग्रह किसका ाँद है?

अपरिग्रह का अर्थ है किसी भी विचार, व्यक्ति या वस्तु के प्रति आसक्ति नहीं रखना या मोह नहीं रखना ही अपरिग्रह है। जो व्यक्ति निरपेक्ष भाव से जीता है वह शरीर, मन और मस्तिष्क के आधे से ज्यादा संकट को दूर भगा देता है।

अपरिग्रह की आवश्यकता क्यों है?

वास्तविक ज़रुरत से अधिक वाहनों, घरों और संपत्ति के अर्जन करने की दौड़ ने ही व्यक्ति के नैतिक बल को क्षीण कर दिया है। इन सबसे छुटकारा पाने के लिये व्यक्ति को अपने जीवन में अपरिग्रह के मूल्य का समावेश करना चाहिये। तभी एक भ्रष्टाचार रहित और समतापूर्ण समाज की स्थापना हो पाएगी।