अज्ञेय किस तरह का पाठक चाहते हैं - agyey kis tarah ka paathak chaahate hain

'आत्मसजग कवि थे अज्ञेय'

  • केदारनाथ सिंह
  • वरिष्ठ हिंदी कवि

6 मार्च 2011

अज्ञेय किस तरह का पाठक चाहते हैं - agyey kis tarah ka paathak chaahate hain

इमेज स्रोत, BBC World Service

सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन 'अज्ञेय' हिंदी साहित्य की एक शताब्दी के उत्तरार्ध में लगभर छाए रहे. कई दशकों तक उनका व्यक्तित्व चर्चा में रहा है.

वे एक अच्छे गद्यकार थे और उतने ही अच्छे कवि भी थे.

अज्ञेय ज़्यादा बड़े गद्यकार थे या कवि इस पर बहस हो सकती है. इस पर बहस होनी भी चाहिए. यह एक सुखद बहस है.

'शेखर एक जीवनी' एक बड़ा उपन्यास है और वह बड़ा उपन्यास बना रहेगा. उनकी कविता अपनी क़िस्म की कविता है.

लेकिन आज जब अज्ञेय की जन्मशताब्दी मनाई जा रही है तब उनके विरोधी और समर्थक दोनों एक बात पर सहमत हैं कि वे एक बड़े कवि थे.

अब इसमें बहस की गुंजाइश नहीं है.

किसी कवि के यहाँ अगर 40-50 श्रेष्ठ कविताएँ मिल जाएँ तो इसे बड़ा कवि माना जा सकता है. अज्ञेय के यहाँ इतनी श्रेष्ठ कविताएँ हैं और उन्हें बड़ा कवि माना ही जाना चाहिए.

आत्मसजग कवि

मैं अज्ञेय को सबसे आत्मसजग कवि मानता हूँ. वे अपनी कविताओं को लेकर कई दृष्टियों से बहुत सजग रहे.

उनकी कविता की भाषा को लेकर बहुत बात की जाती है. यह तो अज्ञेय ही बता सकते थे कि भाषा को लेकर उनके इतने आग्रह क्यों थे. लेकिन उनमें यह आग्रह शायद इसलिए था क्योंकि वे जिस भाषा में बात करना चाहते थे वह व्याख्या सापेक्ष है.

उन्हें यह अहसास था कि वे ख़ुद और उनके समकालीन एक नई भाषा गढ़ रहे हैं इसलिए उनका संप्रेषणीयता पर बहुत ज़ोर था. शायद उनके मन में यह संशय रहा होगा कि जो लिखा जा रहा है वह लोगों तक पहुँच रहा है या नहीं.

इसलिए उन्होंने कहा था कि कविता को समझने के लिए पाठकों को एक विशेष तरह की तैयारी की ज़रुरत है.

भाषा में अज्ञेय संस्कृत के बहुत से शब्द लेकर आए, उन्होंने शब्दों का आविष्कार किया और कई पुराने शब्द जो प्रचलन से बाहर हो गए थे उन्हें फिर से वापस लेकर आए. यायावर शब्द को उन्होंने बरतना शुरु किया और अब यह शब्द ख़ूब चलता है.

उनकी कुछ कविताओं में पश्चिम या दूसरे प्रभाव दिख सकता है लेकिन आख़िरकार वे एक स्वयंचेता कवि थे.

अज्ञेय अपनी कविताओं में सिर्फ़ अज्ञेय हैं. वे किसी प्रभाव से आक्रांत नहीं हैं.

'हरी घास पर' को मैं उनकी कविताओं और हिंदी कविता का 'टर्निंग पॉइंट' मानता हूँ.

कई सवाल

उनके मौन पर बहुत सवाल हुए हैं. मौन की बात पश्चिम के बहुत से कवियों ने की है, अज्ञेय भी करते हैं. बौद्ध दर्शन में शून्य और मौन की बात होती है और अज्ञेय पर भी बौद्ध दर्शन का असर दिखाई देता है. लेकिन मैं उनके मौन को किसी दर्शन से जोड़कर देखने का पक्षधर नहीं हूँ.

विद्यानिवास मिश्र का कहना था कि क्रांतिकारी के रूप में उन्होंने जो दिन जेल में बिताए और जो यातनाएँ झेलीं उसने उन्हें मौन कर दिया. लेकिन मैं नहीं जानता कि इसकी वजह वही थी.

लेकिन उनका मौन पाठकों को उलझाता रहा है और उलझाता रहेगा.

उनकी कविता में मृत्यु और ईश्वर के प्रति समर्पण की भी बात होती है लेकिन मुझे उनका रहस्य दर्शन समझ में नहीं आता, मुझे विश्वास नहीं दिलाता.

वैसे हमारे यहाँ उपनिषदों में, सूफ़ियों के यहाँ, कबीर, महादेवी और प्रसाद की कविताओं में रहस्यवाद है लेकिन अज्ञेय का रहस्यवाद इन सबसे नहीं जुड़ता. पश्चिम के रहस्यवाद से शायद उसे जोड़ा जा सकता है.

वे अक्सर व्यक्ति स्वातंत्र्य की बात भी करते थे. क्यों करते थे यह प्रश्न बना ही रहेगा.

उन्होंने कहीं कहा था कि समाजवादी समाज जो व्यक्ति बना रहा है वह सांचे में ढला हुआ है. वह स्वतंत्र नहीं है.

वे व्यक्तिगत आज़ादी के पक्षधर थे. पश्चिमी समाज में बहुत से लोग इसके पक्षधर रहे हैं. एक पूरी परंपरा थी वामपंथी विरोधी लोगों की जो इस तरह की बात करते थे. अज्ञेय इस तरह के चिंतकों से बहुत समय तक जुड़े भी रहे हैं.

लेकिन जब अज्ञेय कविता करने जाते हैं तो सारे बंधन टूट जाते हैं और वे अपनी अनुभूति की कविता लिखने लगते हैं.

अज्ञेय के यहाँ कम ही सही, क्रांति के तेवर वाली कविता भी आपको मिल जाएगी.

इस तरह से वे सभी दिशाओं में अपने आपको खुला रखने वाले कवि थे. लेकिन वे कहीं-कहीं बंद भी दिखाई देते हैं.

एक बार मैंने कहीं लिखा था, "अज्ञेय का काव्य विकास एक खुल कवि का लगातार बंद होते जाने का इतिहास है." अब मैं इसमें थोड़ा संशोधन करके कहना चाहूँगा कि उनका बंद हो जाना आत्मअन्वेषण या आत्मविकास था. वे भीतर ही भीतर कहीं बंद भी हो रहे थे और कहीं खुल भी रहे थे.

अज्ञेय को प्रयोगवाद से भी जोड़ा गया लेकिन मैं मानता हूँ कि प्रयोगवाद से उन्हें ग़लत ढंग से जोड़ा गया. उन्होंने ख़ुद भी कहा है कि प्रयोगवाद कुछ नहीं होता.

अज्ञेय ने शमशेर बहादुर सिंह को कवियों का कवि कहा था मैं उन्हें कवियों का कवि कहता हूँ.

एक अच्छे कवि के रूप में उन्हें हमेशा पढ़ता रहा हूँ और पढ़ता रहूँगा.

(बीबीसी संवाददाता अमरेश द्विवेदी से हुई लंबी बातचीत के आधार पर)

अज्ञेय को किसका प्रवर्तक माना गया है?

अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता को साहित्य जगत में प्रतिष्ठित करने वाले कवि हैं। अनेक जापानी हाइकु कविताओं को अज्ञेय ने अनूदित किया। बहुआयामी व्यक्तित्व के एकान्तमुखी प्रखर कवि होने के साथ-साथ वे एक अच्छे फोटोग्राफर और सत्यान्वेषी पर्यटक भी थे।

अज्ञेय की कृति कौन सी है?

क़रीब पांच दशक तक फैले अपने रचना संसार में अज्ञेय ने तीन उपन्यास लिखे – शेखर : एक जीवनी (दो भाग); नदी के द्वीप और अपने-अपने अजनबी. 'शेखर एक जीवनी' के पहले भाग का प्रकाशन 1941 में हुआ.

अज्ञेय की काव्यगत विशेषताएं क्या है?

अज्ञेय के काव्य का भाव-पक्ष आधुनिकता की ध्वनि है और अहंवादी प्रवृत्ति है। इसके अतिरिक्त बौद्धिक चेतना अथवा बौद्धिकता इनकी काव्य-वस्तु की विशिष्टता है।” अज्ञेय उन प्रयोगवादी कवियों में हैं जो मध्यवर्ग की पीड़ा को अच्छी तरह पहचानते हैं।

अज्ञान का पूरा नाम क्या है?

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' (अंग्रेज़ी: Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Agyeya', जन्म: 7 मार्च, 1911 कुशीनगर; मृत्यु: 4 अप्रैल, 1987 नई दिल्ली) हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे।